पिछड़ा वर्ग समस्या समाधान सुझाव – पिछड़ा वर्ग शब्द का प्रयोग समाज के कमजोर वर्गों विशेषत: अनुसूचित जातियों, जनजातियों और पिछड़े वर्गों के संदर्भ में किया जाता है। भारतीय संविधान में पिछड़ा वर्ग शब्द का प्रयोग किया गया है।
सामान्यत: इन वर्गों में अनुसूचित जातियों, जनजातियों, भूमिहीन श्रमिकों एवं लघु कृषकों आदि को शामिल किया जाता है। समाज में इन लोगों का स्थान अस्पृश्य जातियों से ऊपर किंतु ब्राह्मणों से होता है। भारतीय संविधान में इन वर्गों के लिए अनेकों सामाजिक व शैक्षणिक प्रावधान किए गए हैं। आरक्षण की भी व्यवस्था की गई है।
पिछड़ा वर्ग परिभाषा
पिछड़ा वर्ग की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं दी गई है बल्कि उनका आशय ही केवल स्पष्ट किया गया है। पिछड़ा वर्ग की व्याख्या निम्न प्रकार की गई है-
सर्वप्रथम पिछड़ा वर्ग शब्द का प्रयोग सन 1917-18 में एवं इसके बाद 1930-31 में किया गया। सन 1934 में मद्रास में पिछड़े वर्ग संघ की स्थापना की गई। जिसमें 100 से अधिक जातियों को शामिल किया गया। जिनकी कुल संख्या मद्रास में लगभग 50% थी। सन 1957 में त्रावणकोर राज्य ने आर्थिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े हुए समुदायों के लिए पिछड़े समुदायों का प्रयोग किया।

सन् 1947 में बिहार में पिछड़ा वर्ग महासंघ की स्थापना की गई। बिहार सरकार ने इन वर्गों को शैक्षणिक सुविधाएं भी प्रदान किए हैं। इसे निम्न प्रकार परिभाषित भी किया गया है-
पिछड़े वर्गों का आशय समाज के उस वर्ग से है जो सामाजिक आर्थिक और शैक्षणिक प्रयोग्यताओं के कारण समाज के अन्य वर्गों की तुलना में नीचे स्तर पर हो। यद्यपि संविधान में इस समूह का अनेक स्थानों पर प्रयोग हुआ है। लेकिन इसकी परिभाषा नहीं की गई है।
पिछड़ा वर्ग समस्या
भारत में कमजोर वर्ग की अनेकों प्रमुख समस्याएं हैं, जिनमें से कुछ का वर्णन यहां पर किया गया है-
- रोजगार की समस्या
- कार्य की दशाएं
- अल्प आय
- निम्न जीवन स्तर
- सहायक धंधों का अभाव
- ऋणग्रस्तता
- संगठन का अभाव
- दयनीय सामाजिक स्थिति
- हरित क्रांति
1. रोजगार की समस्या
पिछड़े वर्गों की मुख्य समस्या रोजगार की है। अतः उन्हें रोजगार नहीं प्राप्त हो पाता है। जिसके कारण इनका जीवन निर्धनता से भरा रहता है।
2. कार्य की दशाएं
पिछड़े वर्गों की कार्य की दशाएं अत्यंत दयनीय है। जिसके कारण इन्हें कठोर परिश्रम करना पड़ता है। इनके कार्य के घंटे अनिश्चित और अनियमित होते हैं। तथा इन्हें अवकाश व अन्य सुविधाएं उपलब्ध नहीं होती हैं।
3. अल्प आय
इन वर्गों को अधिकांश समय बेरोजगार रहना पड़ता है। जितने दिनों इन्हें कार्य मिलता भी है तो इन्हें बहुत कम मजदूरी मिलती है क्योंकि यह लोग अशिक्षित होते हैं जिसके कारण इनकी आए काफी कम होती है।
4. निम्न जीवन स्तर
इनकी आय कम होने के कारण इनका जीवन स्तर भी काफी निम्न होता है। ये अपनी आय का लगभग 77% भाग खाद्य पदार्थों पर, 6% भाग वस्त्रों पर, 8% ईंधन व प्रकाश पर, 9% सेवाओं व अन्य मदों पर व्यय करते हैं। सामान्यतः यह लोग निम्न प्रकार का ही भोजन करते हैं। पौष्टिक भोजन इनके लिए दुर्लभ होता है।
5. सहायक धंधों का अभाव
ग्रामीण क्षेत्रों में सहायक धंधों का अभाव पाया जाता है। यदि गांवों में किसी प्रकार बाढ़ सूखा एवं अकाल आदि के कारण फसलें नष्ट हो जाती हैं, तो इन वर्गों को कोई अन्य जीवन निर्वाह का साधन नहीं मिल पाता है। परिणाम स्वरूप में परेशान होते चले जाते हैं।

6. ऋणग्रस्तता
इन वर्गों की आय काफी कम होती है जिसके कारण ये अधिकांशत: ऋण ग्रस्त होते हैं। यहां तक कि इन्हें अपनी आवश्यक आवश्यकताओ की पूर्ति के लिए भी ऋण लेना होता है।
