भारत में स्त्री शिक्षा का विकास – प्राचीन काल में नारी समाज की एक शब्द शिक्षित व सम्मानित अंग रही है। ऋग्वेद काल में स्त्रियों को पूर्ण स्वतंत्रता थी। वह पुरुषों के साथ यज्ञ करती थी। यहां तक कि वह यज्ञ पूर्ण नहीं माना जाता था। जो बिना अर्धांगिनी के संपादित किया जाता था। ऋग्वैदिक काल में बहुत सी विदुषी स्त्रियां हैं। उपनिषद काल में भी स्त्रियों को शिक्षा की पूर्ण स्वतंत्रता थी।
उपनिषदों में ऐसी स्त्रियों का भी वर्णन है जो शिक्षिका का कार्य करती थी। स्त्रियों को ब्रह्मवादिनी कहा जाता था। इस स्त्री शिक्षिकाएं, उपाध्याय और आचार्य भी कहलाती थी। पिता की अभिलाषा रहती थी कि उसकी पुत्री पंडित और स्त्रियों को सैनिक शिक्षा दिए जाने का उदाहरण भी मिलता है। जैसा कि व्यक्ति की शब्द से प्रतीत होता है जिसका उल्लेख पतंजलि में किया गया है। इसका अभिप्राय भाला धारण किए स्त्री से है, ये स्त्रियां वैदिक ज्ञान में भी मंत्रविद होती थी।

भारत में स्त्री शिक्षा का विकास
भारत में स्त्री शिक्षा का विकास बहुत ही धीमी गति से हुआ। आइए विभिन्न कालों में स्त्री शिक्षा के विकास का अध्ययन करते हैं-
वैदिक काल में स्त्री शिक्षा का विकास
वैदिक काल में प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था परिवारों में होती थी और उच्च शिक्षा की व्यवस्था गुरुकुलों में होती थी। परंतु इसमें शिक्षक परिवारों की बालिकाएं प्राथमिक शिक्षा को प्राप्त कर लेती थी, परंतु उच्च शिक्षा हेतु वह गुरु आश्रम व गुरुकुलों में नहीं जा पाती थी। अतः इस काल में स्त्री शिक्षा का समुचित विकास नहीं हो सका।
बौद्ध काल में स्त्री शिक्षा का विकास
वैदिक काल के अंत में स्त्री शिक्षा की जो अवनति होने लगी थी उसे महात्मा बुद्ध के प्रयासों से नवजीवन मिला, जब उन्होंने स्त्रियों को भी संघ में प्रवेश करने की आज्ञा दे दी। इससे स्त्री शिक्षा का पर्याप्त विकास हुआ यहां तक कि स्त्रियों में उच्च कोटि की शिक्षा प्राप्त करके पुरुषों से बराबरी का प्रमाण दिया।
सामान्य स्त्रियों की शिक्षा के प्रति अधिक ध्यान नहीं दिया गया। सह शिक्षा मित्रों एवं बिहार ओं में स्त्रियों के रहने की अलग व्यवस्था किए जाने पर भी बहुत कम बालिकाएं इसमें प्रवेश लेती थी। इसका एक कारण संघ के कठोर नियमों का पालन करना भी था। उस युग में स्त्री की अच्छी व्यवस्था होने पर भी स्त्री शिक्षा का अधिक विकास नहीं हो पाया था।
मध्यकाल में स्त्री शिक्षा का विकास
सिद्धांत रूप में तो मुस्लिम संस्कृति महिलाओं का बहुत सम्मान करती है तथा उसे शिक्षा के समान अवसर देने की बात कहती है परंतु व्यावहारिक में इस दिशा में कोई ठोस उपाय या प्रयास नहीं किए गए। यही कारण था कि स्त्रियों को मकतल में प्राथमिक शिक्षा तो प्रदान की जाती थी मगर उच्च शिक्षा में उनको प्रवेश की अनुमति नहीं थी। मध्यकाल में भारत में स्त्री शिक्षा का विकास उतना नहीं हुआ जितना कि अपेक्षित था।
मदरसों में उनके प्रवेश निषेध का बहुत बड़ा कारण पर्दा प्रथा थी। उच्च शिक्षा तक आते-आते बालिकाएं बड़ी हो जाती थी और उनके लिए बुर्का पहनकर अपने शरीर को ढकना अनिवार्य हो जाता था। राज्य या समाज की ओर से भी इनके लिए पृथक शिक्षा संस्थाओं की कोई व्यवस्था नहीं की गई थी।

जिसके फलस्वरूप भी निम्न और निर्धन वर्ग की बालिकाएं या तो ज्ञान प्राप्त के लाभ से वंचित रह जाती थी या उनका ज्ञान अत्यंत कम पढ़ने और लिखने तक सीमित रह जाता था। सामान्यतः लड़कियों को पढ़ाना सम्मान के विपरीत व मनहूसियत की निशानी समझा जाता था। उन्हें घर पर ही सिलाई, कढ़ाई, खाना बनाना, बातचीत करने का सलीका आदि सिखा दिया जाता था।
ब्रिटिश काल में स्त्री शिक्षा का विकास
ब्रिटिश काल का आरंभ ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन से होता है जिसमें स्त्री शिक्षा पर विशेष ध्यान नहीं दिया, क्योंकि उसे अपने कामकाज से किसी शिक्षित स्त्री की आवश्यकता नहीं पड़ती थी। अतः कंपनी ने स्त्री शिक्षा के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किया। सन 1813 में ब्रिटिश पार्लियामेंट ने कंपनी को जो आज्ञा पत्र जारी किया उसमें एक आदेश ही यह भी था कि कंपनी शिक्षा पर प्रतिवर्ष ₹100000 खर्च करें, परंतु इसी बीच प्राच्य पाश्चात्य विवाद के कारण कंपनी का रुख पाश्चात्यीकरण की तरफ हो गया।

