मृदा के किसी भी भौतिक रासायनिक और जैविक घटक में आवांछनीय परिवर्तन को मृदा प्रदूषण कहते हैं। मृदा प्रदूषण न केवल विस्तृत वनस्पति को प्रभावित करता है बल्कि यह मिट्टी के सूक्ष्म जीवों की संख्या में परिवर्तन कर देते हैं, जो कि मृदा को उपजाऊ बनाए रखने के लिए अत्यंत आवश्यक है।

मृदा प्रदूषण के स्रोत
मृदा प्रदूषण करने वाले विभिन्न स्रोतों को निम्न दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। पहला प्राकृतिक स्रोत और द्वितीय कृत्रिम स्रोत।
- प्राकृतिक स्रोत – जंतुओं और वनस्पति स्रोतों से प्राप्त प्रदूषक इस सूची में है-
- पेड़ पौधों की मृत्यु और उनके अपघटन के फल स्वरुप मृदा में कार्बनिक पदार्थ मिल जाते हैं। जो कि मृदा की उर्वरता शक्ति को बढ़ाते हैं।
- जंतुओं के मल रक्त मूत्र और घरेलू व्यर्थ पदार्थ मृत जीवो का शरीर खेतों और मैदानों में फेंक दिया जाता है। जो कि गंदी और जहरीली अवस्था में पैदा करते हैं। जिससे सूक्ष्मजीवों की वृद्धि और पेड़ पौधों की संख्या प्रभावित होती है।
- कृत्रिम स्रोत – मृदा प्रदूषण के कृत्रिम स्रोत निम्न प्रकार के हैं-
- उद्योग किसी भी प्रकार का प्रदूषण करने के लिए सबसे अधिक उत्तरदाई हैं। तीव्र औद्योगीकरण और उच्च तकनीकी विकास कठिनाई उत्पन्न कर रहे हैं।
- कई प्रकार के कीटनाशक पाए जाते हैं जो कि कृषि और अन्य उद्देश्यों के लिए प्रयोग किए जाते हैं। यह रसायन कीटों को मारने के लिए उपयोग में लाए जाते हैं।

मृदा प्रदूषण के प्रभाव
- कृषि के लिए मृदा सबसे अधिक महत्वपूर्ण कारक है और यदि मृदा ही दूषित हो जाएगी तब फसलों के उत्पादन में भी कमी आएगी।
- यह सूक्ष्म जीवों की संख्या व उनकी प्रक्रियाओं को भी प्रभावित करता है।
- कीटनाशक, कवक नाशक का अधिक उपयोग भी मृदा की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाता है।
- रेडियोधर्मी पदार्थों की किरणें पौधों द्वारा अवशोषित की जाती है जो कि 2-50% तक क्लोरोफिल को घटा सकती हैं।

मृदा प्रदूषण का नियंत्रण
- कीटनाशक, कवक नाशक और खरपतवार नाशक दवाइयों का उपयोग कम करना चाहिए।
- प्राकृतिक उर्वरक का उपयोग कृत्रिम उर्वरक की अपेक्षा अधिक करना चाहिए।
- औद्योगिक अपशिष्ट को खुले मैदानों में सीधे नहीं फेंकना चाहिए।
- मृत जीवों के शरीर मृदा में फेककर उन्हें जलाकर भस्म कर देना चाहिए