राजा निरबंसिया कहानी कमलेश्वर द्वारा रचित है। राजा निरबंसिया समीक्षा नीचे दी गई है। इन्होंने अपनी कहानियों में मध्यम वर्गीय जीवन को चित्रित किया है। कमलेश्वर की कहानी राजा निरबंसिया का कथानक जगपति है। यह कहानी उस दौर के श्रेष्ठ कहानी कारों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर देती है। राजा निरबंसिया आकार की दृष्टि से लंबी कहानी है।
जगपति और चंदा के दांपत्य जीवन में निसंतान होने की व्यवस्था किस प्रकार एक स्त्री को लक्षित करती है और आर्थिक अभावों के कारण इस दंपति के प्रेम संबंध में कैसे-कैसे नाटकीय मोड़ आते हैं। यह कहानी इसे अत्यंत मार्मिक ढंग से अभिव्यक्त करती है। जगपति और चंदा, राजा और रानी दोनों निसंतान हैं। कतिपय घटना प्रसंगों से पुत्रवान होते हैं।
जगपति का चरित्र समय के हिसाब से श्रेष्ठ है। चंद्रा के संतान होना उसके लिए दुखों का पहाड़ है। चंदा को भागना पड़ता है और अपमानित कलंकित होने का अनुभव कर जगपति आत्महत्या कर लेता है। कथा नायक के जीवन की सामान्य रुचि अरुचि, बौद्ध जिजीविषा आर्थिक विषमताओं से प्रभावित है। आर्थिक विषमता और अभाव जीवन को दर्दनाक घुटन की ओर मुड़ते हुए निस्सार कर देता है।
राजा निरबंसिया समीक्षा
राजा निरबंसिया समीक्षा बिंदुवार नीचे दी गई है। कहानी की समीक्षा निम्न क्रम में है-
- कथावस्तु
- कथोपकथन
- पात्र चरित्र चित्रण
- देशकाल एवं वातावरण
- भाषा शैली
- उद्देश्य
कथावस्तु
कमलेश्वर की प्रसिद्ध कहानी ‘राजा निरबंसिया’ एक लोक कथा पर आधारित है। मानवीय संवेदना का उद्घाटन इस कहानी में हुआ है। शिल्प की दृष्टि से भी कहानी उत्कृष्ट है। जगपति अपनी पति का पत्नी को अपना नहीं सकता, जबकि युगो पूर्व चरित्रहीन रानी को राजा निरबंसिया ने लोग मर्यादा की परवाह न करते हुए अपना लिया था। चंदा एक सत्य संपन्न ग्रामीण नारी है। अपने पति जग पति के इलाज के लिए सारे कष्ट सहती है।
जगपति की सारी निर्धनता उसके द्वारा बचन सिंह से आर्थिक सहायता लेना, उनका नपुंसक होकर भी अपनी पत्नी के मातृत्व पर प्रहार करना, चंदा को बचन सिंह को अनैतिक संबंध स्थापित करने के लिए बाध्य कर देता है। आप राजा निरवंसिया समीक्षा पढ़ रहे हैं।




संभवत चंदा व्यभिचार के कारण वचन सिंह के पुत्र की मां नहीं बनती अपितु जगपति की पौरूष हीनता, निर्धनता तथा नारी का मातृत्व उसे पुत्र की मां बनने के लिए प्रेरित करते हैं। जगपति की पौरूष क्षमता की अंतिम परिणति आत्महत्या के रूप में होती है। राजा निरबंसिया कहानी मध्यमवर्गीय जीवन की सादगी की कहानी है। जो संवेदनात्मक स्तर पर यथार्थ का पूर्णता अनुगमन करती हुई चली है। इसमें कमलेश्वरी ने व्यक्ति की घुटन, विघटन, तनाव, पीड़ा को माननीय सहानुभूति के साथ सामाजिक संदर्भों की परिवर्तित चेतना को अत्यंत मार्मिक ढंग से व्यक्त किया है। आप राजा निरबंसिया समीक्षा Hindibag पर पढ़ रहे हैं।
कमलेश्वर ने लोक कथा का सहारा इस कहानी में लेकर निम्न मध्यवर्ग के परिवार की व्यवस्था एवं घुटन को चित्रित किया है।
कथोपकथन
नई कहानी की विशेषता कथानक की वर्णनात्मक का से हटकर उसकी संवाद शैली में है। इस नए कहानीकारों ने संवादों के द्वारा ही चरित्र एवं कथा को विकसित किया है। स्वाभाविक है कि नई कहानियों में संवाद योजना एक अनिवार्यता के रूप में विद्यमान है। संवाद के द्वारा कथानक के विकास की प्रवृत्ति बढ़ने के कारण कहानियों में संवाद योजना में कसाव आ गया है। शब्दों की अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ा है क्योंकि अब संवाद संक्षिप्त से संक्षिप्तर होते गए हैं, परंतु कहानी का योग सूत्र भी संभालते गए हैं। आप राजा निरबंसिया समीक्षा पढ़ रहे हैं।
