मौखिक पठन प्रकार महत्त्व तत्व तथा गद्य व पद्य में मौखिक पठन

लिखित भाषा का मुख से उच्चारण करते हुए पढ़ने और पढ़कर उसका अर्थ समझने की क्रिया को मौखिक पठन कहते हैं। अर्थ बोध एवं भावानुभूति मौखिक पठन के आवश्यक तत्त्व हैं, यह बात दूसरी है कि पाठक को यह अर्थ बोध एवं भावानुभूति किस सीमा तक होते हैं। यह तो पठनकर्ता के ज्ञान एवं कौशल आदि पर निर्भर करता है।

मौखिक पठन के प्रकार

पठनकर्ताओं की संख्या के आधार पर मौखिक पठन दो प्रकार का होता है- व्यक्तिगत पठन और सामूहिक पठन।

  1. व्यक्तिगत पठन – यह वह पठन है जिसमें एक समय एक व्यक्ति ही पठन करता है।
  2. सामूहिक पठन – यह वह पठन है जिसमें एक समय में कई व्यक्ति एक साथ एक स्वर और एक गति से पठन करते हैं।

कक्षा शिक्षण की दृष्टि से मौखिक पठन तीन प्रकार का होता है-आदर्श पठन, अनुकरण पठन और समवेत पठन।

1. आदर्श पठन

भाषा में पद्य अथवा गद्य के पाठों का शिक्षण करते समय शिक्षक पाठ्य सामग्री का सस्वर पठन करते हैं। बच्चे शिक्षक के इस पठन का अनुकरण करते हैं। शिक्षक के इस पठन को आदर्श पठन कहा जाता है। अपने सही अर्थों में आदर्श पठन शिक्षक द्वारा प्रस्तुत यह पठन है जिसे वह उचित ढंग से खड़े होकर स्पष्ट अक्षरोच्चारण, शुद्ध शब्दोच्चारण, उचित ध्यनि निर्गम और शब्दों पर भावानुसार बल देते हुए उचित स्वर और उचित गति के साथ करता है।

2. अनुकरण पठन

शिक्षक के आदर्श पठन का अनुकरण कर बच्चे यथा पाठ्य सामग्री का व्यक्तिगत अथवा सामूहिक रूप से पठन करते हैं। बच्चों के इस पठन को अनुकरण पठन कहते हैं।

3. समवेत पठन

समवेत पठन वह पठन है जिसमें दो या दो से अधिक बच्चे एक साथ मौखिक पठन करते हैं। इस पठन का एक लाभ यह है कि जिन बच्चों में झिझक होती है, साहस की कमी होती है, अपने कण्ठ और उच्चारण पर जिन्हें विश्वास नहीं होता और जो उचित गति से पठन नहीं कर सकते, ये भी पठन क्रिया में भाग लेने लगते हैं। परन्तु समवेत पठन की उपयोगिता तभी है जब निम्नलिखित सावधानियाँ बरती जाएँ।

  1. समवेत पठन प्राथमिक कक्षाओं में ही कराना चाहिए।
  2. बालकों के कण्ठ, उच्चारण और वाचन गति में अन्तर होता है। इसलिए यदि समवेत पठन में छात्रों की संख्या 5-6 से अधिक होगी तो समवेत पठन की सफलता संदिग्ध ही समझिए। अतः बच्चों को 5-5 की टोलियों में बाँटकर समवेत पठन कराना अधिक उपयोगी होता है। कविता का समवेत पठन पूरे समूह से एक साथ भी कराया जा सकता है, परन्तु शिक्षक को इस समूह का नेतृत्व करना होगा।
  3. जहाँ तक सम्भव हो एक टोली की बाचन गति और गायन सम्बन्धी योग्यता लगभग समान हो।
  4. प्रत्येक टोली का एक नेता हो और वह पठन कला में अपेक्षाकृत निपुण होना चाहिए।
  5. कक्षा में समवेत पठन कराते समय एक-एक टोली को अवसर देना चाहिए। कक्षा के बाहर मैदान में टोलियों को थोड़े फासले से खड़ा करके अथवा बैठाकर सबको एक साथ अभ्यास कराया जा सकता है। शिक्षक को प्रत्येक टोली के पास जाकर निरीक्षण करना चाहिए और आवश्यक निर्देश देने चाहिए।

मौखिक पठन का महत्त्व

विद्वानों का कथन है कि अच्छे मौखिक पठन से गद्य का आधा और पद्य का पूरा भाव समझ में आ जाता है। कविता का आनन्द तो उसके मौखिक पठन में ही होता है। भाषा शिक्षण की दृष्टि से भी मौखिक पठन का बड़ा महत्व है। पहली बात तो यह है कि इससे बच्चों का उच्चारण शुद्ध होता है और उनकी झिझक दूर होती है और ये अच्छे वार्ताकार, प्रभावशाली वक्ता और सफल अभिनेता बनते हैं।

दूसरा लाभ यह होता है कि उच्चारण शुद्ध होने पर शब्दों को लिखने में वर्तनी की अशुद्धि नहीं होती। इस प्रकार उनकी मौखिक एवं लिखित दोनो प्रकार की भाषाओं में सुधार होता है। कक्षा शिक्षण की दृष्टि से शिक्षक के आदर्श मौखिक पढ़न से कक्षा में जीवन बना रहता है और जब बच्चे शिक्षक का अनुकरण कर स्वयं मौखिक पठन करते हैं तो उनके पठन कौशल में विकास होता है।

