बोध स्तर शिक्षण के 7 गुण 5 दोष व 11 सुझाव

बोध स्तर शिक्षण स्मृति स्तर के शिक्षण की तुलना में अधिक विचार युक्त माना जाता है इसलिये मानसिक शक्तियों एवं बौद्धिक क्षमताओं हेतु स्मृति स्तर की अपेक्षा उच्च स्तर की आवश्यकता होती है। बोध शब्द को शिक्षण के क्षेत्र में कई अलग-अलग अर्थों में प्रयुक्त किया जाता है. कुछ प्रमुख अर्थ इस प्रकार से हैं-

  1. तथ्यों का स्पष्ट बोध एवं अनुभूति होना।
  2. तथ्यों की गहनता को समझना, उसकी प्रकृति एवं स्वभाव से परिचित होना।
  3. अर्थ का प्रत्यक्षीकरण करना एवं विचारों को समझना।
  4. भाषा में प्रयुक्त होने वाले अर्थ को समझना ।

शिक्षा मनोविज्ञान में बोध को परिभाषित करने के उपरोक्त अर्थ पूर्ण रूपेण सक्षम नहीं हो पाते है। इसलिये शिक्षाशास्त्र में बोध शब्द को निम्नलिखित तीन पक्षों में स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है-

  1. तथ्यों में सम्बन्ध देखना।
  2. एक तथ्य के लिये यन्त्र का प्रयोग करना।
  3. दोनों का समन्वय करना तथा यन्त्रों का प्रयोग करना।

बोध स्तर शिक्षण

बोध स्तर शिक्षण को परिभाषित करते हुये मौरिस एल. विग्गी ने अपनी पुस्तक “शिक्षकों के “लिये अधिगम सिद्धान्त’ में कहा है कि- बोध स्तर का शिक्षण वह है “जो विद्यार्थियों को सामान्यीकरण तथा विशिष्ट या दूसरे शब्दों में सिद्धान्त तथा अलग-अलग तथ्यों के बीच पाये जाने वाले सम्बन्धों से परिचित कराने का प्रयास करता है और यह भी बताता है कि सिद्धान्तों का किस तरह से व्यावहारिक उपयोग किया जा सकता है।”

बोध स्तर शिक्षण वह प्रक्रिया है जिसमें छात्रों को सामान्यीकरण सिद्धान्तों तथा तथ्यों के सम्बन्ध बोध कराया जाता है। स्मृति स्तर का शिक्षण इसकी प्राथमिक आवश्यकता है। छात्रों में नियमों को पहचानने, समझने तथा प्रयोग करने की क्षमता का विकास होता है, जिससे शिक्षण अर्थपूर्ण हो जाता है। बोध स्तर का शिक्षण बौद्धिक व्यवहारों के विकास के अधिक अवसर प्रदान करता है। इसमें बौद्धिक व्यवहारों को प्रोत्साहित किया जाता है। छात्र एवं शिक्षक दोनों क्रियाशील रहते हैं।

बोध स्तर शिक्षण पर निम्नलिखित मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों एवं विचारों का पर्याप्त प्रभाव देखा जा सकता है-

  1. हरबर्ट के संचित ज्ञान संबंधी अधिगम सिद्धान्त तथा पंचपदीय शिक्षण प्रणाली के अनुकूल ही बोध स्तर के शिक्षण में नवीन ज्ञान को पुराने ज्ञान से जोड़कर इस प्रकार देने की कोशिश की जाती है कि विद्यार्थियों को क्रमबद्ध ढंग से ज्ञान संचय करने में सुगमता रहे।
  2. बोध स्तर के शिक्षण में गेस्टाल्टवादी सूझ के सिद्धान्त का प्रभाव तथ्यों के समग्र अवलोकन तथा तथ्यों में समानता असमानता देखने में दिखाई देता है।

बोध स्तर शिक्षण के लिये प्रयुक्त शिक्षण विधियाँ

बोध स्तर शिक्षण में ऐसी शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाता है जो ज्ञानात्मक उद्देश्यों की पूर्ति के साथ-साथ बोधात्मक उद्देश्यों के प्राप्ति में पूर्णरूपेण सहायक हों। शिक्षक तथा विषय केन्द्रित होने के बावजूद उनके द्वारा विद्यार्थियों में अर्जित ज्ञान को अच्छी तरह समझने और आवश्यकता के अनुसार उनका प्रयोग करने की क्षमता का विकास भी हो जाये।

इस दृष्टिकोण से व्याख्या विधि को प्रदर्शन विधि से जोड़कर तथा वर्णन विधि को प्रश्नोत्तर विधि से मिलाकर प्रयोग में लाना श्रेयकर होता है। इसके साथ-साथ आगमन-निगमन विधि, विश्लेषण-संरलेषण विधि का संयुक्त रूप में प्रयोग इस स्तर के शिक्षण के लिये उचित होता है।