7. संगठन का अभाव
इन वर्गों में संगठन का अभाव पाया जाता है यह लोग अशिक्षित एवं अज्ञानी है। तथा देश के दूर-दूर भागों में फैले हुए हैं। संगठन के अभाव में यह लोग अपनी आवाज एक साथ नहीं उठा पाते हैं।
8. दयनीय सामाजिक स्थिति
देश के अधिकांश खेतिहर मजदूर दलित व उपेक्षित जातियों के सदस्य हैं। जिनका सामाजिक स्तर बहुत निम्न होता है और विभिन्न प्रकार से इनका शोषण भी किया जाता है। इसके अतिरिक्त इन्हें कई अधिकारियों से वंचित भी कर दिया जाता है।
9. हरित क्रांति
हरित क्रांति के अंतर्गत कृषि में उत्पादन के परंपरागत साधनों एवं यंत्रों के स्थान पर नवीन साधनों का प्रयोग किया जाता है। इससे उत्पादन में वृद्धि होती है। हरित क्रांति का वास्तविक लाभ गांव के बड़े भूस्वामी ओं एवं किसानों को मिला। जबकि छोटे किसानों एवं खेतिहर मजदूरों को इसका कोई लाभ नहीं मिला। हरित क्रांति ने गांवों की आर्थिक असमानता को अधिक प्रोत्साहित किया तथा इस क्रांति के फलस्वरूप असंतोष में भी वृद्धि हुई।

उपरोक्त समस्याओं का अध्ययन करने से या स्पष्ट होता है कि कमजोर वर्ग की अनेकों समस्याएं हैं जिसके कारण उनका पूर्ण विकास नहीं हो पा रहा है, इन कमजोर वर्गों के विकास ना हो पाने के कारण देश का भी विकास नहीं हो पाता है।
पिछड़ा वर्ग की समस्या समाधान हेतु सुझाव
पिछड़ा वर्ग की समस्या समाधान हेतु निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं-
- कार्य की दशा में सुधार किया जाए
- इनके कार्य की दशाओ व घंटों का निर्धारण किया जाए।
- इनके लिए न्यूनतम मजदूरी का निर्धारण और उसे लागू करने हेतु समुचित व्यवस्था की जाए।
- इनके लिए उचित आवास की व्यवस्था की जाए।
- इनमें संगठन की भावना उत्पन्न की जाए।
- इनके लिए रोजगार के नवीन अवसर उपलब्ध कराए जाएं तथा इनकी आय में वृद्धि की जाए।
- इनके शिक्षण व प्रशिक्षण की समुचित व्यवस्था की जाए।
- इनके लिए सामाजिक सुरक्षा एवं सेवाओं जैसे अस्पताल, पीने का पानी, उपभोग की सस्ती वस्तुएं तथा शिक्षा आदि की समुचित व्यवस्था की जाए।
पिछड़ा वर्ग से संबंधित आयोग
पिछड़ा वर्ग की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए समस्या समाधान हेतु कई आयोग बनाए गए। जिनमें से कुछ निम्न है:-
- मुंगेरी लाल आयोग
- काका कालेकर आयोग
- मण्डल आयोग

1. मुंगेरी लाल आयोग
मुंगेरी लाल आयोग की स्थापना बिहार सरकार द्वारा की गई। इसी आयोग की सिफारिशों आधार पर बिहार सरकार ने 1978 में128 जातियों को पिछड़ी जातियों घोषित किया और उनके सरकारी सेवाओं में आरक्षण कि नीति को लागू किया।
कर्नाटक सरकार द्वारा 1972 में. एल सी. हवानूर की अध्यक्षता में पिछड़े वर्ग आयोग स्थापना की गई। इस आयोग ने गहन सर्वेक्षण के पश्चात जातियों एवं समुदायों की सूची तैयार की और इसके लिए 32% नौकरियों में आरक्षण की सिफारिश की। सरकार ने इस प्रतिशत में वृद्धि करके 32 के स्थान पर 40 कर दिया।
केरल सरकार ने एक आयोग की स्थापना पी. डी. ने नेट्टूर की अध्यक्षता में की। इस आयोग द्वारा आर्थिक स्थिति, शैक्षणिक उपलब्धियों, सरकारी-सेवाओं में भागीदारी और सामाजिक पिछड़ेपन की किशोर जी को कसौटी कसौटियां स्वीकार करने की सिफारिश की। वर्तमान समय में केरल में 25% स्थान पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षित हैं। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 58 समुदायों और जातियों को पिछड़े वर्ग में घोषित किया गया हाय और उनके लिए 15% स्थान आरक्षित भी किए गए हैं।