मौखिक पठन के तत्व

मौखिक पठन, चाहे व्यक्तिगत रूप से किया जाए और चाहे सामूहिक रूप से, उसमें निम्नलिखित गुण अवश्य होने चाहिए, तभी वह प्रभावशाली होगा।

  1. उचित पठन आसन एवं मुद्रा – मौखिक पठन करते समय सबसे पहली आवश्यकता है उचित ढंग से बैठना अथवा खड़े होना जिससे थकान न हो और पठनकर्ता का ध्यान पाठ्य सामग्री में केन्द्रित रहे। यदि बैठकर पठन किया जाए तो कुर्सी पर इस प्रकार बैठना चाहिए कि रीढ़ की हड्डी सीधी रहे और पैर 90° का कोण बनाते हुए लटके रहें। यदि खड़े होकर पठन किया जाए तो भी बिल्कुल सीधे खड़ा होना चाहिए और पुस्तक को बाएँ हाथ से पकड़कर पठन करना चाहिए। और यदि जमीन पर बैठकर पठन किया जाए तो भी इस प्रकार बैठना चाहिए कि रीढ़ की हड्डी सीधी रहे और पाठ्य सामग्री आँखों से 35 सेमी की दूरी पर रहे। भावानुसार हाथ-पैर, आँख-नाक, सिर भी आदि का सहज संचालन एवं भाव प्रदर्शन भी आवश्यक होता है।
  2. स्पष्ट अक्षरोच्चारण – शब्द की इकाई अक्षर होते हैं। यदि शब्दोच्चारण में प्रत्येक अक्षर का स्पष्ट उच्चारण नहीं होता तो शब्द का शुद्ध उच्चारण नहीं किया जा सकता अतः मौखिक पठन करते समय इसका ध्यान रखना चाहिए।
  3. शुद्ध शब्दोच्चारण – शब्दों के शुद्ध उच्चारण पर अर्थ की प्रतीति और शुद्ध लेखन दोनों निर्भर करते हैं अतः पठनकर्ता को सदैव शुद्ध उच्चारण के साथ पठन करना चाहिए अन्यथा सकल (समस्त) के स्थान पर शकल (अंश) के भाव की प्रतीति का भय सदैव बना रहेगा।
  1. उचित ध्वनि निर्गम – स्पष्ट अक्षरोच्चारण और शुद्ध शब्दोच्चारण, इन दोनों के लिए आवश्यक है कि ध्वनियों को उनके अपने स्थान से उच्चारित किया जाए, उन्हें उचित स्वर से मुँह से निकाला जाए। यह पठन का बहुत आवश्यक अंग होता है।
  2. बल – पठन करते समय आवश्यक शब्दों पर बल देना भी आवश्यक होता है। शिक्षक को आदर्श पठन करते समय इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए। शब्दों पर बल देने से वाक्यों के अर्थ में अन्तर आ जाता है।
  3. धैर्य – धैर्य भी पठन का आवश्यक तत्त्व है। पठनकर्ता को सदैव धैर्य के साथ उचित गति से पठन करना चाहिए। बहुत तीव्र अथवा बहुत मन्द गति से पठन करने में अर्थ की प्रतीति में बाधा पड़ती है।
  4. सुस्वरता – पठन का यह अन्तिम तत्त्व है। इसका अर्थ है भाव के अनुसार वाक्य के शब्दों में स्वर का उतार-चढ़ाव दिखाना, वाणी में मधुरता प्रदर्शित करना और भावानुसार उचित आरोह-अवरोह के साथ पठन करना। इससे पठनकर्ता को भाव की प्रतीति में सहायता मिलती है। श्रोता की दृष्टि से भी यह परम आवश्यक है, अन्यथा श्रोता की श्रवण में रुचि ही नहीं रहेगी।

गद्य और पद्य के मौखिक पठन में अन्तर

गद्य और पद्य के मौखिक पठन में बड़ा अन्तर होता है। गद्य पाठ के पठन का उद्देश्य उसके स्पष्ट अक्षरोच्चारण, शुद्ध शब्दोच्चारण, उचित ध्वनि निर्गम और विराम चिह्नों का ध्यान रखते हुए पढ़ना और अर्थ बोध करना होता है, जबकि पद्य के मौखिक पठन का उद्देश्य उसके भाव एवं छन्द के अनुसार पठन करते हुए भाव ग्रहण करना एवं रसानुभूति करना होता है।

परिणामतः दोनों के पठन में भी अन्तर होता है। गद्य पाठों का पठन स्पष्ट अक्षरोच्चारण, शुद्ध शब्दोच्चारण, उचित ध्वनि निर्गम और भावानुसार स्वर, गति एवं प्रवाह के साथ किया जाता है जबकि पद्य के पठन में इस पर अपेक्षाकृत कम ध्यान दिया जाता है। पद्य (कविता) पठन की दो शैलियाँ हैं-छन्दानुगत शैली और भावात्मक शैली। छन्दानुगत शैली में छन्द की गति, यति और लय का विशेष ध्यान रखा जाता है और भावात्मक शैली में भावाभिव्यक्ति प्रधान होती है।

वैसे छन्द का ध्यान इसमें भी रखा जाता है परन्तु अपेक्षाकृत कम। ध्यान रहे कि कविता पठन और कविता गायन में भी बड़ा अन्तर होता है। कविता पठन में छन्द का प्रवाह और भाव ग्रहण दोनों आवश्यक होते हैं, जबकि कविता गायन में इन दोनों में से किसी की भी आवश्यकता नहीं होती, केवल लय तत्व पर ही ध्यान दिया जाता है।

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