भारतीय समाज का बालक पर प्रभाव – बालक जब समाज में जन्म लेता है तो वह एक असहाय प्राणी होता है। बालक का विकास समाज की प्रकृति और स्वरूप पर निर्भर करता है। बालक का विकास उसकी शिक्षा और समाज द्वारा ही होता है। इसलिए समाज की प्रकृति व स्वरूप बालक की शिक्षा व विकास को प्रभावित करते हैं। परिवार समुदाय व राज्य सभी समाज का ही भाग होते हैं। बालक की प्रथम पाठशाला उसका परिवार ही है। उसके उपरांत ही अन्य संस्थाएं उसके विकास व शिक्षा की व्यवस्था करते हैं।
भारतीय समाज का बालक पर प्रभाव
बालक के व्यक्तित्व के विभिन्न अंगों पर भारतीय समाज का प्रभाव निम्न प्रकार दृष्टिगोचर होता है।
- बालक के शारीरिक विकास पर प्रभाव
- बालक के मानसिक विकास पर प्रभाव
- बालक के आध्यात्मिक विकास का प्रभाव
- बालक के संवेगात्मक और सौंदर्यात्मक विकास पर प्रभाव
- बालक के सामाजिक विकास पर प्रभाव
- पारिवारिक विघटन का प्रभाव
- अपराधों का प्रभाव
- गरीबी और बेरोजगारी का प्रभाव
- सामाजिक बुराइयों का प्रभाव
- दूषित राजनीति का प्रभाव

1. बालक के शारीरिक विकास पर प्रभाव
आजकल विद्यालयों में बालक के शारीरिक विकास के लिए अनेक प्रयत्न किए जाते हैं; जैसे खेलकूद, व्यायाम, स्काउटिंग एंड गर्ल गाइडिंग, एनसीसी एनएसएस आदि के माध्यम से बालकों को अपना शारीरिक विकास करने के अवसर प्रदान किए जाते हैं। समय-समय पर युवक महोत्सव और युवक कल्याण के आयोजन किए जाते हैं। लेकिन हमारे देश के बालक इन सुविधाओं से अपेक्षित लाभ नहीं उठा पाते।
वे इन उपयोगी कार्यक्रमों में भाग न ले कर बोतल या पार्क में बैठकर सिनेमा हॉल में अश्लील फिल्में देखकर सस्ती और असली रूप से बढ़कर और भत्ते और कामुक गानों को सुनने में अपना समय नष्ट करते हैं। टीवी पर दिखाए जाने वाले विभिन्न चैनलों के कार्यक्रमों में भी बालकों को बहुत प्रभावित किया है। आज बालकों में धूम्रपान मदिरापान और मादक वस्तुओं के सेवन का प्रचार कर रहा है। इन सब बातों से बालकों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है और उनका उचित ढंग से शारीरिक विकास नहीं हो पाता। आप भारतीय समाज का बालक पर प्रभाव लेख Sarkari Focus पर पढ़ रहे हैं।
2. बालक के मानसिक विकास पर प्रभाव
सरकार ने बालकों की शिक्षा के लिए अनेक उच्च विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय, तकनीकी संस्थान, इंजीनियरिंग कॉलेज, मेडिकल कॉलेज, कृषि कॉलेज, कृषि विश्वविद्यालय तथा अनेक शिक्षण संस्थाओं की व्यवस्था की है। कोई भी बालक अपनी योग्यता क्षमता बौद्धिक स्तर पर रूचि के अनुसार इन शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश ले सकता है। सरकार ने प्राथमिक स्तर पर अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा प्रदान करने के लिए व्यवस्था की है। अनेक राज्य सरकारों ने माध्यमिक शिक्षा को भी निशुल्क कर दिया है। इस प्रकार भारतीय समाज में प्रत्येक बालक को अपनी मानसिक विकास के पूर्ण अवसर प्राप्त हुए हैं।

लेकिन फिर भी हमारे बालक उनसे अपेक्षित लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। समाज की कुछ ऐसी विघटनकारी प्रतियां है जो बालक के व्यक्तित्व के विकास को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित कर रही है। शिक्षा इतनी महंगी हो गई है कि बालक इसका लाभ नहीं उठा पाते।
भारत के अधिकांश जनसंख्या निर्धन है और यह निर्धन लोग शिक्षा कि इन सुविधाओं का समुचित उपयोग नहीं कर पाते। विद्यालयों में बालकों को विषय का ज्ञान पूर्ण रूप से नहीं दिया जाता वरन केवल सूचनाएं मात्र दी जाती है जिसको चिंतन मनन तर्क और कल्पना शक्ति के विकास के लिए अवसर नहीं दिए जाते। नए-नए अनुभव प्राप्त करने के लिए क्रियात्मक और सृजनात्मक क्रियाएं नहीं कराई जाती। आज की शिक्षा में परीक्षा प्रधान प्रणाली का बाहुल्य बना हुआ है। ऐसी परिस्थितियों में बालकों का मानसिक विकास नहीं हो पाता।
3. बालक के आध्यात्मिक विकास का प्रभाव
बालक के आध्यात्मिक और नैतिक विकास में धर्म और नैतिकता का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। पहले भारतीय समाज का वातावरण आध्यात्मिक और नैतिक विकास के लिए अत्यंत उपयुक्त था। शिक्षा का उद्देश्य व्यक्तित्व के अन्य पक्षों के विकास के साथ-साथ बालक का आध्यात्मिक और नैतिक विकास कराना भी था। बालक को प्रारंभ से ही ऐसे वातावरण प्रदान किया जाता था। जिसमें रहकर वह अपना आध्यात्मिक विकास कर सकता था।

