प्रबन्ध अंकेक्षण अर्थ कार्य 7 लाभ उद्देश्य सीमाएं

प्रबन्ध अंकेक्षण एक ऐसी अनोखी प्रक्रिया है जो कि संचालकों एंव प्रबन्धकों के निष्पादन के मूल्यांकन को स्पष्ट करती है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि प्रबन्ध अंकेक्षण प्रबन्ध की निष्पत्ति के मूल्यांकन की विधि है। प्रबन्ध अंकेक्षण के अंतर्गत कार्यकारी संचालक को एक प्रबन्धक के रूप में शामिल किया जाता है जिससे कि इसके उद्देश्यों की पूर्ति हो सके। इसे सामान्य रूप से प्रबन्धकों की निष्पत्ति या प्रबन्धकों के एक समूह में एक गैर नियमित अनुसंधान के रूप में जाना जाता है।

किन्तु अनेक संगठनों में प्रबन्ध अंकेक्षण प्रभावोत्पादकता के परीक्षण तथा सुधार हेतु अब एक नियमित गतिविधि माना जा रहा है। यह इस बात का पूर्ण प्रयत्न करता है कि यह प्रबन्धकीय निष्पादन के सभी स्तरों का अवलोकन कर सके। प्रबन्धकीय अंकेक्षण किसी संगठन में निष्पादन की कार्यक्षमता तथा प्रभावोत्पादकता का परीक्षण करता है न कि यह वित्तीय लेखांकन की तरह मात्र वित्तीय तथ्यों पर केन्द्रित होता है।

प्रबंध अंकेक्षण

प्रबन्ध अंकेक्षण के वास्तविक अर्थ के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों के मतों में मतभेद हैं। इसके सबंध में कुछ प्रमुख विद्वानों ने अपने विचार निम्न प्रकार व्यक्त किये हैं-

प्रबन्ध अंकेक्षक को उपक्रम के उद्देश्यों की अभिप्राप्ति की ओर प्रबन्ध तथा प्रबन्धकीय प्रविधियों, सूचना नियंत्रण तंत्र की कार्यक्षमता के परीक्षण का उद्देश्य लेकर संपादित किया जाता है।

चरचिल एवं सेमान्ट

प्रबन्ध अंकेक्षण को निजी कंपनी की संगठनात्मक संरचना के व्यापक तथा रचनात्मक परीक्षण के रूप में परिभाषित किया जा सकता है तथा यह कंपनी की योजनाओं तथा उद्देश्यों, उसकी गतिविधियों के साधन तथा मानवीय एवं भौतिक सुविधाओं के उसके प्रयोग का एक संश्लिष्ट परीक्षण है।

विलियम पी. लेनार्ड

प्रबन्ध अंकेक्षण को कहीं अधिक विशिष्ट तौर पर सर्वोच्च स्तर से नीचे की ओर व्यवसाय के एक अनुसंधान के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, यह निर्धारित करने के लिए कि क्या स्वस्थ प्रबन्ध चारों ओर व्याप्त है, इस प्रकार बाहरी दुनियां के साथ सर्वाधिक प्रभावी सम्बन्ध व्यवस्थित हो सके तथा आन्तरिक तौर पर सर्वाधिक कार्यक्रम संगठन एवं सुचारु परिचालन का मार्ग प्रशस्त हो सके।

लेसले हावार्ड
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आन्तरिक निरीक्षण अर्थ 7 उद्देश्य लाभ हानिप्रमाणन अर्थ परिभाषा 4 उद्देश्य महत्व
लागत अंकेक्षण अर्थ 5 उद्देश्य लाभ हानिप्रबन्ध अंकेक्षण अर्थ कार्य 7 लाभ उद्देश्य सीमाएं

प्रबन्ध अंकेक्षण की अवधारणा

किसी संगठन में सभी स्तरों पर प्रबन्ध की कार्यक्षमता के मूल्यांकन की विधि को प्रबन्ध अंकेक्षण कहा जाता है। इस अंकेक्षण का विकास, उत्पादकता, लाभ एवं प्रगति, की खोज के लिए किया गया है। यह संगठनात्मक उद्देश्यों, नीतियों, प्रविधियों, प्रबन्धकीय विधियों तथा निष्पत्तियों के अनुशीलन का आश्वासन प्रदान करने वाली विधि है अर्थात् यह प्रबन्धकीय कार्यों की समीक्षा तथा नियंत्रण हेतु एक स्वतंत्र मूल्यांकन गतिविधि है।