बोध स्तर शिक्षण के गुण

बोध स्तर शिक्षण में निम्नलिखित गुणों का समावेश होता है-

  1. बोध स्तर के शिक्षण द्वारा प्राप्त ज्ञान अधिक प्रभावशाली तथा स्थाई होता है। इसे अधिक समय तक याद रखना एवं आवश्यकतानुसार प्रस्तुत करने में स्मृति स्तर के शिक्षण से ज्यादा सफलता प्राप्त होती है।
  2. इस शिक्षण के प्रतिमान से विषय वस्तु का बोध गहनता से कराया जा सकता है तथा इससे प्राप्त ज्ञान शुद्ध अधिगम होता है।
  3. इस स्तर के शिक्षण में अलग-अलग तथ्य सम्बन्धी ज्ञान के स्थान पर उसके सामान्यीकृत रूप को ग्रहण करने पर बल देता है। इस प्रकार के सामान्यीकृत निष्कर्ष, नियम, सिद्धान्त विद्यार्थियों के जीवन में अनेक स्थान पर उपयोगी सिद्ध होते हैं।
  4. बोध स्तर का शिक्षण विद्यार्थियों को सीखने के कार्य में अपनी बुद्धि तथा विचार प्रक्रिया को प्रयोग करने का पूरा अवसर देता है।
  5. इस स्तर का शिक्षण विद्यार्थियों को उनकी मानसिक शक्तियों का उपयोग एवं विकास का अवसर देता है।
  6. बोध स्तर के शिक्षण के द्वारा छात्रों में आवश्यक चिन्तन-मनन तथा समस्या समाधान की क्षमता उत्पन्न हो पाती है जिससे वह अपने व्यावहारिक जीवन की समस्याओं को सुलझा सकते हैं।
  7. इस स्तर के शिक्षण में पाठ्यवस्तु पाठ्यक्रम शिक्षण-अधिगम व्यवस्था आदि पूर्ण रूपेण नियोजित क्रमबद्ध एवं सुव्यवस्थित रहती है जिससे छात्रों को औपचारिक शिक्षण प्रक्रिया में सहायता मिलती है।

बोध स्तर शिक्षण के दोष

बोध स्तर शिक्षण में निम्नलिखित दोष भी पाये जाते हैं-

  1. इस स्तर के शिक्षण का प्रमुख दोष यह है इसमें मानवीय व्यवहारों पर ध्यान नहीं दिया जाता बल्कि पाठ्यवस्तु के स्वामित्व पर ही महत्त्व दिया जाता है।
  2. बोध स्तर का शिक्षण भी स्मृति स्तर के शिक्षण की तरह शिक्षक व पाठ्य वस्तु पर केन्द्रित रहता है। सूझ-बूझ की उत्पत्ति भी शिक्षक द्वारा प्रदत्त समझ से होती है न कि विद्यार्थियों के अपने स्वयं के प्रयासों द्वारा।
  3. बाह्य अभिप्रेरणा होने के कारण छात्रों में स्वाभाविक रुचि, जिज्ञासा उत्साह तथा सच्ची लगन का अभाव पाया जाता है। इन गुणों के लिये आन्तरिक अभिप्रेरणा आवश्यक है।
  4. शिक्षक का स्थान प्रधान तथा छात्र का स्थान गौण होता है। शिक्षण प्रक्रिया अध्यापक के हाथों में रहती है।
  5. छात्रों को अपने विचारों को व्यक्त करने, स्वयं आगे बढ़कर कुछ सीखने, समझने व प्रयोग करने के लिये अवसर नहीं मिल पाता है जिससे वह शैक्षिक वातावरण नहीं पाता जिसकी आवश्यकता छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिये होती है।
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बोध स्तर शिक्षण के लिये सुझाव

बोध स्तर शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिये शिक्षाविदों ने निम्नलिखित दिये हैं-

  1. स्मृति स्तर का शिक्षण पूरा हो जाने के बाद ही छात्रों को बोध स्तर का शिक्षण दिया जाना चाहिये।
  2. बोध स्तर के सभी चरणों को क्रमबद्धता के आधार पर ही प्रस्तुत किया जाना चाहिये साथ ही इस बात पर पूर्ण ध्यान केन्द्रित किये जाने की आवश्यकता है कि प्रथम चरण की परीक्षा में सफल होने के बाद ही छात्र को अगले चरण में प्रविष्ट किया जाय।
  3. शिक्षकों को इस स्तर के शिक्षण में छात्रों को मनोवैज्ञानिक ढंग से भी अभिप्रेरित करने का प्रयास करना चाहिये।
  4. शिक्षक को कक्षा के आकांक्षा-स्तर को उच्च स्तरीय करने का सदैव प्रयास करना चाहिये।
  5. बोध स्तर की शिक्षण व्यवस्था की समस्याओं को ध्यान में रखकर उसके समाधान का उचित प्रबन्ध किया जाना चाहिये।
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