लेकिन आज के भौतिकवादी भारतीय समाज में धार्मिक और नैतिक मूल्यों का कोई स्थान नहीं है। आज हमारा समाज पाश्चात्य सभ्यता संस्कृति और मूल्यों को बुरी तरह से प्रभावित है। औद्योगिकरण, मशीनीकरण, नगरीकरण, समाज में भ्रष्टाचार, बेईमानी, स्वार्थपरता का बोलबाला है। आज भारतीय समाज आध्यात्मिक दृष्टि से पतन की ओर अग्रसर है।
4. बालक के संवेगात्मक और सौंदर्यात्मक विकास पर प्रभाव
आज की शिक्षा बालक के संवेगात्मक और सौंदर्यात्मक विकास करने में असमर्थ है। विश्व भारती जैसी को संस्थाओं को छोड़कर कोई भी अन्य संस्था इस ओर ध्यान नहीं दे रही है। इसका कारण यही है कि हमारे समाज ने इसके महत्व को नहीं समझा है। हमारे शिक्षा के पाठ्यक्रम में ऐसी क्रियाओं और विषयों का सर्वथा अभाव है जो बालक के अंदर इन बातों का विकास कर सकती है।

5. बालक के सामाजिक विकास का प्रभाव
बालक के सामाजिक विकास पर समाज का बहुत प्रभाव पड़ता है। समाज के सदस्यों के पारस्परिक संबंध समाज के सदस्यों का दृष्टिकोण समाज के मूल्य आदर्श उनके निवास रहन-सहन परंपराएं बालक पर गहरा प्रभाव डालती है। समाज के द्वारा बालक को सामूहिक जीवन की शिक्षा दी जाती है और उनमें प्रेम, सहयोग, सहकार, परोपकार आदि अच्छी आदतें विकसित की जाती है। लेकिन आज हमारे समाज का वातावरण दूषित है आज धन को ही सब कुछ मान लिया गया है। लोग एक दूसरे से प्रेम, सहयोग, सहकार आदि नहीं रखते।
हमारे समाज के सदस्यों का दृष्टिकोण उनके आदर्श और मूल्य स्वार्थ पर आधारित है। ऐसे वातावरण में बालक का सामाजिक विकास नहीं हो सकता है। आप भारतीय समाज का बालक पर प्रभाव लेख Sarkari Focus पर पढ़ रहे हैं।
6. पारिवारिक विघटन का प्रभाव
औद्योगिकरण और नगरीकरण के कारण आप भारत में तेजी से पारिवारिक विघटन हो रहा है। संयुक्त परिवार टूट रहे हैं। यह काफी परिवारों का वातावरण भी तनाव संगठन और झूठी मान मर्यादा और खोखले आदर्शों से युक्त है।
धन की लालसा में माता-पिता दोनों का नौकरी करना भी आज के परिवारों की एक प्रमुख विशेषता है। परिवार के ऐसे वातावरण में बालक वह शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते जो उन्हें मानवीय संवेदनाएं पैदा हूं और जिससे वह अपने व्यक्तित्व को संतुलित विकास कर सकें।

7. अपराधों का प्रभाव
समाज में नैतिक और धार्मिक मूल्यों के पतन के कारण अपराध की प्रवृतियां बढ़ रही है चोरी, डकैती, राहजनी, बलात्कार आदि अपराध दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। जरा जरा सी बातों पर एक दूसरे की हत्या करना आज सामान्य सी बात हो गई है। अब शिक्षा संस्थाओं के अंदर भी इसी प्रकार की घटनाएं दिन पर दिन होती रहती है। समाज के इस दूषित अनुशासन हीन और अनैतिक वातावरण में बालक के आदर्श चरित्र होना असंभव है।
8. गरीबी और बेरोजगारी का प्रभाव
हमारे देश में सामाजिक वर्गों की आर्थिक स्थिति भी अत्यंत दयनीय है। लोगों को दोनों समय खाना खाने को भोजन नहीं पहनने को कपड़ा नहीं रहने को मकान में बीमारियों को दूर करने के लिए दवाई नहीं और शिक्षा प्राप्त करने के लिए सुविधाएं नहीं है। ऐसे वातावरण में बालक अपना विकास किस प्रकार कर सकते हैं। ऐसे समाज में जहां गरीबी का अभाव गरीबी अशिक्षा और बेरोजगारी का साम्राज्य आदर्शों मूल्यों और सिद्धांतों की कल्पना करना व्यर्थ है।

9. सामाजिक बुराइयों का प्रभाव
भारतीय समाज में कुरीतियों, कुप्रथाओं और बुराइयों का बोलबाला है समाज के अधिकांश लोग उनके अनुसार अपना जीवन यापन करते हैं देश के ग्रामीण अंचल में या बुराइयां और अंधविश्वास और भी अधिक है इन सब का प्रभाव बालक के ऊपर भी पड़ता है और उसके स्वस्थ और संतुलित विकास में बाधा पड़ती है।
10. दूषित राजनीति का प्रभाव
भारत के राजनीतिक दल किसी प्रकार सत्ता प्राप्त करना चाहते हैं और उसके लिए कोई भी उचित और अनुचित वांछनीय और अवांछनीय और अहितकर साधन को अपनाने के लिए संकोच नहीं करते। अपनी स्वार्थों की पूर्ति के लिए विद्यार्थियों का भी प्रयोग करते हैं। हमारे देश के ऐसी दूषित राजनीति कुप्रभाव बालकों पर स्पष्ट रूप से पड़ रहा है।