प्रबन्धकों की प्रभोवत्पादकता के वस्तुनिष्ठ, स्वतंत्र मूल्यांकन, कंपनी उद्देश्यों तथा नीतियों की अभिप्राप्ति में निगमित संरचना की प्रभावोत्पादकता के मूल्यांकन के रूप में जाना जाता है।

सी० आई० एम० ए० लन्दन

प्रबन्ध अंकेक्षण के चरण

प्रबन्ध अंकेक्षण में निम्नलिखित चरणों का समावेश होता है-

  1. प्रत्येक उत्तरदायित्व केन्द्र या क्रियात्मक क्षेत्र के निष्पादन की जांच की जानी चाहिए।
  2. संगठन के उद्देश्यों को चिन्हित करना।
  3. संगठन के सभी उद्देश्यों को विभिन्न प्रखंडों की व्यापक लक्ष्यों एवं योजनाओं के मध्य विभक्त किया जाता है।
  4. गतिविधि के उचित मार्ग को सुझाया जाना चाहिए ।
  5. सभी उद्देश्यों को पूरा किया जा सकता है या नहीं इस बात की व्यापक समीक्षा की जायेगी। इस उद्देश्य हेतु संगठन में उत्तरदायित्व लेखांकन को लागू किया जाना चाहिए।

प्रबन्ध अंकेक्षण के कार्य

प्रबन्ध अंकेक्षण के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं

  1. विपणन इसमें विक्रय एवं वितरण की क्रियायें भी शामिल हैं।
  2. निर्माणी अथवा सेवा (आपूर्ति श्रृंखला तथा मशीनों एवं उपक्रमों का अनुरक्षण)।
  3. चयन, भर्ती, प्रशिक्षण, अभिप्रेरणा, अनुरक्षण, प्रोत्साहन एवं मानवीय संसाधन प्रबन्ध।
  4. वित्त की व्यवस्था करना (इसमें प्रबन्ध को मार्गदर्शन हेतु लेखांकन सूचनाओं का प्रावधान भी शामिल है)
  5. औद्योगिक संबंध एवं सेविवर्गीय नीतियां
  6. शोध एवं विकास (इसमें यदि कोई मूल या प्रयोगात्मक शोध है तो उसे भी शामिल किया जायेगा)।
  7. प्रबन्ध अंकेक्षण का प्रमुख कार्य ऐसी प्रभावी अभिप्राप्ति की जांच करना है जो कि संगठन के प्रत्येक स्तर पर प्रत्येक क्रियात्मक क्षेत्र के लक्ष्यों को सूझ तथा ऐसी लक्ष्यों की प्रभावी तौर पर अभिप्राप्ति प्रबन्ध का मुख्य उत्तरदायित्व होगा।

प्रबन्ध अंकेक्षण की प्रक्रिया

प्रबन्ध अंकेक्षण के विभिन्न चरणों का वर्णन निम्न प्रकार किया जा सकता है-

  1. प्रबन्ध के किसी गतिविधि के क्षेत्र का चयन करना एवं इसके (गतिविधि) के उद्देश्य एवं मानदंडों की स्थापना करना ।
  2. वास्तविक परिणाम मानदंडों, लक्ष्यों या तौर तरीकों की कसौटी पर खरे उतर रहे है कि नहीं, इस बात का निर्धारण करना। यदि ऐसा नहीं है तो इसके कारणों की खोज करना । इसके कारण निम्नलिखित हो सकते हैं-
    • क्या प्रबन्ध की मूल के कारण लक्ष्यों को प्राप्त करना मुश्किल है?
    • क्या लक्ष्यों की प्राप्ति अत्यधिक मुश्किल है?
    • यदि लक्ष्य संगठन तक नहीं पहुंच पाते हैं तो संगठन को क्या दंड अदा करना पड़ रहा है?
  3. लक्ष्यों, तौर तरीकों एवं मानदंडों की पुष्टि को सुनिश्चित करने के लिए क्या किया जाना चाहिए, इस बात का विचार करना, नियोजन, क्रियान्वयन निष्पत्ति एवं नियंत्रण तथा व्यवहारीकरण के मापांकन हेतु कौन से कदम उठाये जाने चाहिए?
  4. अंकेक्षण की खोज पर सिफारिशो की व्यवस्था करना तथा प्रतिवेदन देना।
  5. अंकेक्षण की खोज के लिए साक्ष्य एवं विभिन्न प्रपत्रों को एकत्र करना तथा एक व्यापक अनुसंधान का संचालन करना।

