मस्तिष्क उद्वेलन व्यूह रचना की विशेषताएँ व लाभ

मस्तिष्क उद्वेलन व्यूह रचना – मस्तिष्क उद्वेलन का शब्दकोशीय अर्थ होता है मस्तिष्क को उद्वेलन करना, उसमें उथल-पुथल मचाना यानी कि ऐसी आँधी लाना जिसमें किसी वस्तु व्यक्ति प्रक्रिया या सम्प्रत्यय के बारे में अनगिनत विचार तथा सोच एक साथ अनायास ही उनकी अच्छाई-बुराई औचित्य अनौचित्य की परवाह किए बिना मस्तिष्क पटल पर उभर जाएँ।

व्यूह रचना के रूप में इसे प्रतिष्ठित करने का श्रेय ए. एफ. ऑसबोर्न को जाता है जिसने अपनी रचना एप्लाइड इमेजीनेशन के द्वारा 1963 में इसे सबके सामने रखा। ऑसबोर्न के अनुसार इस व्यूह रचना का उपयोग किसी परिस्थिति विशेष या समस्या समाधान के सन्दर्भ में समूह के सदस्यों के विचार जानने हेतु इस प्रकार किया जाता है कि उन्हें बिना रोक-टोक के जो भी विचार या समाधान उनके मस्तिष्क में उस समय मँडरा रहे हों उन्हें व्यक्त करने की पूरी स्वतन्त्रता तथा इच्छित अवसर प्रदान किए जाएँ।

मस्तिष्क उद्वेलन व्यूह रचना विशेष रूप से उच्च संज्ञानात्मक योग्यताओं के विकास तथा चिन्तन स्तर के अधिगम सृजनशील चेष्टाओं तथा कार्यों और समस्या समाधान अधिगम अर्जन के एक प्रभावपूर्ण सहायक के रूप में अधिक उपयोगी सिद्ध होती है। इसके अतिरिक्त भावात्मक क्षेत्र से सम्बन्धित अधिगम अर्जन में भी इसका काफी महत्वपूर्ण योगदान रहता है।

मस्तिष्क उद्वेलन व्यूह रचना को कैसे काम में लाया जाए ?

  1. शुरूआत विद्यार्थियों का एक छोटा ( 10-15 विद्यार्थीयों) समूह बनाकर की जा सकती है। इस समूह के आगे कोई एक विशेष समस्या, जैसे- ‘छात्र – अनुशासन हीनता’, ‘भारत में बेरोजगारी किये समस्या’, ‘बढ़ता हुआ प्रदूषण’, ‘आतंकवाद से कैसे निपटा जाए’ आदि विचार मंथन हेतु प्रस्तुत की जा सकते हैं।
  2. समूह नेता की हैसियत से अध्यापक द्वारा अब समूह के सभी सदस्यों से बारी-बारी से प्रस्तुत समस्या के समाधान के सन्दर्भ में अपने-अपने विचार जितनी तेजी से तथा स्पीड में देना चाहें, देने के लिए कहा जाता है।

मस्तिष्क उद्वेलन व्यूह रचना की विशेषताएँ

मस्तिष्क उद्वेलन व्यूह रचना की विशेषताएँ निम्न है-

  1. यह शैक्षिक और मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों पर आधारित है।
  2. यह भावात्मक तथा ज्ञानात्मक पक्षों के उच्च उद्देश्यों की प्राप्ति है।
  3. छात्रों को चिन्तन तथा समस्या समाधान करने के क्षेत्र में उत्साहित करती है।
  4. छात्रों को सृजनात्मक क्षमताओं का प्रयोग करती है।
  5. सामूहिक चिन्तन तथा वार्तालाप इस विधि में अधिक मूल्यवान विचार प्राप्त करती है।
  6. यह छात्रों को स्वतन्त्रतापूर्वक सोचने के लिए प्रेरित करती है।
  7. यह शिक्षण की सृजनात्मक शिक्षण नीति है तथा मौलिक विचारों को बढ़ावा देती है।

