मानव विकास की अवस्थाएं हमको यह बताती है कि मानव का विकास किस अवस्था में कितना होता है। मानव विकास की अवस्था का अर्थ है “परिवर्तन की एक प्रगतिशील श्रृंखला जो परिपक्वता और अनुभव के परिणामस्वरूप एक क्रमिक रूप से अनुमानित पैटर्न में होती है।” मानव विकास, स्वास्थ्य भौतिक पर्यावरण से लेकर आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्वतंत्रता तक सभी प्रकार के मानव विकल्पों को सम्मिलित करते हुए लोगों के विकल्पों में विस्तार और उनके शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं तथा सशक्तीकरण के अवसरों में वृद्धि की प्रक्रिया है।
मानव विकास
मानव विकास, स्वस्थ भौतिक पर्यावरण से लेकर आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्वतंत्रता तक सभी प्रकार के मानव विकल्पों को सम्मिलित करते हुए लोगों के विकल्पों में विस्तार और उनके शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं तथा सशक्तीकरण के अवसरों में वृद्धि की प्रक्रिया है। मानव विकास की अवधारणा का संबंध मुख्य रूप से मानव प्रयास के अंतिम उद्देश्य, लोगों को अच्छा जीवन बिताने के योग्य बनाने से है। देखना है कि यह उद्देश्य केवल आय में सुधार के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है अथवा लोगों के भौतिक कल्याण से।
मानव विकास की अवस्थाएं
मानव विकास की अवस्थाएं मुख्य रूप से तीन है, इन्हीं अवस्थाओं में, हम बालकों में होने वाले विभिन्न तरह के विकास शारीरिक विकास, मानसिक विकास, सामाजिक विकास, संवेगात्मक विकास आदि का विस्तृत अध्ययन करते हैं।
1. शैशवावस्था
आज का जन्म के होने के उपरांत मानव विकास की प्रथम अवस्था है। शैशवावस्था को जीवन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण काल माना जाता है। सामान्यता शिशु के जन्म से 5 या 6 वर्ष तक की अवस्था को शैशवावस्था करते हैं।
- जन्म से 3 वर्ष या 5 वर्ष की अवस्था
- छोटे छोटे शब्दों को प्रयोग करके सीखना
- चलना सीखना
- प्रयास व त्रुटि पूर्ण व्यवहार करना
- सही व गलत में अंतर करना सीखना
2. बाल्यावस्था
शैशवावस्था के उपरांत बाल्यावस्था प्रारंभ होती है। या अवस्था दो भागों में विभाजित होती है पूर्व बाल्यावस्था उत्तर बाल्यावस्था। पूर्व बाल्यावस्था 2 वर्ष से 6 वर्ष तक मानी जाती है तथा उत्तर बाल्यावस्था 6 वर्ष से 12 वर्ष तक मानी जाती है। बालक में इस अवस्था में विभिन्न हादसों व्यवहार रुचि एवं इच्छाओं के प्रतिरूपों का निर्माण होता है।
पूर्व बाल्यावस्था
पूर्व बाल्यावस्था में बालकों में निम्न गुण पाए जाते हैं-
- बालक का व्यवहार जिद्दी, आज्ञा ना मानने वाला होता है।
- बालक खिलौनों से खेला पसंद करता है।
- बालक जिज्ञासा प्रवृत्ति के होते हैं।
- शारीरिक परिवर्तन तेजी से होता है।
- भाषा का विकास होता है देखने को मिलते हैं।
- कम उम्र के बच्चों के साथ संबंध बनाते हैं।
- बालकों को लोगों से मिलना जुलना अच्छा लगता है।
उत्तर बाल्यावस्था
उत्तर बाल्यावस्था में बालकों में निम्न गुण पाए जाते हैं-
- बालक में कितना नैतिकता और मूल्यों का विकास होता है।
- व्यक्तिगत स्वतंत्रता का आयोजन होता है।
- हम उम्र साथियों के साथ रहना सीखता है।
- स्वयं के प्रति हितकर प्रवृत्ति का निर्माण होता है।
- संवेग की अभिव्यक्ति का परिवर्तन होना।




3. किशोरावस्था
किशोरावस्था मानव जीवन के विकास की सबसे महत्वपूर्ण अवस्था है। इस अवस्था को जीवन का सबसे जटिल काल माना जाता है। या समय बाल्यावस्था प्रौढ़ावस्था का संधिकाल होता है जिसमें वह ना तो बालक ही रह जाता है और ना ही प्रौढ़ होता है। किशोरावस्था का शाब्दिक अर्थ है परिपक्वता की ओर बढ़ना।
अतः किशोरावस्था वह अवस्था है जिसमें बालक परिपक्वता की ओर अग्रसर होता है तथा जिसके समाप्त होने पर वह परिपक्व बन जाता है। इस अवस्था में शारीरिक विकास, मानसिक विकास, रुचियों में परिवर्तन, बुद्धि का अधिकतम विकास, व्यवहार में विभिन्नता, स्थाई तथा समायोजन का अभाव होता है।
रास के अनुसार मानव विकास की अवस्थाएं | ई• बी• हरलाक के अनुसार मानव विकास की अवस्थाएं | जेम्स के अनुसार मानव विकास की अवस्थाएं |
युवावस्था (1 से 3 वर्ष) पूर्व बाल्यकाल (3 से 6 वर्ष) उत्तर बाल्यकाल (6 से 12 वर्ष) किशोरावस्था (12 से 18 वर्ष) | जन्म से पूर्व की अवस्था – गर्भाधान से जन्म तक का समय अर्थात 280 दिन शैशवावस्था – जन्म से लेकर 2 सप्ताह शिशुकाल – 2 वर्ष तक बाल्यकाल – 2 से 11 या 12 वर्षपूर्व बाल्यकाल – 6 वर्ष तक उत्तर बाल्यकाल – 7 वर्ष से 12 वर्ष तक किशोरावस्था – 11-13 वर्ष से लेकर 20-21 वर्ष की अवधि | शैशवावस्था – जन्म से 5 वर्ष तक बाल्यावस्था – 6 से 12 वर्ष तक किशोरावस्था – 13 से 19 वर्ष तक प्रौढ़ावस्था – 20 वर्ष से ऊपर |