माध्यमिक स्तर पर पर्यावरण शिक्षा कक्षा नवमीं से लेकर कक्षा बारहवीं तक के छात्रों को प्रदान की जाती है। इन कक्षाओं के छात्रों की उम्र 15 वर्ष से लेकर 18 वर्ष के मध्य होती है। इस आयु के छात्रों का मानसिक स्तर ऐसा होता है कि वे किसी भी कार्य को ठीक प्रकार कार्यान्वित कर सकते हैं। इसलिये इस आयु के छात्रों के लिये पर्यावरण ज्ञान के साथ-साथ प्रयोगात्मक कार्य अधिक होने चाहिये।

माध्यमिक स्तर पर पर्यावरण शिक्षा
माध्यमिक स्तर पर पर्यावरण शिक्षा का स्वरूप निम्नलिखित रूपरेखा का होना चाहिए। जो कि भावी पीढ़ी के लिए बहुत अधिक प्रभावशाली एवं लाभदायक होगी।
- नवमीं कक्षाओं से लेकर बारहवीं कक्षाओं तक के छात्रों में पर्यावरण प्रदूषण, विलुप्त होने वाले वन्य प्राणी, समाप्त हो रहे वन, चारागाहों आदि के विषय में समुचित जानकारी एवं इसके विषय में उचित जानकारी दी जानी चाहिये।
- कक्षा दसवीं के छात्रों को पर्यावरण एक विषय के रूप में पढ़ाया जाना चाहिये तथा बारहवीं कक्षाओं के लिये पर्यावरण एक ऐच्छिक विषय के रूप में पढ़ाया जाना चाहिये।
- विद्यालयों में पर्यावरण विशेषज्ञों को बुलाकर उनके द्वारा छात्रों को पर्यावरण के सम्बन्ध समझाया जाना चाहिए। (माध्यमिक स्तर पर पर्यावरण शिक्षा)
- विद्यालय में पर्यावरण क्रियाकलापों के लिये एक पृथक् से गोष्ठी बनायी जानी चाहिये। जिनमें प्रकृति एवं पर्यावरण से सम्बन्धित बैठकें आयोजित की जानी चाहिये।
- छात्रों को अवकाश के दिन यातायात नियंत्रण, गली-मोहल्ले तथा खेल के मैदानों एवं पाकों के सर्वे (निरीक्षण) आदि के कार्य सौंपे जाने चाहिये। आप माध्यमिक स्तर पर पर्यावरण शिक्षा Hindibag पर पढ़ रहे हैं।
- छात्रों में पर्यावरण से सम्बन्धित वाक्-प्रतियोगिताओं का आयोजन करना चाहिये तथा अच्छे वाक् प्रतियोगी को पुरस्कृत करना चाहिये।
- छात्रों को इस प्रकार की शिक्षा दी जानी चाहिये कि वे अपने आस-पड़ोस के लोगों को पर्यावरण के बारे में अच्छी तरह से समझा सकें।

- छात्रों को प्रत्येक वर्ष पर्यावरण संस्थानों में प्रशिक्षण लेने के लिए भेजा जाना चाहिए।
- छात्रों को ऐसे प्रयोग सिखाये जाने चाहिये जिससे वे जल एवं खाद्य पदार्थों में होने वाली मिलावटों का पता लगा सकें।
- नगरीय एवं ग्रामीण छात्रों को विद्यालय से बाहर ले जाकर आस-पास की समस्याओं तथा उनके समाधान का ज्ञान कराया जाना चाहिये।
- छात्रों को नगर के आस-पास बने कारखानों में ले जाकर उनसे उत्पन्न होने वाली पर्यावरण सम्बन्धी समस्याओं का ज्ञान कराया जाना चाहिये।
- प्रत्येक विद्यालय में पर्यावरण में प्रशिक्षित कम से कम दो शिक्षक अवश्य होने चाहिये।
- पर्यावरण शिक्षा के अन्तर्गत नशीले पदार्थों के विषय में छात्रों को विशेष रूप से आवश्यक जानकारी प्रदान की जानी चाहिये।
- नशीले पदार्थों में धूम्रपान, शराब, अफीम, गांजा, भांग, कोकीन, ब्राउन शुगर तथा स्मैक जैसे घातक एवं हानिकारक नशीले पदार्थों के प्रभावों के बारे में छात्रों को विशेष रूप से बताया जाना चाहिये।
- छात्रों को पर्यावरण शिक्षा द्वारा कागज, ईंधन एवं ऊर्जा के अपव्यय का पूरा ज्ञान कराया जाना चाहिये, क्योंकि इसका ज्ञान होने पर वे इनके होने वाले अपव्यय पर रोक लगाने का प्रयास कर सकेंगे।
- छात्रों को परिवार नियोजन सम्बन्धी शिक्षा भी पर्यावरण शिक्षा के साथ-साथ दी जानी चाहिये, जिससे वे भविष्य में विश्व में बढ़ रही जनसंख्या नियंत्रण में अपना महत्वपूर्ण योगदान देकर पर्यावरण को स्वच्छ बनाने में सहयोग कर सकेंगे।
इस प्रकार स्पष्ट होता है कि छात्र किसी भी देश की एक बहुत बड़ी शक्ति हैं। यदि इन छात्रों को हम पर्यावरण के प्रति प्रेरित करके उचित व्यवहार करने वाले मार्ग पर डाल देंगे तो निश्चय ही ये अपने भविष्य को उज्ज्वल बना सकेंगे। अतः इस दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर हमें पर्यावरण शिक्षा को इनके लिये अधिक उपयोगी एवं प्रयोगात्मक बनाना होगा, जिससे कि ये उचित मार्गदर्शन के द्वारा पर्यावरण एवं वातावरण को स्वच्छ बनाने में सहयोग दे सकेंगे।
