प्राथमिक सहायता देने वाले के गुण व 20 आवश्यक वस्तुएं

साधारण रूप से प्रायः आपातकालीन स्थिति में जो प्रारम्भिक सहायता दी जाती है, उसे प्राथमिक सहायता कहते हैं अर्थात् संकटकालीन स्थिति में डॉक्टर के आने तक या अस्पताल तक ले जाने से पहले तुरन्त दी जाने वाली सहायता (चिकित्सा) प्राथमिक सहायता कहलाती है। जहाँ जनसमुदाय होता है, वहाँ पर आकस्मिक दुर्घटनाएँ भी हो जाती हैं, जैसे-चोट लगना, हड्डी टूट जाना, विषपान कर लेना, पानी में डूब जाना, मूर्छित हो जाना और गर्मी तथा सर्दी का लग जाना आदि।

प्राथमिक सहायता की आवश्यकता

विद्यालयों में इसी प्रकार की घटनाएँ हो जाती हैं; जैसे सड़क पर गिर जाना, खेल के मैदान में चोट लग जाना, हँसते-हँसते व धक्का लग जाने से पैर में मोच का आ जाना, दौड़ते समय पैर फिसलने से चोट का लग जाना, परीक्षा के समय अधिक परिश्रम करने के कारण दस्त लग जाना या मूर्छित हो जाना तथा विज्ञान की कक्षा में अम्ल प्रयोग करते हुए कपड़ों पर अम्ल का गिर जाना आदि।

इन परिस्थितयों में हर एक अध्यापक को प्राथमिक सहायता देने का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए, ताकि दुर्घटना से घायल व्यक्ति को डॉक्टर के आने से पहले सहायता दी जा सके। प्राथमिक सहायता सीखना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य व उत्तरदायित्व है। 1877 में विश्वव्यापी व्यवस्था का सूत्रपात प्राथमिक सहायता प्रदान करने के लिए ‘सेण्ड जॉन एम्बूलेन्स’ एसोसिसेशन ऑफ इंग्लैण्ड के रूप में हुआ।

यह ईसाइयों के प्रमुख देवतुल्य सन्त जॉन के नाम पर नामकरण की गयी संस्था थी। प्राथमिक सहायता साधारण, -सादे रूप में हर स्थान पर उपलब्ध होनी चाहिए। प्राथमिक सहायता के लिए उपलब्ध धना का अधिकतम और उचित प्रयोग करने का गुण चारित्रिक, बल, समर्पण व प्रतिभा प्राथमिक सहायता की पूँजी है।

एच. जे. ओटो के अनुसार, “प्राथमिक सहायता में तात्कालिक चिकित्सा से अधिक और कुछ नहीं होना चाहिए।” यदि प्राथमिक सहायता समय पर मिल जाये तो रोगी का रोग क्टर के आने से पहले कम हो सकता है तथा व्यक्ति को मृत्यु से बचाया जा सकता है। इंग्लैण्ड में पहली बार “सेन्ट जॉन एम्बुलेंस ऐसोशियेशन’ ने 1879 में ‘प्राथमिक सहायता’ शब्दावली को शासकीय रूप में अपनाया।

उद्देश्य
प्राथमिक सहायता का उद्देश्य व्यक्ति को मृत्यु से बचाना है। दुर्घटनाग्रस्त शरीर को अधिक बिगड़ने से तब तक बचाना है, जब तक डॉक्टर की सेवा उपलब्ध न जाये।

प्राथमिक सहायता देने वाले के गुण

प्राथमिक सहायता देने वाले में निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक है। गुणों या विशेषताओं अंग्रेजी के शब्द के प्रथम अक्षरों से प्रदर्शित किया गया है-

F –  Fast in Action (क्रिया में तत्परता )
I –   Immediate Diagnosis (तत्कालीन निदान)
R –   Resourceful ( साधन सम्पन्न)
S –   Sweet Temper (मधुर स्वभाव)
T –   Tolerance (सहनशीलता)
A –    Adroitness, tactful (कुशलता)
I –      Intelligence (बुद्धिमान )
D –    Discipline (अनुशासनात्मक, निर्णयात्मकता)
E –     Emotionally Sound (संवेगात्मक स्थिरता)
R –     Responsibile (उत्तरदायी)