परंतु इसाई मिशनरियों का कार्य जारी रहा उन्होंने अनेक स्कूलों की स्थापना की। भारत में बालिकाओं के लिए अलग से सबसे पहला स्कूल 1818 में ईसाई मिशनरी द्वारा स्थापित किया गया। रसो 19 में कैरेने सिरामपुर मैं दूसरा बालिका विद्यालय स्थापित किया। 1820 में इंग्लैंड से मिस कूक भारत आयी। इन्होंने यहां आते ही 8 बालिका विद्यालयों की स्थापना की और इसके बाद 1823 तक 14 और बालिका विद्यालय स्थापित किए। जिससे भारत में स्त्री शिक्षा का विकास पनपा।
मिसनरियों से प्रभावित होकर भारतीय भी आगे बढ़े। पुणे में महात्मा फुले ने एक बालिका विद्यालय खोला जिसमें वह और उनकी पत्नी भी पढ़ाते थे। 1849 में कोलकाता में भी वासियों ने एक बालिका विद्यालय की स्थापना किस के बाद राजा राममोहन राय और ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने कोलकाता क्षेत्र में कई बालिका विद्यालय खोलें। 1851 तक ईसाई मिशनरियों ने ही 371 बालिका विद्यालय स्थापित कर दिए और इसमें 11,293 बालिकाएं शिक्षा प्राप्त कर रही थी।
1857 में भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध कई क्रांति को दबाने के बाद 1807 में ब्रिटिश सरकार ने प्राथमिक शिक्षा कर लगाया। इस धनराशि से स्त्री शिक्षा का प्रसार हुआ व 1882 तक हमारे देश में लगभग 2097 बालिका विद्यालय खुल चुके थे जिनमें 127066 बालिकाएं शिक्षा ग्रहण कर रही थी। आप मध्यकालीन भारत में स्त्री शिक्षा का विकास के बारे में जानकारी प्राप्त कर रहे हैं।
1882 में हंटर कमीशन ने भी स्त्री शिक्षा की आवश्यकता व उनके प्रसार पर बल दिया एवं स्त्री शिक्षा को निशुल्क किए जाने का सुझाव दिया। इसके साथ ही निर्धन बालिकाओं को छात्रवृत्तियां दिए जाने व दूर से आने वाली छात्राओं हेतु छात्रावासों की व्यवस्था किए जाने की बात की। जिससे भारत में स्त्री शिक्षा का विकास में गति आई।
1904 में श्रीमती एनी बेसेंट ने बनारस में सेंट्रल हिंदू बालिका विद्यालय की स्थापना की व 1916 में दिल्ली में लेडी हार्डिंग कॉलेज खोला गया। जो भारत का सर्वप्रथम महिला मेडिकल कॉलेज था। इसी वर्ष महर्षि कर्वे ने पुणे में महिला विश्वविद्यालय की स्थापना की। इस प्रकार भारत में स्त्री शिक्षा का विकास में और अधिक तेजी आई।
1946-47 तक भारत में 28,196 बालिका शिक्षा संस्थाओं की स्थापना हो चुकी थी, जिसमें 21,480 प्राथमिक विद्यालय 2,370 माध्यमिक विद्यालय, 59 महाविद्यालय और 4,287 व्यावसायिक शिक्षा संस्थाएं थी एवं इनमें पढ़ने वाली छात्राओं की संख्या लगभग 42,00,000 थी।
स्वतंत्र भारत में स्त्री शिक्षा का विकास
15 अगस्त 1947 को सफलता प्राप्त के बाद 26 जनवरी 1950 को संविधान निर्माण के पश्चात स्त्रियों को समानता का अधिकार दिया गया जो शिक्षा के क्षेत्र में भी लागू हुआ। सर्वप्रथम 1948 में गठित राधाकृष्णन आयोग ने स्त्री शिक्षा के संबंध में अनेक सुझाव दिए जिनमें मुख्य थे-
- स्त्रियों के लिए शिक्षा से अधिक अवसर उपलब्ध कराए जाएं।
- बालिकाओं के लिए उनकी रूचि और आवश्यकता अनुसार पाठ्यक्रम तैयार किए जाएं और उनके लिए शैक्षिक एवं व्यवसायिक निर्देशन की उचित व्यवस्था की जाए।
इस प्रकार अब भारत में स्त्री शिक्षा का विकास का कार्य योजनाबद्ध तरीके से शुरू हुआ। साथ ही साथ भारत सरकार ने स्त्री शिक्षा के विकास हेतु अनेक समितियों का गठन भी किया। इनके निष्कर्षों को देखते हुए भारत सरकार ने स्त्री शिक्षा से संबंधित अनेक योजनाएं और कार्यक्रमों का संचालन किया।