प्रतिभाशाली बालक की विशेषताएँ पहचान व शिक्षा के 11 सिद्धांत

प्रतिभाशाली बालक की विशेषताएँ हमें सामान्य बालकों से तुलना करने में मदद करती है। ये बालक सम्पूर्ण राष्ट्र हेतु अमूल्य विधि हैं। ये बालक उच्च बुद्धिलब्धि के होते हैं। इनकी बुद्धिलब्धि सामान्यतः 130-140 से उच्च होती है। ये बालक साधारण बालकों से बहुत योग्य होते हैं, जो कार्य इन्हें प्रदान किया जाता है। ये उन्हें शीघ्र पूर्ण कर लेते हैं। ये बालक साधारण बालकों के साथ शिक्षा प्राप्त करने असमर्थ रहते हैं तथा उनकी कक्षा में अरुचि महसूस करते हैं।

प्रतिभाशाली बालक

प्रतिभाशाली शब्द का प्रयोग उन एक प्रतिशत बालकों के लिए किया जाता है, जो सबसे अधिक बुद्धिमान होते हैं।

स्किनर एवं हैरीमैन के अनुसार

प्रतिभाशाली बालक शारीरिक गठन, सामाजिक समायोजन, व्यक्तिगत के लक्षणों, विद्यालय उपलब्धि, खेल की सूचनाओं और रुचियों की बहुरूपता में सामान्य बालकों से बहुत श्रेष्ठ होते हैं।

टरमन व ओडन के अनुसार

प्रतिभाशाली बालक दो प्रकार के होते हैं- (1) वे बालक, जिनकी बुद्धि-लब्धि 130 से अधिक होती है और जो असाधारण बुद्धि वाले होते हैं। (2) वे बालक जो कला, गणित, संगीत, अभिनय आदि में एक या अधिक से विशेष योग्यता रखते हैं।

क्रो व क्रो के अनुसार

प्रतिभाशाली बालक शब्द का अभिप्रायः बालक की उच्च बुद्धि-लब्धि से लगाया जाता है।

अब्दुल अफ के अनुसार

वह प्रत्येक बालक जो अपने आयु स्तर के बच्चों में किसी योग्यता में अधिक हो और जो हमारे समाज के लिए महत्वपूर्ण नया योगदान कर सकें।

कॉलसनिक

जो सामान्य बुद्धि की दृष्टि से श्रेष्ठ प्रतीत हो या उन लोगों में जिनका अधिक बुद्धि-लब्धि से सम्बन्धित होना जरूरी नहीं, अति विशिष्ट योग्यताएँ रखता हो।

प्रेम पसरीचा के अनुसार

प्रतिभाशाली बालक की पहचान

प्रत्येक विद्यालय में विभिन्न प्रकार के बालक होते हैं। उनमें व्यक्तिगत भिन्नताएँ होती हैं। यहाँ पर व्यक्तिगत विभिन्नताओं के आधार पर प्रतिभाशाली बालकों का चयन करना अध्यापकों हेतु एक कठिनाई का विषय है। इनकी पहचान करने के लिए कई प्रविधियों का प्रयोग करना पड़ता है क्योंकि यह जरूरी नहीं है कि बालक एक ही प्रविधि के प्रयोग के पश्चात् पहचाना जा सके। अतः बालकों की पहचान हेतु निम्नलिखित प्रविधियों का प्रयोग किया जाता है-

