ब्रजभाषा उत्पत्ति विकास क्षेत्र – पश्चिमी हिंदी की प्रमुख बोलियों में ब्रजभाषा का महत्वपूर्ण स्थान है। ब्रजभाषा अपनी साहित्यिक समृद्धि के कारण मध्यकाल की काव्य भाषा के रूप में प्रतिष्ठित हो गई थी। अपनी विकासमान प्रकृति के कारण यह 16 वीं शताब्दी तक संपूर्ण मध्यप्रदेश की साहित्यिक भाषा के पद पर प्रतिष्ठित हो गई थी। ब्रजभाषा की उत्पत्ति शौरसेनी अपभ्रंश से मानी जाती है। आप ब्रजभाषा उत्पत्ति विकास क्षेत्र Hindibag पर पढ़ रहे हैं।
डॉ• सुनीति कुमार चटर्जी के अनुसार, “लगभग 800 ईस्वी से प्रारंभ होकर 1250 ईस्वी तक शौरसेनी अपभ्रंश भाषा जोकि नगर अपभ्रंश भी कहलाती थी, संपूर्ण उत्तर भारत में एक विराट साहित्यिक भाषा के रूप में विराजती थी। ऐसा लगता है कि अपनी बेटी ब्रजभाषा में शौरसेनी अपभ्रंश को नवीन कलेवर मिला और नए आयुकाल को उसने प्राप्त कर लिया।”

वास्तविकता तो यह है कि प्राचीन ब्रजभाषा तथा शौरसेनी अपभ्रंश में भेद नहीं किया जा सकता और यदि हम प्राचीन ब्रजभाषा की तुलना उत्तरकालीन शौरसेनी अपभ्रंश से करें तो दोनों में पूर्ण समानता मिलती है। राहुल सांकृत्यायन तथा चंद्रधर शर्मा गुलेरी के विचारों से भी इस बात की पुष्टि होती है। रत्नाकर जी ने भी यह स्वीकार किया है कि शौरसेनी क्षेत्र की भाषाओं की विशेषता शब्दों का उकारांत होना है। उनके अनुसार, “पुल्लिंग संज्ञाओं, विशेषण तथा कृदंतो के कर्ता तथा कर्म कारकों के एकवचन रूपों का उकारांत होना शौरसेनी क्षेत्र की मुख्य पहचान है। बिहारी रत्नाकर में बिहारी की भाषा को इसी आधार पर ब्रजभाषा स्वीकार किया गया है।
ब्रजभाषा उत्पत्ति विकास क्षेत्र
ब्रजभाषा उत्पत्ति विकास क्षेत्र के बारे में अनेक मत हैं। आठवीं सदी के सिद्ध सरहपा की भाषा में ब्रज भाषा के शब्द मिलते हैं। इसी आधार पर राहुल सांकृत्यायन ने ब्रजभाषा के प्रारंभ को सिद्ध साहित्य से स्वीकार किया है। सिद्ध सरहपा की ब्रजभाषा के निम्न उदाहरण से यह स्पष्ट है-
जहि भण पवण न संचरइ सर्व सक्षि णाह पवेस।
ताहि बढ़ चित्त विसाभ वास सरहिं काहअ अवेस।।

