भारत का विदेशी व्यापार – भारत प्राचीन काल से ही विभिन्न देशों से व्यापार करता आ रहा है। उस समय भारतवासी व्यापार करने के लिए अन्य देशों में जाया करते थे। आगे चलकर यूरोपवासियों को भारत के साथ व्यापार करने की लालसा उत्पन्न हुई जिसके कारण पुर्तगाल, हालैण्ड, फ्रांस व इंग्लैण्ड के लोगों को भारत आने की प्रेरणा मिली। भारत के व्यापार में यूरोपीय देशों के साथ स्वेज नगर के निर्माण ने अत्यधिक सुगमता प्रदान की।
17वीं शताब्दी के अन्त तक भारत में हस्तकला की वस्तुओं का बड़ी मात्रा में उत्पादन किया जाता था जिसमें से सूती दस के उत्पादन में भारत का महत्वपूर्ण स्थान था। भारत में उत्पादित सूत्री वस्त्र की मांग सम्पूर्ण विश्व में थी। भारत खाद्यान्नों की दृष्टि से आत्मनिर्भर था क्योंकि यहाँ की जनसंख्या अत्यधिक न थी. लेकिन कभी-कभी अकाल व सूखा की दशाओं में यहाँ के लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता था। उस समय यूरोप आर्थिक दृष्टि से विकसित नहीं था तथा अमेरिका का विश्व के मानचित्र मे कोई स्थान भी न था। 18वीं शताब्दी के अन्त तक अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार भारत के अनुकूल रहा।








18वीं शताब्दी के बीच में ही ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारत में अपने पैर जमाने शुरू किए। व्यापार करने के उद्देश्य से इस कम्पनी ने 19वीं शताब्दी के मध्य तक भारत के एक बहुत बड़े भू भाग पर अधिकार जमा लिया। तत्पश्चात् इंग्लैण्ड के शासको ने भारत के लघु एवं कुटीर उद्योगों को नष्ट करना आरम्भ कर दिया, परिणामस्वरूप इंग्लैण्ड की बनी वस्तुएं भारत में बिकने लगी। राजदरबारों की समाप्ति तथा भारत के सम्पन्न वर्ग में पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में वृद्धि होने के परिणामस्वरूप विदेशी वस्तुओं की मांग में और भी वृद्धि हुई। इसके अतिरिक्त भारत से कोयला व खनिज आदि का निर्यात किया जाने लगा।
भारत का विदेशी व्यापार
19वीं शताब्दी के मध्य से भारत का विदेशी व्यापार में तो वृद्धि हुई किन्तु इस प्रवृत्ति के कारण भारत कचे माल का निर्यातक और निर्मित माल का आयातक बन गया। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि भारत से कच्चा माल जाने लगा और तैयार माल आने लगा। हस्तकला के नष्ट होने के पश्चात भारत में बेरोज़गारी छा गई तथा बार-बार अकाल पड़ने के कारण भारत की स्थिति काफी निर्बल हो गयी। परिणामस्वरूप देशवासी प्राकृतिक साधनों के विदोहन हेतु पूँजी लगाने में असमर्थ थे।
देश में आधुनिक प्रकार के उद्योगों का आरम्भ 19वीं शताब्दी के चतुर्थाश में हो गया किन्तु स्वतन्त्रता से पूर्व तक भारत अपनी अधिकांश आवश्यकताओं के लिए आयात पर निर्भर करता था। स्वतन्त्रता के पश्चात् नियोजित आर्थिक विकास के कार्यक्रमों की क्रियान्विति हेतु बड़े संयन्तों, लौह धातुओं व अन्य महत्वपूर्ण खनिजो जो देश में उपलब्ध नहीं थे, भारी इंजीनियरिंग वस्तुयें समय-समय पर अकाल से निपटने के लिए खाद्यान्नी का आयात करना पड़ा। लेकिन स्वतन्त्रता के बाद भी भारत का कुछ निर्यातों में महत्वपूर्ण स्थान रहा जैसे- चाय जूट तथा सूती वस्त्र आदि।
सितम्बर 1949 में भारतीय रुपये का अवमूल्यन 30.5% किया गया। किन्तु इसका कोई वांछित परिणाम प्राप्त न हो सका। इसके विपरीत यहाँ की आयात सम्बन्धी आवश्यकताओं में वृद्धि होती जा रही थी। परिणामस्वरूप प्रथम पंचवर्षीय योजना काल से ही भारत के व्यापार सन्तुलन की सीव्रता से वृद्धि होती जा रही थी। सन् 1950-51 से 1995-96 के मध्य भारत के निर्यातों में वृद्धि हुई ये 606 10 करोड़ रू० से बढ़कर 1.22,678 करोड़ रू० के हो गए। कुल मिलाकर इन 45 वर्षों में भारत के निर्यातों में 175 गुना वृद्धि हुई। इस प्रकार आयात लगभग 200 गुने हो गए।
