भाषा प्रयोगशाला व्यष्टि शिक्षण और समूह शिक्षण में समन्वय करने और भाषा सीखने में बच्चों को सक्रिय रखने का एक आधुनिक प्रयास है। 1966 में अमेरिकी विश्वविद्यालयों ने शैक्षिक तकनीकी की राष्ट्रीय परिषद् (National Council of Educational Technology, NCET) की स्थापना की। इस परिषद ने शिक्षा के क्षेत्र में वैज्ञानिक उपकरणों के प्रयोग की उपयोगिता को स्पष्ट किया और उनके व्यापक प्रयोग पर बल दिया।
भाषा प्रयोगशाला
भाषा प्रयोगशाला का निर्माण सर्वप्रथम इसी परिषद् ने किया था। आज तो संसार के प्रायः सभी विकसित एवं विकासशील देशों के विद्यालयों में भाषा प्रयोगशालाओं की व्यवस्था का प्रयत्न किया जा रहा है। हमारे देश भारत में भी कुछ उत्तम श्रेणी के विद्यालयों में भाषा प्रयोगशालाएँ उपलब्ध हैं। भाषा प्रयोगशाला, भाषा कक्ष से भिन्न होती है। इसमें प्रत्येक छात्र के बैठने के लिए अलग से मेज-कुर्सी होती है जिसके दोनों ओर लकड़ी का पार्टीशन लगा होता है।

इससे वे अपने स्थान पर बैठने के बाद अपने इधर-उधर के छात्रों को नहीं देख सकते। प्रत्येक मेज पर एक माइक्रोफोन फिट रहता है, शिक्षक के माइक्रोफोन से सम्बन्धित की बोर्ड होता है, एक टेपरिकॉर्डर होता है और भाषा शिक्षण से सम्बन्धित कुछ कैसेट्स होते हैं और एक शीर्ष ध्वनि यन्त्र होता है। शिक्षक की मेज-कुर्सी छात्रों की सीटों के सामने ऐसे स्थान पर होती है जहाँ से वह प्रयोगशाला में उपस्थित सभी छात्रों को देख सकता है और उन पर नियन्त्रण रख सकता है।
उसकी मेज पर प्रयोगशाला की प्रत्येक सीट पर फिट माइक्रोफोनों का की बोर्ड होता है, ऑन-ऑफ एवं वोल्यूम कन्ट्रोल स्विच बोर्ड होता है, एक टेपरिकॉर्डर होता है, भाषा शिक्षण सम्बन्धी कैसेट्स होते हैं और एक हेडफोन होता है। इनकी सहायता से वह प्रयोगशाला के किसी एक, कुछ अथवा सभी छात्रों से एक साथ सम्पर्क स्थापित कर सकता है। वह उन्हें व्यष्टिगत रूप अथवा सामूहिक रूप, दोनों प्रकार से निर्देश दे सकता है, कोई छात्र क्या बोल रहा है अथवा क्या सुन रहा है, इसे सुन सकता है।
भाषा प्रयोगशाला में सामान्यतः 4×4 = 16 छात्रों के बैठने और सीखने की व्यवस्था होती है, 16 से अधिक छात्रों से वैयक्तिक रूप से सम्पर्क साधना शिक्षक के लिए बहुत कठिन होता है। 20 से अधिक छात्रों की व्यवस्था तो की ही नहीं जानी चाहिए। 20 छात्रों की व्यवस्था भी 4× 5 के रूप में की जानी चाहिए।

भाषा प्रयोगशाला और शिक्षण
भाषा प्रयोगशाला में शिक्षण की प्रक्रिया कई प्रकार से आगे बढ़ती है। कभी शिक्षक अपने सामने रखे टेप के द्वारा कोई कहानी सुनाता है, कविता सुनाता है अथवा अन्य सूचनाएँ देता है और छात्र अपनी-अपनी सीट पर बैठे शिक्षक की मेज के टेप के लिए निश्चित बटन को दबाकर हेडफोन द्वारा उसे सुनते हैं। कभी छात्र अपनी-अपनी टेबिल पर रखे टेपरिकॉर्डरों की सहायता से उसमें टेप की गई सामग्री को है और अपने उच्चारण एवं बोलने की गति आदि में सुधार करते है और शिक्षक उनके साथ सम्पर्क स्थापित करके उनका मार्ग-दर्शन करता है। इस प्रकार भाषा प्रयोगशाला में मौखिक भाषा की शिक्षा सफलतापूर्वक दी जा सकती है।
मौखिक पठन की शिक्षा के लिए तो इसे वरदान ही समझिए। साधारण कक्षा में एक समय एक ही छात्र मौखिक पठन कर सकता है, भाषा प्रयोगशाला में सभी छात्र एक साथ मौखिक पठन कर सकते है। सामान्य कक्ष में पठनकर्ता अपने पठन को स्वयं नहीं सुन सकता, भाषा प्रयोगशाला में वह अपने द्वारा किए गए मौखिक पठन को टेप करता है और फिर उसे स्वयं सुनता है। किस छात्र के मौखिक पठन में क्या कमी है, यह शिक्षक अपनी सीट पर बैठा-बैठा उस छात्र की सीट से सम्बन्धित की (Key) दबाते ही सुन आर समझ लेता है, और तदुनूकुल छात्र को निर्देश देता है और छात्र सुधार करता है।

लिखित भाषा की शिक्षा में भी इन प्रयोशालाओं की उपयोगिता है। इन प्रयोगशालाओं में बच्चे टेप द्वारा आदर्श रचनाओं को सुनते हैं, फिर अपने शब्दों में उनकी आवृत्ति करते हैं। उन्हें किसी मेले आदि का वर्णन सुनाकर अपने द्वारा देखे मेले का वर्णन करने के लिए कहा जा सकता है। इसी प्रकार किसी त्योहार पर रचित निबन्ध को सुनाकर अपने द्वारा मनाए गए त्योहार पर निबन्ध रचना करने का आदेश दिया जा सकता है। लिखित रचनाओं में सुधार तो शिक्षक को ही करना होगा।