भारत में निर्देशन की समस्याएं – 11 Problems of Counseling

भारत में निर्देशन की समस्याएं – भारत में निर्देशन का प्रारंभ अपनी शिशु अवस्था में है और धीरे-धीरे इसका विकास हो रहा है, परंतु इस विकास में निर्देशन निम्नलिखित समस्याओं का सामना कर रहा है। इसकी वजह से इसकी प्रगति धीमी है-

भारत में निर्देशन की समस्याएं

भारत में निर्देशन की समस्याएं निम्न है-

  1. अप्रशिक्षित शिक्षक
  2. शिक्षकों पर अति कार्यभार
  3. प्रभाकृत टेस्टों का अभाव
  4. विद्यालयों में पाठ्यक्रम
  5. एक राष्ट्रभाषा का अभाव
  6. विद्यालयों की दयनीय आर्थिक व्यवस्था
  7. शिक्षा में अन्वेषण ने अभी तक प्रवेश नहीं किया
  8. जाति प्रथा
  9. त्रुटिपूर्ण परीक्षा प्रणाली
  10. सूचनाओं का संकलन तथा विश्लेषण करने के व्यवस्थित संगठन का भाव
  11. बेकारी तथा अर्द्धबेकारी

1. अप्रशिक्षित शिक्षक

भारत में वैसे ही साधारण शिक्षा प्रदान करने हेतु प्रशिक्षित शिक्षकों का अभाव है और जहां तक प्रशिक्षित निर्देशकों का प्रश्न है यह अभाव तो और भी अधिक है। हमारे देश में प्रशिक्षित निर्देशकों के अभाव के कारण निर्देशन देने में परेशानी होती है क्योंकि निर्देशन देना जनसाधारण का कार्य नहीं। यह कार्य तो अत्यंत योग्य, प्रशिक्षित तथा धैर्यशील व्यक्तियों द्वारा संपन्न किया जाता है।

क्योंकि निर्देशन प्रक्रिया में जरा सी असावधानी एक मनुष्य के संपूर्ण जीवन को ही बदल सकती है, इसलिए आप पूर्ण ज्ञान युक्त निर्देशक के हाथों में निर्देशन का कार्य हम नहीं सौंप सकते। भारत में भी आयोग्य निर्देशकों के द्वारा निर्देशन प्राप्त करने से तो अच्छा है कि निर्देशन हो ही नहीं। परंतु हर्ष की बात यह है कि भारत के कुछ राज्यों ने इस प्रकार के प्रशिक्षण हेतु कदम उठाए हैं। जैसे पश्चिमी बंगाल में कैरियर मास्टर का प्रशिक्षण दिया जाने लगा है।

व्यावसायिक निर्देशन की आवश्यकता, भारत में निर्देशन की समस्याएं
भारत में निर्देशन की समस्याएं

2. शिक्षकों पर अति कार्यभार

भारत में शिक्षकों को अत्यधिक कार्य करना पड़ता है। अध्यापन कार्य के अतिरिक्त अध्यापक को अन्य कार्य इतने करने पड़ते हैं कि वह और किसी कार्य हेतु अपना समय नहीं बचा सकता। अध्यापकों पर अध्यापन कार्य भी इतना रहता है कि वह उसी कार्य को कुशलता पूर्वक संपन्न नहीं कर पाते। साधारणतया एक अध्यापक को 36 घंटे प्रति सप्ताह लेने पड़ते हैं। नौकरी के भय से बेचारा अध्यापक पढ़ाता तो है पर यह उसका पढ़ाना भर मात्र ही है, वास्तविक शिक्षा देना नहीं। फिर भी हम आशा करें यह निर्देशन भी दे यह असंभव है।

