मौर्य साम्राज्य (चंद्रगुप्त मौर्य, बिंदुसार, सम्राट अशोक)

सम्राट अशोक के कारण ही मौर्य साम्राज्य सबसे महान एवं शक्तिशाली बनकर विश्वभर में प्रसिद्ध हुआ। आइए समझते हैं की मौर्य साम्राज्य किस प्रकार स्थापित हुआ और किन किन शासकों ने भारत पर शासन किया।

चंद्रगुप्त मौर्य

मौर्य वंश का संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म 345 ईसा पूर्व में हुआ था। चंद्रगुप्त मौर्य ने कुटिल राजनीतिग्य के तक्षशिला के आचार्य चाणक्य की सहायता प्राप्त करके मात्र 23 वर्ष की आयु में चाणक्य की सहायता से मगध साम्राज्य पर अपना राज्य करके मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। ब्राह्मण साहित्य में इसे शूद्र कुल का बताया गया। बौद्ध जैन ने इसे छत्रिय बताया। विशाखदत्त ने अपनी पुस्तक मुद्राराक्षस में इसे निम्न कुल वृष्ल बताया। जैन मुनि भद्रबाहु से जैन धर्म की शिक्षा दीक्षा प्राप्त कर ली। चंद्रगुप्त मौर्य ने सेनापति सेल्यूकस निकेटर को पराजित किया था।

चंद्रगुप्त ने प्रथम अखिल भारतीय राज्य की स्थापना की थी। यह युद्ध सन्धि के साथ समाप्त हो गया था। चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस निकेटर की पुत्री हेलेना से विवाह कर लिया था और दहेज में काबुल कांधार, हैरात, मकराम, दहेज के रूप में स्वीकार किया। चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस को 500 हाथी उपहार में दिए। चंद्रगुप्त मौर्य की दूसरी पत्नी दुर्धरा जिसका पुत्र बिंदुसार था। तीसरी पत्नी नंदिनी जो घनानंद की पुत्री थी।

सेल्यूकस निकेटर ने प्रसिद्ध विद्वान मेगस्थनीज को चंद्रगुप्त के दरबार में भेजा था। वहीं रहकर उसने प्रसिद्ध पुस्तक इंडिका की रचना की। जिसमें मौर्यकालीन शासन प्रशासन व्यवस्था का वर्णन किया था। चंद्रगुप्त मौर्य ने विशाल साम्राज्य की स्थापना की थी। आधुनिक मंत्रिमंडल की देन चंद्रगुप्त मौर्य है। इसका साम्राज्य काबुल, कंधार, हेरात, मक्रांत अफगानिस्तान, बंगाल, बिहार, गुजरात, गंगा, यमुना का डोआब आदि। चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु 298 ईसा पूर्व में श्रवणबेलगोला मैसूर उपवास धारा हुई।

बिंदुसार

बिंदुसार चंद्रगुप्त मौर्य का पुत्र था। इनकी माता का नाम दुर्धारा था। मौर्य की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र मगध के सिंहासन पर बैठ गया था। वर्ष 273 ईसा पूर्व में बिंदुसार की मृत्यु हो गई। इसके शासनकाल के दौरान तक्षशिला में दो विद्रोह हो गए थे। पहले विद्रोह का दमन करने के लिए उसने अपने बड़े पुत्र से की जगह अशोक को भेजा था।

सम्राट अशोक

अशोक मौर्य साम्राज्य शासक बिंदुसार का पुत्र था। इसकी माता का नाम सुभद्रागी था। जैन अनुश्रुति से हमें ज्ञात होता है कि अशोक ने अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध मगध के सिंहासन को प्राप्त कर लिया था। जबकि सिंह श्रुति से हमें ज्ञात होता है कि अशोक ने अपने 99 भाइयों की मृत्यु कर के सिंहासन प्राप्त किया था। इसलिए इसे दुतिय कालाशोक भी कहा जाता है।महाबोद्ध तत्व तारक नाथ से ज्ञात होता है कि यद्यपि अशोक ने 273 ईसा पूर्व ही मगध के सिंहासन पर अपना अधिकार कर लिया था।

लेकिन उसने अपना वास्तविक अभिषेक 4वे वर्ष में गृह युद्ध से लड़ते हुए कराया था। अशोक मगध के सिंहासन पर बैठने से पहले यह राज्यपाल था उसने सातवें वर्ष (262 ईसा पूर्व) में कश्मीर, खेतान जीत लिया। 8 वे वर्ष (261 ईसा पूर्व) में कलिंग पर विजय की। 14 वे वर्ष में (255 बीसी) धम्मा मात्र, 20 वे वर्ष (249 बीसी) में लुंबिनी गया। बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए उसने अपने पुत्र महेंद्र तथा पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा था। कलिंग में नरसंहार को देखकर उसने अस्त्र शस्त्र त्याग करने की घोषणा की इससे पहले वह ब्राह्मण कुल का था।

