भ्रमरदूत की 4 विशेषताएं 4 काव्यगत विशेषताएं – सत्यनारायण कवि

भ्रमरदूत की विशेषताएं – सत्यनारायण कविरत्न ने भ्रमर-दूत में जो छंद प्रयुक्त किया है वह रोला एवं दोहे का मिश्रण है। प्रारंभ की दो पंक्तियां रोला छंद की हैं तथा बाद की दो पंक्तियां दोहा छंद की हैं। अंत में एक आधी पंक्ति और भी जोड़ दी गई है। इस प्रकार इस काव्य ग्रंथ में आदि से अंत तक साढ़े चार पंक्तियों का एक ही छंद प्रयुक्त है। काव्य सौंदर्य की दृष्टि से भ्रमण दूत एक सफल काव्य कृति है। इसका भावपक्ष एवं कलापक्ष दोनों ही सशक्त हैं। उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, प्रतीप आदि अलंकारों का प्रयोग भ्रमणदूत में स्थान-स्थान पर हुआ है। भ्रमरदूत वात्सल्य वियोग का काव्य है। जिसकी मुख्य विशेषता उसमें किया गया प्रकृति का चित्रण है।

भ्रमरदूत की विशेषताएं
भ्रमरदूत की विशेषताएं

भ्रमरदूत

भ्रमरदूत भ्रमरगीत परंपरा की अब तक की सर्वश्रेष्ठ काव्य रचना मानी जाती है। इसमें इन्होंने उद्धव गोपी संवाद का आश्रय ना लेकर के यशोदा और कृष्ण के संवाद को प्रमुखता दी है। भ्रमरदूत में वे अपने पुत्र के वियोग में विकल यशोदा की दुखद दशा को दिखाते हैं। उनके वात्सल्य भाव को पाठकों के मन में प्रबलता के भाव से बैठा देते हैं। यशोदा अपने पुत्र के मोह में इतनी व्यथित हो जाती है, कि जब वह उपवन में जाती हैं तो एक भ्रमर को देख कर के अपने मन की बात उसे कहती हैं। आप भ्रमरदूत की विशेषताएं Hindibag पर पढ़ रहे हैं।

‘ब्रजभाषा कोकिल’ की उपाधि से विभूषित पं. सत्यनारायण का ‘भ्रमर-दूत’ काव्य भ्रमरगीत परम्परा में आने वाला प्रमुख काव्यग्रंथ है। इस काव्य रचना में माता यशोदा ने अपने पुत्र कृष्ण के द्वारिका चले जाने पर वात्सल्य वियोग से पीड़ित होकर संदेश भेजा है और साथ ही साथ इसमें युगीन चेतना का भी समावेश कर दिया गया है जिसके कारण इस काव्य ग्रंथ की उपादेयता ए प्रासंगिकता काफी बढ़ गयी हैं। माता यशोदा ने एक भ्रमर को अपना दूत बनाकर कृष्ण के पार भेजने का निश्चय किया और कृष्ण के प्रति एक संदेश निवेदित किया। अतः इस कारण इस भ्रमर गीत परम्परा का काव्य माना गया है।

भ्रमरगीत परम्परा का अर्थ

सामान्यतः उद्धव-गोपी संवाद को ही भ्रमर गीत कह जाता है। ऐसा काव्य ग्रंथ जिसमें उद्धव गोपियों को ज्ञान-योग सिखाने आते हैं तथा गोपियाँ उन ज्ञान-योग की व्यर्थता का अवबोध कराती हुई प्रेम-शक्ति की महत्ता को प्रति पादित करती है भ्रमर गीत परम्परा के काव्य के अन्तर्गत आता है।

भ्रमरदूत की विशेषताएं

पं• सत्यनारायण द्वारा रचित भ्रमरदूत की विशेषताएं जिनका अध्ययन निम्न शिक्षकों के अंतर्गत किया जा सकता है-

  1. प्रतिपाद्य विषय
  2. वर्तमान अथवा युगीन समस्या का चित्रण
  3. अनुभूतिपक्ष
  4. कलापक्ष

1. प्रतिपाद्य विषय

पंडित सत्यनारायण ने भ्रमण-दूत का विषय परंपरागत भ्रमरगीत काव्य से परिवर्तित कर दिया है क्योंकि जहां इस परंपरा के अन्य कवियों ने कृष्ण के मथुरा चले जाने पर गोपियों की विरह वेदना तथा उद्धव गोपी संवाद का चित्रण किया है वही सत्यनारायण कविरत्न ने इसका विषय बदलते हुए एक नवीन परंपरा की शुरुआत की है। कृष्ण द्वारिका चले गए हैं और माता यशोदा अपने पुत्र के वियोग में व्याकुल हो रही हैं। इस प्रकार यह विरह वेदना का ग्रंथ ना होकर वात्सल्य वियोग का काव्य ग्रंथ है।

