प्रौढ़ शिक्षा की समस्याएं – 3 Problems of Adult Education

प्रौढ़ शिक्षा की समस्याएं – प्रौढ़ शिक्षा निर्विवाद रूप से एक राष्ट्रीय आवश्यकता है। विकास का संबंध केवल कल कारखानों, बांधों और सड़कों से नहीं, इसका संबंध बुनियादी तौर पर लोगों के जीवन से है। इसका लक्ष्य है कि लोगों की भौतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक उन्नति। मानवीय पक्ष तथा उससे जुड़ी हुई बातें सबसे महत्वपूर्ण है। भविष्य में हमें इन बातों पर अधिक ध्यान देना होगा।

करोड़ों लोगों का निरीक्षण होना भारत के लिए अभिशाप है इससे मुक्ति पानी ही होगी।

महात्मा गांधी

प्रौढ़ शिक्षा की समस्याएं

वास्तव में साक्षरता मानव के विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। अपनी बातों को दूसरे तक पहुंचाने नवीन बातों को सीखने तथा ज्ञान व विज्ञान के आदान-प्रदान के लिए साक्षरता एक जरूरी साधन है। व्यक्ति की उन्नति तथा राष्ट्र के उत्थान के लिए निरक्षरता को दूर करना अत्यंत आवश्यक है। निरक्षरता के कारण हमारे देश में विकास की दिशा में किए जाने वाले प्रयास निरर्थक प्रमाणित हो रहे हैं। प्रौढ़ शिक्षा की समस्याएं निम्न है-

  1. अभिप्रेरणा का अभाव
  2. प्रौढ़ शिक्षा केंद्रों का अनाकर्षण वातावरण
  3. सतत शिक्षा का अभाव

1. अभिप्रेरणा का अभाव

प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम की सफलता बहुत कुछ अंशों में प्रौढ़ो के ऊपर निर्भर करती है, सरकारी तौर पर तथा स्वयंसेवी संस्थानों के द्वारा किए जा रहे। निरंतर प्रयासों के बावजूद भी प्रौढ़ शिक्षा केंद्रों पर उपस्थिति में अपेक्षित सुधार नहीं हो पा रहा है। प्रौढ़ सोचते हैं कि इस आयु में पढ़ लिख कर क्या लाभ होगा तथा वे प्रौढ़ शिक्षा केंद्र में जाकर पढ़ना दुखद समझते हैं।

शिक्षा की चुनौती नीति संबंधी परिप्रेक्ष्य में कहा गया है कि पर्याप्त प्रेरणा के अभाव के कारण निरीक्षण लोग प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम में की ढंग से भाग नहीं ले पाते हैं। प्रश्न यह है कि हमारे निरीक्षण प्रौढ़ होने के लिए प्रेरित क्यों नहीं हो पा रहे हैं यह निर्विवाद सत्य है कि मनुष्य उसी और आकर्षित होता है तथा उसी कार्य को करने के लिए प्रेरित होता है। आप प्रौढ़ शिक्षा की समस्याएं Hindibag पर पढ़ रहे हैं।

जिसकी वह स्वयं आवश्यकता व महत्ता समझता है आवश्यकता तथा महत्ता ऐसे पहलू है जो दूसरों के समझाए जाने पर कम तथा स्वयं अनुभूत किए जाने पर अधिक तथा स्थाई रूप से समझ में आते हैं। प्रौढ़ शिक्षा भी ऐसा ही मसला है किसान, रासायनिक खाद, ट्यूबवेल आदि का उपयोग बिना किसी आग्रह व प्रशिक्षण के निरंतर व रूचि पूर्वक करता है क्योंकि यह उसकी आवश्यकता है तथा इसके महत्व कि उसे जानकारी है परंतु शिक्षा की आवश्यकता तथा महत्ता का भान प्रौढ़ो को अभी तक नहीं हो पाया। प्रौढ़ो को साक्षरता के लिए प्रेरित करने के लिए उन्हें शिक्षा की आवश्यकता तथा महत्त्व की जानकारी करानी होगी।

