शिक्षा में मूल्यांकन के क्षेत्र को मुख्य रूप से 4 भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है। मापन और मूल्यांकन का अपना कोई अलग एवं विशेष क्षेत्र एवं कार्य नहीं होता है। जिस क्षेत्र में जिस कार्य एवं उद्देश्य की पूर्ति के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। वही उसका क्षेत्र हुआ वह उसे पूरा करना ही उसका उद्देश्य होता है।
मूल्यांकन के क्षेत्र
शैक्षिक मापन और मूल्यांकन की दृष्टि से पूरी शिक्षा प्रक्रिया को निम्नलिखित मूल्यांकन के क्षेत्र में बांटा जा सकता है –
1. शिक्षण के क्षेत्र में मूल्यांकन
मापन और मूल्यांकन द्वारा शिक्षण के विभिन्न पक्षों द्वारा लक्ष्य प्राप्त की सीमा जानी जा सकती है। पाठ्यक्रम कितना उपयोगी है, इसे प्राप्त करने के लिए उपयुक्त अधिगम क्रियाएं, आयोजित की गई या नहीं, शिक्षण विधि कौन सी उपयुक्त होगी आदि जानकारी, मापन और मूल्यांकन के शिक्षण क्षेत्र हैं।

2. प्रशासन में मूल्यांकन के क्षेत्र
किसी भी कार्य की सफलता व सफलता में उसके प्रशासन का बहुत हाथ होता है। शिक्षा के क्षेत्र में विद्यार्थियों का चयन, वर्गीकरण व व्यवस्थापन, प्रमाण पत्रों का वितरण तथा शिक्षण से संबंधित सभी पक्षों की गुणवत्ता नियंत्रण आदि प्रशासन क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं।
प्रवेश के समय छात्रों की अभिरुचि, योग्यता, क्षमता, बुद्धि, व्यक्तित्व, भिन्नता आदि का मापन और मूल्यांकन कर उसके अनुरूप विभिन्न पाठ्यक्रमों हेतु चयनित कर उन्हें समुचित ढंग से व्यवस्थित वह वर्गीकृत कर उनकी क्षमताओं का पूरा-पूरा उपयोग किया जा सकता है।
सत्र के अंत में मापन और मूल्यांकन इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु किया जाता है, यह जानने का प्रयास किया जाता है कि छात्रों ने निर्धारित पाठ्यवस्तु का ज्ञान किस सीमा तक प्राप्त किया। उसी के आधार पर मूल्यांकन प्रक्रिया द्वारा उन्हें विभिन्न श्रेणियों प्रदान कर उत्तीर्ण घोषित किया जाता है। यही शैक्षिक नीतियों का निर्माण हो समय-समय पर उनमें परिवर्तन एवं सुधार हो अर्थात पाठ्यक्रम पाठ्यपुस्तक शैक्षिक नीति पठन-पाठन अनुशासन आदि का सुचारू रूप से संचालन ही प्रशासनिक क्षेत्र है। मूल्यांकन की विशेषताएं
3. निर्देशन व परामर्श में मूल्यांकन के क्षेत्र
मापन और मूल्यांकन द्वारा समय-समय पर छात्रों की कठिनाइयों व कमियों आदि की जानकारी प्राप्त कर उन्हें समय से उचित मार्गदर्शन, निर्देशन व परामर्श दिया जाए। तो उनकी समस्याओं व कमियों का निदान कठिन नहीं होगा। छात्रों की क्षमता रुचि तथा योग्यता आदि का मापन एवं मूल्यांकन कर उन्हें सही शैक्षिक व व्यावसायिक निर्देशन दिया जा सकता है। इससे शिक्षा में अपव्यय एवं अवरोधन की समस्या तो कम होगी ही साथ ही बेरोजगारी भी कम होगी।
शिक्षकों तथा शिक्षा से संबंधित अन्य कर्मियों के व्यवहार का शिक्षा जगत व छात्रों के व्यवहार पर पड़ने वाले प्रभाव का मापन और मूल्यांकन उन्हें उनकी प्रशासनिक क्षमता बढ़ाने हेतु उचित परामर्श देने का भी कार्य करता है। जो उनकी क्षमता में सुधार लाकर व्यवस्था को और सफल बना सकता है। अर्थात शिक्षा से जुड़े सभी पक्षों की कमियों एवं समस्याओं को दूर करने एवं उनकी क्षमताओं एवं योग्यताओं का भरपूर उपयोग सही निर्देशन एवं परामर्श द्वारा ही संभव हो सकता है।



4. भविष्य कथन में मूल्यांकन के क्षेत्र
भविष्य अध्ययन नए आयाम प्रस्तुत करता है परंतु भविष्य कथन तभी संभव होगा जब वर्तमान शिक्षा प्रणाली व उसके सभी पक्षों का सही व वैज्ञानिक मापन और मूल्यांकन किया जाए। प्राप्त परिणामों के आधार पर ही भविष्य की संभावनाओं हेतु पूर्व कथन संभव हो पाएगा। छात्र की दृष्टि से भी भविष्य कथन उसे अपनी योग्यता व क्षमता के अनुरूप भावी सफलता के संदर्भ में सही निर्णय लेने में सहायता देता है।
मापन और मूल्यांकन का अपना कोई अलग एवं विशिष्ट क्षेत्र एवं कार्य नहीं होता है। जिस क्षेत्र में जिस कार्य एवं उद्देश्य की पूर्ति के लिए इसका उपयोग किया जाता है वही उसका क्षेत्र व उसे पूरा करना ही उसका उद्देश्य होता है।
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