3. प्रभातकृत टेस्टों का अभाव

निर्देशन क्रिया हेतु सबसे अधिक आवश्यक सामग्री टेस्ट है योद्धा के हथियार के सामान्य हथियार ही ना होगा। तो युद्ध कैसे इसी प्रकार जब टेस्ट ही नहीं तो निर्देशन कैसे भारत में जो भी हैं वे अंग्रेजी में हैं। जो हमारा कार्य सिद्ध नहीं कर सकते हैं क्योंकि छात्रों के एक बड़ी संख्या अंग्रेजी नहीं जानती किंतु हर्ष की बात यह है कि भारत में भी टेस्ट निर्माण कार्य, राज्य भाषाओं में बनाने की दिशा में कुछ विद्वानों ने कदम उठाएं हैं, परंतु इस प्रकार के टेस्टों की संख्या इतनी अधिक नहीं है कि उनके द्वारा हम छात्रों के संबंध में पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर सकें।

4. विद्यालयों में पाठ्यक्रम

अब तक शिक्षा की विचारधाराएं ब्रिटिश राजनीति से प्रभावित रही, अतः निर्देशन को पाठ्यक्रम में या स्कूल में स्थान मिलने का प्रश्न ही नहीं था। अब स्वतंत्र भारत में बेसिक शिक्षा तथा बहुउद्देशीय विद्यालयों का विकास हो रहा है, परंतु इन विद्यालयों में ज्ञान की समस्त शाखाओं के अध्यापन की व्यवस्था नहीं है। फलत: छात्रों को उनकी योग्यता क्षमता तथा रूचि के अनुसार शिक्षा नहीं दी जा सकती है। जैसे इंजीनियरिंग, टेक्निकल व्यवसाय हेतु उन विद्यालयों में क्या निर्देश दिया जा सकता है जहां पर गणित, और विज्ञान या रसायन विज्ञान के अध्ययन की सुविधा नहीं है।

(भारत में निर्देशन की समस्याएं)

भारत में निर्देशन की समस्याएं
भारत में निर्देशन की समस्याएं

5. एक राष्ट्रभाषा का अभाव

भारत में विभिन्न भाषाएं बोली जाती हैं। प्रत्येक राज्य की अपनी-अपनी पृथक राज्य भाषा है इतना ही नहीं एक राज्य में भी कई कई भाषाएं बोली जाती हैं। अगर यह कहा जाए कि विभिन्न भाषाओं की उपस्थिति के कारण यह देश एक महाद्वीप है, तो अतिशयोक्ति न होगी। इस प्रकार एक राज्य का रहने वाला निर्देशन दूसरे राज्य में जाकर निर्देशन का कार्य सफलतापूर्वक नहीं कर सकता।

उदाहरणार्थ पश्चिम बंगाल से आए हुए कैरियर मास्टर्स उत्तर प्रदेश या राजस्थान में निर्देशन कार्य सफलतापूर्वक नहीं कर सकते क्योंकि पश्चिम बंगाल से आए हुए निदेशक ना भाषा समझ पाएगा और ना ही छात्र उसकी भाषा समझ पाएंगे। दूसरे विभिन्न भाषाएं होने के कारण यह भी आवश्यक हो जाता है टेस्ट भी विभिन्न भाषाओं में हों। भारत में कुछ भाषाओं में तो कोई भी टेस्ट नहीं है। इस कारण भी भारत में निर्देशन क्रिया में कठिनाइयां आती हैं।

6. विद्यालयों की दयनीय आर्थिक व्यवस्था

भारत के विद्यालयों की आर्थिक स्थिति अत्यंत दयनीय कुछ विद्यालयों की दशा तो इतनी खराब है कि वह अध्यापकों का वेतन पर्याप्त समय पर नहीं दे पाते। इस अवस्था में यह उम्मीद करना कि यह विद्यालय निर्देशन दिशा में होने वाले खर्चों का भार भी वहीं कर सकेंगे। इस तरह आर्थिक कारण भी निर्देशन मार्ग में कठिनाई उपस्थित करते हैं। (भारत में निर्देशन की समस्याएं)