शिक्षा प्रक्रिया में संलग्न मानवीय संसाधन तथा अध्यापक का अत्यधिक महत्व है। प्रौढ़ शिक्षा केंद्र का संचालन करने वाले से अपेक्षा की जाती है कि वह योग्य समर्पित नियमित बुद्धिमान तथा अच्छे स्वभाव का हो उससे या भी अपेक्षा की जाती है कि वह प्रौढ़ शिक्षा केंद्र में शिक्षार्थी के रूप में आए प्रौढ़ो के साथ सम्मान पूर्ण ढंग से व्यवहार करेगा। परंतु या एक गंभीर व सोचनीय स्थिति है प्रौढ़ शिक्षा केंद्र चलाने के लिए समर्पित तथा योग्य व्यक्तियों का अभाव है, जिन व्यक्तियों को इन केंद्रों को चलाने के लिए नियुक्त किया जाता है।

प्रशिक्षण प्राप्त नहीं होते हैं तथा रुचि उत्साह तथा समर्पण भाव से अपने कार्य को नहीं करते हैं। जिसकी वजह से अशिक्षित और उनकी ओर आकर्षित नहीं हो पाते। प्रौढ़ो के मनोविज्ञान का ज्ञान ना होने से ऐसे शिक्षक प्रौढ़ो से उचित व्यवहार नहीं कर पाते हैं तथा प्रौढ़ो के आत्म स्वाभिमान को ठेस पहुंचा देते हैं। अप्रशिक्षित शिक्षक शिक्षा के उद्देश्यों साहित्य शिक्षण विधियों तथा अन्य उपयोगी साधनों से अवगत नहीं होने के कारण शिक्षा को नीरस बना देते हैं और इससे प्रौढ़ शिक्षा प्राप्त करने में रुचि नहीं लेते हैं।

कक्षा में आना व्यर्थ समझकर शिक्षा प्राप्त के अवसर का लाभ नहीं उठा पाते प्रौढ़ शिक्षा के विस्तार के लिए समर्पित तथा योग्य अध्यापकों की पूर्ति करना एक जटिल समस्या बन गई है। निरक्षरता उन्मूलन की सफलता के लिए अच्छे अध्यापकों का होना अति आवश्यक है। प्रौढ़ो के लिए विशेष प्रकार के साहित्य की आवश्यकता है परंतु वर्तमान समय में प्रौढ़ो के लिए उपयोगी साहित्य लगभग अनुपलब्ध है। साक्षरता किट प्रौढ़ो को साक्षर बनाने में तो लाभकारी हो सकती है परंतु पर्याप्त नहीं हो सकती नवसाक्षर प्रौढ़ो को कक्षा उपयोगी तथा सस्ते साहित्य की आवश्यकता होती है। (प्रौढ़ शिक्षा की समस्याएं)

यदि ऐसा साहित्य उन्हें प्रचुर मात्रा में मिल पाता है तो कुछ समय बाद पुनः निरीक्षण बन जाते हैं। प्रौढ़ो के लिए ऐसे साहित्य की आवश्यकता है, जो उनमें चीजों को परखने की क्षमता, तर्क, चिंतन व आलोचना करने की शक्ति तथा सामाजिक व राष्ट्रीय समस्याओं पर विचार करने की योग्यता विकसित कर सकें।

प्रौढ़ व्यक्तियों के लिए उचित पाठ्यक्रम तैयार करना भी एक जटिल समस्या है। प्रौढ़ शिक्षा कार्यों की असफलता का एक मुख्य कारण है, इनकी पाठ्यवस्तु का प्रौढ़ो की आवश्यकता और उचित तथा अपेक्षाओं के अनुरूप ना होना। ग्रामीण शहरी पुरुषों तथा महिलाओं निरक्षर आंशिक साक्षर प्रौढ़ो के लिए एक जैसा पाठ्यक्रम निर्धारित करना उचित नहीं होगा। प्रौढ़ शिक्षा की समस्याएं

