मंदबुद्धि बालक – साधारण रूप से जिन बालकों की बुद्धि लब्धि 60 से कम होती है, उन्हें अल्प मानसिक न्यूनता ग्रंथियों की श्रेणी में रखते हैं। किंतु इस श्रेणी में हम यहां सामान्य से नीचे बुद्धि वाले भी गणना करते हैं। इसमें जड़ मूढ़ व मूर्ख बुद्धि आती है। मंदितमना बालकों का समायोजन प्रतिभाशाली व साधारण बालकों की अपेक्षा कठिन व भिन्न है इनके प्रति व्यवहार सहानुभूतिपूर्ण व धैर्यपूर्ण होना चाहिए।
ऐसे बालक जिनकी बुद्धिलीब्ध 70 से कम होती है, उनको मंदबुद्धि बालक कहते हैं।
क्रो एवं क्रो के अनुसार
मंदबुद्धि बालक को अब क्षीण बुद्धि बालकों के समूह में नहीं रखा जाता है, जिसके लिए कुध भी नहीं किया जा सकता है। अब हम स्वीकर करते है कि उनके व्यक्तित्व के उतने ही विभिन पहलू होते है जितने सामान्य बालकों के व्यक्तित्व होता है।
पोलक व पोलक के अनुसार

मन्द बुद्धि बालक अपनी मानसिक योग्यताओ का प्रयोग करने की दृष्टि से उसी प्रकार अपंग व बेबस होता है जिस प्रकार से शारीरिक रूप से विकलांग बालक अंपग व बेबस होता है।
एसे बालक जिनकी बुद्धि लब्धि 80 या 85 से कम होती है, प्रायः मंदबुद्धि बालक कहलाते है।
मंदबुद्धि बालक के लक्षण
मनोवैज्ञानिकों ने मानसमंद/ मंदबुद्धि बालकों की अनेक विशेषताओं का वर्णन किया है जिनमें से कुछ प्रमुख विशेषताओं की व्याख्या निम्न प्रकार की जा रही है-
मानसिक लक्षण
- मानसमंद बालकों की बुद्धि-लब्धि सामान्य बालकों से कम होती है।
- जन्मजात मानसिक क्रियाएं सामान्य बालकों की अपेक्षा कम होती है।
- ध्यानकेंद्रण एवं समन्वयन की योग्यता में कमी होती है।
- स्मृति विस्तार सीमित होती है।
- मन्द बुद्धि बालक में ध्यान विस्तार भी कम होता है।
सामाजिक लक्षण
- अपनी व्यक्तिगत आवश्यकताओं के लिए जीवन पर्यंत दूसरों पर निर्भर रहते हैं।
- स्वयं पर नियंत्रण रखने में असमर्थ रहते हैं।
- अपनी व्यक्तिगत एवं सामाजिक समस्याओं को हल करने में वे समर्थ नहीं होते हैं।
- सदैव सुरक्षा देखभाल तथा निरीक्षण की आवश्यकता होती है।

शारीरिक लक्षण
- संवेदी गामक विकास की गति सामान्य से धीमी होती है।
- शारीरिक क्रियाओं,जैसे-चलना, दौड़ना, बोलना, स्वयं भोजन करना या स्वयं कपड़े पहनना इत्यादि में प्रगति अत्यंत धीमी होती हैं।
- किसी भी उद्दीपक के प्रति प्रतिक्रिया देने में अधिक समय लेते हैं।
शैक्षिक लक्षण
- सीखने की गति अपेक्षाकृत धीमी होती हैं।
- निम्नस्तरीय शैक्षिक उपलब्धि होती हैं।
- जटिल विषयों को सीखने में असमर्थ होती हैं।
मंदबुद्धि के कारण
मन्द बुद्धि के कारण निम्न हैं-
- वंशानुक्रम (Heredity)
- छूत की बीमारियाँ (Infectious Diseases)
- शारीरिक आधात (Physical Injuries)
- नशीले पदार्थ (Toxic Agents)
- माता-पिता की आयु (Age of Parents)
- परिवारिक वातावरण ( Home Environment)
- शैशिक वातावरण ( Educational Environment)
- माँ के संक्रामक रोग (Mother’s Infection Disease)
मंदबुद्धि बालक हेतु पाठ्यक्रम
मंदबुद्धि बालक शिक्षण की अपेक्षा प्रशिक्षण योग अधिक होते हैं। अतः शिक्षण एवं प्रशिक्षण का पाठ्यक्रम निर्धारित करते समय क्या ध्यान रखना आवश्यक है कि
- चूंकि मंदबुद्धि बालक बौद्धिक दृष्टि से मन्द होते हैं। अतः उनको पढ़ाए जाने वाले विषयों की संख्या अधिक न हो।
- ग्राह्यता की दृष्टि से विषय वस्तु अति सरल हो।
- विषय वस्तु में जीवनोपयोगिता का ध्यान विशेष रूप से रखा गया हो।
- विषय वस्तु बौद्धिक क्षमता पर आधारित होने की अपेक्षा क्रिया आधारित अधिक हो।

मन्द बुद्धि बालक एवं अभिभावक संबंध
देखा यही गया है कि सभी माता-पिता अपने बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा देना चाहते हैं। उन्हें विषय पढ़ाना चाहते हैं, जिनमें नौकरी प्राप्त की गुंजाइश अधिक हो। भले ही उनका पुत्र या पुत्री किसी कक्षा में बार-बार अनुत्तीर्ण क्यों ना होता रहे। ऐसी स्थिति में शिक्षकों को चाहिए कि शिक्षक अभिभावक मिलन के अंतर्गत व अभिभावकों को समझाएं। साथ ही अभिभावकों को चाहिए कि अपने बालक के हित की दृष्टि से-
- शिक्षक की सलाह माने।
- अपने बालक को वह विषय पढ़ने दें, जिनमें वह कुछ समझ सकता है।
- बालकों पर अपनी मान्यता कभी भी न थोपे।
- बालकों को अपना काम करने के लिए घर पर पर्याप्त समय भी दे और पाठशाला का काम करने में अपना सहयोग भी दे।
- बच्चे को इधर-उधर ऐसी संगति में ना जाने दे, जहां उसमें अवांछित आदतें पनपने की संभावना हो। इन बच्चों में विवेक ना होने के कारण यह जल्दी ही भटक सकते हैं।
- यदि लड़का पढ़ने में बिल्कुल न चले तो उसे अपना पैतृक धंधा या ऐसे ही किसी कार्य का प्रशिक्षण दिला दें।

मन्द बुद्धि बालकों की शिक्षा व्यवस्था
मनोवैज्ञानिकों ने मानसिक मंदितो की शिक्षा में निम्नलिखित बातों का समावेश किया है –
- विशिष्ट विद्यालयों में कक्षाओं की स्थापना की जाए।
- छोटे समूहों में शिक्षा दी जाए।
- अच्छे शिक्षकों की नियुक्ति की जाए।
- विशेष पाठ्यक्रम बनाया जाए।
- अध्ययन विषय सुनिश्चित किया जाए।
- हस्तशिल्प कलाओं का भी प्रशिक्षण दिया जाए।
- सांस्कृतिक विषयों की भी शिक्षा दी जाए।
- अनेक शिक्षण विधियों का भी प्रयोग किया जाए।