  1. बुद्धि परीक्षण – प्रतिभाशाली बालकों की पहचान हेतु अध्यापकों के द्वारा कई बुद्धि परीक्षण किये जाते हैं। यह परीक्षण निम्नलिखित प्रकार के होते हैं- (i) शाब्दिक तथा अशाब्दिक परीक्षण, (ii) व्यक्तिगत तथा सामूहिक परीक्षण। इन बुद्धि परीक्षणों का वर्गीकरण भाषा के प्रयोग के आधार पर किया जाता है तथा शाब्दिक परीक्षणों के अन्तर्गत पेन तथा पेंसिल का प्रयोग किया जाता है जबकि अशाब्दिक परीक्षणों के अन्तर्गत कोई क्रिया करवा कर परीक्षण किया जाता है। टरमन के शब्दों में, वह बालक जो कि 140 से अधिक बुद्धि लब्धि का है, वह प्रतिभाशील बालकों की श्रेणी में आता है। अतः यह उत्तम प्रविधि होती है।
  2. निष्पत्ति परीक्षण – प्रतिभाशाली बालकों की खोज तथा हेतु शिक्षा के क्षेत्र में अध्यापक निष्पत्ति परीक्षणों की सहायता ली जाती है। इन परीक्षणों के माध्यम से बालकों की शैक्षिक उपलब्धियों का ज्ञान आसानी से प्राप्त हो सकता है।
  3. अभिरुचि परीक्षण – अभिरुचि परीक्षणों के अन्तर्गत बालकों की अभिरुचि के आधार पर उन्हें पहचाना जाता है। यह परीक्षण यह भी बता सकता है कि बालक भविष्य में क्या बनना चाहता है तथा उसकी रुचि किन-किन कार्यों में है । परन्तु इन परीक्षणों में शिक्षकों का प्रशिक्षित होना भी अति अनिवार्य होता है क्योंकि इस प्रकार के परीक्षणों से प्राप्त अंकों का अर्थापन भी प्रशिक्षित व्यक्ति द्वारा ही किया जा सकता है।
  4. सम्बन्धित बालकों की सूचनाएँ – प्रतिभाशाली बालकों की पहचान करने के लिए सम्बन्धित व्यक्तियों से सम्बन्ध करना आवश्यक होता है। सम्पर्क के बाद उनसे रिपोर्ट माँगी जाती है। इन सभी व्यक्तियों में बालकों के माता-पिता, अध्यापक, आस-पड़ौस के लोग व उनके मित्रगण सम्मिलित हैं। इन सभी लोगों से आवश्यक सूचनाएँ लेकर शिक्षक प्रतिभाशाली बालकों की प्रतिभा तथा उसके स्तर को भली-भाँति जान सकता है। इसके अतिरिक्त ‘प्रतिभा खोज’ प्रतियोगिताएँ आयोजित करके अपनी प्रतिभा की खोज का प्रयत्न करते हैं। यह प्रतियोगिताएँ अत्यन्त ही लाभदायक होती हैं।
  5. अवलोकन विधियाँ – अवलोकन विधियों के अन्तर्गत बालकों की क्रियाओं को लगातार देखा जाता है। तत्पश्चात् मूल्यांकन के पश्चात् यह पता चलता है कि बालक वाकई में प्रतिभाशाली है अथवा नहीं। यह भी उत्तम विधि कहलाती है।
  6. बालकों के गुणों के आधार पर पहचान – प्रतिभावान बालकों को उनके गुणों के आधार पर ही पहचाना जाता है। चूँकि इन बालकों में कुछ अलग से विशिष्ट गुण विद्यमान रहे हैं। अतः उनके आधार पर ही बालकों की पहचान की जाती है, यह गुण निम्नलिखित हैं-
    • यह बालक कक्षा में किये कार्यों को समझते हैं।
    • यह बालक किये गये कार्यों को सुगमता से याद करते हैं।
    • यह सामान्य बुद्धि का प्रयोग करते हैं।
    • यह कठिन कार्यों को भी सुगमता से कर लेते हैं।
    • इन बालकों का चिन्तन सदैव मौलिक होता है।
    • यह सोचने, समझने, अर्थों को समझने तथा सम्बन्धों को पहचानने में दक्ष होते हैं।

प्रतिभाशाली बालक की विशेषताएँ

प्रतिभाशाली बालकों में कई प्रकार की विभिन्नताएँ पायी जाती हैं तथा इन्हीं विभिन्नताओं के आधार पर ही उनकी अलग-अलग विशेषताएँ भी होती हैं, प्रतिभाशाली बालक की विशेषताएँ अग्रलिखित हैं-

