बेरोजगारी (Unemployment) – जब कोई व्यक्ति किसी भी कार्य को करने की पूर्ण क्षमता व योग्यता रखता हो तथा कार्य करने का इच्छुक भी हो, किन्तु उसे कोई कार्य न मिले तो यह बेरोजगारी कहलाती है। भारतीय अर्थव्यस्था में बेरोजगारी की भीषण समस्या व्याप्त है क्योंकि भारत की जनसंख्या जिस अनुपात में बढ़ रही है, उस अनुपात में भारतीय उद्योगों में वृद्धि नहीं हो रही है।
अतः रोजगार की समस्या उत्पन्न हो जाना स्वाभाविक है। ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी की समस्या और भी अधिक गम्भीर है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में श्रम-शक्ति तो निरन्तर बढ़ रही है किन्तु कृषि जोतों में कोई वृद्धि नहीं होती है और रोजगार के अवसरों में वृद्धि भी न के बराबर होती है। अतः देश के कुल unemployment का 80% भाग village unemployment है।
बेरोजगारी
बेरोजगार वह है, जो काम करना चाहता है, किन्तु जिसे काम नहीं मिलता है। किसी देश में एक निर्धारित अवधि में किसी अर्थव्यवस्था में रोजगार की मात्रा से आशय उस अवधि में काम किये गये मानव घण्टों की संख्या से होता है। यद्यपि बेरोजगारी पूर्णत स्पष्ट धारणा नहीं है फिर यह शब्द व्यापक अर्थ में काम न मिलने की अवस्था को सूचित करता है।
ऐसा कोई व्यक्ति बेरोजगार नहीं कहलायेगा जो रोजगार में तो लगा हुआ है किन्तु लाभप्रद रोजगार में नहीं है। काम में लगे हुए (Employed) और बेरोजगार शब्द सिर्फ उन्हीं व्यक्तियों के सम्बन्ध में इस्तेमाल किये जा सकते हैं, जो रोजगार के लिए मिलते है, जनसंख्या के उस बड़े भाग के सम्बन्ध में नहीं जो काम के लिए नहीं। मिलते जैसे विद्यार्थी बड़ी उम्र के व्यक्ति व घरेलू कार्य में सलग्न महिलाएं आदि।
एक व्यक्ति उस समय बेरोजगार कहलाता है जबकि उसके पास कार्य न हो और वह रोजगार पाने की इच्छा रखता हो।
प्रो. पीगू
बेरोजगार वह है, जो काम करना चाहता है, किन्तु जिसे काम नहीं मिलता है।
World Development Report, 1955
रोजगार पाने की इच्छा को सामान्य दैनिक कार्य घण्टों पायी जाने वाली मजदूरी दरों और एक व्यक्ति की समस्या स्वास्थ्य दशा के सम्बन्ध में देखना चाहिए। उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि बेरोजगारी का आशय किसी देश में उस परिस्थिति से होता है जिसमें कार्यशील उम्र के शारीरिक दृष्टि से योग्य व्यक्तियों की एक बड़ी संख्या कार्य करने की इच्छा रखते हुए भी विभिन्न कारणों से खास समय के दौरान प्रचलित मजदूरी दरों पर काम पाने में असमर्थ हो।
दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि बेरोजगारों की श्रेणी में उन व्यक्तियों को नहीं रखा जा सकता है जो शारीरिक या मानसिक कारणों से कार्य के लिए ठीक नहीं है. अर्थात् कार्य के लिए उपयुक्त नहीं है। ऐसे व्यक्तियों को अनियोजनीय एवं कार्य के अनिच्छुक व्यक्तियों को मुक्त-खोर कहा जा सकता है। इसे निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है बेरोजगार शब्द में उन सभी व्यक्तियों को शामिल किया जाना चाहिए।
बेरोजगारी के प्रकार
बेरोजगारी निम्नलिखित दो प्रकार की होती हैं –
- ग्रामीण Rural Unemployment – भारत में इसके निम्नलिखित तीन रूप दिखाई देते हैं –
- मौसमी (Seasonal Unemployment) – जब व्यक्ति को वर्ष में कुछ दिन काम मिले और शेष दिन पूर्ण बेरोजगार रहना पड़े तो इसे मौसमी बेरोजगारी कहलाती है।
- अदृश्य (Disguised Unemployment) – जब किसी कार्य में आवश्यकता से अधिक व्यक्ति लगे हुए है कि उन्हें कार्य से हटाने पर कार्य या उत्पादन पर कोई प्रभाव न पड़े, तो ऐसी स्थिति में अदृश्य बेरोजगारी कहलाती है।
- अल्प रोजगार (Under Employment) – ग्रामीण क्षेत्रों में एक अन्य प्रकार की बेरोजगारी पायी जाती है जिसे अल्प रोजगार कहते हैं। इसके अन्तर्गत उन श्रमिकों को शामिल किया जाता है जिन्हें अपनी क्षमता व योग्यता के अनुसार काम नहीं मिलता है।
- शहरी Urban Unemployment – यह मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है-