प्रौढ़ निरक्षरो के पाठ्यक्रम का निर्धारण उनकी प्राथमिकताओं आवश्यकता और चीजों को ध्यान में रखकर ही किया जाना चाहिए। प्रौढ़ महिलाओं के लिए प्रौढ़ शिक्षा पाठ्यक्रम निर्धारित करते समय उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं तथा परिस्थितियों को ध्यान में रखना चाहिए। प्रौढ़ शिक्षा के पाठ्यक्रम में मनोरंजक क्रियाकलापों तथा सांस्कृतिक क्रियाओं को भी सम्मिलित किया जाना चाहिए। राष्ट्रीय पर्व जैसे स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस तथा अन्य सामाजिक व राष्ट्रीय महत्व की घटनाओं को प्रौढ़ शिक्षा केंद्रों में मनाया जाना चाहिए।

उपयुक्त शिक्षण विधियों का प्रभाव –

प्रौढ़ो का मस्तिष्क परिपक्व होता है उनकी रूचि हो तथा मनोवृति का पहले से ही निर्माण हो चुका होता है, प्रौढ़ व्यक्ति शिशुओं तथा बालकों से भिन्न होते हैं। उनमें अहम की भावना विकसित हो चुकी होती है। कुछ प्रौढ़ तो साक्षर ना होते हुए भी कुछ बातों में अत्यंत बुद्धिमान तथा योग्य हो सकते हैं। प्रौढ़ो के पास विचारों तथा अनुभवों की विशाल धनसंपदा हो सकती है। प्रौढ़ स्वतंत्रता चाहते हैं। प्रौढ़ शिक्षा की समस्याएं

वे अपनी आदतों विचारों जीवन दर्शन मान्यताओं दृष्टिकोण हो आज की आलोचना सुनना पसंद नहीं करते। इसलिए कक्षा शिक्षण की सामान्य शिक्षण विधियां इनके लिए लागू नहीं की जा सकती। प्रौढ़ समन्यता कहानियों संगीत आदि में रुचि रखते हैं, इसलिए उनके लिए सरस विश्लेषणात्मक तथा संश्लेषणात्मक शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाना चाहिए।

चलचित्र, रेडियो टेलीविजन तथा अन्य श्रव्य दृश्य सामग्री का प्रयोग करके प्रौढ़ को शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए। वर्तमान में प्रौढ़ो के लिए प्रभाव उत्पादक शिक्षण विधियों की कमी है, विज्ञान तथा तकनीक के प्रयोग एवं शैक्षिक अनुसंधान की सहायता से अधिक प्रभावशाली शिक्षण विधियों की खोज की जानी चाहिए तथा इन्हें प्रौढ़ शिक्षकों के प्रशिक्षण कार्यक्रम में सम्मिलित किया जाना चाहिए। (प्रौढ़ शिक्षा की समस्याएं)

संसाधनों की कमी प्रौढ़ शिक्षा के प्रसार में सबसे बड़ी बाधा संसाधनों के अभाव की है। भारत में अनपढ़ प्रौढ़ो की संख्या इतनी बड़ी है कि उन को साक्षर बनाने में अकल्पनीय अद्वितीय मजबूरियां हो सकती हैं। परंतु अनपढ़ प्रौढ़ो की बड़ी संख्या के कारण भारत में प्रौढ़ शिक्षा के विशालकाय कार्यक्रम के लिए समुचित मात्रा में संसाधन जुटाना एकमात्र विकल्प है। संसाधनों के अभाव में प्रौढ़ शिक्षा केंद्रों के संचालन प्राध्यापक ओके प्रशिक्षण तथा अध्ययन सामग्री की व्यवस्था नहीं हो पाती।

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प्रौढ़ शिक्षा के उद्देश्य प्रौढ़ शिक्षा का क्षेत्र

