अंग्रेज, फ्रांसीसी व अन्य यूरोपीय की तरह भारत में व्यापार करने के लिए आए थे, लेकिन धीरे-धीरे भारत में अपना राज्य स्थापित कर लिया। भारत में अंग्रेजी राज्य के स्थापना की कहानी इस प्रकार है इसके लिए उन्होंने कौन-कौन से तरीके अपनाए वो इस प्रकार हैं-
18वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य की शक्ति क्षीण होने पर प्रांतीय एवं क्षेत्रीय शासकों ने अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर ली थी। इनमें बंगाल (बिहार और उड़ीसा), अवध, हैदराबाद, मैसूर और मराठा प्रमुख थे। मुगल बादशाह का नियंत्रण नाम मात्र का रह गया था। इसी सदी में यूरोप में, फ्रांस और इंग्लैंड के बीच विश्व में उपनिवेश व व्यापार से ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए कई वर्षों तक निरंतर युद्ध होते रहे।
दोनों देशों के व्यापारी इतने अमीर हो गए थे कि अपने अपने देश के शासन में भी इनका बोलबाला था। यहां तक कि इंग्लैंड और फ्रांस के राजा अपने अपने देश की कंपनियों का पूरा समर्थन करते थे और उन्हें मदद देते थे।
भारत को अंग्रेजों ने अपना उपनिवेश राज्य क्यों बनाया
- इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के दौरान कारखाने लग गए थे। अतः वह भारत को सिर्फ कच्चे माल की पूर्ति का साधन बनाना चाहते थे। साथ ही इंग्लैंड अपने यहां का बना सस्ता कपड़ा और दूसरा सामान भारत को ऊंचे दाम में बेचना चाहता था जिससे वह भारत में बुना कपड़ा यूरोप में बेचकर मालामाल होते रहे।
- वे भारत में कई जरूरी फसलें गोवा कर उन्हें दूर-दूर बेचते थे जैसे- नील, पटसन, अफीम, गन्ना, चाय, कहवा।
- उन्होंने व्यापार की यह सब चीजें लाने वाले जाने के लिए भारत के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में रेल लाइनें और सड़कें बिछाना भी शुरू किया। इसके लिए वे लोहा कोयला आदि खनिजों की खदानें खोदने चाहते थे, व जंगल से लकड़ी का व्यापार करना चाहते थे।
- यह सब करने के लिए उन्हें भारत में जगह-जगह अपने अधिकारी रखने और भारत के लोगों पर अपना नियंत्रण बनाने की जरूरत महसूस हुई।
ईस्ट इंडिया कंपनी नील,कॉफी,चाय के बागान भारत में लगाती थी और इन फसलों को सस्ते दामों में खरीद कर अपने जहाजों से इंग्लैंड के कारखानों में भेजती थी। अंग्रेज इंग्लैंड के कारखानों से तैयार माल,जैसे- कपास से कपड़ा,चाय पत्ती,कपड़ा रंगने के लिए तैयार नील आदि जहाजों के माध्यम से भारत एवं यूरोप में अधिक दाम में बेचते थे। उन्होंने व्यापार की यह सब चीजें लाने वाले जाने के लिए रेलवे लाइन, सड़कें, दूरसंचार आदि की व्यवस्था की, इससे व्यापार में तेजी आई और उसका दिन प्रतिदिन मुनाफा बढ़ता गया।
यह सब करने के लिए उन्होंने भारत में अपने अधिकारी रखें और भारत पर अपना वर्चस्व कायम किया। भारत में भी ईस्ट इंडिया कंपनी और फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी व्यापार पर कब्जा करने के लिए एक दूसरे से लंबे समय तक लड़ती रही। एक कंपनी इस कोशिश में रहती कि दूसरे को भारत से खदेड़ कर निकाल दे। इसके लिए दोनों ही कंपनियां अपने अपने देश इंग्लैंड व फ्रांस से सैनिक बुलाने लगी। हकीकत इंडिया कंपनी की ताकत बढ़ाने में लॉर्ड क्लाइव का विशेष योगदान था दूसरी ओर डुप्ले ने फ्रांसीसी कंपनी का नेतृत्व किया।

