भाषा के रूप – संसार के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न भाषाओं का विकास हुआ है। ये भाषाएँ हजारों की संख्या में हैं। हमारे अपने देश भारत में ही सैकड़ों भाषाओं का प्रयोग होता है। किसी भी मनुष्य के लिए इन सबका सीखना सम्भव नहीं। अतः किसी मनुष्य को किन भाषाओं को सीखना चाहिए और किस वरीयता क्रम में, यह जानना आवश्यक है।
भाषा के रूप
भाषाविज्ञों ने संसार की समस्त भाषाओं को मुख्य रूप से सात वर्गों में रखा है- मातृभाषा, मूलभाषा, संस्कृति भाषा, राष्ट्रीय भाषा, राष्ट्रभाषा, राजभाषा और अन्तर्राष्ट्रीय भाषा। यहाँ इन भाषा के रूप और महत्त्व को संक्षेप में स्पष्ट किया जा रहा है। इसके आधार पर भाषाओं के अध्ययन अध्यापन को वरीयता क्रम में रखा जा सकता है।
1. मातृभाषा
सामान्यतः जिस भाषा को व्यक्ति अपने शिशु काल में अपनी माता एवं सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों का अनुकरण करके सीखता है, उसे उस व्यक्ति की मातृभाषा कहते हैं। परन्तु भाषा विज्ञान में इसे बोली कहा जाता है। भाषा वैज्ञानिक कई समान बोलियों की प्रतिनिधि बोली को विभाषा और कई समान विभाषाओं की प्रतिनिधि विभाषा को भाषा कहते हैं। यही भाषा यथा क्षेत्रों के व्यक्तियों की मातृभाषा मानी जाती है।
भाषा शिक्षण की दृष्टि से भी मातृभाषा से तात्पर्य इसी भाषा से होता है। उदाहरण के लिए हिन्दी भाषा की अनेक बोलियाँ हैं; जैसे-ब्रज, अवधी, बुन्देली, खड़ी बोली, कन्नौजी, छत्तीसगढ़ी आदि परन्तु इनमें खड़ी बोली को ही भाषा माना जाता है और यही हिन्दी भाषा-भाषी क्षेत्रों के व्यक्तियों की मातृभाषा मानी जाती है। कोई भी व्यक्ति प्रारम्भ में अपनी मातृभाषा अथवा उसकी किसी बोली को सीखता है, अतः उस पर इसका अमिट प्रभाव होता है। वह सामाजिक व्यवहार इसी भाषा में करता है। (भाषा के रूप)
वह जो भी विचार एवं चिन्तन करता है अपनी मातृभाषा में ही करता है। इतना ही नहीं अपितु अन्य भाषाओं एवं समस्त ज्ञान-विज्ञान का ज्ञान भी वह इसी के माध्यम से प्राप्त करता है। यह उसके विकास की आधारशिला होती है। मानव जीवन में इसका सर्वाधिक महत्व है। माता और मातृभूमि के समान मातृभाषा भी वन्दनीय होती है। अतः किसी भी व्यक्ति को अपनी मातृभाषा का अध्ययन अनिवार्य रूप से करना चाहिए।


2. मूल भाषा
प्राचीनकाल में बहुत कम भाषाएँ थीं। कालान्तर से एक भाषा ने अनेक भाषाओं को जन्म दिया। भाषा विज्ञान में इस एक भाषा को उससे निकलने वाली समस्त भाषाओं की मूल भाषा कहा जाता है। उदाहरण के लिए वैदिक संस्कृत से अनेक भाषाओं-संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, कश्मीरी, सिन्धी, लहंदा, गुजराती, मराठी, पंजाबी, बगाली, आसामी, उड़िया और हिन्दी का उद्भव एवं विकास हुआ है, अतः वैदिक संस्कृत इन सब भाषाओं की मूल भाषा है।
