मूल्यांकन अर्थ प्रक्रिया अंग 6 विशेषताएं 6 उद्देश्य

मूल्यांकन शिक्षा के क्षेत्र में चलने वाली एक सतत प्रक्रिया है। जो पूर्व निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्त की सीमा को ज्ञात करके उसी के संबंध में उचित या अनुचित का निर्णय लेने में सहायता प्रदान करता है। शैक्षिक मूल्यांकन छात्रों के मूल्यां कन को व्यक्त करता है, जिससे बौद्धिक, सामाजिक और संवेगात्मक विकास के रूप में उनके व्यक्तित्व के विकास के क्षेत्रों में छात्रों की निष्पत्ति का Evaluation सम्मिलित है।

मूल्यांकन

छात्रों के व्यवहार में विद्यालय द्वारा लाए गए परिवर्तनों के विषय में परमाणु के संकलन और उसकी व्याख्या करने की प्रक्रिया ही मूल्यांकन है।

क्विलन व हन्ना के अनुसार

मूल्यांकन की परिभाषा एक व्यवस्थित रुप से की जा सकती है जो उस बात को निश्चित करती है कि विद्यार्थी किस सीमा तक उद्देश्य प्राप्त करने में समर्थ रहा है।

एम. एन. डन्डेकर के अनुसार
मूल्यांकन

मूल्यांकन का अर्थ

एनसीईआरटी ने मूल्यांकन के अर्थ को स्पष्ट करते हुए कहा है कि यह एक सतत व व्यवस्थित प्रक्रिया है जो देखती है कि

  • निर्धारित शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति किस सीमा तक हो रही है।
  • कक्षा में दिए गए अधिगम अनुभव कितने प्रभावशाली रहे।
  • शिक्षा के उद्देश्य कितने अच्छे ढंग से पूर्ण हो रहे हैं।

मापन की तरह मूल्यांकन भी व्यक्तियों अथवा वस्तुओं के किसी भी गुण के संदर्भ में किया जा सकता है। परंतु शिक्षा के क्षेत्र में मूल्यां कन से अभिप्राय छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि से है। मूल्यां कन प्रक्रिया में किसी कार्यक्रम के द्वारा प्राप्त उद्देश्यों अथवा उपलब्धियों की वांछनीयता को ज्ञात किया जाता है।

मूल्यांकन

मूल्यांकन प्रक्रिया

मूल्यांकन वह प्रक्रिया है जो यह बताती है कि वांछित उद्देश्यों को किस सीमा तक प्राप्त किया जा चुका है। मूल्यांकन के अंतर्गत छात्रों के व्यवहार के गुणात्मक व मात्रात्मक वर्णन के साथ-साथ व्यवहार की वांछनीयता से संबंधित मूल्य निर्धारण भी नहीं रहता है। वास्तव में कोई भी अध्यापक अपने शिक्षण कार्य के उपरांत यह जानना चाहता है कि क्या उसने वे उद्देश्य प्राप्त कर लिया है। जिसके लिए उसने अध्यापन कार्य किया था।

इसी प्रकार छात्र यह जानना चाहते हैं कि क्या उन्होंने वह ज्ञान प्राप्त कर लिया है जिसे प्राप्त करने के लिए वेअध्ययन कार्य कर रहे हैं तथा प्रधानाचार्य जानना चाहता है कि क्या उसके विद्यालय के छात्रों के द्वारा वांछित शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सकती हैं।

मूल्यांकन की यह नवीन संकल्पना इस मूलभूत मान्यता पर आधारित है कि शिक्षा संस्था का कार्य छात्रों को सीखने में सहायता प्रदान करता है। सीखने के दौरान सीखने के दौरान छात्रों के व्यवहार में जिन परिवर्तनों को लाने की हम इच्छुक होते हैं। उन्हें शिक्षा के उद्देश्य अथवा अनुदेशन उद्योगों के नाम से जाना जाता है तथा इन शिक्षण उद्योगों की प्राप्ति के लिए विद्यालय में अधिगम क्रियाओं का आयोजन किया जाता है।

मूल्यांकन प्रक्रिया

मूल्यांकन के अंग

यह अधिगम क्रियाएं निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति से किस सीमा तक सफल रही है। यह वह क्रिया है, जिससे स्पष्ट होता है कि इस प्रक्रिया में शिक्षक उद्देश्यों की प्राप्ति की वरीयता को देखा जाता है। इस प्रकार इस प्रक्रिया के तीन प्रमुख अंग होते हैं-

  1. शिक्षण उद्देश्य
  2. अधिगम क्रियाएं
  3. व्यवहार परिवर्तन

यह तीनों अंग परस्पर एक दूसरे से संबंधित तथा एक दूसरे पर निर्भर होते हैं। शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विद्यालय में अधिगम क्रियाएं आयोजित की जाती हैं जिनसे छात्रों के व्यवहार में परिवर्तन होते हैं। छात्रों के व्यवहार में अपने इन परिवर्तनों की तुलना वंचित परिवर्तन से करके मूल्यां कन किया जाता है।

मूल्यांकन की विशेषताएं

  1. यह एक अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है।
  2. मूल्यांकन उद्देश्य केंद्रित प्रक्रिया है।
  3. यह संपूर्ण शैक्षिक व्यवस्था का अभिन्न अंग है।
  4. यह मापक है तथा शिक्षा के हर पद या अवस्था पर एक नियंत्रक का कार्य करता है।

मूल्यांकन के उद्देश्य

यद्यपि मापन एवं मूल्यांकन के पूर्व वर्णित संकल्पना से इनके उद्देश्य स्पष्ट हो जाते हैं। फिर भी प्रमुख उद्देश्यों को निम्नवत ढंग से सूचीबद्ध किया जा सकता है।

  1. विद्यार्थी निर्धारित पाठ्यक्रम से उद्देश्यों की प्राप्ति किस सीमा तक प्राप्त कर लिए हैं। उससे उनका विकास किस सीमा तक हुआ है। विकास में बाधक तत्व कौन कौन से हैं इत्यादि की जानकारी करना इनका प्रमुख उद्देश्य है।
  2. इसके द्वारा अधिगम को प्रेरित किया जाता है और पूर्व निर्धारित उद्देश्यों तक पहुंचने का प्रयास किया जाता है।
  3. इसके माध्यम से छात्रों के पारस्परिक भिन्नता की जानकारी मिलती है। जिससे उनके शारीरिक मनोवैज्ञानिक गुण दोषों का पता चलता है।
  4. मापन एवं मूल्यांकन का एक प्रमुख उद्देश्य है कि विद्यार्थियों में कमजोर छात्रों की पहचान करके उनके आगे बढ़ने में मदद करता है।
  5. इसकी सहायता से शिक्षण विधियों की प्रभावशीलता का आकलन किया जाता है।
  6. इसक सहायता से परीक्षक प्राप्त अंकों की व्याख्या हेतु प्रासंगिक मानकों का निर्माण करते हैं।
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