माता यशोदा की विकलिता को देखकर श्री घनश्याम एक ब्राह्मण का रूप धारण करके माता यशोदा के पास गए और माता यशोदा ने उन्हें कृष्ण वियोग से उत्पन्न अपने दुख से तथा अन्य समस्याओं से उन्हें अवगत कराया।

भक्तिकालीन ब्रज साहित्य
भ्रमरदूत की विशेषताएं

2. वर्तमान अथवा युगीन समस्या का चित्रण

पंडित सत्यनारायण ने भ्रमर दूध में अतीत के पद पर वर्तमान समस्याओं का चित्रण किया है। इसे काव्य ग्रंथ में घटना काल भले ही महाभारत काल का हो परंतु वर्तमान समस्याओं का चित्रण करके उसे आधुनिक जीवन से जोड़ करके और भी प्रासंगिक बना दिया गया है। जिन वर्तमान समस्याओं का चित्रण इस ग्रंथ में किया गया है वे निम्न प्रकार से हैं-

इसी प्रसंग में पंडित सत्यनारायण ने देश की दुर्दशा का चित्रण किया है। देश की दुर्दशा के चित्रण के साथ-साथ उन्होंने निम्न समस्याओं को अपने इस ग्रंथ में भली भांति उजागर किया है-

  • नारी शिक्षा की समस्या
  • पर्यावरण प्रदूषण की समस्या
  • राष्ट्रीयता के अभाव की समस्या
  • देश से प्रतिभा पलायन की समस्या
  • आपसी सद्भाव के अभाव की समस्या
  • पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव की समस्या
  • नेतृत्व के अभाव की समस्या
पारिस्थितिकी के लाभ
भ्रमरदूत की विशेषताएं

नारी शिक्षा की समस्या

माता यशोदा श्री कृष्ण को संदेश भेजने के लिए अत्यंत व्याकुल हैं परंतु उन्हें कोई संदेश वाहक नहीं मिल रहा है। ऐसी दशा में वह सोचती है कि यदि मैं पढ़ी-लिखी होती तो पत्र में अपने मन की बात लिख कर कहने के पास पहुंचा देती पर मेरा यह दुर्भाग्य है कि मुझे पढ़ने का शुभ अवसर ही नहीं प्राप्त हुआ। नारी शिक्षा देश की प्रगति के लिए अति आवश्यक है परंतु कुछ लोग इसका विरोध करते हैं जबकि प्राचीन काल में भी गार्गी, मैत्रेयी, मदालसा, सीता, अनुसुइया सती जैसी महान नारियां हुई हैं। जो शास्त्र में पारंगत तथा अत्यंत विदुषी थीं।

नारी शिक्षा निदारद, जो लोग अनारी,
ले स्वदेश अवनति, प्रचण्ड पातक अधिकारी
निरखी हाल मेरौ प्रथम, लेउ समुझि सब कोई,
विधा-बल लहि मति परम, अवला सबला होई, लखौ अजमाइ कै।

पर्यावरण प्रदूषण की समस्या

पर्यावरण प्रदूषण आज की गंभीर समस्या है। जंगल कट रहे हैं हरियाली नष्ट हो रही है पानी समय पर नहीं बरसता, नदियां प्रदूषित हो रही है। यह सब उचित नहीं है।

पहले कोसो अब तिहारो यह वृंदावन।

या के चारों ओर भए बहु विधि परिवर्तन।।

Prachintam itihaas
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देश से प्रतिभा पलायन की समस्या

कविरत्न जी को यह देखकर अत्यंत वेदना होती है कि लोगों में भारत माता के प्रति अब अनुराग नहीं रह गया है। लोग अपनी प्रतिभा का सदुपयोग अपने देश की सेवा में नहीं कर रहे हैं। थोड़ी सी सुख सुविधा के लिए विदेशों में जाकर बस रहे हैं तथा राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य भूल गए हैं। आप भ्रमरदूत की विशेषताएं Hindibag पर पढ़ रहे हैं। ऐसे लोगों को सचेत करते हुए कवि कहता है कि

नहि आए निरदइ दई आए गौरव जास।

सांप छछूंदर गति भई मन ही मन अकुलाय।।

पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव की समस्या

भारत वंशी पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित हो रहे हैं और उन्होंने अपनी संस्कृति, भाषा तथा वेशभूषा को छोड़ दिया है। उनके ह्रदय संकुचित हो गए हैं तथा उनमें स्वार्थ की भावना प्रबल हो गई है और वह अपने देश तथा समाज के विकास में कोई रुचि नहीं ले रहे हैं। लोग आत्म केंद्रित हो गए हैं और अपनी अपनी ढपली पर अपना अपना राग अलाप रहे हैं। जिसके बारे में पं• सत्यनारायण लिखते हैं-