किसी भी भाषा के वैज्ञानिक रूप को समझने के लिए उसकी मूल भाषा का ज्ञान आवश्यक होता है। भाषा के व्याकरण-सम्मत रूप की रक्षा भी तभी की जा सकती है जब उसकी मूल भाषा का ज्ञान हो। यह कार्य भाषा वैज्ञानिक, व्याकरर्णाचार्य, भाषाविज्ञ और साहित्यकारों का है। अतः जो व्यक्ति इस क्षेत्र में पदार्पण करें उन्हें यथा भाषा की मूल भाषा का ज्ञान अवश्य प्राप्त करना चाहिए। आप भाषा के रूप Hindibag पर पढ़ रहे हैं।


3. संस्कृति भाषा
जिस भाषा के साहित्य में किसी जाति अथवा राष्ट्र की मूल सभ्यता एवं संस्कृति निहित होती है वह उस जाति अथवा राष्ट्र की संस्कृति भाषा कही जाती है। उदाहरण के लिए संस्कृत भाषा हिन्दू जाति और भारत राष्ट्र की संस्कृति भाषा है। इसके साहित्य में हमारी प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति सभी कुछ निहित है। अपनी प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति के ज्ञान के लिए इस भाषा का बड़ा महत्त्व है। जो व्यक्ति इस क्षेत्र में पदार्पण करें उन्हें इस भाषा का ज्ञान अवश्य प्राप्त करना चाहिए। शेष व्यक्ति तो अनुदित ग्रन्थों से यथा जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। (भाषा के रूप)
4. राष्ट्रीय भाषा
संसार के प्रायः सभी राष्ट्रों में अनेक भाषाओं का प्रयोग होता है। इनमें से कुछ भाषाएँ ऐसी होती हैं जिनके साहित्य में यथा राष्ट्र के इतिहास, सभ्यता एवं संस्कृति और आकांक्षाएँ सुरक्षित रहती हैं, उन्हें उस राष्ट्र की राष्ट्रीय भाषाएँ कहा जाता है। उदाहरण के लिए हमारे देश में असमिया, बंगाली, गुजराती, हिन्दी, कन्नड़, कश्मीरी, मलयालम, मराठी, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिन्धी, तमिल, तेलुगू, उर्दू, कोंकड़ी, मणिपुरी, डोगरी, वोगे, मैथिली, संथाली और नेपाली, 22 भाषाएँ ऐसी भाषाएँ हैं जिनके साहित्य में हमारे भारत राष्ट्र की सभ्यता एवं संस्कृति के दर्शन होते हैं और वे हमारे लिए प्रेरणा स्रोत हैं इसलिए इन सबको राष्ट्रीय भाषा माना जाता है।
देश एवं राष्ट्र की अखण्डता और भावात्मक एवं राष्ट्रीय एकता की दृष्टि से इन भाषाओं का बड़ा महत्त्व है। अपनी मातृभाषा के साथ इनमें से किसी अन्य एक दो भाषा का अध्ययन भी यदि हम कर सकें तो यह हमारे लिए राष्ट्र के प्रति कर्त्तव्य का निर्वाह होगा। आप भाषा के रूप Hindibag पर पढ़ रहे हैं।


5. राष्ट्रभाषा
संसार के प्रायः सभी देशों में अनेक भाषाओं का प्रयोग होता है। इनमें से कुछ भाषाओं को राष्ट्रीय भाषाओं का दर्जा प्राप्त होता है। अब इन भाषाओं में से जो भाषा सबसे अधिक सशक्त होती है, जिसका साहित्य सबसे अधिक समृद्ध होता है, जिस भाषा को देश में सबसे अधिक व्यक्ति प्रयोग करते हैं. और जो जन भाषा और सम्पर्क भाषा के रूप में प्रयोग होती है उसे राष्ट्रभाषा का पद दिया जाता है; जैसे हमारे देश में हिन्दी। आप भाषा के रूप Hindibag पर पढ़ रहे हैं।