2. प्रौढ़ शिक्षा केंद्रों का अनाकर्षण वातावरण

हमारे प्रौढ़ शिक्षा केंद्रों का वातावरण भी अनाकर्षण होना, प्रौढ़ शिक्षा के वांछित विकास में बाधक सिद्ध हुआ। प्रौढ़ शिक्षा केंद्रों पर निरीक्षण प्रौढ़ो से उचित व्यवहार नहीं किया जाता। जब तक प्रौढ़ शिक्षा केंद्रों का शैक्षिक वातावरण अधिगम के लिए सहायक नहीं होगा। तब तक प्रौढ़ शिक्षा प्राप्ति के लिए शिक्षा केंद्रों पर नहीं जाएंगे। इसके लिए जरूरी है कि शिक्षक निष्ठावान हो पूर्व प्रशिक्षित हो तथा निरीक्षकों के साथ आत्मीयता सेवा आदर पूर्ण व्यवहार कर सकें। (प्रौढ़ शिक्षा की समस्याएं)

सीखने का वातावरण सुधरा हुआ हो कक्षाओं में प्रकाश की अच्छी व्यवस्था हो तथा उपयुक्त अध्ययन सामग्री हो शिक्षार्थियों के मन में यह भावना उत्पन्न हो कि कार्यक्रम चलाने वालों को हमारी चिंता है। उन्हें विश्वास दिलाया जाए कि साक्षरता शुरू में ही नीरस लगती है। परंतु बाद में यह अत्यंत सरस हो जाती है। प्रौढ़ शिक्षा केंद्र में चार्ज तथा पोस्टर बनाया जा सकता है। यह पोस्टर पर्यावरण स्वच्छ पानी स्वास्थ्य टीका लगाना सीमित परिवार आदि ऐसी बातों से संबंधित होने चाहिए। जो प्राउड के जीवन से घनिष्ठ रूप से जुड़ी है।

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प्रौढ़ शिक्षा के उद्देश्य प्रौढ़ शिक्षा का क्षेत्र

3. सतत शिक्षा का अभाव

उत्तर साक्षरता तथा सतत शिक्षा का उचित प्रबंध ना होना भी प्रौढ़ शिक्षा की असफलता का एक कारण है। प्रौढ़ो को साक्षर बन जाने के उपरांत पुनः निरीक्षण होने से रोकने के लिए उत्तर साक्षरता तथा सतत शिक्षा की व्यवस्था होना अत्यंत आवश्यक है। यदि 9 छात्रों को पढ़ने लिखने के अवसर नहीं मिलते हैं तो वह कुछ ही समय के उपरांत पुनः निरीक्षण बन जाते हैं। इसलिए नवसाक्षरो को अनवरत शिक्षा देने की आवश्यकता होती है, जिससे यह निरंतर पढ़ते लिखते रहें तथा स्थाई रूप से साक्षर बन जाए। (प्रौढ़ शिक्षा की समस्याएं)

लेकिन प्रौढ़ शिक्षा के अंतर्गत यह एक समस्या बन गई है आवश्यकता इस बात की है कि प्रौढ़ो को उपयुक्त साहित्य के माध्यम से लगातार शिक्षा दी जाती रहे। जिससे निरक्षर होने की संभावना ना रहे, प्रौढ़ो की उत्तर साक्षरता तथा सतत शिक्षा के लिए आकाशवाणी व दूरदर्शन सुविधाओं का उपयोग प्रभावशाली ढंग से किया जा सकता है। उनके लिए विशेष रूप से तैयार किया गया साहित्य, समाचार पत्र, पत्रिकाएं इत्यादि प्रचुर मात्रा में उपलब्ध कराई जानी चाहिए।

भारत सरकार द्वारा सन 1988 में प्रारंभ किए गए राष्ट्रीय साक्षरता अभियान में उपरोक्त समस्याओं को ध्यान में रखा गया है। इस अभियान में समस्त बाधक तत्वों के प्रभाव को दूर करते हुए प्रौढ़ शिक्षा की योजना बनाई गई है। अतः साक्षरता प्रसार के क्षेत्र में आशावादी दृष्टिकोण अपनाना उचित ही होगा वास्तव में निरक्षरता के उन्मूलन के लिए इससे पूर्व इतनी तत्परता से पहले कोई कदम नहीं उठाया गया था। आप प्रौढ़ शिक्षा की समस्याएं Hindibag पर पढ़ रहे हैं।

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