  1. शारीरिक विशेषताएँ – शारीरिक रूप से तो प्रत्येक बालक एक जैसे ही होते हैं परन्तु फिर भी प्रतिभावान बालकों में कुछ अलग-सी विशेषताएँ होती हैं, जो कि निम्नलिखित हैं-
    • इसकी इन्द्रिय शक्ति अत्यन्त तीव्र होती है।
    • प्रतिभाशाली बालकों के अन्दर एक मुख्य लक्षण यह देखा गया है, कि इन बालकों के दाँत सामान्य बालकों से दो माह पहले ही निकल आते हैं। साथ ही यह बालक सामान्य बालकों की अपेक्षा जल्दी चलना सीख जाते हैं तथा यह जल्दी बोलना भी सीखते हैं।
    • इन बालकों में शारीरिक दोष नहीं होते अथवा बहुत कम होते हैं।
    • यह कद – भार तथा शारीरिक रूप में अधिक विकसित होते हैं।
    • यह बालक सामान्य बालकों की अपेक्षा अधिक स्वस्थ होते हैं। टरमन तथा विटी ने भी एक शोध के दौरान यह पाया कि यह बालक सामान्य बालकों की अपेक्षा अधिक स्वस्थ होते हैं तथा यह कद में भी भारी होते हैं। अतः कहा जा सकता है कि उक्त बालक शारीरिक रूप से सामान्य बालकों से अलग होते हैं।
  2. सामाजिक विशेषताएँ – प्रतिभाशाली बालक सामान्य बालकों से सामाजिक रूप से भी भिन्न होते हैं। इन बालकों में निम्नलिखित सामाजिक विशेषताएँ पायी जाती हैं-
    • यह बालक लोगों के साथ अत्यन्त मिलनसार व्यवहार करते हैं तथा यह अत्यन्त हँसमुख स्वभाव के होते हैं। अपने इसी व्यवहार व प्रकृति के कारण यह सहपाठियों तथा शिक्षकों के बीच लोकप्रिय होते हैं।
    • यह बालक घर में, विद्यालय तथा मोहल्ले आदि में किसी भी कार्य को जिम्मेदारी के साथ करते तथा कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं।
    • यह बालक अपने मित्र अपने से बड़ी उम्र के बनाते हैं। परन्तु खेल के समय यह अपने ही मित्रों का साथ रखते हैं।
    • इन बालकों में नेता के गुण पाये जाते हैं।
    • यह बालक साहित्यिक कार्यों में भी रुचि दिखाते हैं।
    • यह बालक गतिविधियों में सम्मिलित रहते हैं।
    • 1925 में टरमन ने 500 प्रतिभाशाली बच्चों के ऊपर शोध व अध्ययन करने के पश्चात् यह पता लगाया कि यह बालक ईमानदार, सत्य बोलने वाले तथा हर परिस्थितियों के साथ समायोजन करने वाले होते हैं।
  1. संवेगात्मक विशेषताएँ – प्रतिभाशाली बालकों में कई संवेगात्मक विशेषताएँ पायी जाती हैं, जो कि निम्नलिखित हैं-
    • यह बालक सामाजिक दृष्टि से सुदृढ़ होते हैं।
    • यह बालक सदैव प्रसन्न रहते हैं।
    • इनका चरित्र व व्यक्तित्व दूसरे बालकों से अत्यन्त श्रेष्ठ होता है।
    • नई परिस्थितियाँ तथा नये लोगों के साथ यह शीघ्र समायोजन कर लेते हैं।
    • संवेगात्मक रूप से बालक स्थिर व समायोजित होते हैं।
  2. बौद्धिक विशेषताएँ – प्रतिभाशाली बालकों में निम्नलिखित बौद्धिक विशेषताएँ पायी जाती हैं-
    • यह बालक स्पष्टवादी, श्रेष्ठ तथा फुर्तीले होते हैं।
    • यह बालक तीव्र अधिगम वाले होते हैं तथा सरलता से याद कर लेते हैं।
    • यह बालक अन्य कार्यों में अपने को श्रेष्ठ प्रदर्शित कर लेते हैं।
    • इन बालकों की योग्यता तथा रुचियाँ सामान्य बालकों से अलग होती हैं।
    • इन बालकों की अवधान का विस्तार भी अधिक होता है।
    • इनमें तर्क करने की योग्यता अधिक होती है।
    • इन बालकों में ज्ञान की जिज्ञासा तथा हास्य विनोद का स्वभाव तथा सामान्य बुद्धि सामान्य बालकों से अधिक होती है।
    • इन बालकों की मानसिक गति सामान्य बालक से श्रेष्ठ होती है।
