मूल्यांकन के प्रकार – मूल्यांकन को छात्रों के द्वारा प्राप्त किए गए शिक्षा उद्देश्यों की सीमा को ज्ञात करने की क्रमबद्ध बता प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। मूल्यांकन के अंतर्गत छात्रों के व्यवहार के गुणात्मक और मात्रात्मक वर्णन के साथ साथ व्यवहार की सुनिश्चितता से संबंधित मूल्य निर्धारित भी रहते हैं। वास्तव में कोई भी अध्यापक अपने शिक्षण कार्य के उपरांत यह जानना चाहता है कि क्या उसने वे उद्देश्य प्राप्त कर लिए हैं, जिसके लिए उसने अध्यापन कार्य किया था।
मूल्यांकन के प्रकार
मूल्यांकन एक सतत सकारात्मक प्रक्रिया है जो शैक्षिक उद्देश्यों की सीमा निर्धारित करके उनकी प्राप्ति के स्तर को ज्ञात कर उचित अनुचित का निर्णय लेने में सहायता करती है। इसके लिए शैक्षिक मूल्यांकन हेतु परीक्षा महत्वपूर्ण साधन है। मूल्यांकन के प्रकार निम्न हो सकते हैं –
- सतत मूल्यांकन
- व्यापक मूल्यांकन
- दक्षता आधारित मूल्यांकन
- रचनात्मक मूल्यांकन
- आंकलित मूल्यांकन


1. सतत मूल्यांकन
मूल्यांकन के प्रकार में सतत मूल्यांकन के माध्यम से बालक की योग्यता तथा योग्यता के बारे में नियमित रूप से उपयोगी तत्वों का संकलन संभव हो सकेगा। इन तथ्यों का प्रयोग ऐसे उपचारात्मक शिक्षण यंत्र तथा समृद्ध शिक्षक के रूप में किया जा सकेगा। जिससे कि बालकों के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं का अधिकतम विकास किया जा सके और शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके। इस फीडबैक से न केवल विद्यार्थी को मापन वर्गीकरण एवं प्रमाणीकरण में सहायता मिलेगी।
अपितु उस की कार्यकुशलता एवं सफलता के स्तर को सुधारने की तथा इस प्रकार के रचनात्मक मूल्यांकन के द्वारा उसके अधिकतम विकास की व्यवस्था को सक्षम बनाया जा सकेगा। इस प्रकार सतत मूल्यांकन के परिणाम हमें शीघ्र प्राप्त होंगे और सतत व्यापक मूल्यांकन स्वयं लक्ष्य प्राप्त करने का साधन है। विद्यार्थी परीक्षा के बाद से मुक्त हो सकेंगे तथा सहज भाव से मूल्यांकन के लिए तत्पर रहेंगे।
2. व्यापक मूल्यांकन
शिक्षा जीवन पर यंत्र चलने वाली एक प्रक्रिया है जो मानव जीवन के सभी पक्षों को प्रभावित करती है। बालक के अधिगम को किसी ना किसी रूप में प्रभावित करने वाले स्कूल सूक्ष्म प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष अज्ञात अज्ञात अनेकों पक्ष हैं। जिनका मूल्यांकन करना व्यापक मूल्यांकन कहलाता है। इस मूल्यांकन के द्वारा या निर्णय लिया जा सकता है कि कौन से तत्व छात्र के अंदर अच्छे हैं और कौन से बुरे हैं तथा इन तत्वों का छात्र के विकास में क्या योगदान है।
शैक्षिक क्षेत्र में किसी बालक का मूल्यांकन करते समय उसके वातावरण तथा सामाजिक पृष्ठभूमि उसकी शारीरिक क्षमता को समझकर ही व्यापक मूल्यांकन किया जाता है।


