मौलिक अधिकार का सामाजिक जीवन पद्धति में व्यक्ति और राज्य के पारस्परिक संबंधों में महत्वपूर्ण स्थान है। शांति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति को राज्य के बनाए गए कानूनों और नियमों के अनुसार व्यवहार करना चाहिए। किंतु साथ ही राज्य की शक्तियों और अधिकारों को सीमित करना भी आवश्यक है।
मौलिक अधिकार व्यक्ति के पूर्ण मौलिक और मानसिक विकास के लिए अपरिहार्य हैं। इनके अभाव में व्यक्ति का यथोचित विकास नहीं हो सकता है। यह वह न्यूनतम अधिकार है जो किसी भी लोकतांत्रिक शासन पद्धति में व्यक्ति को प्राप्त होने चाहिए।
मौलिक अधिकार भारत के संविधान के तीसरे भाग में वर्णित भारतीय नागरिकों को प्रदान किए गए वे अधिकार हैं जो सामान्य स्थिति में सरकार द्वारा सीमित नहीं किए जा सकते हैं और जिनकी सुरक्षा का प्रहरी सर्वोच्च न्यायालय है।
Wikipedia



मौलिक अधिकार
भारत देश प्रभुसत्ता संपन्न लोकतांत्रिक राज्य हैं। जिसमें चतुर्मुखी विकास के लिए भारतीय नागरिकों को 6 मौलिक अधिकार संविधान द्वारा प्रदत्त है। यह अधिकार नागरिकों की स्वतंत्रता का मूल अस्त्र है। नागरिक को शोषण से बचाने तथा उनको सुखी जीवन प्रदान करने के लिए इनके अंतर्गत अवसर प्रदान किए गए हैं। आपातकालीन के अतिरिक्त कोई भी सरकार इनको सीमित नहीं कर सकती है। भारतीय नागरिकों की आयु प्राप्त 6 मौलिक अधिकार का वर्णन निम्नलिखित है –
- समानता का अधिकार (14-18)
- स्वतंत्रता का अधिकार (19-22)
- शोषण के विरुद्ध अधिकार (23-24)
- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (25-28)
- सांस्कृतिक एवं शिक्षा संबंधी अधिकार (29-30)
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार (32)
1. समानता का अधिकार
भारतीय समाज में व्याप्त असमानता को मिटाने के लिए संविधान निर्माताओं ने क्षमता के अधिकार को प्रथम स्थान दिया है।
- कानून के समक्ष समता
- धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध
- सरकारी पदों की प्राप्ति के लिए अवसर की समानता
- अस्पृश्यता का निषेध
- उपाधि का अंत
2. स्वतंत्रता का अधिकार
संविधान के मौलिक अधिकार के अंतर्गत निम्नलिखित स्वतंत्रतायें प्रदान की गई हैं-
- विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
- अस्त्र शास्त्र रहित तथा शांतिपूर्वक सम्मेलन की स्वतंत्रता
- समुदाय और संघ निर्माण की स्वतंत्रता
- भारत राज्य क्षेत्र में अवैध भ्रमण की स्वतंत्रता
- व्रत्ति, उपजीविका या कारोबार की स्वतंत्रता
- अपराध की दोष सिद्धि के विषय में संरक्षण
- व्यक्तिगत स्वतंत्रता तथा जीवन की सुरक्षा
- वंदीकरण की अवस्था में संरक्षण
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार
संविधान में किसी भी व्यक्ति के किसी भी रूप में शोषण की मनाही की गई है।
- मनुष्य का क्रय विक्रय बेगार पर रोक
- 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को कारखानों खानों तथा अन्य खतरनाक कर्मों में नौकरी पर रखने पर निषेध
4. धार्मिक स्वतंत्रता अधिकार
भारत एक पंथ निरपेक्ष राज्य है, भारतीय संविधान ने भारत के सभी नागरिकों को धर्म की स्वतंत्रता प्रदान की गई है।
- अंतः करण की स्वतंत्रता
- धार्मिक मामलों का प्रबंध की स्वतंत्रता
- धार्मिक वेब के लिए निश्चित धन पर कर की अदायगी से छूट
- शिक्षण संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने या ना प्राप्त करने की स्वतंत्रता


5. संस्कृति एवं शिक्षा संबंधी अधिकार
भारत में विभिन्न धर्मों संप्रदायों भाषाओं तथा संस्कृतियों के लोग रहते हैं। अतः संविधान में प्रत्येक संप्रदाय को अपनी भाषा लिपि और संस्कृत बनाए रखने का अधिकार होगा तथा इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए हुए शिक्षा संस्थाओं की स्थापना तथा संचालन कर सकते हैं।
6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार
संविधान द्वारा प्रदान किए गए इस अधिकार को बी आर अंबेडकर ने संविधान के हृदय और आत्मा की संज्ञा दी। यह अधिकार सभी नागरिकों को छूट देता है कि वह अपने अधिकारों के संरक्षण के लिए सर्वोच्च न्यायालय के पास जा सकते हैं तथा अपने अधिकार को लागू करने की मांग रख सकते हैं। सर्वोच्च न्यायालय इन अधिकारों की रक्षा हेतु अनेक प्रकार के लेख जारी कर सकता है जैसे की बंदी प्रत्यक्षीकरण परमादेश लेख प्रति वेगले अधिकार पृच्छा लेख उत्प्रेक्ष लेख।