- शिक्षित – इस बेरोजगारी में ये व्यक्ति मामिल किये जाते हैं जिन्हें विशेष संसाधनों के माध्यम से प्रशिक्षित किया जाता है तथा जिनकी कार्य करने की क्षमता अन्य श्रमिकों से अधिक होती है।
- औद्योगिक – यह बरोजगारी भी शहरी क्षेत्रा में पायी जाती है। भारत में कार्यशील जनसंख्या तथा शहरीकरण में वृद्धि हो रही है।




भारत में बेरोजगारी के प्रमुख कारण
भारत में बेरोजगारी के प्रमुख कारण निम्नलिखित है-
- जनसंख्या में तीव्र वृद्धि – भारत की जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हो रही है जिसके कारण विस्फोट की स्थिति उत्पन्न हो गयी है। यही कारण है कि भारत में श्रम शक्ति निरन्तर बढ़ती रही जिसने unemployment को जन्म दिया है।
- मन्द आर्थिक विकास – आर्थिक विकास की दर देश में लक्ष्य के अनुरूप नहीं रही, जिसके कारण बेरोजगारी की समस्या ने विकराल रूप धारण किया है।
- नियोजन में दोष – भारत में बेरोजगारी की समस्याओं का निदान करने के लिए योजनाओं मे भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। फलस्वरूप यह समस्या निरन्तर विकराल रूप धारण करती जा रही है।
- पूँजीगहन परियोजनाओं पर जोर – भारत की पूँजी गहन परियोजनाओं पर विशेष बल दिया गया जिसके कारण विनियोग की मात्रा में तो वृद्धि हुई किन्तु उसके अनुरूप रोजगार के अवसरों में वृद्धि नहीं हुई है। परिणामस्वरूप बेरोजगारी में वृद्धि हुई है।
- कृषि का यन्त्रीकरण एवं एक फसली स्वरूप – वर्तमान समय में कृषि यन्त्रीकरण प्रोत्साहन हो रही है जिससे बेरोजगारी में वृद्धि हो रही है तथा कृषि में एक फसल पैदा होने के कारण कृषक वर्ष में लगभग 7 या 8 माह बेरोजगार रहते हैं।
- प्राकृतिक आपदायें – भारतीय कृषि को मानसून का जुआ तो कहा ही कहा जाता है साथ ही साथ अन्य प्राकृतिक आपदाये जैसे बाढ़, सूखा एवं अन्य आपदाओं के कारण कृषि उत्पादन प्रभावित होता है फलस्वरूप बेरोजगारी में वृद्धि होती है।
- कुटीर एवं अल्प उद्योगों का विकास – ब्रिटिश शासन की नीति में कुटीर एवं लघु उद्योगो का पतन हुआ। जिसके कारण इन उद्योगों में सलग्न व्यक्तियों को कृषि पर निर्भर रहना पडा या बेरोजगार होना पड़ा। स्वतन्त्रता के पश्चात इस दिशा में अनेक प्रयत्न तो किये गये किन्तु ये प्रयास मन्द गति से हुए जिसके कारण बेरोजगारी में निरन्तर वृद्धि होती गयी।
भारत में बेरोजगारी दूर करने के उपाय
भारत में बेरोजगारी को दूर करने के निम्नलिखित उपाय अपनाये गये-
- जनशक्ति नियोजन किसी देश के लिए मानव पूंजी अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान रखती है। अतः इसका पूर्ण सदुपयोग किया जाना चाहिए। जनशक्ति के नियोजन के अभाव में कुछ प्रशिक्षित श्रमिक को रोजगार नहीं मिल पाता है तो कहीं विशिष्ट प्रकार के प्रशिक्षित श्रमिक उद्योगों को नहीं मिल पाते हैं। इस प्रकार बेरोजगारी की समस्या को दूर करने के लिए जनशक्ति नियोजन आवश्यक है।
- जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण बेरोजगारी को दूर करने के लिए जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण आवश्यक है तमी की पूर्ति दर को कम किया जा सकता है। बेरोजगारी दूर करने के लिए एक दीर्घकालीन उपाय है।
- भूमि सुधार कार्यक्रमों का क्रियान्वयन भारत में भूमि सुधार कार्यक्रमों जैसे कृषि जोतो की सीमा बन्दी एवं भूमि की चकबन्दी आदि का शीघ्र क्रियान्वयन किया जाना चाहिए।
- बहुफसली कृषि को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसके लिए उन्नत बीजो, सिंचाई एवं खाद आदि की व्यवस्था की जानी चाहिए।
- ग्रामीण औद्योगीकरण को प्रोत्साहन ग्रामीण क्षेत्रों की बेरोजगारी दूर करने के लिए कुटीर एवं लघु उद्योगों का विकास किया जाना चाहिए। इसके लिए ग्रामीण क्षेत्रों में यातायात, बैंको एवं विद्युत आपूर्ति आदि सुविधाओं का विकास किया जाना चाहिए।
- रोजगार उन्मुख नियोजन देश में नियोजन करते समय रोजगार सृजन को प्राथमिकता प्रदान की जानी चाहिए इस सम्बन्ध में जो नीतियाँ इस दिशा में बाधक दिखलाई देती है उन्हें शीघ्र ही हटा देना चाहिए।