मैकाले का विवरण पत्र 1835 – आलोचना व प्रभाव

मैकाले का विवरण पत्र 1835 – 10 जून 1834 को लॉर्ड मैकाले ने गवर्नर जनरल की काउंसिल के कानूनी सदस्य के रूप में भारत में पदार्पण किया। उस समय तक प्राच्य पाश्चात्य विवाद उग्रतम रूप धारण कर चुका था। बैंटिक को विश्वास था कि मैंकॉले जैसा प्रकांड विद्वान ही इस विवाद को समाप्त कर सकता था। इस विचार से उसने मैकाले को बंगाल की लोक शिक्षा समिति का सभापति नियुक्त किया। फिर उसने मैकाले से 1813 के आज्ञा पत्र की 43वीं धारा में अंकित ₹1,00,000 की राशि को व्यय करने की विधि और अन्य विवाद ग्रस्त विषयों के संबंध में कानूनी सलाह देने का अनुरोध किया।

मैकाले का विवरण पत्र 1835

मैकाले ने सर्वप्रथम आज्ञापत्र की उक्तधारा और दोनों दलों के व्यक्तव्यों का सूक्ष्म अध्ययन किया। तदुपरांत उसने तर्कपूर्ण और बलवती भाषा में अपनी सलाह को अपने प्रसिद्ध विवरण पत्र में लेख बंद करके 2 फरवरी 1835 को बैंटिक के पास भेज दिया। मैकाले का विवरण पत्र के दो प्रमुख अंश इस प्रकार थे-

मैकाले का विवरण पत्र 1835
मैकाले का विवरण पत्र 1835

1. 43 वीं धारा की व्याख्या

मैकाले ने अपने विवरण पत्र में 1813 के आज्ञा पत्र की 43वीं धारा की निम्न प्रकार से व्याख्या की है-

  1. ₹100000 की धनराशि व्यय करने के लिए सरकार पर कोई प्रतिबंध नहीं है। वह इस धनराशि को अपनी इच्छा अनुसार किसी प्रकार भी व्यय कर सकती है।
  2. ‘साहित्य’ शब्द के अंतर्गत केवल अरबी और संस्कृत साहित्य ही नहीं, अपितु अंग्रेजी साहित्य भी सम्मिलित किया जा सकता है।
  3. ‘भारतीय विद्वान’ मुसलमान मौलवी एवं संस्कृत के पंडित के अलावा अंग्रेजी भाषा और साहित्य का विद्वान भी हो सकता है।

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2. अंग्रेजी के पक्ष में तर्क

भारतीय भाषाओं की निरर्थकता सिद्ध करने के पश्चात मैकाले ने अरबी फारसी और संस्कृत भाषाओं की तुलना में अंग्रेजी को कहीं अधिक उच्च स्थान देते हुए लिखा।

एक अच्छे यूरोप पुस्तकालय की एक अलवारी का महत्व भारत और अरब के संपूर्ण साहित्य से कम नहीं है।

इस प्रकार, अरबी फारसी और संस्कृत को अध्ययन क्षेत्र से बाहर निकालकर मैकाले ने अंग्रेजी को उनकी अपेक्षा अधिक समृद्ध बताया और उसके अध्ययन के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए।

  1. अरबी और संस्कृत की तुलना में अंग्रेजी अधिक उपयोगी व व्यवहारिक है क्योंकि यह नवीन ज्ञान की कुंजी है।
  2. जिस प्रकार लैटिन एवं यूनानी भाषाओं से इंग्लैंड में और पश्चिम यूरोप की भाषाओं के रूप में पुनरुत्थान हुआ, उसी प्रकार अंग्रेजी से भारत में होगा।
  3. अंग्रेजी इस देश के शासकों की भाषा है, भारत के उच्च वर्गों द्वारा बोली जाती है, पूर्वी समुद्रों में व्यापार की भाषा बन सकती है।
  4. भारतवासी अरब और संस्कृत की शिक्षा की अपेक्षा अंग्रेजी की शिक्षा के लिए अधिक इच्छुक है।
  5. भारत वासियों को अंग्रेजी का अच्छा विद्वान बनाया जा सकता है और हमारे प्रयास इसी दिशा में होने चाहिए।
  6. अंग्रेजी की शिक्षा द्वारा इस देश में ऐसे वर्ग का निर्माण किया जा सकता है जो रक्त और रंग भले ही भारतीय हों पर रुचि विचारों नैतिकता और विद्वता में अंग्रेज होगा।

उपर्युक्त तर्कों के आधार पर मैकाले ने यह मत व्यक्त किया कि प्राच्य शिक्षा की संस्थाओं पर धन्यवाद करना मूर्खता है और इसको बंद कर दिया जाए। इसके स्थान पर अंग्रेजी भाषा के माध्यम में शिक्षा प्रदान करने के लिए संस्थाओं का सृजन किया जाए। (मैकाले का विवरण पत्र 1835)

मैकाले का विवरण पत्र 1835
मैकाले का विवरण पत्र 1835

अंग्रेजी भाषा के महत्व का वर्णन और समर्थन करते हुए मैकाले ने कहा-

अंग्रेजी पश्चिम की भाषाओं में सर्वोपरि है जो व्यक्ति अंग्रेजी जानता है, वह उस विशाल ज्ञान भंडार को सुगमता से प्राप्त कर लेता है। जिसकी विश्व की सबसे बुद्धिमान जातियों ने रचना की है।

