प्रधानाचार्य शिक्षक संबंध द्विपक्षीय हैं। दोनों ही एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। शिक्षक जहां प्रशासन से शिक्षण की समुचित परिस्थितियों को जुटाने की अपेक्षा करते हैं, वहीं प्रशासन भी शिक्षक से उसकी क्षमता तथा योग्यता के अनुसार काम करने की अपेक्षा रखता है।
यदि प्रधानाचार्य शिक्षकों से अच्छे कार्य की अपेक्षा रखता है तो उसे शिक्षकों के कार्यों की प्रशंसा करनी चाहिए। शिक्षकों के अच्छे कार्यों की प्रशंसा करने से शिक्षकों के कार्य में वृद्धि होती है।
प्रधानाचार्य को समूह में शिक्षक विशेष की बुराई नहीं करनी चाहिए। ठीक रहेगा कि पहले अलग से शिक्षक को समझाना चाहिए।


प्रधानाचार्य शिक्षक संबंध
अध्यापक तथा प्रधानाचार्य के आपसी संबंधों के विकास के संबंध में क्रिस्टोफर ने प्राचार्य के लिए 10 सूत्र बताए हैं-
- शिक्षकों के साथ पिता के समान संबंध रखें।
- प्रधानाचार्य को जानना चाहिए कि वह जिन अध्यापकों को नहीं चाहता है वह अध्यापक भी उसे नहीं चाहते हैं।
- प्रत्येक शिक्षक की अच्छाइयों को उसे देखना चाहिए।
- यदि संभव हो तो उन प्रशासनिक कदमों को रोकना चाहिए जिनका व्यक्ति विरोध करते हैं।
- आम बैठक में किसी शिक्षक की आलोचना नहीं करनी चाहिए।
- कभी भी यह सिद्ध करने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए कि वह गलती पर हैं।
- शिक्षकों से मिलने के सभी अवसरों को विद्यालय के विकास में लगाना चाहिए।
- शिक्षक प्रधानाचार्य की संयुक्त बैठक में आनंद तथा लाभ की परिणति होनी चाहिए।
- सामूहिक लक्ष्य प्राप्ति में व्यक्तिक लाभों को छोड़ने का प्रयत्न करना चाहिए।
- प्रधानाचार्य से शिक्षक को अधिक आनंद मिले तो श्रेयस्कर है।