प्रवन्ध अंकेक्षण की प्रविधियाँ

इसे निम्न प्रकार से समझा जा सकता है –

  1. अंकेक्षण करने के लिए आवश्यक पृष्ठभूमि तथा अन्य उपयोगी सूचनाएँ आसानी से प्राप्त हो सके इसलिए जांच की जाने वाली गतिविधि का प्रारम्भिक सर्वेक्षण किया जाना चाहिए।
  2. गतिविधि की सम्बद्ध सत्ताओं एवं किन्ही लागू होने वाली सीमाओं एवं बाधाओं को जानने के लिए तथा अधिकृत उद्देश्यों का निर्धारण करने के लिए जांच की जा रही गतिविधि के लिए उत्तरदायित्व का समर्पण अथवा मौलिक चार्टर का व्यापक अध्ययन किया जाना चाहिए।
  3. जो अंकेक्षण कार्य किये गये हैं उनके परिणामों पर पुनः प्रतिवेदन तैयार किया जाना चाहिए तथा उसे अंकेक्षण की खोजों तथा सिफारिशों को प्रकट करने तथा उन पर अमल करने के लिए उत्तरदायी तत्वों के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए ।
  4. अंकेक्षण के अंतर्गत, गतिविधियों को संचालित करने के लिए स्थापित नीतियो के अध्ययन द्वारा प्रबन्ध नियंत्रण के तंत्र महत्वपूर्ण भागों की समीक्षा करना, अपनाई जाने वाली विशिष्ट परिचालन तथा प्रशासनिक प्रविधियों तथा व्यवहारों की प्रभावोत्पादकता का परीक्षण, तथा पेश होने वाली सभी महत्वपूर्ण कमजोरियों की पूर्ण रूप से खोज करना।

प्रबन्ध अंकेक्षण के उद्देश्य

प्रबन्ध अंकेक्षण वास्तविक परिणामों से सम्बन्ध रखता है। यह अंकेक्षण औपचारिकताओं को पूर्ण करने या न करने से सम्बन्ध नहीं रखता है। प्रबन्ध अंकेक्षण के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं:

  1. यह अंकेक्षण यह सुनिश्चित करने हेतु किया जाता है कि प्रबन्धकों ने अपने कार्य को उचित रूप से निपटाया है अथवा नहीं।
  2. इस अंकेक्षण का द्वितीय मुख्य उद्देश्य यह देखना होता है कि प्रबन्धक पूर्व-निर्धारित व्यावसायिक उ‌द्देश्यों को पाने में सफल रहे हैं अथवा नहीं।
  3. प्रबन्ध अंकेक्षण का उद्देश्य पूर्व-निर्धारित लक्ष्यों तक पहुँचने के लिए प्रबन्धकों को प्रोत्साहित करना होता है।
  4. प्रबन्ध अंकेक्षण से संस्था की प्रबन्धकीय क्षमता का ज्ञान होता है।
  5. विभिन्न वित्तीय एवं बीमा संस्थाएँ प्रबन्ध अंकेक्षण रिपोर्ट के आधार पर व्यावसायिक संस्था को ऋण देने या उसमें विनियोग करने के सम्बन्ध में निर्णय लेती हैं।
  6. संस्था में विदेशी सहयोगियों को भी प्रबन्ध अंकेक्षण रिपोर्ट दी जाती है।

प्रबन्ध अंकेक्षण का क्षेत्र

प्रबन्ध अंकेक्षण के क्षेत्र के अंतर्गत संगठन के सभी कार्य जैसे, सेविवर्गीय प्रबन्ध, सामग्री प्रशासन, प्रशासन; विपणन, शोध एवं वित्त आदि समाहित होते हैं। जहाँ पर भी यह समझा जाये कि प्रबन्ध की प्रभावोत्पादकता की जांच करना आवश्यक है। वह अंकेक्षण का क्षेत्र है। इस प्रकार प्रबन्ध अंकेक्षण के क्षेत्र में निम्न का समावेश हो सकता है –

