प्रेमचंद कहानियां समीक्षा – उपन्यास सम्राट एवं महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद मूलतः सामाजिक कहानीकार थे। कहानी विधा के क्षेत्र में प्रेमचंद ने एक क्रांतिकारी परिवर्तन की शुरुआत की। प्रेमचंद से पूर्व जो कहानी लिखी जाती थी उनमें मनोरंजन के तत्व होते थे किंतु मुंशी प्रेमचंद ने सामाजिक समस्याओं को लेकर कहानियां लिखी।
मुंशी प्रेमचंद कहानियां का सरोकार तत्कालीन समाज विशेष रूप से ग्रामीण समाज को यथार्थ एवं आदर्श का मिश्रण कर प्रस्तुत किया है। वे उस वातावरण से भली-भांति परिचित है उन्होंने उस वातावरण को स्वयं भोगा, समझा और परखा था। अपने युग की संपूर्ण संभावनाएं और उपलब्धियां उनकी कहानियों में व्याप्त हैं। कथा शिल्पी के रूप में जितना उदात्त उनका अनुभूति पक्ष है उतना ही श्रेष्ठ एवं उदात्त उनका अभिव्यक्ति पक्ष है अर्थात् वे अनुभूति एवं अभिव्यक्त में सदैव सफल रहे।
कहानी के बारे में वे कहते हैं , “कहानी जीवन के बहुत निकट आ गई है।”

प्रेमचंद कहानियां
मुंशी प्रेमचंद की प्रथम कहानी” सूट”1925 में प्रकाशित हुई थी। यह कहानी ‘सरस्वती’ पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। प्रारंभ में वे धनपत राय और नवाब राय के नाम से कहानियां लिखते थे परन्त बाद में ‘प्रेमचंद’ के नाम से उपन्यास और कहानी क्षेत्र में आए। प्रेमचन्द ने लगभग 300 कहानियां लिखी हैं।
मुंशी जी ने डेढ़ दर्जन से ज़्यादा तक उपन्यास लिखे।
प्रेमचंद ने तीन सौ से अधिक कहानियाँ लिखीं जिनमे मुख्य रूप से निम्न कहानियो की रचना की-
- संग्राम
- कर्बला
- प्रेम की वेदी
प्रेमचंद की कहानियों की समीक्षा
प्रेमचंद की कहानियों की कथावस्तु सुसंगठित, सोद्देश्य, पात्र जीवंत और व्यावहारिक, संवाद, सटीक और सार्थक, आवरण कल्याणकारी मानवतावादी जान पड़ता है। वस्तुतः उनकी कहानियों में व्यक्त विचारों के साथ उनके कला पक्ष में एक चिरंतन आत्म तत्व विद्यमान रहता है, मैं थोड़ी देर के बाद अब तो जाता है परंतु पूर्णता लुफ्त नहीं होता है। निश्चय ही कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि रेखांकित की जा सकती है।
प्रेमचंद की कहानी की विशेषताएं निम्न है-
1. कथावस्तु अथवा कथानक
वस्तु का चयन और वस्तु विधान किसी भी सजग कहानीकार के शिल्प का प्रथम एवं प्रमुख अंग माना जाता है। प्रेमचंद की कहानियों का विषय अत्यंत व्यापक था। उनकी प्रारंभिक कहानियों में घटनाओं की प्रधानता चरित्र चित्रण अपेक्षाकृत कम मिलता है। वे अपनी कहानियों में सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक और आर्थिक विषमताओं और विसंगतियों का चित्रण करते हुए आदर्श मूलक समाधान खोजते रहे हैं। परंतु धीरे-धीरे आदर्श मुल्क समाधान उन्हें औचित्य पूर्ण प्रतीत नहीं हुआ और अंत में वे यथार्थवादी कहानीकार बन गए।
प्रेमचंद स्वयं ग्राम परिवेश में जन्मे, पले बढ़े हुए थे। इसलिए ग्राम परिवेश में विद्यमान विविध प्रकार की विषमताओं, विडंबनाओ, अंधविश्वास, रूढ़िवादी रीति रिवाजों, अत्याचारों और अनेक प्रकार के मानसिक और दैहिक शोषणों को ना केवल उन्होंने देखा था बल्कि स्वयं होगा भी था। यही कारण था कि उनकी कहानियों के कथानक सीधे जीवन से संबंध रखते हैं।

