यथार्थवाद का अंग्रेजी रूपांतरण Realism है। Real शब्द की उत्पत्ति लेटिन भाषा के realis से हुई है। जिसका अर्थ है वस्तु। इस प्रकार Realism का शाब्दिक अर्थ हुआ वस्तु वाद या वस्तु संबंधी विचारधारा। वस्तुतः यथार्थवाद वस्तु संबंधी विचारों के प्रति एक दृष्टिकोण है जिसके अनुसार संसार की वस्तुएं यथार्थ है। इस वाद के अनुसार केवल इंद्रीयज ज्ञान ही सत्य है।
Realism का मानना है कि ब्रह्म जगत मिथ्या नहीं वरन सत्य है। आदर्शवाद इस सृष्टि का अस्तित्व विचारों के आधार पर मानता है किंतु इसके अनुसार जगत विचारों पर आश्रित नहीं है। इसके अनुसार हमारा अनुभव स्वतंत्र इतना होकर बाय पदार्थों के प्रति प्रतिक्रिया का निर्धारण करता है। अनुभव बाहय जगत से प्रभावित हैं और बाहय जगत की वास्तविक सकता है। इसके अनुसार मनुष्य को वातावरण का ज्ञान होना चाहिए तथा यह पता होना चाहिए कि वह वातावरण को परिवर्तित कर सकता है या नहीं और इसी ज्ञान के अनुसार उसे कार्य करना चाहिए।

यथार्थवाद की परिभाषा
यथार्थवाद का अर्थ वह विश्वास का सिद्धांत है जो जगत को वैसा ही स्वीकार करता है जैसा कि हमें दिखाई देता है।
स्वामी रामतीर्थ के अनुसार
यथार्थवाद यह स्वीकार करता है कि जो कुछ हम प्रत्यक्ष में अनुभव करते हैं उसके पीछे तथा मिलता-जुलता वस्तुओं का एक यथार्थ जगत है।
जे एस रास के अनुसार
यथार्थवाद संसार की सामान्यत: उसी रूप में स्वीकार करता है जिस रूप में वह हमें दिखाई देता है।
बटलर के अनुसार
यथार्थवाद का मखु य विचार यह है कि सब भौतिक वस्तएु तथा बाह्य जगत के पदार्थ वास्तविक हैं और उनका अस्तित्व देखने वाले से पश्थक है। यदि उनको देखने वाले व्यक्ति न हों, तो भी उनका अस्तित्व होगा और वे वास्तविक होंगे।

यथार्थवाद के मूल सिद्धांत
यथार्थवाद के मूल सिद्धांत निम्न है-
- प्रत्यक्ष जगत ही सत्य है– यथार्थ वादियों के मतानुसार केवल प्रत्यक्ष जगत जिसे हम देखते सुनते या अनुभव करते हैं ही सत्य है अर्थात यह भौतिक संसार ही सत्य हैं।
- इंद्रियां ज्ञान के द्वार हैं– यथार्थ वादियों के अनुसार हमें ज्ञान की प्राप्ति इंद्रियों के माध्यम से प्राप्त संवेदना के आधार पर होती है। इसीलिए इन्हें ज्ञान का द्वार कहा जाता है।
- आंगिक सिद्धांत– जगत के सभी तत्वों नियमों व विचारों में इसी परिवर्तन शीलता के कारण परिवर्तन होते रहते हैं। इस सिद्धांत के समर्थक वैज्ञानिक नियमों को शाश्वत न मानकर परिवर्तनशील मानते हैं।
- परअलौकिकता को अस्वीकार करना– यथार्थवाद के अनुसार इस लोक से परे अन्य कोई लोक नहीं है। किस प्रकार या विचारधारा वस्तुनिष्ठ एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर बल देती है। यह विचारधारा आत्मा परमात्मा के अस्तित्व संबंधी विचारधारा का भी खंडन करती है। यह मनुष्य के मन को आत्मा न मानकर मात्र एक भौतिक सत्ता मानती हैं।
- वस्तु जगत में नियमितता स्वीकार करना– यथार्थ वादियों के अनुसार “अनुभव और ज्ञान के लिए नियमितता का होना आवश्यक है।” वस्तुतः वस्तु जगत में नियमितता के सिद्धांत को स्वीकार करने के कारण यथार्थ वादियों का दृष्टिकोण यांत्रिक बन जाता है, इसलिए वे मन को भी यांत्रिक ढंग से क्रियाशील मानते हैं।
- प्रयोग पर बल– यथार्थवादी विचारधारा निरीक्षण अवलोकन तथा प्रयोग पर बल देती है। इसके अनुसार किसी अनुभव को तब तक स्वीकार नहीं किया जा सकता है जब तक कि वह निरीक्षण व प्रयोग की कसौटी पर सिद्ध ना हो जाए।
- मानव के वर्तमान व्यवहारिक जीवन पर बल– यह आत्मा, परमात्मा, परलोक आदि आध्यात्मिक बातों में कोई रुचि नहीं लेते। वे मनुष्य को एक जैविक पदार्थ मानकर उनका लक्ष्य सुखी जीवन व्यतीत करना मानते हैं।

यथार्थवाद के प्रमुख रूप
यथार्थवाद के निम्नलिखित चार रूप हैं-
- मानवतावादी
- सामाजिक
- ज्ञानेंद्रीय
- नव
यथार्थवादी शिक्षा की प्रमुख विशेषताएं
इस प्रकार की शिक्षा की प्रमुख विशेषताएं निम्न है-
- ज्ञानेंद्रियों के प्रशिक्षण पर बल
- पुस्तककीय ज्ञान का विरोध
- आदर्शवाद का विरोध
- व्यावहारिक ज्ञान पर बल
- वैज्ञानिक विषयों का महत्व
- नवीन शिक्षण विधि एवं शिक्षण सूत्र
- विस्तृत व व्यवसायिक पाठ्यक्रम
- व्यक्तित्व एवं सामाजिकता दोनों को बराबर महत्व