सम्राट अशोक इतिहास का पहला ऐसा शासक था जिसने अभिलेखों और शिलालेखों के माध्यम से अपने धर्म का प्रचार प्रसार किया या शिक्षा उसने ईरान के शाह दादा प्रथम के द्वारा प्राप्त किया। अशोक के अभिलेखों में दो ऐसे अभिलेख थे जो इस समय पाकिस्तान में है (शाहबाजगढ़ी, मान सेहरा)। यह खरोष्ठी लिपि में लिखे गए हैं।

तक्षशिला और लघमान 2 अभिलेख अफगानिस्तान में है जो आर्मेरक लिप में लिखे गए। शर- ए- कुना अभिलेख आरमेरक और ग्रीक दो भाषा में लिखा गया। सम्राट अशोक के अभिलेखों को सबसे पहले पढ़ने में सफलता जेम्स प्रिसेप ने 1837 में प्राप्त की। सम्राट अशोक ने सांची के स्तूप को बनवाया।

अशोक के लोक कल्याणकारी कार्य

  • महान विजेता- अशोक एक महान शासक ही नहीं महान विजेता था। अशोक के शासनकाल प्रारंभिक 8 वर्षों का कोई प्रमाण नहीं मिलता। उसने कलिंग देश पर आक्रमण किया तथा कश्मीर को भी अशोक ने ही जीता था।
  • महान व्यक्तित्व- कलिंग का युद्ध में भीषण नरसंहार हुआ जिसे देखकर अशोक के हृदय पर गहरा प्रभाव पड़ा उसके विचार एकदम बदल गए और प्राकृत, ग्रीक तथा आर्मेरिक भाषा में शिलालेख को लिखवाया तथा उनके स्तंभ का निर्माण किया व छायादार वृक्षों के नीचे पेयजल की व्यवस्था करा कर बाहरी लोगों के लिए भी रहने का प्रबंध किया।
  • धार्मिक सहिष्णुता- अशोक सम्राट एक धार्मिक सहनशीलता वाले व्यक्ति थे और बिना 1000 ब्राह्मणों को भोजन कराएं स्वयं कुछ नहीं खाते थे। अपने शिलालेख पर स्वयं लिखवाते थे।
  • महान प्रजा पालक- सम्राट अशोक महान प्रजा पालक था। अशोक ने अपने शिलालेखों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए उन्हें शीला राजाग्यो तथा स्तंभ राज्यों पर उत्कीर्ण करवाया। अशोक ने शांति बनाए रखने के लिए ओर शक्तिशाली सेना बनायी। अशोक ने कहा था कि – मैं चाहे रनिवाज में या कहीं भी घूम रहा हूं मेरे गुप्तचर आकर हमें जानकारी देंगे कि राज्य में क्या चल रहा है?

मौर्य साम्राज्य के पतन के कारण

  • मौर्य साम्राज्य के पतन का सबसे मुख्य कारण था अशोक के दुर्लभ व कमजोर उत्तराधिकारी। इतने विशाल साम्राज्य को संभालने के लिए चंद्रगुप्त मौर्य और अशोक जैसे योग्य उत्तराधिकारी की आवश्यकता थी जिसका अशोक के बाद नितांत अभाव रहा।
  • अशोक की शांतिवादि वा धार्मिक नीति- अशोक की धार्मिक नीति का उसके साम्राज्य के ब्राह्मणों ने उसका विरोध किया क्योंकि अशोक ने पशु बलि वध पर प्रतिबंध लगा दिया था। वह युद्ध ना करने वागरम को अपने पर जोर दिया। इससे उसकी सेना मैं युद्धाभ्यास कम हो गया वह पतन का मुख्य कारण था।
  • पारिवारिक षड्यंत्र- मौर्य वंश की गद्दी पर बैठने के लिए परिवार के सदस्य दूसरे राजाओं के साथ सम्मिलित होने लगे तथा आपस में ही लड़ने लगे यह भी मौर्य साम्राज्य के पतन का कारण था।
  • आपसी कलह के कारण रिक्त राज्य कोष- मौर्य साम्राज्य में राजगद्दी के लिए आपसी कलह शुरू हो गई। जिसके कारण वे आपस में ही युद्ध करने लगे। मौर्य युग के दौरान सेना और नौकरशाही के निर्वहन के लिए विशाल खर्च किया जाता था। जिसके कारण शाही खजाना खाली हो गया था यही मौर्य साम्राज्य के पतन का मुख्य कारण था।
  • उत्तर पश्चिमी सीमावर्ती प्रांतों की उपेक्षा- अशोक मुख्य रूप से अपने धर्म प्रचार में व्यस्त रहा। आता उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत की गतिविधियां की ओर ध्यान नहीं दे पाया। जिससे उसकी स्थिति कमजोर हो गई। अशोक के बाद हिंद, पवन, शक, कुषाण आदि का आक्रमण हुआ। इसी सीमा से कुषाण आदि का आक्रमण हुआ।

यही मौर्य साम्राज्य के पतन के कारण थे।

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