1991 में आर्थिक उदारीकरण के तुरन्त बाद भारत सरकार द्वारा 1992-97 के लिए तत्पश्चात 1997-2002 के लिए आयात-निर्यात की घोषणा की गई। अतः भारत का विदेशी व्यापार में आयात व निर्यात नीति में तीव्र गति से वृद्धि हुई। आप भारत का विदेशी व्यापार Hindibag पर पढ़ रहे हैं।
प्राचीनकाल से ही भारत विदेशी व्यापार में सलग रहा है। जहां अनेक वस्तुए देश विदेश को गई है वहां अनेको वस्तुए भारत लायी भी गई है। स्वतन्त्रता से पूर्व भारत के आयातों में निर्मित वस्तुओं की अधिकता थी परन्तु स्वतन्त्रता के पश्चात् इसमें कुछ परिवर्तन हुआ तथा इनको एक निश्चित दिशा प्रदान की गई। द्वितीय विश्व युद्ध होने के पहले तक यहाँ के आयात व्यापार में उपभोक्ता पदार्थों, जैसे- सूती बस, चीनी व सिगरेट आदि की अधिकता रहती थी, अब अधिकाशत: भारत में पूँजीगत गाल जैसे- मशीने, धातु पदार्थ रासायनिक पदार्थ, यन्त्र उपकरण आदि की प्रधानता है।
भारत का विदेशी व्यापार विशेषताएं
वर्तमान समय में भारत का विदेशी व्यापार की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित है-
- जिन देशों से अत्यधिक आयात किया जाता है वे निम्न है -फास, अरब, अमेरिका, रूस, जर्मनी, जापान तथा ब्रिटेन आदि।
- हमारे देश में आयात का सबसे पहला देश अमेरिका व तत्पश्चात् ब्रिटेन है।
- बड़े रेशे की रुई और सूत का आयात भी स्वतन्त्र व्यापार की एक मुख्य विशेषता है।
- हमारे देश में खाद्यान्न का स्थान भी महत्वपूर्ण है जबकि इसमें उतार-चढ़ाव होते रहते हैं।
- परम्परागत आयात वस्तुओं का आयात भी विगत वर्षों में बढ़ता गया है।
- इन सभी में पूंजीगत पदार्थों का स्थान सर्वोपरि है।
भारत का विदेशी व्यापार – आयात वस्तुएं
भारत में प्रमुख रूप से वस्तुओं के आयात का विवरण इस प्रकार है-
क्रम संख्या | वस्तुएं | भारत का विदेशी व्यापार – वस्तु के आयात का विवरण |
1 | खाद्यात्र | हमारे देश में खाद्यान्नों का आयात होता है जबकि हमारा देश कृषि प्रधान है इसका मुख्य कारण यह है कि जनसंख्या का घनत्व ज्यादा है। आयातित खाद्यान्नों में मुख्यतः गेहूँ और चावल होते हैं किन्तु कुछ मात्रा में जो, बाजरा, मक्का, ज्यार और दाल भी होती है। परन्तु वर्तमान समय में इस आयात की मात्रा धीरे-धीरे कम होती जा रही है। |
2 | खनिज तेल | हमारे देश में प्रारम्भ से ही खनिज तेलों का आयात किया जाता रहा है। इसमें मिटटी का तेल, डीजल व विमान तेल आदि शामिल हैं। इन आयातों में स्वतन्त्रता के बाद निरन्तर वृद्धि होती आयी है। इसका मुख्य कारण परिवहन का विकास है क्योंकि वायुयान, रेले, मोटर व समुद्री जहाज सभी तेलों से ही चलते है। भारत का विदेशी व्यापार |
3 | मशीनें | मशीने आयात करने वाला देश उन्नतिशील देश माना जाता है। इसको भारत का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि यहाँ अभी तक मशीनों का उद्योग नहीं है। अतः भारत को बड़ी मात्रा में मशीनो का आयात करना पड़ता है। विगत कुछ वर्षों में पंचवर्षीय योजनाओं में औद्योगीकरण की नीति को अपनाने के कारण भारत में बड़ी संख्या में मशीनों का आयात हुआ है। भारत में अधिकांश ग्रेट ब्रिटेन, अमेरिका, पश्चिमी जर्मनी, रूस, जापान और पूर्वी यूरोप के देशों से मशीने आयात होती है। |
4 | कपास | भारत में मोटे रेशे वाली कपास का उत्पादन होता है जबकि उच्चकोटि का कपड़ा तैयार करने के लिए अच्छी किस्म की कपास की आवश्यकता होती है। अतः इसे संयुक्त राज्य अमेरिका, संयुक्त अरब गणराज्य, सूडान तथा पाकिस्तान से आयात किया जाता है। कपारा के अतिरिक्त भारत न्यूजीलैण्ड और आस्ट्रेलिया से ऊन का आयात करता है। जूट बांग्लादेश से व रेशम संयुक्त राज्य अमेरिका व जापान से आयात किया जाता है। |