ध्यातव्य है कि सरहपा ने दोहा छंद अपनाया है। पुरानी ब्रज भाषा में पहले द्वित्व की प्रवृत्ति भी पाई जाती थी जो इसमें अपभ्रंश से आया था परंतु बाद में कोमलता तथा मधुरता के आग्रह के कारण यह प्रवृत्ति विलुप्त हो गई। 11 वीं से 12 वीं शताब्दी काल ब्रजभाषा का द्वितीय चरण कहलाता है। इस काल की ब्रजभाषा की विशेषता द्वित्व वर्णों का अधिक प्रयोग था। अनुनासिकता के अधिक प्रयोग के कारण यहां उकार बहुल हो गई थी।
14वीं सदी के आते-आते इसमें और भी परिवर्तन हुए तथा यह सरलता की ओर अग्रसरित होती हुई प्रतीत होती है। इस समय तक द्वित्व वर्णों का प्रयोग बहुत कम हो गया था तथा औ का प्रयोग प्रारंभ हो गया। हेमचंद्र सूरी द्वारा रचित अपभ्रंश व्याकरण में दिए गए पदों को उदाहरणों की भाषा से यह स्पष्ट पता चलता है कि उस समय प्रयुक्त अपभ्रंश ब्रजभाषा के अधिक निकट पहुंच चुकी थी।
15 वी शताब्दी के पहले व्यापक काव्य भाषा के पद पर अपभ्रंश ही प्रतिष्ठित रही केवल कबीर के साहित्य में ही ब्रजभाषा का थोड़ा बहुत प्रयोग दिखाई देता है। परंतु कबीर की भाषा को पूर्ण रूप से ब्रजभाषा कहना उपयुक्त नहीं होगा क्योंकि उसमें कई भाषाओं का मिश्रण है। आप ब्रजभाषा उत्पत्ति विकास क्षेत्र Hindibag पर पढ़ रहे हैं।
सोलवीं सदी के प्रारंभ से ब्रजभाषा का काव्य भाषा के रूप में व्यापक प्रयोग प्रारंभ हुआ। कृष्ण भक्ति काव्य ने ब्रजभाषा को व्यापक काव्य भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करवाया। तुलसी जैसे अवधि के मूल कवि ने भी दोहावली, विनयपत्रिका, कवितावली जैसे ग्रंथों ब्रजभाषा में लिखे।
रीतिकाल में काव्य भाषा के रूप में ब्रजभाषा का एकछत्र राज्य रहा सभी कवियों ने चाहे वह किसी भी क्षेत्र के हों ब्रजभाषा में ही अपनी रचनाएं प्रस्तुत की। आधुनिक काल के प्रथम चरण अर्थात भारतेंदु युग तक ब्रजभाषा काव्य भाषा बनी रही परंतु द्विवेदी युग के आरंभ होते ही ब्रजभाषा का स्थान खड़ी बोली ने ले लिया। इस प्रकार स्पष्ट है कि मध्यकाल – भक्ति तथा रीतिकाल और आधुनिक काल के प्रथम चरण तक ब्रजभाषा का काव्य भाषा के रूप में एकछत्र राज्य रहा है। आधुनिक काल में भी रत्नाकर, कविरत्न तथा रसाल जैसे ब्रजभाषा के सशक्त कवि हुए हैं।

ब्रजभाषा के क्षेत्र
ब्रजभाषा का क्षेत्र सदैव परिवर्तित होता रहा है। मध्यकाल में इसका क्षेत्र काफी विस्तृत हो गया था और जो पूर्व में बंगाल, आसाम, पश्चिम में गुजरात तथा काठियावाड़ दक्षिण में महाराष्ट्र तथा उत्तर में पंजाब तक विस्तारित हो गया था। इतने बड़े भूभाग में लंबे समय तक प्रयुक्त होने के कारण इसमें वहां की स्थानीय विशेषताएं भी आ गई थी। जिसके कारण धीरे-धीरे इसका अपना मूल रूप विलुप्त हो गया था और यह उन क्षेत्रों की एक बोली बन गई। आप ब्रजभाषा उत्पत्ति विकास क्षेत्र Hindibag पर पढ़ रहे हैं।
इसका क्षेत्र आधुनिक काल में पुनः संकुचित हो गया। यह उत्तर प्रदेश के मथुरा, अलीगढ़, आगरा, बुलंदशहर, एटा, फिरोजाबाद, बदायूं, बरेली, हरियाणा के गुड़गांव तथा राजस्थान में भरतपुर, धौलपुर, करौली, जयपुर के पूर्वी भाग और मध्य प्रदेश के ग्वालियर के पश्चिमी भागों में बोली जाती है। ब्रजभाषा के तीन प्रधान स्वरूप है पूर्वी, पश्चिमी और दक्षिणी। मैनपुरी, बदायूं, एटा और बरेली पूर्व ब्रजभाषा के क्षेत्र हैं जबकि केंद्रीय ब्रजभाषा मथुरा, आगरा तथा बुलंदशहर में बोली जाती है। दक्षिणी ब्रजभाषा के क्षेत्र के अंतर्गत भरतपुर, धौलपुर, करौली, पश्चिमी ग्वालियर तथा जयपुर आते हैं।