विद्यालयों में प्रयोगशालाओं का अपना स्थान होता है। आधुनिक युग में शिक्षा को आधिकारिक व्यावहारिक तथा जीवन से संबंधित किया जा सकता है। इसके लिए शिक्षा तथा शिक्षण के जगत में एक नारा चला है- करके सीखना। करके सीखने के लिए भी प्रयोगशालाओं तथा उन में विभिन्न प्रकार के उपकरणों तथा साज-सज्जाओं का होना अनिवार्य है। इन प्रयोगशालाओं में विभिन्न प्रकार के प्रयोग करके बालक न केवल करके ही सीखते हैं अपितु वे तथ्यों का व्यावहारिक एवं जीवनोपयोगी ज्ञान भी प्राप्त करते हैं।

आधुनिक युग में तो इसका इतना व्यापक एवं प्रचुर प्रयोग होने लगा है कि प्रगतिशील विद्यालय तो न केवल भौतिक विज्ञानो का ही अपितु सामाजिक एवं भाषा विज्ञानों का शिक्षण भी प्रयोगशालाओं के माध्यम से करते हैं। इसलिए आज के साधन संपन्न एवं प्रगतिशील विचारों वाले विद्यालय ना केवल भौतिक विज्ञान अपितु सामाजिक विज्ञानों के लिए भी उपयुक्त प्रयोगशालाओं की व्यवस्था करते हैं।
प्रयोगशाला के सिद्धांत
विद्यालयों में भौतिक एवं सामाजिक विज्ञानों की व्यवस्था एवं स्थापना के संबंध में निम्नलिखित सिद्धांतों को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
- उच्च माध्यमिक स्तर तक प्रायः सभी भौतिक विज्ञानों के लिए एक ही प्रयोगशाला हो।
- प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्तर पर संपूर्ण प्रकृति तथा आसपास के पर्यावरण को प्रयोगशाला के रूप में अपनाया जाए।
- माध्यमिक स्तर पर सभी भौतिक विज्ञानों के लिए प्रथक प्रथक प्रयोगशाला में स्थापित की जाए।
- प्रयोगशाला के लिए जो कक्ष निर्मित किए जाएं या चुने जाएं उनकी निम्नलिखित विशेषताएं हों-
- प्रयोगशाला कक्ष सामान्य कक्ष से बड़ा हो।
- प्रयोगशाला में संवातन की पर्याप्त व्यवस्था हो।
- मुख्य कक्ष के साथ संलग्न दो छोटे-छोटे कक्ष भी हों जिनमें से एक भंडार के रूप में तथा दूसरा प्रभारी के कार्यालय के रूप में प्रयोग किया जाए।
- प्रयोगशाला कक्ष में पानी की अच्छी व्यवस्था हो।
- प्रत्येक प्रयोगशाला का विषय से संबंधित अध्यापक प्रभारी हो। प्रभारी अध्यापक के अलावा कुछ सहायक भी हों।
- सभी प्रयोग प्रभारी अध्यापक की देखरेख में ही संपन्न किए जाएं।
- प्रभारी अध्यापक तथा छात्र एप्रिन पहनकर प्रयोगशाला में कार्य करें अतः पर्याप्त मात्रा में एप्रिन भी होने चाहिए।
- सामाजिक विज्ञानों की प्रयोगशाला से संबंधित विषय के लिए उपयोगी सभी साहित्य तथा उपकरण होने चाहिए।


प्रयोगशाला के लाभ
एक अच्छे विद्यालय में प्रयोगशालाएं होती हैं। इससे छात्रों को निम्नलिखित लाभ मिलते हैं-
- प्रयोगशाला की स्थापना से छात्रों को पुस्तक की तथा सैद्धांतिक शिक्षा के स्थान पर व्यवहारिक एवं वास्तविक शिक्षा प्रदान की जा सकती है।
- प्रयोगशाला में छात्र विभिन्न कार्य स्वयं करते हैं। इससे अधिगम अध्यापन में रोचकता आती है। छात्र सैद्धांतिक कक्षाओं में बैठकर उदासीन हो जाते हैं। प्रयोगशाला छात्रों की इस उदासीनता को तोड़कर रोचकता लाती है।
- प्रयोगशालाओं में छात्र विभिन्न प्रयोग स्वयं अपने हाथों से करता है। यह करके सीखने के सिद्धांत पर आधारित है। छात्र जिस ज्ञान को स्वयं करके सीखता है वह अधिक स्थाई तथा जीवन उपयोगी होता है।
- प्रयोगशाला में छात्र किसी कार्य को सुनियोजित तथा व्यवस्थित रूप से करना सीख जाता है।
- प्रयोगशाला से छात्रों को ऐसे छात्रों की शिक्षा प्राप्त होती है जो सामान्यतः अन्य साधनों से संभव नहीं है।उदाहरण के लिए विभिन्न प्रकार के उपकरणों पदार्थों प्रारूपों सामग्रियों आदि को संभाल कर कैसे रखें यह ज्ञान बालक यही सीखता है। यहां छात्र अपनी चीजों को संभाल कर रखना सीखता है।
- प्रयोगशाला छात्रों में अनेक महत्वपूर्ण व्यक्तिगत गुणों का विकास करने में सहायक होती है। प्रयोगशाला में कार्य करने से छात्रों में अवलोकन, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, शक्ति, धैर्य, तर्कशक्ति, निष्कर्ष, निरूपण, स्वतंत्र रूप से कार्य करने की क्षमता का सहज ही विकास होता है।
- प्रयोगशाला एक कमरे में होती है। सारा सामान वही रहता है। छात्र उस सामान का वही प्रयोग करके सीखते हैं। इससे सामान को इधर-उधर लाने, ले जाने में समय व श्रम नहीं लगता है साथ ही प्रयोगशाला उपकरणों के टूटने फूटने तथा क्षतिग्रस्त होने का भय नहीं रहता है।
- प्रयोगशाला छात्रों में अनेक उपयोगी कौशलों का विकास करती है। छात्रों की सभी ज्ञानेंद्रियां यहां लिप्त होती हैं। छात्र स्वयं अपने हाथों से कार्य करते हैं आंखों से देखते हैं तथा अन्य इंद्रियों का प्रयोग करते हैं। इससे उनमें कई प्रकार के कौशलों का सहज ही विकास होता है।