मस्तिष्क उद्वेलन व्यूह रचना के लाभ

मस्तिष्क उद्वेलन व्यूह रचना निम्न दृष्टि से अच्छी मानी जाती है-

  1. अध्यापकों को सभी सूचनाएँ प्रस्तुत करने तथा समस्याओं का हल स्वयं ही बताते रहने की जल्दी रहती है। इस प्रकार के रटे-रटाए ज्ञान की प्रस्तुति करते रहने सम्बन्धी दोष का इस व्यूह रचना में स्वतः ही निराकरण हो जाता है। विद्यार्थी शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में सक्रिय भाग लेकर स्वयं अपने प्रयत्नों से समस्या समाधान करने का प्रयत्न करते हैं, रटे-रटाए विचारों तथा हल को अध्यापक द्वारा यहाँ उन पर थोपा नहीं जाता।
  2. इस व्यूह रचना में विद्यार्थियों को सोचने, विचारने, विश्लेषण और संश्लेषण करने तथा निष्कर्ष पर पहुँचने की क्षमता को विकसित करने का भलीभाँति अवसर मिलता है जिसके फलस्वरूप उनसे इस प्रकार की उच्च संज्ञानात्मक क्षमताओं के विकास का मार्ग प्रशस्त करने में यह व्यूह रचना काफी सहयोगी सिद्ध हो सकती है।
  3. इस व्यूह रचना का सबसे बड़ा लाभ विद्यार्थियों को सृजनात्मक और रचनात्मक क्षमताओं के उचित निदान पल्लवन और पोषण को लेकर है। यहाँ शिक्षण-अधिगम का आयोजन स्मृति और बोध स्तर के स्थान पर चिन्तन स्तर पर सम्पन्न होता है तथा विद्यार्थियों को अपने विचार तथा समाधान काफी खुलकर बिना किसी संकोच के प्रकट करने का अवसर दिया जाता है। परिणामस्वरूप विचारों की विविधता, नवीनता, मौलिकता, रचनात्मकता तथा समस्या समाधान योग्यता आदि सृजन और रचनात्मक प्रक्रिया को विकसित करने सम्बन्धी गुणों एवं आदतों को विकसित करने की बात जितनी इस व्यूह रचना के द्वारा की जा सकती है उतनी किसी और व्यूह रचना द्वारा नहीं
  4. इस व्यूह रचना में विद्यार्थी एक समूह के रूप में इकट्ठे विचार-विमर्श करते हैं। फलस्वरूप सहकारिता समूहभाव तथा सामाजिक गुणों के समुचित विकास हेतु उपयुक्त अवसर प्रदान करने की यहाँ पूरी सम्भावना रहती है।
शैक्षिक तकनीकीशैक्षिक तकनीकी के उपागमशैक्षिक तकनीकी के रूप
व्यवहार तकनीकीअनुदेशन तकनीकीकंप्यूटर सहायक अनुदेशन
ई लर्निंगशिक्षण अर्थ विशेषताएँशिक्षण के स्तर
स्मृति स्तर शिक्षणबोध स्तर शिक्षणचिंतन स्तर शिक्षण
शिक्षण के सिद्धान्तशिक्षण सूत्रशिक्षण नीतियाँ
व्याख्यान नीतिप्रदर्शन नीतिवाद विवाद विधि
श्रव्य दृश्य सामग्रीअनुरूपित शिक्षण विशेषताएँसूचना सम्प्रेषण तकनीकी महत्व
जनसंचारश्यामपट

मस्तिष्क उद्वेलन व्यूह रचना के दोष

मस्तिष्क उद्वेलन व्यूह रचना निम्न प्रकार के दोषों और न्यूनताओं से ग्रस्त मानी जाती है-

  1. समस्या का समाधान खोजने हेतु समूह के सभी सदस्य एक जैसी रुचि रखते हों और तत्परता दिखाऍ, ऐसी बात होना सम्भव नहीं है। फलस्वरूप इस व्यूह रचना से अपेक्षित लाभ उठाने में सन्देह होता है।
  2. समस्या समाधान हेतु आवश्यक मानसिक स्तर ज्ञान एवं कौशलों की उपस्थिति को लेकर के सदस्यों पर्याप्त विषमताएँ देखने को मिल सकती हैं और इसके रहते हुए सामूहिक रूप में शिक्षण-अधिगम उद्देश्यों की प्राप्ति में बाधाएँ आ सकती हैं।
  3. ऐसा भी हो सकता है कि समूह के सदस्य अपने-अपने विचार तथा समस्या समाधान प्रस्तुत करने हेतु आगे कहीं न आएँ। इस अवस्था में इस व्यूह रचना को उपयोग में लाने में काफी असुविधा हो सकती है।
  4. मस्तिष्क उद्वेलन व्यूह रचना का उपयोग करते हुये ऐसा भी हो सकता है कि समूह किसी उचित निष्कर्ष पर पहुँचने में सक्षम सिद्ध न हो। समूह चर्चा के दौरान, सदस्य विचारों में मतभेदों को लेकर एक-दूसरे से उलझ जाएँ तथा कोई आम राय नहीं बन सके। ऐसी बात मस्तिष्क उद्वेलन सत्र तथा इस सत्र की समाप्ति के बाद चलने वाले समूह चर्चा सत्र दोनों में ही घट सकती है।
  5. संज्ञानात्मक तथा भावात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु उचित अवसर प्राप्त न होने की सम्भावना भी इस व्यूह रचना में अच्छी तरह उभर कर सामने आ सकती है और ऐसा होने पर व्यूह रचना के आयोजन में शामिल सभी सदस्यों के समय और शक्ति का अकारण ही अपव्यय होता है।
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