रागदरबारी उपन्यास श्रीलाल शुक्ल द्वारा रचित हिंदी उपन्यास है। जिसके लिए उन्हें सन 1969 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह ऐसा उपन्यास है, जो गांव की कथा के माध्यम से आधुनिक भारतीय जीवन की मूल्य हीनता को सहजता और निर्मलता से अनावृत करता है। 1986 में एक दूरदर्शन-धारावाहिक के रूप में इसे लाखों दर्शकों की सराहना प्राप्त हुई। इसमें श्रीलाल शुक्ल जी ने स्वतंत्रता के बाद के भारत के ग्रामीण जीवन की मूल्यहीनता को परत-दर-परत उघाड़ कर रख दिया है।
रागदरबारी उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के एक कस्बानुमा गाँव शिवपाल गंज की कहानी है; उस गाँव की जिन्दगी का दस्तावेज, जो स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद ग्राम विकास और ‘गरीबी हटाओ’ के आकर्षक नारों के बावजूद घिसट रही है।
गोपाल राय

रागदरबारी उपन्यास के पात्र
राग दरबारी उपन्यास में कई पात्र है जो अपनी भूमिका बड़े ही कुशल रूप से निभा रहे है।
पात्र | पात्र की भूमिका |
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वैद्यजी | वह गांव की राजनीति के पीछे का मास्टरमाइंड है। वैद्यजी भी आधिकारिक तौर पर स्थानीय कॉलेज के प्रबंधक हैं। |
रुप्पन बाबू | वैद्यजी के छोटे बेटे और कॉलेज के छात्रों के नेता। रुप्पन बाबू पिछले कई सालों से 10 वीं कक्षा में रहे हैं, उसी कॉलेज में, जहां उनके पिता प्रबंधक हैं। |
बद्री अग्रवाल | रुप्पन बाबू के बड़े भाई बद्री अपने पिता की सहभागिता से दूर रहते हैं। ये खुद को शरीर-निर्माण के अभ्यास में व्यस्त रखते हैं। |
रंगनाथ | इतिहास में एम.ए., रंगनाथ वैद्य जी के भतीजे हैं। |
छोटा पहलवान | बद्री अग्रवाल के गांव की राजनीति में एक सक्रिय पार्टनर, वैद्यजी द्वारा बुलाए गए बैठकों में लगातार सहभागिता है। |
प्रिंसिपल साहिब | ये छांमल विद्यालय इंटर कॉलेज का प्राचार्य है। कॉलेज में कर्मचारियों के अन्य सदस्यों के साथ उनका संबंध साजिश का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। |
जोगनाथ | स्थानीय गुंडे, लगभग हमेशा नशे में रहते हैं। |
सनीचर | इनका असली नाम मंगलदास है वह वैद्यजी का नौकर है। |
लंगड़ | वह अस्थायी आम आदमी का प्रतिनिधि है जो भ्रष्ट व्यवस्था का शिकार होता है। |

