जो छात्र निश्चित समय में निश्चित ज्ञान की प्राप्त करने में असफल रहते हैं। सामान्य छात्रों से पीछे रहते हैं। इन्हें पिछड़ा बालक के नाम से पुकारा जाता है। पिछड़े का शाब्दिक अर्थ है अपने कार्य में अपनी सामान्य साथियों से पीछे रह जाना।
परंतु शिक्षा के संबंध में इसका अर्थ है कि छात्र जब अपनी आयु के अनुरूप कक्षा में ना होकर उससे पीछे रहता है। तो उसे हम पिछड़ा हुआ बालक कहते हैं। चाहे वह अपनी कक्षा में कितना होशियार क्यों ना हो। इस दृष्टि से एक 10 वर्षीय बालक यदि तीसरी कक्षा में पढ़ता है। तो हम उसे पिछड़ा हुआ कहेंगे भले ही वह अपनी कक्षा में सबसे होशियार क्यों ना हो।


पिछड़ा बालक की विशेषताएं
कुप्पूस्वामी के अनुसार, पिछड़ा बालक की निम्न विशेषताएं बताई गई हैं-
- सीखने की धीमी गति।
- जीवन में निराशा का अनुभव।
- समाज विरोधी कार्यो की प्रवृत्ति।
- व्यवहार संबंधी समस्याओं की अभिव्यक्ति।
- जन्मजात योग्यताओं की तुलना में कम शैक्षिक उपलब्धि।
- सामान्य विद्यालय में पाठ्यक्रम से लाभ उठाने में असमर्थता।
- सामान्य शिक्षण विधियों द्वारा शिक्षा ग्रहण करने में विफलता।
- मंदबुद्धि सामान्य बुद्धि या अति श्रेष्ठ बुद्धि का प्रमाण।
बालक पिछड़ेपन के प्रकार
पिछड़ापन मूलतः निम्न दो प्रकार का होता है-
- वयक्तिक
- सामूहिक
जहां किसी कक्षा में कुछ छात्र पिछड़े हुए हैं और उनके पिछड़ेपन के कारण भी अलग-अलग हो, वह पिछड़ापन व्यक्तिक होता है। परंतु जहां कक्षा के अधिकतर छात्र पिछड़े हुए हो और उनके पिछड़ेपन के कारण भी समान ही हो वहां पिछड़ापन सामूहिक कहलाएगा।


शैक्षिक पिछड़ेपन की पहचान
निरीक्षण की रक्षा पिछड़ेपन की पहचान लगाने के लिए निम्न प्रयास करना चाहिए।
- आपके द्वारा पूछे गए प्रश्नों तथा उनके सामने रखी गई समस्याओं का समाधान कौन बालक की सीमा तक कर पाता है।
- कक्षा में विषय को पढ़ाते समय उससे संबंधित बातों को पढ़ाए जाने में कौन सा बालक कितना दिमाग लेता है।
- उसका ध्यान पाठ पर है या अन्य कहीं।
- समय-समय पर ली गई साप्ताहिक मासिक त्रैमासिक अर्धवार्षिक तथा वार्षिक परीक्षाओं में उसे सामान्य से अधिक अंक मिले हैं या कम?
- कक्षा में किसी बात का उत्तर देने में उत्साहित होता है या नहीं?
मानसिक पिछड़ेपन की पहचान
मानसिक रूप से पिछड़े बालक की पहचानने में आधार पर कर सकते हैं-
- अध्यापक शैक्षिक निष्पत्ति के आधार पर पहचान कर सकते हैं।
- ऐसे बालक पराया सारी रूप से अयोग्य होते हैं।
- संवेगात्मक रूप से अस्थिर होते हैं।
- बुद्धि लब्धि द्वारा भी पहचान की जा सकती है।
- इस तरह से की गई पहचान सही होती है।
- व्यक्ति व्रत अध्ययन भी महत्वपूर्ण है।