यूँ हमारे देश में 14 सितम्बर, 1949 को केन्द्रीय सरकार ने सिद्धान्तः हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित कर दिया था परन्तु बड़ी विडम्बना है कि प्रायोगिक रूप में उसे राष्ट्रभाषा का पद आज तक प्राप्त नहीं हो सका है। हमारे देश में भाषा की समस्या एक राजनैतिक उलझन बनकर रह गई है। कुछ राष्ट्रों में इसके अपवाद भी मिलते हैं। उन्होंने राष्ट्रभाषा बनाने के इन सब आधारों को ताक पर रखकर राज्य सत्ता की मर्जी पर राष्ट्रभाषा निश्चित की है। परन्तु यह राष्ट्र विशेष की प्रतीक भाषा नहीं मानी जाती है।
राष्ट्रभाषा राष्ट्रीय एकता का आधार होती है। किसी भी राष्ट्र के व्यक्तियों को अपनी मातृभाषा के साथ-साथ राष्ट्रभाषा का भी ज्ञान होना चाहिए तभी वह राष्ट्र का सच्चा नागरिक बन सकता है। आप भाषा के रूप Hindibag पर पढ़ रहे हैं।
6. राजभाषा
जिस भाषा का प्रयोग किसी राज्य के प्रशासनिक कार्यों में किया जाता है उसे उस राज्य की राजभाषा अथवा शासकीय भाषा कहते हैं। यूँ तो प्रायः सभी राज्यों में जन भाषा को ही राजभाषा बनाया जाता है परन्तु कुछ देशों में इसके अपवाद भी मिलते हैं। हमारे देश में संविधान के अनुच्छेद 343 में हिन्दी को संघ की राजभाषा घोषित किया गया है और साथ ही अनुच्छेद 351 में इसके विकास के लिए विशेष प्रयत्न करने की व्यवस्था की गई है।
वर्तमान में हमारे देश में केन्द्रीय सरकार की राजभाषा हिन्दी है और अंग्रेजी उसकी सहभाषा के रूप में प्रयोग की जाती है और प्रान्तीय सरकारों की राजभाषा प्रान्तीय भाषाएँ हैं और अंग्रेजी उनकी सह-राजभाषा है। कुछ प्रान्तों की राजभाषा केवल अंग्रेजी है। इस प्रकार हमारे देश में राजभाषा के रूप में कुल मिलाकर एक विदेशी भाषा अंग्रेजी का वर्चस्व है। आप भाषा के रूप Hindibag पर पढ़ रहे हैं।
किसी भी राज्य के प्रशासनिक कार्यों का सम्पादन करने हेतु उसकी राजभाषा का ज्ञान आवश्यक होता है। राज्य की नीति-रीति को समझने के लिए सामान्य व्यक्ति को भी इसका सामान्य ज्ञान होना चाहिए। अधिकतर राष्ट्रों में जन भाषा, सम्पर्क भाषा, राष्ट्रभाषा और राजभाषा एक ही है इसलिए वहाँ राजभाषा का अलग से अध्ययन करने की आवश्यकता नहीं परन्तु हमारे देश में ये भिन्न-भिन्न हैं इसलिए प्रशासन से जुड़े व्यक्तियों को विशेष रूप से और सामान्य नागरिकों को सामान्य रूप से इसका अध्ययन करना चाहिए।


7. अन्तर्राष्ट्रीय भाषा