2. पात्र योजना अथवा चरित्र चित्रण
मुंशी प्रेमचंद कहानियां जितनी उदारता और विविधता कथावस्तु में परिलक्षित होती है, होली के पात्रों के चित्रण और चयन में भी उतनी ही विविधता एवं व्यापकता दिखाई देती है। उनके पात्रों का वैशिष्ट्य प्रमुखता इस तथ्य को लेकर रेखांकित किया जा सकता है कि वह व्यक्ति ना होकर बल्कि वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले हैं। उनकी कहानियों में स्थिर पात्रों की संख्या नगण्य है जबकि उनके अधिकांश पात्र गतिशील है।
कथावस्तु की तर्ज पर, उन्होंने पात्र योजना में भी आदर्शवादी और यथार्थवादी कल्पित और ऐतिहासिक, शोषक और शोषित, अच्छे, बुरे पीड़ित और पीड़ा सभी प्रकार के पात्रों को की झांकी प्रस्तुत की है। यह सभी पात्र हमें अपने आसपास विचार से जान पड़ते हैं।
चरित्रों का चुनाव चारित्रिक गठन और उनका क्रमिक विकास सहज और कलात्मक दिखाई पड़ता है। यही कारण है कि प्रेमचंद की कहानियों में पात्र ना केवल हिंदी कथा साहित्य के बल्कि विश्व साहित्य के उच्च पात्रों की श्रेणी बैठकर अमर हो गए हैं।
3. संवाद योजना अथवा कथोपकथन
साहित्य में संवाद योजना का आयोजन मुख्यता विस्तार चरित्र चित्रण एवं वातावरण निर्माण के लिए किया जाता है। कथा शिल्पी प्रेमचंद कहानियां में संवादों की सभी विशेषताएं विद्यमान है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि प्रायः इनकी प्रारंभिक कहानियों के संवाद साधारण लंबे और उबाऊ हैं। इन कहानियों में उन्होंने नाटकीय शैली की संवाद योजना को अपनाया है।

उनकी कहानियों में कहीं-कहीं नाटकीय और ओपन ने आशिक दोनों प्रकार की संवाद योजना की गई है, परंतु जैसे-जैसे प्रेमचंद कहानियां कला का विकास होता गया। उनकी कहानियों की संवाद शैली का यह दोष दूर होता गया। अनेक कहानियों में प्रेमचंद्र ने संवादों का भाषण व्याख्यान में परिवर्तित कर दिया है।
4. देशकाल और वातावरण
कथा साहित्य में वर्णित देशकाल के अनुरूप अंतः बाह्य वातावरण का चित्रण एक अनिवार्य शैल्पिक तत्व स्वीकार किया गया है क्योंकि मुंशी प्रेमचंद एक प्रगतिशील, सजग, सचेत एवं जागरूक कथाकार थे। लीला सत्याग्रह, शतरंज के खिलाड़ी, बैंक की दिवाला, दो बैलों की कथा आदि कहानियां इस श्रेणी में रखी जा सकती है।
5. भाषा शैली
प्रेमचंद उर्दू हिंदी के समांतर जानकार थे। वह नवाब राय के नाम से उर्दू में कथा सृजन किया करते थे। नाम परिवर्तन के पश्चात वे प्रेमचंद के नाम रूप में हिंदी कथा साहित्य प्रविष्ट हुए इसी कारण उनकी कहानियों में उर्दू की फीस तरलता एवं रो मान्यता है। आवश्यकता अनुसार उन्होंने तत्सम तद्भव आंचलिक और देशज सभी प्रकार के शब्दों का उन्मुक्त भाव से प्रयोग किया है। अंचलिकता उनकी कहानियों की खास पहचान है। प्रेमचंद की कहानियों की समीक्षा

6. उद्देश्य अथवा संदेश
साहित्य में स्वर्गीय मुंशी प्रेमचंद को विशेष रूप से सामाजिक जीवन का एक सशक्त एवं जीवंत कलाकार माना जाता है। प्रेमचंद कहानियां समाज के विभिन्न वर्गों के प्रश्नों और समस्याओं को अपनी कहानियों में सजीव सार्थक रूप में उभरकर अभिव्यक्त किया है। उद्देश्य हीनता उनकी कहानियों में कहीं भी दिखाई नहीं पड़ती। उनकी दर्शन करवा कर कौतूहल का सहज भाव उत्पन्न करना भी है। मानवतावादी दृष्टिकोण होने के कारण उनकी कहानियों में समाज के सभी वर्गों का चित्रण पूर्णता भारती संवेदनाएं अथवा सहानुभूतियों के संदर्भ में हुआ है।