राजा निरबंसिया कहानी में संवाद योजना का रूप उपरोक्त क्रम में ही निर्धारित हुआ है। अतः पात्रों का उल्लेख किए बिना संवादों के द्वारा तथा आगे बढ़ती गई है। आप राजा निरबंसिया समीक्षा Hindibag पर पढ़ रहे हैं।
पात्र चरित्र चित्रण
एक लघु कथा नक्को चरित्र के निर्माण में संगठित कर कमलेश्वर जी ने आधुनिक परिवेश में स्त्री पुरुष बच्चों की मनोदशा का सार्थक चित्रण किया है। उनके पात्रों में आदर्श की गंध है, मगर वह यथार्थ के निकट रहकर उनका निर्वाह नहीं कर पाते। यद्यपि आज मानव अपनी मान्यताओं से ही विचलित होकर मात्र उनको उपदेश का माध्यम बनाए हुए है।
देशकाल एवं वातावरण
देशकाल एवं वातावरण की दृष्टि से कहानी उत्तम बन पड़ी है। एक सामान्य मध्यमवर्गीय व्यक्ति की नियमित दिनचर्या और जीवन दर्शन को कहानी में उतारा गया है, वातावरण की जुबान कुल नवीनता के साथ पात्र की अभिव्यक्ति अपनी कहानी गढ़ने में संपूर्ण है। देश काल की परिस्थिति में स्त्री की विशेष स्थिति अपना प्रभाव डालती हुई कहानी के आरंभ से अंत तक चलती है। आप राजा निरबंसिया समीक्षा Hindibag पर पढ़ रहे हैं।
भाषा शैली
नए शिल्पकार कमलेश्वर ने कहानी की क्रमबद्ध घटना के वर्णनात्मक स्वरूप को अभिव्यक्ति प्रदान की है। वे मूर्त रूप को मूर्त रूप देकर घटना के नियोजन की नई कहानी अपनी तात्विक विशेषता के साथ उभर कर आती है। भाषा शैली सरल एवं स्पष्ट शैली के साथ शब्दों के नवीनतम प्रयोगों में व्याप्त है। आप राजा निरबंसिया समीक्षा Hindibag पर पढ़ रहे हैं।
उद्देश्य
राजा निरबंसिया कहानी का मुख्य उद्देश्य मानवीय संवेदना को उजागर करना है।
कमलेश्वर जीवन परिचय
कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना
06 जनवरी 1932
मैनपुरी, उत्तरप्रदेश, भारत
27 जनवरी 2007
- साहित्य अकादमी पुरस्कार (2003)
- पद्मभूषण (2005)
कमलेश्वर जी बीसवीं सदी के महान लेखकों में से एक हैं। कहानी, उपन्यास, पत्रकारिता, फिल्म पटकथा जैसी अनेक विधाओं में उन्होंने अपनी लेखन प्रतिभा का परिचय दिया। इन्होंने अनेक हिन्दी फिल्मों के लिए पटकथाएँ लिखीं तथा भारतीय दूरदर्शन श्रृंखलाओ जैसे दर्पण, चन्द्रकान्ता, बेताल पच्चीसी, विराट युग आदि के लिए काम किया। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर आधारित पहली प्रामाणिक एवं इतिहासपरक जन-मंचीय मीडिया कथा ‘हिन्दोस्तां हमारा’ का भी लेखन किया।
- उन्होंने 1954 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम.ए. किया।
- वे हिन्दी दैनिक दैनिक जागरण में 1990 से 1992 तक तथा दैनिक भास्कर में 1997 से लगातार स्तंभलेखन का काम करते रहे।
- कमलेश्वर ने अपने 74 साल के जीवन में 12 उपन्यास, 17 कहानी संग्रह और करीब 100 फ़िल्मों की पटकथाएँ लिखीं।
- एक सड़क सत्तावन गलियाँ- 1957
- तीसरा आदमी- 1976
- डाक बंगला -1959
- समुद्र में खोया हुआ आदमी-1967
- काली आँधी-1974
- आगामी अतीत -1976
- सुबह...दोपहर...शाम-1982
- रेगिस्तान-1988
- लौटे हुए मुसाफ़िर-1961
- वही बात-1980
- एक और चंद्रकांता
- कितने पाकिस्तान-2000
- अंतिम सफर (अंतिम तथा अधूरा जिसे बाद में तेजपाल सिंह धामा ने पूरा किया)
कमलेश्वर ने तीन सौ से अधिक कहानियाँ लिखीं। उनकी कुछ प्रसिद्ध कहानियाँ हैं -
- राजा निरबंसिया
- मांस का दरिया
- नीली झील
- तलाश
- बयान
- नागमणि
- अपना एकांत
- आसक्ति
- ज़िंदा मुर्दे
- जॉर्ज पंचम की नाक
- मुर्दों की दुनिया
- कस्बे का आदमी
- स्मारक
इनके द्वारा लिखित नाटक इस प्रकार है-
- अधूरी आवाज़
- रेत पर लिखे नाम
- हिंदोस्ता हमारा