  1. क्रिया में तत्परता – उसे तेजी व ठीक ढंग से कार्य करने वाला होना चाहिए, लापरवाह न हो। हर समय सहायता के लिए तत्पर रहना चाहिए। सुस्ती नहीं होनी चाहिए।
  2. तत्कालीन निदान — उसे अपने कार्य से या सभी प्रकार की घटनाओं से परिचित होना चाहिए। कार्य में निपुण हो, जिससे वह तत्काल किसी भी दुर्घटना के बारे में शीघ्रताशीघ्र निदान कर सके।
  3. साधन सम्पन्न – प्राथमिक सहायक को साधन सम्पन्न होना चाहिए। वह उपलब्ध वस्तुओं का पूरा-पूरा प्रयोग कर लेता हो, जिससे रोगी की दशा अधिक बिगड़ने से बच जाती है।
  4. मधुर स्वभाव – प्राथमिक सहायता करने वाले का स्वभाव मधुर व शान्त होना चाहिए। क्रोधी स्वभाव न हो। रोगी के प्रति सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार होना चाहिए।
  5. सहनशीलता — प्राथमिक सहायता करने वाले के मन में सहनशीलता को होना आवश्यक है उसे स्वयं नहीं घबराना चाहिए। दुर्घटना के समय रोगी को झुंझलाहट, क्रोध सकता है। दुर्घटना होने पर रोगी चिल्लाता-चीखता भी है, कड़वाहट से भी बोलता है, उस समय उसे सहनशीलता से काम लेना चाहिए।
  6. कुशलता – प्राथमिक सहायता करने वाले को अपने कार्य में होना चाहिए, जिससे शीघ्रताशीघ्र निदान करके निर्णय ले सके और तुरन्त उपचार कर सके। उसे तुर निर्णय लेना चाहिए कि किस समय क्या उपचार दिया जाना चाहिए।
  7. बुद्धिमान – प्राथमिक सहायक का यह सबसे बड़ा लाभ और सर्वप्रथम है जो वह बुद्धिमान व ज्ञानवान हो, तभी वह सही विचार, निर्णय कर सकता है, उचित प्राथमिक उपचार दे सकता है, परिस्थितियों का सामना कर सकता है, सहानुभूति प्रकट कर सकता है।
  8. अनुशासन – प्राथमिक सहायक करने वाला अनुशासन प्रिय भी होन चाहिए। अनुशासन भी एक महत्वपूर्ण गुण है। अनुशासन के आधार पर अन्य लोग भी उसे सहायता दे सकते हैं।
  9. संवेगात्मक स्थिरता – प्राथमिक सहायक के लिए संवेगात्मक स्थिरता बहुत आवश्यक है। संवेगात्मक स्थिरता के अभाव में वह रोगी का उचित उपचार नहीं का सकता। यदि प्राथमिक सहायक के अंदर भय, क्रोध, अधिक प्रेम ( रोगी के प्रति ) आदि संवेग है तो वह धैर्य से व उचित निर्णय लेकर कार्य कर पाने असमर्थ होगा क्योंकि संवेग की स्थिति में मानसिक स्थिरता नहीं रहती और वह परिस्थितियों से समायोजन नहीं कर पाता ।
  10. उत्तरदायी – प्राथमिक सहायता करने वाले को अपने कर्तव्य के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए। रोगी चाहे कोई भी हो, उसका उपचार करना व चिकित्सा का उचित प्रबन्ध करना उसका कर्तव्य है।

प्राथमिक सहायता के लिए आवश्यक बातें

प्राथमिक सहायता के लिए निम्नलिखित बातें आवश्यक रूप से ध्यान रखना चाहिए।

  1. आवश्यकता के समय तुरन्त सहायता करना।
  2. सहायता का सारा सामान एक साथ ले आना।
  3. सावधानी से घटना स्थल का निरीक्षण करना।
  4. रोगी की दुर्घटना का कारण दूर करना।
  5. जख्मों से निकलता हुआ खून तुरन्त बंद करना।
  6. रोगी की सांस देखना। यदि सांस बंद हो तो चलाने का प्रयत्न करना।
  7. रोगी का तापमान सामान्य बनाये रखना।
  8. रोगी को अधिक से अधिक आराम पहुँचाना।
  9. रोगी के घाव को ढँक देना। हड्डी टूटी हुई हो तो उसे हिलाना नहीं चाहिए।
  10. रोगी को आवश्यकतानुसार कपड़े पहनाना।
  11. रोगी को अस्पताल या सुरक्षित जगह पर जगह ले जाने का प्रबन्ध करना।
  12. यदि रोगी दूध पी सके तो अधिक चीनी वाला गर्म दूध पिला देना चाहिए।
  13. सहायक को पूर्ण शारीरिक विज्ञान की जानकारी हो, परन्तु उसे अपने आप को डॉक्टर नहीं समझना चाहिए।
  14. यदि रोगी ने विष खा लिया हो तो विष निकालने का प्रयत्न करना चाहिए।

प्राथमिक सहायता की आवश्यक वस्तुएँ

प्राथमिक सहायता के लिए निम्न वस्तुएँ आवश्यक हैं-

  1. तिकोनी पट्टियाँ – यह टूटी हुई हड्डियों को स्थिर रखने के लिए, मोच आये हुए, अंग के लिए झोली बनाने के लिए तथा सूजन कम करने के लिए काम में आती है।
  2. चौड़ी पट्टियाँ – यह भिन्न-भिन्न चौड़ाई की होती हैं।
  3. स्वच्छ रुई – यह घाव पर दवाई लगाने के काम आती है।
  4. सेफ्टी पिन – यह पट्टी बाँधने के काम आती है।
  5. बुश।
  6. फीता।
  7. केंची।
  8. सुइयाँ।
  9. भिन्न-भिन्न माप के पैड।
  10. चिमटी — घाव से काँटा या काँच निकालने के काम आती है।
  11. सुहागे की मरहम पट्टी – यह सुहागे की लगी हुई मुलायम वस्त्र की पट्टी होती है जो घाव पर बाँधने के काम आती है।
  12. लकड़ी की पच्चरें या पटरियाँ – ये टूटे हुए अंगों की दशा ठीक करने के काम आती है।
  13. टिंक्चर – यह घाव पर लगाने के काम आती है।
  14. जैतून का तेल।
  15. चम्मच तथा नमक।
  16. नाप का गिलास।
  17. सोडियम बाई कार्बोनेट – यह सदमे के रोगी को पिलाने के काम आता है।
  18. कार्बोलिक अम्ल – यह घाव धोने के काम आता है।
  19. बर्नोल – यह क्रीम जले हुए घाव पर लगाने के काम आती है।
  20. मैडीसियेटेड – डिटौल प्लास्टर – यह छोटे-छोटे घाव या जले कटे पर काम आता है। इसके घाव पर पानी नहीं पड़ता और जल्दी ही घाव ठीक हो जाता है।
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