आंध्र प्रदेश सरकार ने जातियों के स्थान पर ‘परिवार’ को पिछड़े समूह को वर्गीकृत करने का आधार माना किंतु कुछ समय के पश्चात कठिनाइयों के कारण इसे त्याग दिया गया। इस सरकार द्वारा 1970 में92 समुदायों की एक सूची बनाई गई जिसने इन वर्गों के लिए 25% स्थान आरक्षित किए गए। इस प्रकार वर्तमान में भारत के विभिन्न राज्यों में आरक्षण की व्यवस्था लागू है।
2. काका कालेकर आयोग
भारत के राष्ट्रपति द्वारा 29 जनवरी 1953 में काका कालेकर की अध्यक्षता में एक आयोग की स्थापना की गई, जिसका मुख्य उद्देश्य देश में सामाजिक शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों को ज्ञात करने एवं उनकी सूची तैयार करना था। इस आयोग को काका कालेकर आयोग के नाम से जना गया। इस आयोग को निम्नलिखित उद्देश्य दिए गए-
- पिछड़े वर्गों की सूची तैयार करें।
- आयोग उन तथ्यों का निर्धारण करें जिनके आधार पर सामाजिक में शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों को ज्ञात किया जा सके।
- इन वर्गों की क्या सहायता की जाए।
- पिछड़े वर्गों की विभिन्न समस्याओं को ज्ञात करें।
- इन वर्गों की कठिनाइयों को दूर करने एवं उनके कल्याण हेतु राज्य सरकार को कौन से कदम उठाने चाहिए।
लगभग 2 वर्षों के पश्चात आयोग ने केंद्र सरकार को अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जिसमें उसने लगभग देश की 70% जनसंख्या आती है। आयोग द्वारा ‘पिछड़ेपन’ के निर्धारण की निम्नलिखित कसौटियां बताई गई-
- शैक्षणिक प्रगति का अभाव,
- जाति संस्करण में निम्न सामाजिक स्थिति,
- व्यापार और उद्योग के क्षेत्र मेंअपर्याप्त प्रतिनिधित्व,
- राजकीय सेवा में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व।
3. मंडल आयोग
सन् 1977 के लोकसभा के चुनाव में जनता दल ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में पिछले वर्गों के लिए सरकारी और शैक्षणिक सेवाओं में 25 से 33% तक स्थानों के आरक्षण की बात कही थी। जब वह केंद्र सत्ता में आए तो इसी संदर्भ में उसने वी•पी•मंडल की अध्यक्षता में पिछड़े वर्गों के लिए एक आयोग का गठन किया गया, जो मंडल आयोग के नाम से जाना गया। इस आयोग को निम्नलिखित कार्य सौंपे गए-
- पिछड़े वर्गों के उत्थान हेतु क्या कदम उठाए जाने चाहिए, इस संबंध में सुझाव देना।
- सामाजिक व शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की परिभाषा हेतु कसौटियां निर्धारित करना।
- अपने द्वारा संकलित तथ्यों के आधार पर प्रतिवेदन प्रस्तुत करना एवं सिफारिशें करना।
- केंद्र व जिन राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व अपर्याप्त है आरक्षण की सुविधाओं का पता लगाना
भूमिहीन श्रमिकों की समस्या समाधान हेतु सुझाव
भूमिहीन श्रमिकों की समस्या समाधान हेतु सुझाव निम्न प्रकार हैं-
- कार्य दशाओ में सुधार किया जाए।
- भूमिहीन श्रमिकों के काम के घंटों का निर्धारण किया जाए एवं काम के दौरान खाने-पीने एवं उनके विश्राम का प्रबंध किया जाए।
- न्यूनतम मजदूरी का निर्धारण एवं उसे लागू करने हेतु समुचित व्यवस्था की जाए।
- बच्चों एवं स्त्रियों को भारी काम ना दिया जाए।
- श्रमिकों के रहने के लिए आवास की उचित व्यवस्था की जाए।
- मजदूर संघ के रूप में कृषि श्रमिकों को संगठित किया जाए जिससे वह भूस्वामी एवं महाजनों अपने शोषण को रोक सके एक अपने सुधार हेतु मालिकों एवं सरकार पर दबाव डाल सकें।
- विभिन्न उद्योग धंधों को बढ़ावा दिया जाए एवं उसके लिए प्रशिक्षण, वित्त एवं तकनीकी सहायता उपलब्ध कराई जाए ताकि यह कृषि के खाली समय में बेकार न रहे।
- अतिरिक्त भूमि का भूमिहीन किसानों में अधिकाधिक तेज गति से वितरण किया जाए।
- इनके लिए आवास की उचित व्यवस्था की जाए।