रागदरबारी उपन्यास सरांश
श्रीलाल शुक्ल जी ने 1960-70 के ग्राम जीवन और ग्रामीण राजनैतिक तौर तरीकों का विस्तारपूर्वक और व्यग्यपूर्ण चित्रण किया है। आज़ादी के बाद से लेकर 1960-70 के दशक तक होनेवाले बदलाव (या ठहराव कह लीजिए) की संक्षेप में एक झलक दी है – शायद यह आज 2018 के भारत पर भी उसी तरह लागू हो। शायद शुक्ल जी ने अपने प्रशासनिक जीवन में जो कुछ देखा सुना उसे अनुभव करने के बाद व्यंग्य ही एक माध्यम बचता था- अन्यथा ये विषय काफी गंभीर और ग़मगीन हो सकता था।
भाषा के मामले में काफी उत्तम – गांव की बोली के शब्द भी इस्तेमाल किये गए हैं – और कई बार नए शब्दो को जानकर और उनका प्रयोग देख कर आनंद आता है। मैं हिंदी उपन्यास बहुत कम पढ़ता हूँ, और मुझे संतोष है कि मैंने ये उपन्यास चुना। केवल अचानक होने वाले अंत को लेकर मुझे थोड़ा असंतोष है – पर शायद इस कथा का यही अंत उपयुक्त है (उपन्यास की थीम के अनुसार तो – कोई अंत ही नही इस चक्कर का। किसी सिविल सर्वेंट के द्वारा लिखा गया ये मेरा दूसरा उपन्यास है – पहला अंग्रेज़ी उपन्यास ‘इंग्लिश अगस्त’ था। दोनो ही में एक ठहराव का वर्णन है – जिसे पढ़कर थोड़ी चिंता होती है।
श्रीलाल शुक्ल का जीवन परिचय
31 दिसम्बर 1925
अतरौली गाँव लखनऊ उत्तर प्रदेश
28 अक्टूबर 2011
लखनऊ उत्तर प्रदेश
- साहित्य अकादमी पुरस्कार
- व्यास सम्मान
- पद्मभूषण
- ज्ञानपीठ पुरस्कार
श्रीलाल शुक्ल अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत और हिन्दी भाषा के विद्वान थे। श्रीलाल शुक्ल संगीत के शास्त्रीय और सुगम दोनों पक्षों के रसिक-मर्मज्ञ थे। श्रीलाल शुक्ल का व्यक्तित्व सहज, सतर्क, विद्वान, अनुशासनप्रिय था। उन्हें नई पीढ़ी भी सबसे ज़्यादा पढ़ती है। वे नई पीढ़ी को सबसे अधिक समझने और पढ़ने वाले वरिष्ठ रचनाकारों में से एक रहे। श्रीलाल जी का लिखना और पढ़ना रुका तो स्वास्थ्य के गंभीर कारणों के चलते। व्यक्तित्व की इसी ख़ूबी के चलते उन्होंने सरकारी सेवा में रहते हुए भी व्यवस्था पर करारी चोट करने वाली राग दरबारी जैसी रचना हिंदी साहित्य को दी।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक
- 1949 में राज्य सिविल सेवा से नौकरी शुरू की।
- 1983 में भारतीय प्रशासनिक सेवा से निवृत्त हुए।
- स्वतंत्रता के बाद के भारत के ग्रामीण जीवन की मूल्यहीनता को परत दर परत उघाड़ने वाले उपन्यास 'राग दरबारी' के लिये उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनके इस उपन्यास पर एक दूरदर्शन-धारावाहिक का निर्माण भी हुआ।
- श्री शुक्ल को भारत सरकार ने 2008 में पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया।
- सूनी घाटी का सूरज
- अज्ञातवास
- रागदरबारी
- आदमी का ज़हर
- सीमाएँ टूटती हैं
- मकान
- पहला पड़ाव
- विश्रामपुर का सन्त
- अंगद का पाँव
- यह घर मेरा नहीं है
- इस उम्र में
अज्ञेय: कुछ राग और कुछ रंग

रागदरबारी उपन्यास व्याख्या
- दरोगा जी …………………….. भेजते रहते हैं?
- विरोधी से …………………….. विरोध है।
- दुख मनुष्य …………………….. यही करता है।
- एक साहित्य …………………….. प्रतिष्ठित है।
- गुडबंदी …………………….. चाहता है।
- गयादीन गांव …………………….. निकल जाते हैं।
- नैतिकता …………………….. के लिए है।
- छोटे-छोटे ……………………..नहीं कर सकता।
- हिंदुस्तान में ……………………..साबित करता है।
- प्रत्येक मनुष्य …………………….. समा जाती है।
- देश में …………………….. आ गई है।
- ब्राह्मण उम्मीदवार …………………….. कि सूद्र को।
- दूसरे लड़के …………………….. करना होता है।
- जिस अफसर …………………….. उपयोगिता थी।
- तुम मंझौली …………………….. उछलता है।
- सहकारी …………………….. घबराना चाहिए।
- यह वाद विवाद …………………….. चुका होता।
- जमीदारी विनाश …………………….. रहा है।
- एक पुराने श्लोक …………………….. हो जाता है।
रागदरबारी उपन्यास आलोचनात्मक प्रश्न
- राग दरबारी उपन्यास में आप किस पात्र को नायक कहेंगे?
- रागदरबारी उपन्यास के प्रमुख पात्र वैद्य जी का चरित्र चित्रण कीजिए।
- राग दरबारी उपन्यास के देशकाल एवं वातावरण का उल्लेख कीजिए।
- रागदरबारी उपन्यास के लक्ष्य की विवेचना कीजिए।
- राग दरबारी उपन्यास के संवाद योजना का वर्णन कीजिए।
- रागदरबारी उपन्यास के बद्री पहलवान के चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- रागदरबारी उपन्यास के प्रिंसिपल के व्यक्तित्व का मूल्यांकन कीजिए।
- राग दरबारी के प्रमुख पात्रों का परिचय दीजिए।
- उपन्यासकार के रूप में श्रीलाल शुक्ल का मूल्यांकन कीजिए।
- राग दरबारी किस शैली का उपन्यास है?
- रागदरबारी उपन्यास पर लेखक के विचार की समीक्षा कीजिए।

रागदरबारी उपन्यास अति लघुत्तरीय प्रश्न
रागदरबारी उपन्यास का प्रकाशन किस वर्ष हुआ?
1968 ई॰ में
दरबारी क्या है?
एक राग
श्रीलाल शुक्ल किस युग के लेखक थे?
द्विवेदी युग
राग दरबारी उपन्यास किस शैली में लिखा गया उपन्यास है?
वर्णनात्मक शैली
राग दरबारी उपन्यास का नायक कौन है?
वैद्य जी