  1. संगठन के संसाधनों का प्रभावशाली उपयोग।
  2. कर्मचारी संबंध (औद्योगिक संबंध)।
  3. संगठन के अपेक्षित उद्देश्यों के साथ संगठन की व्यावहारिकता, उपयुक्तता एवं विद्यमान अनुशीलन आदि।
  4. पूंजी पर निवेशकों की प्रत्याय की दर पर्याप्त है या निम्न अथवा औसत से कहीं अधिक है।
  5. विभिन्न स्तरों पर प्रबन्ध के उद्देश्य तथा प्रभावोत्पादकता, जैसे उच्च स्तर, मध्यम स्तर एवं क्रियात्मक स्तर।
  6. अपने औद्योगिक एवं वाणिज्यिक दायरे के अंतर्गत आम जनता, ग्राहकों एवं सरकार के साथ संगठन की वर्तमान छवि।
  7. उत्पादन, विक्रय एवं वितरण तथा संगठन के दूसरे कार्यों से संबंधित नियंत्रण एवं वित्तीय नीतियाँ।

प्रबन्ध अंकेक्षण के लाभ

प्रबन्ध अंकेक्षण के प्रमुख लाम निम्नलिखित हैं –

  1. प्रबन्ध अंकेक्षण नियोजन व्यवस्था की स्थापना समीक्षा तथा सुधार में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह करता है।
  2. प्रबन्ध अंकेक्षण इस बात का आश्वासन प्रदान करता है कि प्रबन्धकों को सही निर्णयन हेतु पर्याप्त सूचनाएँ प्राप्त हो रही है।
  3. यह मूल नीतिगत ढांचे की रचना में प्रबन्ध द्वारा अपेक्षित लेखांकन, आर्थिक तथा अन्य संकलन में उपयोगी सिद्ध होता है।
  4. यह इस बात को सुनिश्चित करता है कि जो सूचनाएँ प्राप्त हो रही हैं उनका पूर्ण रूप से उपयोग किया जा रहा है।
  5. यह संगठन में उद्देश्य स्थापना की व्यवस्था के प्रति अपना बहुमूल्य योगदान प्रदान करता है।
  6. वास्तविक रूप से यह संपूर्ण सम्प्रेषण तंत्र के सुधार में यथार्थ योगदान प्रदान करता है।
  7. यह पर्याप्त अधिकार संरचना की अभिकल्पना एवं अनुरक्षण में अनिवर्चनीय भूमिका का निर्वाह करता है ।
  8. यह प्रबन्ध की लाम सृजन की प्रक्रिया में मुख्य कार्यों अथवा गतिविधियों को चिन्हित करने में सहायता करता है।
  9. यह सूचना तंत्र के सुधार में विभिन्न उत्तरदायित्व केन्द्रों के बीच सूचनाओं के प्रवाह को सुचारु रूप से बनाने के लिए सहायक होता है।
  10. यह परिणामों के मापांकन हेतु सुघरे हुए मापदंडों की स्थापना में प्रबन्ध की बहुमूल्य सेवा करता है।
  11. यह प्रबन्ध का समय बर्बाद होने से बचाता है।

प्रबन्धन अंकेक्षण की सीमाएं

प्रबन्धकीय अंकेक्षण की प्रमुख सीमाएं निम्नलिखित हैं –

  1. प्रबन्धकीय अकेक्षण में प्रबन्ध की सहायता का अभाव रहता है।
  2. इसका वित्तीय सम्बन्धों से किसी प्रकार का लेन-देन नहीं रहता है।
  3. यह विगत निष्पत्ति के ऐतिहासिक अभिलेखों का परीक्षण नहीं करता है।
  4. यह कम्पनी की वित्तीय स्थिति की सही एवं सच्ची छवि प्रस्तुत करने में अक्षम रहता है।
  5. यह अंकेक्षण अंकेक्षक की स्वतन्त्रता को रिपोर्ट तक सीमित कर देती है तथा केवल निर्दिष्ट तक बांधकर रख देती है।
  6. यह अंकेक्षण नेतृत्व तथा निर्णयन में उच्च प्रबन्ध की भूमिका का परीक्षण तथा विश्लेषण नहीं करता है।
  7. इसकी रिपोर्ट अंशधारियों के सामने नहीं आ पाती है।
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