7. शिक्षा में अन्वेषण नें अभी तक प्रवेश नहीं किया

शिक्षा में अभी अन्वेषण कार्य में प्रवेश नहीं किया है तथा थोड़े बहुत जो काम हुआ है। वह अत्यंत कम है इस कारण भी भारत में अभी निर्देशन सफलतापूर्वक कार्य नहीं कर पा रहा है।

व्यावसायिक निर्देशन
भारत में निर्देशन की समस्याएं

8. जाति प्रथा

जाति प्रथा भारत में निर्देशन के कार्य में समस्या उत्पन्न करती है। वास्तविक रूप से यदि देखा जाए तो जात प्रथा भारत में व्यवसायिक निर्देशन का प्राचीनतम रूप है। परंतु यह प्रथा दोष युक्त थी क्योंकि इस प्रणाली में बच्चे की क्षमता भी का ध्यान नहीं देखा जाता था। जातिगत तथा परिवारगत व्यवसाय का बच्चे के व्यवसाय चयन पर प्रभाव पड़ता था। उसके लिए जातिगत व्यवसाय के अलावा अन्य व्यवसाय का चयन कल्पना मात्र था। उदाहरण के लिए एक हरिजन बच्चे को चाहे उसकी योग्यताएं कुछ भी क्यों ना हो व्यापार या व्यवसाय संबंधी परामर्श कैसे दिया जा सकता है। इसके संबंध में उसके माता-पिता ने कभी सोचा तक नहीं। (भारत में निर्देशन की समस्याएं)

9. त्रुटिपूर्ण परीक्षा प्रणाली

भारत में परीक्षा प्रणाली अत्यंत त्रुटिपूर्ण है। परीक्षा विषयक तथा वस्तुनिष्ठ नहीं है। छात्र कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर अधिकारी उत्तीर्ण हो जाते हैं। उन्हें परीक्षा पास करने हेतु किसी विशेष योग्यता क्षमता की आवश्यकता नहीं पड़ती। किसी भी प्रकार की रूचि हो वाला कार्य किसी भी विषय की परीक्षा इसी पद्धति से उत्तीर्ण कर लेता है। इस प्रकार छात्र की सूचियों क्षमताओं इत्यादि ज्ञान नहीं हो पाता है और निर्देशन क्रिया असंभव हो जाती है।

व्यावसायिक निर्देशन, भारत में निर्देशन की समस्याएं
भारत में निर्देशन की समस्याएं

10. सूचनाओं का संकलन तथा विश्लेषण करने के व्यवस्थित संगठन का अभाव

भारतीय स्कूलों में ना तो स्कूल स्तर पर ही ना ही जिला स्तर पर कोई ऐसी संस्था है, जो छात्रों के संबंध में आवश्यक सूचनाएं संग्रहित करें तथा संकली सूचनाओं का विश्लेषण छात्रों की क्षमता तथा योग्यता का पता लगाने को करे। वर्तमान आर्थिक स्थिति को देखते हुए यह कार्य ज़िला या प्रांतीय स्तर पर ही संभव है। इन सूचनाओं के अभाव में भी किसी प्रकार का निर्देशन नहीं दिया जा सकता है।

11. बेकारी तथा अर्द्धबेकारी

एक देश में जहां अनेक रोजगार नहीं होते हैं। वहां व्यवसायिक निर्देशन मृतप्राय हैं। वही निर्देशित कार्य कर सकता है बेकारी की अवस्था में व्यक्ति उचित तथा अनुचित व्यवसाय का ध्यान ना करके उसे कोई सा भी व्यवसाय अपनाना पड़ता है। भारत एक विकसित देश है। यहां बेकारी की समस्या मुंह बाए खड़ी है। व्यक्ति अपनी क्षमता या योग्यता का ध्यान किए बिना ही अपने अथक परिश्रम से जो व्यवसाय मिल जाता है। उसे सहर्ष स्वीकार कर लेता है। अतः निर्देशन के सिद्धांतों के अनुसार व्यवसाय चयन का प्रश्न ही नहीं उठता।

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