मांग का नियम मांग के प्रकार मांग के नियम की मान्यता

अर्थशास्त्र के अन्दर माँग शब्द की व्याख्या विभिन्न रूपों में की गई है। एक ओर मांग को मनोवैज्ञानिक ढंग से परिभाषित करते हुए आवश्यकता का पर्यायवाची बताया गया है तथा दूसरी ओर भौतिक दृष्टि किसी वस्तु की उस मात्रा की ओर संकेत किया गया है जो बाजार में किसी निश्चित मूल्य पर बिकने के लिए उपलब्ध होती है।

मांग के प्रकार

अर्थशास्त्रियों ने माँग के निम्नलिखित तीन प्रकार बताये हैं-

1. मूल्य माँग

अर्थशास्त्र के अन्तर्गत माँग से आशय मूल्य माँग से होता है। मूल्य माँग किसी वस्तु की उन मात्राओं को व्यक्त करती है जो अन्य बाते समान रहने पर अर्थात उपभोक्ता की आय, रुचि फैशन से सम्बन्धित वस्तुओं की कीमतों आदि में किसी प्रकार का परिवर्तन न होने पर एक उपभोक्ता एक निश्चित समय में विभिन्न कल्पित मूल्य पर खरीदने को तैयार है। माँग और मूल्य में विपरीत सम्बन्ध पाया जाता है। अतः मूल्य माँग वक्र बायें से दायें नीचे की ओर गिरता हुआ होता है।

मांग

2. आय माँग

आय माँग से आशय वस्तु व सेवाओं की उन विभिन्न मात्राओं से होता है जो अन्य बातों के समान रहने पर, अर्थात् उपभोक्ता की रुचि, स्वभाव एवं वस्तु के मूल्य में किसी प्रकार का परिवर्तन न होने पर, उपभोक्ता एक निश्चित समय में आप के विभिन्न स्तरों पर क्रय करने को तत्पर रहता है।

3. आड़ी माँग

आडी माँग से आशय वस्तुओं या सेवाओं की उन विभिन्न मात्राओं से होता है जो अन्य बातों के समान रहने पर अर्थात उपभोक्ता रुचि, फैशन, आय एवं वस्तु विशेष की कीमत में किसी प्रकार परिवर्तन न होने पर, उपभोक्ता सम्बन्धित वस्तुओं या सेवाओं की कीमतो में परिवर्तन होने के परिणामस्वरूप क्रय करता है। यहाँ पर सम्बन्धित वस्तुओं की व्याख्या निम्न दो प्रकार से की गयी है-

  1. प्रतिस्थापन वस्तुएँ – प्रतिस्थापन वस्तुओं का आशय उन वस्तुओं से हैं, जिनका प्रयोग एक-दूसरे के स्थान पर किया जा सकता है, जैसे चाय व कॉफी, इन वस्तुओं के मूल्य एवं मांगी गयी मात्रा में प्रत्यक्ष सम्बन्ध पाया जाता है अर्थात् एक वस्तु के मूल्य में वृद्धि के या कमी दूसरी वस्तु के मूल्य में क्रमशः वृद्धि या कमी कर देती है। यही कारण है कि इन वस्तुओं का माँग वक्र बायें से दायें नीचे की ओर गिरता हुआ होता है।
  2. पूरक वस्तुयें – जो वस्तुयें एकदूसरे पर निर्भर करती हैं अर्थात् जिनका प्रयोग साथ-साथ किया जाता है, ये पूरक वस्तुएं कहलाती हैं जैसे- स्कूटर तथा पेट्रोल एवं पेन तथा स्याही आदि। उपर्युक्त के अतिरिक्त मांग के और तीन प्रकार होते हैं, जोकि निम्नलिखित हैं-
  • संयुक्त माँग – जब दो या दो से अधिक वस्तुयें किसी एक संयुक्त उद्देश्य की पूर्ति हेतु मांगी जाती है। तो इस प्रकार की माँग संयुक्त मांग कहलाती है, जैसे- पेन तथा स्याही एवं स्कूटर तथा पेट्रोल आदि।
  • व्युत्पन्न माँग – जब किसी एक वस्तु की माँग के कारण किसी अन्य वस्तु की माँग उत्पन्न होती है तो यह व्युत्पन्न माँग कहलाती है जैसे श्रम की माँग अन्य वस्तुओं का उत्पादन श्रम की सहायता से ही किया जाता है।
  • सामूहिक माँग – विभिन्न प्रयोगों में प्रयोग की जाने वाली वस्तु की माँग, सामूहिक माँग कहलाती है, जैसे कोयला एवं विद्युत की माँग। इनका प्रयोग लाने के प्रयोगों में होता है।
मांग के प्रकार