  1. लिंगीय विशेषताएँ – प्रतिभाशाली बालकों में लिंग सम्बन्धी भी पायी जाती हैं। लड़के तथा लड़कियों में कौन अधिक प्रतिभाशाली होते हैं इसका अभी तक कोई भी संतोषजनक उत्तर नहीं प्राप्त हुआ है। कई अध्ययनों में लड़कों की बुद्धि-लब्धि (I.Q.) लड़कियों में अधिक पायी गयी है। टरमन (1925) 643 विद्यालयों के बच्चों में से 121 प्रतिभाशाली लड़के तथा केवल 100 प्रतिभाशाली लड़कियों को ही पहचान पाये। लेकिन जैनकिन्स (1936) को नीग्रो जनसंख्या के अध्ययन में अधिक प्रतिभाशाली लड़कियाँ मिलीं।
  2. पाठ्य सहगी क्रियाएँ – प्रतिभाशाली बालकों की पाठ्य सहगामी क्रियाओं में भी अत्यन्त रुचि होती है। इसके अतिरिक्त इन बालकों में निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं-
    • यह बालक विद्यालय जाने में अत्यधिक रुचि प्रकट करते हैं।
    • यह बालक खेलों में अधिक रुचि लेते हैं। यह बालक अपने से अधिक आयु के बच्चों के साथ खेलना अधिक पसन्द करते हैं तथा कम आयु के बच्चों के साथ यह कम समय व्यतीत करते हैं।
    • प्रतिभाशाली बालक उन क्रियाओं तथा खेलों में अधिक रुचि लेते हैं जिनमें मानसिक कार्यों को करने की अत्यधिक आवश्यकता पड़ती है।
    • विटी तथा लेहमन ने कहा है, कि प्रतिभाशाली लड़कियाँ अधिकतर खेल गतिविधियों में व्यस्त रहती हैं। परन्तु प्रतिभाशाली बालक शारीरिक खेलों में कम रुचि लेते हैं। यह पढ़ाई-लिखाई के कार्यों में अधिक रुचि लेते हैं।
  1. शिक्षा सम्बन्धी उपलब्धि – प्रतिभाशाली बालकों में शिक्षा सम्बन्धी निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-
    • यह बालक पाठ्यक्रम को समझने में अधिक समय लगाते हैं।
    • यह बालक पढ़ने-लिखने में अन्य बालकों से अधिक उपलब्धियाँ प्राप्त करते हैं।
    • यह बालक भूगोल, साहित्य, विज्ञान तथा व्याकरण आदि विषयों में अध्यापक के द्वारा श्रेष्ठ घोषित किये जाते हैं।
    • उपलब्धि तथा बुद्धि का सह-सम्बन्ध इन बालकों में अधिक पाया जाता है।
    • यह बालक अच्छे कार्य करके पुरस्कार जीतने में कामयाब रहते हैं, जैसे- निबन्ध लेखन प्रतियोगिता आदि।
    • यह बालक पढ़ाई-लिखाई में वास्तविक रुचि लेते हैं।
  2. सांस्कृतिक विशेषताएँ – प्रतिभाशाली बालकों की सांस्कृतिक विशेषताएँ निम्नलिखित होती हैं-
    • विद्वानों ने सांस्कृतिक कारकों को अत्यन्त महत्व दिया है। ऐसा ही अध्ययन इंग्लैण्ड तथा न्यूजीलैण्ड में 1962 में बर्ट ने भी किया। जिसमें इन्होंने सांस्कृतिक अध्ययन को महत्व दिया।
    • इन बालकों की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि अत्यन्त ही प्रभावशाली होती है।
    • इनका सामाजिक व सांस्कृतिक स्तर अन्य बालकों से ऊँचा होता है।
    • 1956 में कोल ने एक अध्ययन किया जिसमें यह पता लगा कि प्रतिभाशाली बालकों के माता-पिता के व्यावसायिक स्तर में धनात्मक सह-सम्बन्ध पाया गया है लेकिन यह सह-सम्बन्ध सिर्फ पूर्व बाल्यावस्था तक ही पाया जाता है। प्रतिभाशाली बालक की विशेषताएँ
    • प्रतिभाशाली बालक उत्तम पुस्तकें पढ़ते हैं तथा यह कम प्रभुत्ववादी होते हैं।
    • इन बालकों के घर साफ तथा अन्य बालकों से श्रेष्ठ होते हैं।
  3. इन बालकों के माता-पिता सामान्य से अधिक शिक्षित होते हैं।
  4. नकारात्मक विशेषताएँ – प्रतिभावान बालकों में निम्नलिखित नकारात्मक विशेषताएँ पायी जाती हैं-
    • यह बालक अत्यन्त नटखट तथा शोर मचाने वाले होते हैं।
    • यह बालक अभिमानी होते हैं।
    • ऐसे बालकों की रुचि दूसरों की आलोचना करने में अधिक होती है।
    • प्रतिभाशाली बालक कई बार अत्यधिक लापरवाह होते हैं।

