भारत में वनोन्मूलन – जिस प्रकार से प्राकृतिक प्रकोप का प्रभाव सारे मानव क्रियाओं पर पड़ता है उसी प्रकार मानव अन्य विपदाय मानव के स्वयं के लिये घातक सिद्ध हो रही है। मानव अपनी सुख-सुविधाओं के क्रम करता है और यही सुविधायें आगे चलकर उसके लिए अभिशाप सिद्ध होती है।
वन किसी देश की अमूल्य सम्पत्ति होते हैं जिन पर न केवल उसकी जलवायु होती है करन उद्योगों के लिए कच्चा माल भी प्राप्त होता है। वनों का संरक्षण इस दृष्टि से महत्वपूर्ण में वनों से तापमान, वर्षा, आर्द्रता व पारिस्थितिकी का संतुलन बना रहता है। इस कारण वनों को नष्ट करने में सरकारी रोक लग गयी है। यह प्रकृति के बहुत बड़े संसाधन है।

जब जनसंख्या कम थी वनों का विस्तार अधिक था, तब इस प्रकार की समस्या नहीं थी। लेकिन जनसंख्या के विस्तार से इसका विस्तार घटने लगा तो पारिस्थितिकी असंतुलन की समस्यायें उजागर होने लगी। इसका सीधा प्रभाव मानव की आर्थिक गतिविधियों पर पड़ा। वनों के नाश से विभिन्न भागों में अकाल व अत्यधिक वर्षा से बाढ़ का सामना करना पड़ा। आप भारत में वनोन्मूलन Hindibag पर पढ़ रहे हैं।
भारत में वनोन्मूलन
प्रकृति में अनावश्यक हस्तक्षेप से मानव को प्राकृतिक विपदाओं का सामना करना पड़ता है। वनों को काटने से अकाल, सूखा व बाढ़ जैसी अनेक महामारियों का सामना करना पड़ता है। यह ऐतिहासिक सत्य है कि रोमन साम्राज्य का पतन वनों के विनाश के कारण हुआ। भारतीय सभ्यता के केन्द्र मोहनजोदड़ो और हड़प्पा भी प्राकृतिक प्रकोप बाढ़ के कारण नष्ट हो गया है। वर्तमान में पास्थितिकी असुन्तलन प्राकृतिक प्रकोप को आमंन्त्रित करती है और मानव को शायद इसका पहले अनुमान न था कि प्रकृति उससे इतनी रूठ जायेगी।
भारत में वनोन्मूलन की कहानी द्वितीय विश्व युद्ध से प्रारम्भ होती है जब अंग्रेजों ने वनीय साधन का शोषण प्रारम्भ किया। विभिन्न जरूरतों को पूरा करने के लिए व्यापक पैमाने पर वनों को काट ने लगा। भारत में 1925-26 में वनाच्छादित भूमि का प्रतिशत 204 था जो 1950-51 में बढ़ती जनसंख्या और कृषि विस्तार के कारण घटकर 14.20% रह गया। जबकि योजनाओं में इस ओर ध्यान न देने के कारण 1860-61 की अवधि में कुछ वृद्धि हुई और यह 18.1% हो गया।
1870-71 में बढ़कर वह 22.7% हो गया। तब भी विश्व के अन्य देशों सोवियत संघ 41%, कनाडा 45%, सं० राज्य अमेरिका 33% ब्राजील 61%, जापान 68% की तुलना में बहुत कम है। आयतन आकड़ों के अनुसार भारत के लगभग 6 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर वनाच्छादन है जो सोवियत संघ के (18 करोड़), ब्राजील के (डेढ़ करोड़), कनाडा 42 करोड़ की तुलना में बहुत कम है। आप भारत में वनोन्मूलन Hindibag पर पढ़ रहे हैं।