मांग का नियम

माँग का नियम वस्तु की कीमत और उस कीमत पर माँगी जाने वाली वस्तु की मात्रा के गुणात्मक संबंध को बताता है। माँग का नियम हमें यह बताता है कि अन्य बातें समान रहने पर वस्तु की कीमत एवं वस्तु की मात्रा में प्रतिलोम सम्बन्ध होता है।

माँग के नियम निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है –

  1. उपभोक्ता की आय में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
  2. उपभोक्ता के स्वभाव तथा रुचियों में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
  3. सम्बन्धित वस्तुओं की कीमतों में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
  4. उपभोक्ता के लिए कोई स्थानापत्र वस्तु उपलब्ध नहीं होनी चाहिए।
  5. वस्तु के मूल्य में परिवर्तन की कोई संभावना नहीं होनी चाहिए।

माँग के नियम की मान्यताएं

  1. भविष्य में मूल्य वृद्धि की आशंका – जब बाजार में कीमतों में परिवर्तन की सामान्य प्रवृत्ति होती है तब उपभोग की प्रवृत्ति भी सामान्य होती है। भविष्य में यदि मूल्यों के बढ़ने की आशंका है तो लोग वस्तुओं का संग्रह करना प्रारम्भ कर देते हैं तथा मूल्यों के कम होने की संभावना पर वस्तुएँ खरीदना बंद कर देते हैं। इन परिस्थितियों में यह नियम क्रियाशील नहीं होता।
  2. उपभोक्ता की अज्ञानता – उपभोक्ता की अज्ञानता की वजह से भी इस नियम की क्रियाशीलता में बाधा पड़ती है। बहुत से लोग वस्तु की श्रेष्ठता का आकलन वस्तु की कीमत के आधार पर करते हैं। ऐसा करने पर यह नियम लागू नहीं होगा।
  3. सामाजिक प्रतिष्ठा की वस्तुएँ – प्रायः प्रतिष्ठा वाली वस्तुओं की माँग कम कीमत पर कम तथा अधिक कीमत पर अधिक हो जाती है।
आर्थिक विकास महत्त्व

मांग को प्रभावित करने वाले कारक

मांग को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं

  1. प्राकृतिक पर्यावरण – प्राकृतिक पर्यावरण जैसे सर्दी गर्मी व वर्षा काफी हद तक माँग को प्रभावित करती है। सर्दी के समय ऊनी कपड़ों, गर्मी के समय सूती कपड़ों तथा वर्षा के समय छातों की मांग बढ़ जाती है।
  2. फैशन और रुचि – जब फैशन व रूचि में परिवर्तन होता है तो माँग प्रभावित होती है। उदाहरण के लिए रेडीमेड कपड़ों के फैशन आ जाने से उनकी भाग में वृद्धि होती है।
  3. आय स्तर – व्यक्तियों के आय का स्तर भी माँग पर प्रभाव डालता है। जब व्यक्तियों का आय स्तर ऊँचा होता है तो नयी वस्तुओं की मांग में वृद्धि होती है।
  4. बाजार की दशा – बाजार की दशा व मूल्य की प्रकृति भी माग पर प्रभाव डालती है। यदि व्यक्तियों को यह अनुमान हो जाये कि भविष्य में वस्तुओं के मूल्य बढ़ने वाले है तो वे संचय करने लगेंगे, जिससे माँग में वृद्धि हो जायेगी।
  5. ज्ञान में वृद्धि – जब ज्ञान में वृद्धि होती है तो नयी वस्तुओं के बारे में जानकारी होती है। फलस्वरूप मांग में वृद्धि होती है।
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