5 | लोहा व इस्पात | भारत मे अभी तक इस्पात स्वावलम्बी नहीं हो पाया है। वर्तमान समय में बढ़ते हुए उद्योगों के कारण देश में लोहा व इस्पात की माँग अत्यधिक बढ़ गई है। अतः हमे बराबर विदेशों से लोहा व इस्पात का आयात करना पड़ता है। वर्तमान समय में हमारे देश में पश्चिमी जर्मनी, अमेरिका तथा ग्रेट ब्रिटेन से लोहा व इस्पात का आयात किया जा रहा है। |
6 | मेवे व फल | भारत 45 करोड़ रु० मूल्य के फल व मेवे विदेशों से आयात करता है। इसमें काजू मुख्य है। अन्य मेवे में बादाम, खजूर, अंगूर, सेब, गोला, मुनक्का, मुरब्बा व किसमिश आदि है। (भारत का विदेशी व्यापार) |
7 | रासायनिक पदार्थ | भारत में लगभग 500 करोड़ रु० के मूल्य के रासायनिक पदार्थ विदेशों से आयात किए जाते हैं, जिनमें अमोनिया सल्फेट, बोरिक एसिड, साइट्रिक एसिड, एसेटिक एसिड आदि है। इनका आयात मुख्य रूप से अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, फ्रांस, बेल्जियम कीनिया व स्वीडन आदि देशों से होता है। इन आयातों को कम करने के लिए देश में रासायनिक पदार्थों का उपयोग दिन-प्रतिदिन कम किया जा रहा है। |
8 | औषधि | भारत में औषधियों का आयात भी किया जाता है। अतः यहाँ पर औषधियों के उत्पादन को बढ़ाने के प्रयत्न किए जा रहे है तथा आयुर्वेद प्रणाली का भी विकास किया जा रहा है। फिर भी आत्मनिर्भरता तक पहुँचने के लिए हमे समय लगेगा फलस्वरूप आयुर्वेद का आयात मुख्यतः ब्रिटेन,अमेरिका, जापान, पश्चिमी जर्मनी आदि देशों से किया जाता है। |
9 | उपकरण | भारत में इनका आयात मुख्यतः ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, पश्चिमी जर्मनी, रूस, जापान आदि देशों से किया जाता है। इसमें चिकित्सा सम्बन्धी यन्त्र फोटो सम्बन्धी यन्त्र और सिनेमा की फिल्म आदि शामिल है। |
10 | उर्वरक | कृषि उत्पादन की दिशा में किये जाने वाले प्रयत्नों के परिणामस्वरूप भारत को बड़ी मात्रा में उर्वरकों का आयात करना पड़ता है। ये मुख्यतः ब्रिटेन, जर्मनी, इटली और नीदरलैण्ड से आयात किए जाते हैं। |
11 | पेन्ट व पेन्टिंग का सामान | इसमें तारपीन का तेल वार्निश व ग्रेफाइट का भी आयात किया जाता है। यह आयात मुख्यतः ग्रेट ब्रिटेन, जर्मनी व संयुक्त राज्य अमेरिका से किया जाता है। वर्तमान समय में इसका उत्पादन बढ़ाया जा रहा है। भविष्य में इसके आयात पर कभी होने की सम्भावना है। |
12 | कागज व दफ्ती | कागज में दफ्ती, किताबें छापने का कागज, पैकिंग पेपर आदि आयात किया जाता है तथा सबसे अधिक अखबारी कागज का आयात होता है। इनका आयात मुख्यतः आस्ट्रेलिया, कनाडा, ग्रेट ब्रिटेन, चीन, स्वीडन व फिनलैण्ड आदि से होता है। |
13 | वनस्पति तेल | इसमें अलसी, जैतून, ताड़ और गोले के तेल सम्मिलित है। देश में अलसी का तेल नावें व पाकिस्तान से, जैतून का तेल इटली व फ्रास से ताड़ का तेल सिगापुर से व गरी का तेल श्रीलंका व सिंगापुर से आयात किया जाता है। |
14 | परिवहन उपकरण | रेल-इजन, डिब्बे, सवारी डिब्बे, मोटरकार, बसे, पुर्जे, जीप, कार मोटर साइकिल, हवाई जहाज व स्कूटर आदि परिवहन सम्बन्धी वस्तुए भारी मात्रा में विदेशों से आयात की जाती है। इनका आयात मुख्यतः ब्रिटेन, पश्चिमी जर्मनी, स्खिरा, संयुक्त राज्य अमेरिका, कीनिया आदि से होता है। |
15 | सूत व डोरे | भारत में लगभग 4 करोड़ रू० के प्रतिवर्ष विशेष सूत के डोरे आयात किए जाते हैं। यह आयात मुख्यतः पश्चिमी, जर्मनी, इटली, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका व स्विस आदि देशो से किया जाता है। भारत का विदेशी व्यापार |
16 | रंग व रंगाई का सामान | तारकोल के रंग, चमड़ा रंगने का पदार्थ तथा अन्य रंगों का भारत आयात करता है। प्रतिवर्ष लगभग 20 करोड़ रू० के रंगों का यहाँ आयात होता है। इनका आयात मुख्यतः ब्रिटेन, पश्चिमी जर्मनी, संयुक्त राज्य अमेरिका व कीनिया आदि देशों से किया जाता है। |