भारत में वनोन्मूलन के कारण
प्रत्येक देश के लिए वन अमूल्य संसाधन होते हैं यह लकड़ी कागज वह कच्ची सामग्री का स्रोत नहीं वरन् पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने में इनका अमूल योगदान होता है। वनों की क्षति कई तरीके से होती है।
- वनों में आग लगना – आग द्वारा वनों को अत्यधिक क्षति पहुंचती है मनुष्य का लापरवाही से अधिकांश जंगलों में आग लग जाती है जिससे वनों के साथ-साथ अन्य जैव पदार्थ भी नष्ट हो जाते हैं।
- अंधाधुंध लकड़ी काटना – औद्योगिक कार्यों के लिए या जलाने के लिए कभी-कभी बेतहाशा वनों को काट डाला जाता है। जिससे कच्चे-पक्के सभी तरह के वृक्ष का डाले जाते हैं। साथ ही साथ कटे वृक्षों को निकालने के लिए कई छोटे-छोटे पेड़ पौधे नष्ट हो जाते हैं।
- कृषि के लिए वन की सफाई – कृषि के योग्य भूमि का विस्तार करने के लिए अनावश्यक जंगलों को काट डाला जाता है जिससे कृषि क्षेत्र तो बढ़ जाता है परंतु वातावरण असंतुलित हो जाता है।
- कीड़े मकोड़ों दीमको व बीमारियों का प्रकोप – वनों में असंख्य कीड़े व दीमक ऐसे होते हैं जो वृक्षों को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं जिन्हें दे पाना बहुत कठिन होता है और धीरे-धीरे नुकसान करते हैं इस प्रकार वृक्षों में कई बीमारियां भी लग जाती हैं जिससे बाग के बाग भी सूख जाते हैं।
- लकड़ी के विविध उपयोग के लिए काठ बर्तन – कांच के बर्तन अति प्राचीन समय से बनाए जाते रहे हैं। आजकल बर्तनों की जगह खिलौनों ने ले ली है। जिसे वनों को काटकर छोटे-छोटे कुटीर उद्योग खिलौना बनाने का उपयोग करते हैं।
- उद्योग की निर्भरता – भारत जैसे देश के लिए उद्योग भी वनों के ऊपर निर्भर हैं जिससे देश का बहुत कुछ भाग निर्भर है।
उपयोगी पौधों के किस्म का विनाश वनोन्मूलन का एक प्रभाव हर साल पौधों की 30,000 से अधिक किसमें लुप्त हो जाती हैं। जिसमें औषधि संबंधी किस्मों की एक बड़ी संख्या है। मनुष्य द्वारा किया जा रहा पर्यावरण संबंधी अपराध सबसे बड़ा अपराध है। आप भारत में वनोन्मूलन Hindibag पर पढ़ रहे हैं।

वन संरक्षण के उपाय
देश में तेजी से वनों के क्षेत्र की कमी अत्यधिक चिन्ताजनक है। मानव और पशुओं की वृद्धि के कारण वनों की कटाई से समूचा देश एक गहरे पारिस्थितिकीय एवं सामाजिक आर्थिक सह कगार पर खड़ा है। अतः वनों के प्रभावकारी बचाव के लिए निम्नलिखित ठोस उपाय प्रस्तावित किये गये है।
- परती भूमि का वनारोपण एवं विकास।
- मौजूदा वनों में पुनः वनारोपण तथा पुनः पौधे लगाना।
- वन सर्वेक्षण को सुदृढ़ करना।
- वन क्षेत्र को निश्चित करना।
- वन अधिकारियों द्वारा व्यवस्थित छानबीन करना।
- वन सुरक्षा दल को मजबूत करना।
- पशुचारण प्रतिबंध।
- ईंधन की लकड़ी चारा व इमारती लकड़ी की आपूर्ति के लिए डिपो बनाना।
- सुधरे हुए चूल्हे।
- अन्य किस्म के निधन की आपूर्ति।

भारत में वन संरक्षण नीतियां
वनों के समुचित प्रबंधन तथा संरक्षण के लिए भारत की भी राष्ट्रीय वन नीति है जिसके निम्न आधारभूत नियम हैं। जो अग्रलिखित हैं
- कार्यात्मक पक्षों के अनुसार वनों का वर्गीकरण करना जैसे संरक्षित वन, ग्राम्य वन आदि।
- जनता के कल्याण हेतु स्थान विशेष की भौतिक एवं जलवायु सम्बंधी दशाओं में परिमार्जन एवं सुधार के लिए वनारोपण वन क्षेत्रों में विस्तार करना।
- पशुओं के लिए चारे, कृषि के उपकरणों के लिए लकड़ी तथा वनों के पास रहने वाले लोगों के लिए जलावन लकड़ी की समुचित आपूर्ति की व्यवस्था करना।
- वनों को काटकर कृषि के क्षेत्रों में वृद्धि का विरोध करना।
- वन क्षेत्रों में विस्तार से लिए व्यापक स्तर पर वनरोपण करना ताकि देश के समस्त भौगोलिक क्षेत्रफल के 33% भाग पर वनावरण हो सके।
भारतीय राष्ट्रीय वन नीति के तहत भारत सरकार का यह सख्त आदेश है कि वनों को काटकर वन भूमि को अन्य भूमि उपयोगों के लिए प्रयोग में न लाया जाए। मात्र सरकारी निदेशात्मक नियमों एवं कानूनों से ही वन विनाश को रोका नहीं जा सकता है वरन यह भी आवश्यक है कि वन विनाश से उत्पन्न होने वाले दुष्प्रभावों के प्रति आम जनता को सचेत किया जाये।