भारत के राज्य और विदेशी कंपनियों की सेना
भारत के राजा और नवाब अपना अपना राज्य बढ़ाने में और एक दूसरे पर हमला करने में लगे रहते थे।इनमें उत्तराधिकार संबंधी युद्ध भी होते थे और वे इन विदेशी कंपनियों की सहायता लेने में नहीं हिचकते थे दोनों कंपनियां इन झगड़ों में अपनी टांगें अड़ाने लगी अगर कंपनी किसी राजा या नवाब का साथ देने को तैयार हो जाती औरअपनी सेना उसके लिए लड़ने भेज देती तो उस राजा या नवाब की ताकत बहुत बढ़ जाती थी। यूरोपीय सेनाओं का बड़ा दबदबा था।
राजा कंपनी की सैनिक सहायता के बदले में उसे बहुत धन डेट में देते थे।यह धन कंपनी के व्यापार के काम आता था।कई बार कंपनी राजा से उसके राज्य का एक बड़ा इलाका पेट में ले लेती थी। उस इलाके के गांव, शहरों से कंपनी लगान वसूल करती थी और लगान से मिले धन से व्यापार करती था।इस तरह मिले धन से कंपनी अपनी सेना का खर्चा भी चलाने लगी।
भारत में जमीन लेकर इन कंपनियों ने अपनी-अपनी कोठियों की किलेबंदी भी की और भारत में एक दूसरे से कई युद्ध लड़े। इनके द्वारा दक्षिण भारत के कर्नाटक क्षेत्र में 1746 ईस्वी से 1763 ईसवी के बीच तीन युद्ध लड़े गए,जिन्हें “कर्नाटक युद्ध” कहा जाता है अंत में 1760 असली में वांडीवाश का युद्ध में फ्रांसीसी अंग्रेजों से परास्त हो गए और सिर्फ व्यापारिक कार्यों तक सीमित रहें। आप भारत में अंग्रेजी राज्य Hindibag पर पढ़ रहे हैं।
राजा और नवाब को अंग्रेजों से खतरा
कंपनी को भेट देने और उसकी सेना का खर्चा उठाने में भारतीय राजाओं पर बहुत-बहुत पड़ने लगा। राजा व नवाब व्यापार के खिलाफ नहीं थे, परंतु वे अपने राज्य में किसी और की सैनिक ताकत नहीं बढ़ाने दे सकते थे।उन्होंने कंपनी की सैनिक ताकत पर रोक लगाने की कोशिश की।
अस्त्र शस्त्र,सैनिक बल व किलेबंदीके सहारे होने वाला व्यापार कोई साधारण व्यापार नहीं रहा। भारत के राजाओं और नवाबों को यह बात बड़ी खतरनाक लगी थी उनके राज्य में किसी दूसरे देश के लोग सेनाएं रखे,युद्ध लड़े,किले बनाए और अपनी सैनिक शक्ति की धाक जमाए।वे कंपनी की दूसरी बातों से भी परेशान रहते थे।

इसी प्रकार क्लाइव ने बंगाल के नवाब से एक संधि की, जिसके अनुसार बंगाल में द्वध शासन की स्थापना की। इसके अंतर्गत प्रशासन का उत्तरदायित्व नवाब के कंधों पर डाला गया तथा राजस्व वसूली का अधिकार कंपनी ने अपने हाथों में ले लिया। इस प्रकार भारत पर प्रभुत्व जमाने के लिए अंग्रेजों ने भारतीय सामाजिक,आर्थिक एवं राजनीतिक ढांचे पर अपना वर्चस्व स्थापित किया और भारत को अपना औपनिवेशिक राज्य बना लिया।
- चुंगी कर में छूट तथा सामानों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने की छूट, जिससे उसका सामान दूसरों से सस्ता हो।
- व्यापार में मानमनी करने, भारतीयों को अपना सामान सस्ता बेचने, कंपनी का माल महंगा खरीदने,प्रतिद्वंदी यूरोपीय व्यापारियों को बाहर रखने और कंपनी का व्यापार राष्ट्रीय राजाओं की नीतियों से स्वतंत्र रहकर जारी रखने के लिए मजबूर करना आदि।
- बंदरगाहों के पास किलेबंदी करने, पट्टे पर प्राप्ति स्थान का प्रशासन चलाने तथा अपने साथ लाए हुए सोने चांदी से भारतीय सिक्के डालने की अनुमति छेत्री शासक से प्राप्त करना। इसके बदले क्षेत्रीय राज्य को बंदरगाह से प्राप्त चुंगी का आधा हिस्सा राजा को देना।
ब्रिटिश कंपनी भारत में राजनीतिक सत्ता स्थापित करने के लिए भारतीय राजाओं के साथ इन्हीं आंकड़ों का इस्तेमाल कर बड़ी चतुराई के साथ अपना राज्य बढ़ाती रही। इस तरह एक ऐसा वक्त आया, जब अंग्रेज भारत के राजाओं वह नवाबों को हटाकर खुद शासन चलाने लगे। समय-समय पर आवश्यकतानुसार अपनी नीति में बदलाव, शर्तों को तोड़ना, भारतीय राजाओं पर आक्रमण, छतरी राजनीति में दखलअंदाजी, राजाओं के साथ कुचक्र,फूट डालना,आपस में लड़ना आदि तरीकों का निर्लज्जता प्रयोग करते रहे।
अंग्रेजी शर्तों के अधीन क्षेत्रीय राजाओं का कोर्स खाली होता गया।उन्हें राजकाज एवं विकास कार्यों को करना मुश्किल हो गया।राज्य की आमदनी अंग्रेजों के हिस्सों में जाती रही और खर्च की जिम्मेदारी राजा उठाते रहे और राज्य में जनता की तकलीफ के लिए भी राजा जिम्मेदार ठहराए जाने लगे।


इस स्थिति का कोई भी राजा विरोध नहीं कर सका क्योंकि उनमें अंग्रेजों के विरोध की शक्ति नहीं थी और ना ही आपस में एकता थी।इस स्थिति का फायदा उठाते हुए अंग्रेज एक-एक कर समस्त क्षेत्रीय शक्तियों को कमजोर कर कठपुतली की तरह नचाते और अपने आधीन करते रहे।अंत में प्रमुख रूप से अवध बंगाल तथा दिल्ली के शासकों पर अपना अधिकार जमाया।