3. दक्षता आधारित मूल्यांकन
दक्षता आधारित मूल्यांकन का अर्थ है शिक्षार्थियों की दक्षता पर आधारित न्यूनतम अधिगम आकलन विश्लेषण करना, जिससे शिक्षार्थियों की दक्षता एवं ग्रहिता को सुनिश्चित किया जा सके। जैसे प्राथमिक स्तर की कक्षाओं में छात्रों को 1 से 100 तक की गिनती ओं का अभ्यास कराते हैं। उन छात्रों में निम्न अध्यक्षता में देखी जा सकती है। संख्याओं की पहचान करना, संख्याओं का धारण संख्याओं को लिखने का निश्चित क्रम इनमें पूर्णरूपेण दक्षता प्राप्त करना ही अधिगम प्रक्रिया है।
इस अधिगम की जांच या आकलन हेतु शिक्षक दक्षता आधारित मूल्यांकन का सहारा लेते हैं। दक्षता आधारित मूल्यांकन के द्वारा अध्यापक उन कारणों को ज्ञात भी कर लेते हैं। जिनके कारण शिक्षार्थी अपेक्षित स्तर तक सीखने में असमर्थ हैं। अर्थात शिक्षकों को कक्षा में समय-समय पर दक्षता आधारित मूल्यांकन या अंकन करते रहना चाहिए। जिससे छात्रों में दक्षता का ज्ञान हो सके और अधिगम प्रक्रिया को सफल बनाया जा सके।
4. रचनात्मक मूल्यांकन
मूल्यांकन के प्रकार में रचनात्मक मूल्यांकन से तात्पर्य है कि किसी शैक्षिक कार्यक्रम योजना प्रक्रिया सामग्री आदमी मूल्यांकन करके सुधार किए जाएं अर्थात रचनात्मक मूल्यांकन करता। किसी शैक्षिक कार्यक्रम योजना प्रक्रिया की सामग्री की प्रभावशीलता गुणवत्ता उपयोगिता सीमा है। उस कार्यक्रम योजना को और अधिक गुणवत्तापूर्ण तथा प्रभावशाली बनाया जा सके उसमें जो कमियां रह गई हैं।
उन्हें दूर किया जा सके जैसे हमारे आपके द्वारा छात्रों को पढ़ाने के उपरांत विभिन्न परीक्षाओं और कार्यकलापों के द्वारा बच्चों की उपलब्धियों का मूल्यांकन किया जाता है। इसको रचनात्मक मूल्यांकन कहेंगे क्योंकि इसके द्वारा यह पता लगता है कि किस बच्चे ने कितना ज्ञान अर्जित किया है। कौन पिछड़ गया है और किस बच्चे में कितने शैक्षिक सुधार की आवश्यकता है। इस मूल्यांकन में द्वारा शिक्षकों और छात्रों दोनों को ही अपने में सुधार करने का अवसर प्राप्त होता है।
इस प्रकार से रचनात्मक मूल्यांकन अल्पकालीन निर्णय को लेने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।


5. आंकलित मूल्यांकन
संकलित या योगात्मक मूल्यांकन से तात्पर्य पहले से निर्धारित किसी शैक्षिक कार्यक्रम योजना सामग्री की समग्र वांछनीय ता को ज्ञात करने की प्रक्रिया से है, जिससे उसके बारे में या निर्णय लिया जा सके कि भविष्य में पूर्ण रूप से जारी रखी जाए या फिर उसके कुछ भागों को जारी रखा जाए। अनावश्यक भाग को हटा दिया जाए।
जैसे जब कोई शिक्षक या मूल्यांकनकर्ता पाठ्यक्रम की समाप्ति पर या शैक्षिक कार्यक्रम के अंत में या शिक्षा सत्र की समाप्ति पर छात्रों की उपलब्धियां मूल्यांकन करता है। तो उसे अंकित मूल्यांकन कहा जाता है। इससे मूल्यांकन के आधार पर ही छात्रों को अन्य कक्षाओं के लिए प्रोन्नत किया जा सकता है। अंकित मूल्यांकन दीर्घकालीन निर्णय को लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
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