भये संकुचित ह्रदय अब ऐसे भैया मैं

काउ का विश्वास न निज जातीय उदय मैं

लखियत कोऊ रीति न भली नहिं पूरब अनुराग

अपनी-अपनी ढापुली अपनों अपनों राग अलापै जोर सों।

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भ्रमरदूत की विशेषताएं

नेतृत्व के अभाव की समस्या

पं• सत्यनारायण ने अपने इस काव्य में देश में नेतृत्व अभाव की समस्या का भी यथार्थ चित्रण किया है। आज देश में सच्चे नेताओं का अभाव है। नीता ऐसा होना चाहिए जो लोगों को स्वतंत्रता का अर्थ बताएं और उन्हें समता तथा भाईचारे का पाठ पढ़ाए। यह भारतवासी अंग्रेजों के अन्याय और शोषण तथा अत्याचार सहने को विवश है। ठीक उसी तरह जैसे कंस के राज्य में गोकुल वासी अत्याचार सहने के लिए विवश थे। कृष्ण जैसा नेता हमें मिल जाए तभी मुक्ति संभव है-

वा बिनु कौ ग्वालनु कौ। हित की बात सुझावै।

अरू स्वतंत्रता समता सह भ्रातृता सिखावै।।

जदपि सकल विधि से सहत दारुण अत्याचार।

पै न कहूं मुखी सो कहत कोरे बने गंवार।।

3. अनुभूति पक्ष

भ्रमर दूत काव्य ग्रंथ का अनुभूति पक्ष भी अत्यंत प्रभावी एवं सशक्त है। इससे काव्य ग्रंथ की रचना पंडित सत्यनारायण ने मात्र दो पलों के सहारे की है- पहला माता यशोदा तथा दूसरा भ्रमर। पुत्र के वियोग से विकल शोकाकुल माता यशोदा के हृदय की अंतरंग झांकी इस काव्य ग्रंथ में चित्रित की गई है और उसके जरिए भारत माता की दुर्दशा का प्रभावित चित्र उकेरा गया है। आप भ्रमरदूत की विशेषताएं Hindibag पर पढ़ रहे हैं।

वस्तुतः सच तो यह है कि अंग्रेजों के शासन काल में तत्कालीन भारत की जो दयनीय दशा थी उसी का चित्रण करने के लिए ही कवि ने भ्रमर दूत की रचना की है। साथ ही साथ उसमें भारतीय संस्कृति, राष्ट्रप्रेम, नारी शिक्षा, प्रदूषण की समस्या को भी कवि ने अपनी अभिव्यक्ति दी है। प्रकृति के मनोहारी चित्र भी इसमें उकेरे गए हैं,

पावन सावन मास नई उनई धन पांती,

मुनि मन भाई छई रसमई मंजुल कांती।

धर्मग्रंथ
भ्रमरदूत की विशेषताएं

लोकजीवन का भी एवं सादा एवं सरल चित्र इसमें उकेरा गया है। झूले में झूलती हुई युवतियां भ्रात प्रेम से युक्त मल्हारे गा रही हैं तो कई ग्वाल बाल भौरा कथा चकाई के खेल खेल रहे हैं। भ्रमर दूत वात्सल्य वियोग का ग्रंथ है। कृष्ण के वियोग में विकल माता यशोदा के पवित्र हृदय की झांकी इसमें अंकित की गई है। कवि लिखता है-

कृष्ण विरह को बोलि नई ता उर हरियाई।

सोचन अश्रु विमोचन दो उदल बल अधिकाई।।

4. कला पक्ष की विशेषताएं

भ्रमर दूत का कला पक्ष भी अत्यंत सशक्त है। इसमें ब्रजभाषा का सजीव, सरस तथा मनोरम प्रयोग किया गया है। भाषा और लोकोक्तियां तथा मुहावरे से युक्त होने के कारण अत्यंत प्रभावी बन पड़ी है। पंडित सत्यनारायण जी ने अपने इस काव्य ग्रंथ में एक नए प्रकार के छंद का विधान किया है जो एक मिश्रित छंद व्यवस्था है। इसकी पहली दो पंक्तियां रोला की है जबकि तीसरी और चौथी पंक्ति दोहे की है और अंत में दस मात्राओं वाली एक अद्धांली हैं जिसमें समग्र छंद की केंद्रीय भाषा निहित है।

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भ्रमर-दूत की विशेषताएं

भ्रमरदूत में कवि ने अलंकारों की भी सुंदर योजना की है। अनुप्रास उत्प्रेक्षा रूपक यमक तथा उपमा अलंकार ओकाइश में यथा स्थान पर प्रयोग किया गया है। भ्रमरदूत की विशेषताएं यह भी है कि रस का भी ग्रंथ में युगीन समस्याओं का चित्रण करके इसे आधुनिक काव्य के लिए भी प्रासंगिक बना दिया गया है।

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