प्रतिभाशाली बालक की शिक्षा

प्रतिभाशाली बालक जहाँ एक ओर अनेक विशेषताएँ वाले होते हैं, वहीं दूसरी ओर इनकी बहुत-सी समस्याएँ भी होती हैं। इनके अतिरिक्त इन बालकों को शिक्षा देने के लिए भी अनेक सिद्धान्तों का निर्माण करना पड़ता है। यह सिद्धान्त निम्नलिखित होते हैं-

  1. सर्वांगीण विकास करना – प्रतिभाशाली बालक वह होते हैं जो कि हर क्षेत्र में आगे रहते हैं। परन्तु इन बालकों का सर्वांगीण विकास करना अति आवश्यक होता है। इन बालकों के एक ही पक्ष को विकसित करना चाहिए। इनके साथ-साथ इन बालकों के बौद्धिक तथा शैक्षिक पक्षों को भी विकसित किया जाना चाहिए अन्यथा यह बालक कुसमायोजित हो जाते हैं। अतः जीवन के हर पक्ष को समायोजित करके इनका सर्वांगीण अति अनिवार्य होता है।
  2. तरक्की देना – प्रतिभावान बालकों को यदि कक्षा में कार्य करने में सम्पूर्ण पाठ्यक्रम अत्यन्त ही सरल लगे तो इन्हें तरक्की दे देनी चाहिए। अर्थात् जैसे- एक बालक इतनी तीव्र बुद्धि का है कि वह कक्षा दो का पाठ्यक्रम बहुत तीव्रता से पूरा कर लेता है तो उसे दो माह तक कक्षा दो में पढ़ाकर तीव्रता तथा बुद्धि-लब्धि के अनुसार तरक्की प्रदान कर देनी चाहिए। आज बहुत से विद्यालयों में यह प्रविधि अपनाई जाती है तथा बालकों को तरक्की प्रदान करके अगली कक्षा में जाता है।
  3. व्यक्तिगत ध्यान देना – प्रत्येक अध्यापक को कक्षा में सभी छात्रों के ऊपर व्यक्तिगत रूप से ध्यान देना चाहिए, परन्तु प्रतिभावान बालक कक्षा में एक या दो ही पाये जाते हैं। अतः शिक्षक को इन बालकों के ऊपर तो व्यक्तिगत रूप से ध्यान देना अति अनिवार्य होता है। इस प्रकार से इन बालकों पर व्यक्तिगत रूप से शिक्षण प्रदान करके उन्हें उचित रूप से विकसित किया जा सकता है।
  4. विशेष विद्यालय व पाठ्यक्रम – प्रतिभावान बालकों की शिक्षा के लिए विशेष विद्यालयों की व्यवस्था की जानी चाहिए। इनके लिए सामान्य पाठ्यक्रम के अतिरिक्त कुछ विशेष पाठ्यक्रमों की भी व्यवस्था की जानी चाहिए। परन्तु इस बात का ध्यान रखें कि यह पाठ्यक्रम इतना विस्तृत न हो कि बालक इनके बोझ तले दब जाएँ। प्रतिभाशाली बालक की विशेषताएँ
  5. अच्छे पुस्तकालय व प्रयोगशालाएँ – प्रतिभावान बालकों हेतु अच्छे पुस्तकालय तथा प्रयोगशालाओं का निर्माण किया जाना चाहिए, ताकि यह उचित ज्ञानार्जन करके अपने को विकसित कर सकें।
  6. विशेष शिक्षण विधियाँ – प्रतिभाशाली बालकों को पढ़ाने के लिए शिक्षण विधियों की आवश्यकता होती है। ऐसे छात्रों की प्रयोगात्मक कार्य, रचनात्मक कार्य तथा शोध कार्य आदि में रुचि होती है। अतः इनकी शिक्षण विधियों में प्रोजेक्ट विधि, अभिनय विधि, स्वतन्त्र अध्ययन, शोध विधि, पर्यटन विधि तथा नवीन उपकरणों का प्रयोग करना चाहिए।
