भक्तिकालीन ब्रज साहित्य – ब्रजभाषा एक सुधीर अवधि तक इस देश की काव्य भाषा के रूप में प्रतिष्ठित रही और इसी के अनुपात में ब्रज भाषा साहित्य भी प्रचुर मात्रा में रचा गया। ब्रजभाषा में रचित काव्य को हम कालक्रम की दृष्टि से तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं-
- भक्तिकालीन ब्रज साहित्य
- रीतिकालीन ब्रज साहित्य
- आधुनिककालीन ब्रज साहित्य
भक्तिकालीन ब्रज साहित्य का विकास
ब्रजभाषा का काव्य भाषा के रूप में विशुद्ध प्रयोग 16 वी शताब्दी से ही प्रारंभ हो गया था परंतु 1519 में महाप्रभु वल्लभाचार्य द्वारा गोवर्धन के श्रीनाथजी के मंदिर में नित्य कीर्तन व्यवस्था के साथ ही ब्रजभाषा की काव्य रचनाएं अपने शुद्ध रूप में सामने आने लगी। सूरदास, नंददास, कृष्णदास, कुंभन दास परमानंद दास, चतुर्भुज दास तथा गोविंद स्वामी जैसे अष्टछाप के कवियों ने कृष्ण लीलाओं का गान ब्रजभाषा के माध्यम से किया। जिससे इस भाषा को साहित्यिकता तथा लोकप्रियता दोनों प्राप्त हुई।
इस कथन की पुष्टि करते हुए, डॉ ब्रजेशशेखर वर्मा ने लिखा है कि “भाषा की दृष्टि से अष्टछाप के कवियों से पहले ब्रजभाषा में रचना करने वाले किसी भी कवि का परिचय इतिहास में नहीं मिलता। नामदेव की ब्रजभाषा परिवर्तित रूप में हमारे सामने आती है। अतः अष्टछाप का प्रथम वर्ग ही ब्रजभाषा का आदि कवि वर्ग है और उसमें भी सर्वाधिक महत्व सूर का है।”

सूरदास ने ब्रजभाषा का जो प्रांजल रूप अपने काव्य में प्रस्तुत किया उस पर टिप्पणी करते हुए आचार्य शुक्ला ने कहा है कि “किसी चलती हुई परंपरा का यह विकसित रूप है सूरदास में ब्रज भाषा का प्रयोग प्रयोग अपने काव्य में किया है। अचानक ही भाषा का इतना प्रौढ़ होना इस बात का संकेत करता है कि ब्रजभाषा का कोई रूप पहले अवश्य ही रहा होगा भले ही वह मौखिक ही रहा हो।”
ब्रजभाषा को सूरदास ने इतना लोकप्रिय बना दिया कि तुलसी जैसे अवधि के मूल तथा सशक्त कवि को भी ब्रजभाषा में रचना करने के लिए विवश होना पड़ा। नरोत्तम दास ने सुदामाचरित में तथा नाभा दास ने भक्तमाल में साहित्यिक ब्रजभाषा का सुंदर प्रयोग 16वीं शताब्दी में किया। तत्पश्चात केशवदास ने रामचंद्रिका, रसिकप्रिया, कविप्रिया जैसी कृतियों को ब्रज भाषा में लिखा। इस समय तक ब्रजभाषा व्यापक रूप में प्रतिष्ठित हो चुकी थी और इसका विस्तार ब्रिज प्रदेश के बाहर तक भी हो गया था।
भक्तिकालीन ब्रज साहित्य
भक्तिकाल में मुख्यतः कृष्ण भक्ति धारा के कवियों ने ब्रज भाषा में अपनी रचनाएं प्रस्तुत की। इन कवियों में अष्टछाप के कवि प्रमुख हैं। अष्टछाप के कवियों में सूरदास, नंददास, कृष्णदास, कुंभनदास, परमानंददास, चतुर्भुज दास, गोविंद स्वामी तथा छीतस्वामी सम्मिलित हैं। सूरसागर, साहित्य लहरी तथा सूरसारावली सूरदास के तीन महत्वपूर्ण ग्रंथ है। सूरदास ने सूरसागर में कृष्ण लीलाओं का वर्णन भगवत पुराण के आधार पर किया है।

भ्रमरगीत प्रसंग भी इसी के अंतर्गत आता है जबकि साहित्यलहरी सूरदास का रीति निरूपक ग्रंथ है। कुंभनदास की पद रचना में यद्यपि साहित्यिक संस्था नहीं है परंतु संगीत तथा लय का अनूठा सौंदर्य इसमें विद्यमान है। परमानंद दास भी अष्टछाप के प्रमुख कवियों में से एक हैं। उनकी रचनाओं का संकलन परमानंद सागर तथा परमानंद के पद में हुआ है। आप भक्तिकालीन ब्रज साहित्य Hindibag पर पढ़ रहे हैं।
यद्यपि कुंभन दास का कोई ग्रंथ उपलब्ध नहीं है परंतु उनके फुटकर पद उपलब्ध हैं। यद्यपि गुजराती इनकी मातृभाषा थी परंतु ब्रजभाषा पर इनका पूर्ण अधिकार था। इसी प्रकार अष्टछाप के कवियों में नंददास का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। यह काव्य सौष्ठव तथा भाषा प्रांजलता की दृष्टि से सूरदास के समकक्ष माने जाते हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी नंददास ने अनेक ग्रंथों की रचना की है जिनमें अनेकार्थ मंजरी, मान मंजरी, रसमंजरी, रूपमंजरी, विरहमंजरी, सुदामाचरित, श्याम सगाई, भंवरगीत, रास पंचाध्याई, गोवर्धन लीला आदि विशेष उल्लेखनीय है।

अष्टछाप के कवियों के अतिरिक्त भी ब्रज भाषा में लिखे गए कृष्ण काव्य की एक लंबी श्रृंखला है। श्री भट्ट निंबार्क संप्रदाय के अनुयाई थे। इनकी एक प्रसिद्ध रचना युगल शतक है। जो ब्रज भाषा में लिखी गई है। इसमें कुल 100 पद है तथा प्रत्येक पद के पहले उसके मूल भाव को व्यक्त करने वाला एक दोहा भी है। हरिदेव व्यास भी निंबार्क संप्रदाय के दीक्षित कवि थे इन्होंने महावारी नामक ग्रंथ की रचना बृज भाषा में की जो निंबार्क संप्रदाय की रसीद परंपरा का आधार ग्रंथ है। आप भक्तिकालीन ब्रज साहित्य Hindibag पर पढ़ रहे हैं।
ध्रुव दास ने कुल 42 ग्रंथों की रचना की है जिसमें जीवन दशा लीला, भजनास्तक लीला, रस विहार लीला, ब्रज लीला, नित्य विलास लीला, दान लीला आदि प्रमुख है। भक्ति परंपरा के कवियों में मीराबाई का प्रमुख स्थान है। नरसी जी का मायरा, राग सोरठा तथा स्फुटपद नाम से इनके संकलन मिलते हैं। कृष्ण प्रेम की दीवानी मीरा की रचनाओं में कृष्ण के प्रति भक्ति भावना सर्वत्र देखी जा सकती है। यद्यपि इनकी भाषा राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा है।
