प्रभावशाली शिक्षण वह है जिससे अधिकांश शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सके अर्थात अधिक से अधिक अधिगम हो सके। इस प्रकार प्रभावशाली शिक्षण वह होता है जिससे शिक्षण प्रक्रिया की अधिगम से अधिकतम निकटता होती है। बी• ओ• स्मिथ महोदय का कहना है कि शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिए उसके विभिन्न चरों एवं उनके कार्यों का सही ज्ञान होना आवश्यक है।
शिक्षण की प्रकृति सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक दोनों ही है तथा यह कला एवं विज्ञान दोनों है। अतः प्रभावशाली शिक्षण के लिए शिक्षण के स्वरूप तथा शिक्षण क्रियाओं को भी जानना आवश्यक है।
प्रभावशाली शिक्षण की संरचना
सामान्यतः जब शिक्षक और छात्र में पाठ्यवस्तु के माध्यम से अंतः प्रक्रिया होती है तो उसे शिक्षण की संज्ञा प्रदान कर दी जाती है। इसलिए शिक्षण को त्रिपक्षी प्रक्रिया भी कहा जाता है। किंतु प्रभावशाली शिक्षण वह होता है जिससे छात्रों के सभी पक्षों का समुचित विकास हो तथा अधिकतम अधिगम हो सके। इसके लिए शिक्षक को कई तरह की शिक्षण क्रियाएं करनी होती हैं। इन शिक्षण क्रियाओं को भी तीन पक्षों में व्यक्त किया जाता है। अतः इस दृष्टि से भी शिक्षण त्रिपक्षी प्रक्रिया कहलाता है अर्थात् इसकी संरचना के तीन प्रमुख पक्ष होते हैं –
- शिक्षण में संकेत एवं चिन्ह
- शिक्षण की भाषा विज्ञान प्रक्रिया
- शिक्षण का तर्क


1. शिक्षण में संकेत एवं चिन्ह
संकेत एवं चिन्ह शिक्षण प्रक्रिया के बहुत महत्वपूर्ण अवयव होते हैं। प्रारंभिक अर्थात निदानात्मक स्तर से ही शिक्षक संकेत एवं चिन्हों का प्रयोग करने लगता है। छात्र भी चिन्हों एवं संकेतों में अधिक रुचि लेता है तथा उन्हें शीघ्र ही समझने भी लगता है। धीरे-धीरे छात्र इनकी व्याख्या भी करने लगता है तथा संप्रेषण में भी इनका प्रयोग करता है। शिक्षक उपचारात्मक एवं मूल्यांकन स्तर पर भी इनका प्रयोग करता है।
इस प्रकार संकेत एवं शिक्षण की संरचना के प्रमुख पक्ष अथवा अंग होते हैं। विषयवस्तु प्रस्तुतीकरण में संकेतों एवं चिन्हों का प्रयोग शिक्षण में समय एवं शक्ति की बचत करता है। इनके प्रयोग मूल्यांकन में भी सुगमता होती है। अतः संकेत एवं चिन्ह प्रभावशाली शिक्षण संरचना के प्रमुख अवयव हैं।
2. शिक्षण की भाषा विज्ञान प्रक्रिया
शिक्षण प्रक्रिया में भाषा के प्रयोग के बिना शिक्षण प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकती है। अतः शिक्षण भाषा विज्ञान की ही एक प्रक्रिया है। भाषा के माध्यम से ही शिक्षक निर्देश देता है, व्याख्या करता है, वर्णन करता है, कथन कहता है। इसके अतिरिक्त शब्दों के द्वारा ही शिक्षक छात्रों को प्रोत्साहित करता है, उनके कार्यों की प्रशंसा करता है तथा उन्हें अभिप्रेरित करता है।
इस प्रकार शिक्षण के तीनों कार्यात्मक, पक्षोनिदानात्मक, उपचारात्मक एवं मूल्यांकन में भाषा का विशेष महत्व होता है। भाषा के अभाव में शिक्षक एवं छात्र के मध्य अंतःक्रिया भी नहीं हो सकती है। अतः शिक्षण की संरचना में भाषा का विशेष स्थान है तथा भाषा विज्ञान की प्रक्रिया इसका दूसरा प्रमुख अवयव है।


3. शिक्षण का तर्क
किसी को भी कोई बात तभी स्वीकार होती है जब वह तर्कसंगत हो। इस दृष्टि से शिक्षण प्रक्रिया में संकेतों, चिन्हों एवं भाषा के साथ-साथ तर्क का भी विशेष महत्व है। पाठ्यवस्तु छात्रों को तभी ग्राह्य होती है जब उसके अवयवों को तर्कपूर्ण ढंग से निर्धारित करके क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत किया जाता है। शिक्षण के प्रत्येक स्तर पर तार्किक विश्लेषण एवं तार्किक प्रस्तुतीकरण का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है।
प्रभावशाली शिक्षण हेतु शिक्षक को निदानात्मक, उपचारात्मक एवं मूल्यांकन तीनों स्तरों पर तर्कपूर्ण ढंग से निर्णय लेना पड़ता है। शिक्षण क्रियाओं की व्यवस्था में भी तर्क की आवश्यकता पड़ती है। मूल्यांकन हेतु प्रश्नों को भी तर्कपूर्ण ढंग से व्यवस्थित किया जाता है तथा प्रश्नों से सम्मिलित करने के बारे में भी तर्कपूर्ण ढंग से निर्णय लेना पड़ता है। इस प्रकार तर्क शिक्षण प्रक्रिया की संरचना का एक महत्वपूर्ण अंग है। इसके बिना शिक्षण अपूर्ण रहता है तथा उसकी प्रभावशीलता की तो संभावना ही नहीं रह जाती है।
अत: उपरोक्त तीनों पक्षों का समग्र रूप ही शिक्षण है तथा प्रभावशाली शिक्षण हेतु तीनों का होना आवश्यक है।


प्रभावशाली शिक्षण की प्रमुख समस्याएं
प्रभावशाली शिक्षण हेतु शिक्षक को शिक्षण उद्देश्य, शिक्षण के चरों एवं उनके कार्यों, शिक्षण की संरचना तथा शिक्षण की विभिन्न अवस्थाओं एवं क्रियाओं का ज्ञान होना आवश्यक होता है। परंतु शिक्षक को इन बातों की सम्यक जानकारी होने पर भी यह आवश्यक नहीं है कि शिक्षण प्रभावशाली ही होगा क्योंकि शिक्षण व्यवस्था के अन्य अनेक ऐसे तत्व हैं जो शिक्षण को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं।
इस प्रकार प्रभावशाली शिक्षण के मार्ग में कई ऐसी बाधाएं एवं समस्याएं आती हैं जिनका निराकरण अकेले शिक्षक नहीं कर सकता है। इन समस्याओं के समाधान के लिए संपूर्ण शिक्षा व्यवस्था का सहयोग आवश्यक होता है।
प्रभावशाली शिक्षण की प्रमुख समस्याएं इस प्रकार हैं-
- बड़ी कक्षाओं की समस्या
- सामूहिक कार्य की समस्या
- स्वाध्याय एवं आवश्यक कौशलों के विकास की समस्या
- विद्यालय के पुस्तकालय के प्रयोग की समस्या
- श्रेणी रहित विद्यालय
- समूह शिक्षण
- विषयों के एक समूह का समय खंड शिक्षण
- एक समय में कई कक्षाओं के लिए एक शिक्षक
- सामूहिक वार्ता एवं अन्य क्रियाकलापों का आयोजन
- गृहकार्य