  7. पाठ्य सहगामी क्रियाएँ – प्रतिभावान बालकों का पूर्ण विकास करने के लिए उन्हें खेल, खेल प्रतियोगिताओं, नाटक, संगीत, नृत्य, भाषण एवं अन्य सामूहिक क्रियाओं में लगाना चाहिए।
  8. प्रतिभाशाली अध्यापक – प्रतिभाशाली बालकों को पढ़ाने हेतु कई प्रतिभाशाली अध्यापकों का भी चयन करना अत्यन्त ही आवश्यक है। इन अध्यापकों में उत्कृष्ट वृद्धि, समृद्ध व्यक्तित्व, अभिप्रेरण प्रदान की क्षमता, सहानुभूति, आलोचना सहन करने की शक्ति, ज्ञान के प्रति प्रेम, सामाजिक उत्तरदायित्व तथा सामान्य ज्ञान का होना अति आवश्यक होता है।
  9. पाठ्यक्रम में समृद्धि – प्रतिभाशाली बालक किसी भी कार्य को समझने में सामान्य बालकों से कम समय लेते हैं। अतः इनका पाठ्यक्रम समृद्ध होना चाहिए। होलिंगवर्थ ने पाठ्यक्रम को समृद्ध बनाने हेतु निम्नलिखित कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिए बताया है-
    • जीवनगाथाओं का अध्ययन,
    • नागरिकता का अध्ययन,
    • विशिष्ट योग्यताओं का प्रशिक्षण।
  10. बालक शिक्षा का आधार – प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा उसके अध्ययनों तथा उनकी प्रतिभाओं पर आधारित होनी चाहिए। इसी प्रकार से यह शिक्षा प्रतिभाशाली बालक केन्द्रित होनी चाहिए अन्यथा इनकी प्रतिभा व्यर्थ चली जायेगी। अतः इन्हें आधारित रखकर शिक्षा को निर्धारित करना चाहिए।
  11. असहमन्यता को रोकना – प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा की व्यवस्था करते समय बालकों की अहमन्यता को रोकना अति आवश्यक होता है। अतः उपर्युक्त सभी व्यवस्थाओं को करके प्रतिभाशाली बालकों को शिक्षा दी जाती है। इस विषय में हॉलिंगवर्थ ने भी कहा है कि प्रतिभावान बालकों को अपनी संस्कृति के विकास की शिक्षा दी जानी चाहिए ताकि वह समाज में अपना उचित स्थान ले सकें ।

समस्त प्रकार के विशिष्ट बालक वह होते हैं जो कि अपनी योग्यताओं, क्षमताओं तथा व्यवहारों के कारण या तो औसत बालकों से बहुत उच्च बुद्धि के होते हैं अथवा बहुत निम्न बुद्धि के होते हैं अर्थात् कहा जा सकता है कि यह बालक सामान्य से अलग होते हैं। इसी प्रकार हम कुछ बालक ऐसे देखते हैं, जिन्हें नई-नई वस्तुएँ बनाने तथा नये नये कार्यों को करने का शौक होता है। यही बालक सृजनात्मक बालक कहलाते हैं।

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