वैज्ञानिक आविष्कारों ने संसार को एक इकाई के रूप में बाँध दिया है। आज एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र से सम्बन्ध स्थापित किए बिना जीवित नहीं रह सकता। और सम्बन्ध स्थापित करने के लिए भाषा की आवश्यकता होती है। जिस भाषा के माध्यम से संसार के विभिन्न राष्ट्र विचारों का आदान-प्रदान करते हैं उसे अन्तर्राष्ट्रीय भाषा कहते हैं। कुछ राजनैतिक एवं औद्योगिक कारणों से यह पद अंग्रेजी भाषा को प्राप्त है। यूँ जर्मनी, फ्रेंच, रूसी तथा चीनी भाषाएँ भी अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व की भाषाएँ हैं लेकिन इनका प्रयोग अंग्रेजी भाषा की अपेक्षा बहुत सीमित है। अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर अंग्रेजी भाषा का ही प्रयोग अधिक होता है, वही अन्तर्राष्ट्रीय भाषा के पद पर आसीन है।
यदि हम संसार में अपना अस्तित्व चाहते हैं तो हमें अन्तर्राष्ट्रीय भाषा अंग्रेजी का ज्ञान अवश्य होना चाहिए। देश-विदेशों के ज्ञान-विज्ञान की जानकारी प्राप्त करने के लिए भी इस भाषा का महत्त्व है। देश-विदेशों से व्यापार करने एवं अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अपना स्थान बनाने के लिए हमें अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व की उपरोक्त सभी भाषाओं और विशेषकर अन्तर्राष्ट्रीय भाषा अंग्रेजी का ज्ञान अवश्य होना चाहिए।
परन्तु यह सब कार्य सामान्य व्यक्तियों को तो नहीं करना होता, जो व्यक्ति प्रशासनिक क्षेत्र में पदार्पण करें अथवा अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में उतरें, उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय भाषा का ज्ञान अवश्य प्राप्त करना चाहिए। आप भाषा के रूप Hindibag पर पढ़ रहे हैं।
भाषाओं का वर्गीकरण
संसार में हजारों भाषाओं का विकास हुआ है। इन सब भाषाओं को विद्वानों ने अनेक रूपों में वर्गीकृत किया है। कुछ मुख्य वर्गीकरण प्रस्तुत हैं।
मातृभाषा और मात्रेतर भाषाएँ
मातृभाषा | मात्रेतर भाषाएँ |
---|---|
वह भाषा जिसे कोई व्यक्ति जन्म के बाद अपनी माँ एवं सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों का अनुकरण करके सीखता है, उसे उस व्यक्ति की मातृभाषा कहते हैं। चूँकि मातृभाषा को कोई व्यक्ति सबसे पहले सीखता है इसलिए इसे प्रथम भाषा अथवा भाषा, भी कहते हैं। उदाहरण के लिए हिन्दी भाषा-भाषियों की मातृभाषा अथवा प्रथम भाषा अथवा भाषा, हिन्दी है, तेलुगू भाषा-भाषियों की तेलुगू है और अंग्रेजी भाषा-भाषियों की अंग्रेजी है। | किसी व्यक्ति की मातृभाषा से भिन्न भाषाएँ जिन्हें वह विशेष प्रयत्नों से सीखता है उसके लिए मात्रेतर भाषाएँ होती हैं। चूँकि मात्रेतर भाषाओं को कोई भी व्यक्ति मातृभाषा के बाद सीखता है इसलिए इन्हें द्वितीय भाषा, अथवा भाषा, भी कहते हैं। उदाहरण के लिए हिन्दी मातृभाषी व्यक्तियों के लिए संस्कृत, गुजराती, मराठी, तेलुगू, कन्नड़, अंग्रेजी, जर्मन आदि सभी भाषाएँ मात्रेतर भाषाएँ हैं। इसी प्रकार अंग्रेजी मातृभाषी व्यक्तियों के लिए अंग्रेजी को छोड़कर अन्य सब भाषाएँ मात्रेतर भाषाएँ हैं। |


