बाल केन्द्रित शिक्षा के अंतर्गत विभिन्न शिक्षण विधियों को प्रयोग में लाया जाता है जो बालकों के सीखने की प्रक्रिया, महत्वपूर्ण कारक, लाभदायक या हानिकारक दशाएं, रुकावट, सीखने के वक्र तथा प्रशिक्षण इत्यादि तत्वों को सम्मिलित करती हैं तथा मनोवैज्ञानिक विश्लेषण पर आधारित होती है। बाल केंद्रित शिक्षा का शिक्षा मनोविज्ञान को दिया जाता है। जिसका उद्देश्य बालक के मनोविज्ञान को समझते हुए शिक्षण की व्यवस्था करना तथा अधिगम संबंधी कठिनाइयों को दूर करना है।
वर्ष 1919 में प्रगतिशील शिक्षा सुधारकों ने बालकों के हितों के लिए सीखने की प्रक्रिया के केंद्र में बालक को रखने पर बल दिया है अर्थात अधिगम प्रक्रिया में केंद्रीय स्थान बालक को दिया जाता है।

बाल केन्द्रित शिक्षा
बाल केंद्रित शिक्षा के अंतर्गत बालक की शारीरिक और मानसिक योग्यताओं के विकास के आधार पर अध्ययन किया जाता है तथा बालक के व्यवहार और व्यक्तित्व में असमानता के लक्षण होने पर बौद्धिक दुर्बलता, समस्यात्मक बालक, रोगी बालक, अपराधी वाला के त्याग का निदान किया जाता है।
मनोविज्ञान के ज्ञान के अभाव में शिक्षा मारपीट के द्वारा इन दोषों को दूर करने का प्रयास करता है। परंतु बालकों को समझने वाला शिक्षक यह जानना है कि इन दोनों का आधार उनकी शारीरिक सामाजिक तथा मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं में ही कहीं ना कहीं है। व्यक्ति की अवधारणा ने शिक्षा और शिक्षण प्रक्रिया में व्यापक परिवर्तन किया है इसी के कारण बाल केंद्रित शिक्षा का प्रचलन शुरू हुआ।
बाल केन्द्रित शिक्षा के अंतर्गत पाठ्यक्रम का स्वरूप

केंद्रित पाठ्यक्रम में विद्यार्थियों को शिक्षा प्रक्रिया का केंद्र बिंदु माना जाता है। बालक की सूचियों आवश्यकता एवं योग्यताओं के आधार पर पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाता है। बाल केंद्रीय शिक्षा के अंतर्गत पाठ्यक्रम का स्वरूप निम्नलिखित है –
- पाठ्यक्रम पूर्ण ज्ञान पर आधारित होना चाहिए।
- पाठ्यक्रम छात्रों की रुचि के अनुसार होना चाहिए।
- पाठ्यक्रम लचीला होना चाहिए।
- पाठ्यक्रम जीवन उपयोगी होना चाहिए।
- वातावरण के अनुसार होना चाहिए।
- पाठ्यक्रम राष्ट्रीय भावनाओं को विकसित करने वाला होना चाहिए।
- पाठ्यक्रम समाज की आवश्यकता के अनुसार होना चाहिए।
- पाठ्यक्रम बालकों के मानसिक स्तर के अनुसार होना चाहिए।
- पाठ्यक्रम में व्यक्तिगत विभिन्नता उनको ध्यान रखना चाहिए।