भारतीय शिक्षा के इतिहास में मैकाले के स्थान के संबंध में विद्वानों के दो मत हैं प्रथम, मैकाले भारत को दास्ता की जंजीर में जकड़ने के लिए उत्तरदाई है। द्वितीय, मैकाले भारतीय शिक्षा का पथ प्रदर्शक है तथा उसके कारण ही भारतीय शिक्षा प्रणाली आज विश्व की अग्रणी प्रणालियों में से एक है।

मैकाले का विवरण पत्र 1835 की आलोचना

मैकाले का विवरण पत्र 1835 की आलोचना व उसके प्रमुख दोषों का उल्लेख निम्न आधार पर किया जा सकता है-

  1. मैकाले ने विदेशी भाषा द्वारा पाश्चात्य सभ्यता को थोपने का प्रयास किया, जिससे हम अपनी भारतीय सभ्यता और संस्कृति को तिरस्कृत दृष्टि से देखें। वह हमें हीन भावना व्याप्त हो।
  2. उसने भारतीय भाषाओं को अविकसित, गवारु एवं निकम्मी होने का आरोप लगाते हुए उनका अपमान किया, फलस्वरुप भारतीय भाषाओं का विकास रुक गया।
  3. मैकाले ने प्राच्य साहित्य को यूरोप की किसी एक पुस्तकालय की एक अलमारी के बराबर मानकर भारतीय संस्कृति तथा धर्म की महानता व सहिष्णुता का अपमान किया है।
  4. मैकाले धार्मिक तटस्थता की नीति का दावा अवश्य करता था, लेकिन उसकी आंतरिक नीति का अनुमान तब हुआ। जब 1836 में उसने अपने पिता को एक पत्र लिखा,”मेरा दृढ़ विश्वास है कि यदि हमारी शिक्षा की यह नीति सफल हो जाती है तो 30 वर्ष के अंदर बंगाल के उच्च घराने में एक भी मूर्तिपूजक शेष न रह जाएगा।”

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भारतीय शिक्षा को मैकाले की देन

भारतीय शिक्षा को मैकाले की देन को उसके विवरण पत्र में निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है। मैकाले ने भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में जो सुधार किए। वे अंग्रेजी शासन को मजबूती प्रदान करने के उद्देश्य से किए थे। किंतु उनका प्रभाव यह रहा कि भारतीय शिक्षा की नई सोच तथा दिशा प्राप्त हुई। मैकाले की भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में प्रमुख देन निम्न है-

  1. मैकाले पहला व्यक्ति था जिसने प्राच्य पाश्चात्य विवाद समाप्त कर दिया और शिक्षा की आधुनिक संरचना का शिलान्यास किया।
  2. पाश्चात्य ज्ञान अंग्रेजी भाषा के द्वारा, विज्ञान के चिकित्सा के सिद्धांत से देश में वैज्ञानिक, औद्योगिक और आर्थिक प्रगति का आगमन हुआ।
  3. अंग्रेजी शिक्षा में समानता स्वतंत्रता तथा बंधुता का पाठ पढ़ाकर भारतवासियों में राजनीतिक जागृति उत्पन्न की।

यदि भारत में अंग्रेजी शिक्षा का प्रादुर्भाव न हुआ होता तो कदाचित भारत में स्वतंत्रता संग्राम ही न छिड़ता।

UPTET Primary English, मैकाले का विवरण पत्र 1835 का प्रभाव
मैकाले का विवरण पत्र 1835

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मैकाले का विवरण पत्र 1835 प्रभाव

मैकाले का विवरण पत्र 1835 का तत्कालीन प्रभाव यह हुआ कि कंपनी ने इसके सुझावों के आधार पर अपनी शिक्षा नीति की घोषणा कर दी। मैकाले का विवरण पत्र 1835 का भारतीय शिक्षा पर तत्कालीन प्रभाव निम्नलिखित है-

  1. भारत में अंग्रेजी माध्यम के स्कूल और महाविद्यालय खुलने शुरू हो गए। इनकी नींव इतनी मजबूत थी कि इनका विकास बहुत तेजी से हुआ। या शिक्षा प्रणाली हमारे देश की मूल प्रणाली बन गई। आज भी हमारी शिक्षा इसी माध्यम पर आधारित है।
  2. अंग्रेजी को सरकारी कार्यों की भाषा घोषित कर दिया गया। मैकाले ने अंग्रेजी भाषा के पक्ष में इतने ठोस सुझाव दिए थे कि अंग्रेजी भाषा का महत्व बढ़ गया।
  3. सरकार ने एक आदेश पत्र जारी किया जिसमें या निर्देश दिया गया कि सरकारी नौकरी में अंग्रेजी का ज्ञान रखने वालों को वरीयता दी जाएगी। उस समय केवल वरीयता दी गई थी जबकि वर्तमान में सरकारी नौकरी के लिए अंग्रेजी भाषा का ज्ञान होना अनिवार्यता बन गई है।

अतः मैकाले की नीति से जहां एक तरफ लाभ देखे जा सकते हैं वहीं दूसरी ओर हानि भी। पलड़ा किसी तरफ का भारी नहीं है। ऐसी स्थिति में मैकाले को भारतीय शिक्षा का पथ प्रदर्शक कहना कुछ अतिशयोक्ति ना होगा।

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