सगोत्रीय भाषाएँ और विषमगोत्रीय भाषाएँ
सगोत्रीय भाषाएँ | विषमगोत्रीय भाषाएँ |
---|---|
एक ही भाषा परिवार की भाषाओं को सगोत्रीय भाषाएँ कहते हैं। चूँकि इन भाषाओं का मूल स्रोत कोई एक भाषा होती है इसलिए कुछ विद्वान इन्हें समस्रोतीय भाषाएँ भी कहते हैं। उदाहरण के लिए हिन्दी, सिन्धी, पंजाबी, गुजराती, मराठी, उड़िया, बंगाली, असमी तथा नेपाली, ये सब आर्य भाषा परिवार की भाषाएँ हैं, इन सबका मूल स्रोत वैदिक संस्कृत है इसलिए ये सब सगोत्रीय भाषाएँ अथवा समस्रोतीय भाषाएँ हैं। इसी प्रकार द्रविड़ भाषा परिवार की समस्त भाषाएँ-तमिल, मलयालम, तेलुगू और कन्नड़ सगोत्रीय भाषाएँ हैं। | एक गोत्रीय भाषाओं के लिए दूसरी गोत्रीय भाषाएँ विषमगोत्रीय भाषाएँ कही जाती हैं। चूँकि इन भाषाओं का मूल स्रोत भिन्न-भिन्न भाषाएँ होती हैं इसलिए इन्हें विषमस्रोतीय भाषाएँ भी कहते हैं। उदाहरण के लिए हिन्दी और तमिल विषमगोत्रीय भाषाएँ हैं। इसी प्रकार हिन्दी और तेलुगू विषमगोत्रीय भाषाएँ हैं। इसी प्रकार आर्य कुल की किसी भी भाषा के लिए आर्य भाषा कुल की भाषाओं को छोड़कर अन्य सब भाषाएँ विषमगोत्रीय भाषाएँ हैं। |
देशी भाषाएँ और विदेशी भाषाएँ
देशी भाषाएँ | विदेशी भाषाएँ |
---|---|
वे सब भाषाएँ जिनका जन्म एवं विकास किसी देश विशेष में हुआ है उस देश की देशी भाषाएँ कही जाती हैं। उदाहरण के लिए हमारे देश भारत में अनेक भाषाओं का जन्म एवं विकास हुआ है, यथा-संस्कृत, पालि, अपभ्रंश, हिन्दी, सिन्धी, गुजराती, मराठी, उड़िया, कश्मीरी, बंगाली, असमी, नेपाली, तेलुगू, तमिल, कन्नड़ व मलयालम आदि। हमारे देश के लिए ये सभी भाषाएँ देशी भाषाएँ हैं। इसी प्रकार लैटिन व अंग्रेजी भाषा ब्रिटेन की और जर्मन भाषा जर्मन देश की देशी भाषाएँ हैं। | किसी देश की दृष्टि से वे सब भाषाएँ जिनका जन्म एवं विकास उस देश को छोड़कर अन्य किसी देश या देशों में हुआ है, उस देश के लिए विदेशी भाषाएँ होती हैं। उदाहरण के लिए, अरबी, फारसी, जर्मन, फ्रेन्च, रूसी, चीनी व अंग्रेजी आदि भाषाएँ हमारे देश की दृष्टि से विदेशी भाषाएँ हैं। इसी प्रकार ब्रिटेन के लिए हिन्दी, कश्मीरी, पंजाबी, तेलुगू, तमिल, जर्मन, फ्रेन्च, रूसी व चीनी आदि भाषाएँ विदेशी भाषाएँ हैं। |
-
भाषा किसे कहते हैं?
भाषा एक ऐसा साधन है जिसके जरिये हम अपनी बातो को दुसरो के सामने बोलके या लिखकर पहुचाते हैं तथा दुसरो की बातो को जान लेते हैं।
-
भाषा के रूप कितने हैं?
भाषाविज्ञों ने भाषा को मुख्य सात रूपों में विभाजित किया है।
-
भाषा का आधार क्या है?
भाषा का आधार व्याकरण है। भाषा वह माध्यम है जिसके द्वारा हम अपने विचारों भावों को लिखकर ,पढ़कर या बोलकर समझ सकते हैं।