पाठ्य सहगामी क्रियाएं – शिक्षण को रोचक, सुग्राह्य बनाने में पाठ्य सहगामी क्रियाओं का भी महत्वपूर्ण स्थान है। पाठ्यचर्या शिक्षा का अभिन्न अंग है। यह शिक्षक को यह बताती है कि कौन सी कक्षा विशेष में कितना पढ़ाना है। इसे दौड़ का मैदान भी कहा जाता है। पाठ्यचर्या से शिक्षक विद्यार्थी को उद्देश्य प्राप्ति की ओर ले जाता है।

पाठ्य सहगामी क्रियाएं

प्राचीन काल में पाठ्यचर्या बौद्धिक विषयों तक ही सीमित रहती थी, किंतु वर्तमान में इसकी सीमा बहुत विस्तृत हो गई है। आज पाठ्यचर्या में वे सब अनुभव सम्मिलित किए जाते हैं जो किसी बालक को किसी शैक्षिक संस्था में कक्षा, पुस्तकालय, प्रयोगशालाओं, खेल के मैदान और साहित्य तथा सांस्कृतिक क्रियाओं से प्राप्त होते हैं।

पाठ्य सहगामी क्रियाएं

आधुनिक काल में शिक्षाशास्त्री इस बात पर सहमत हो गए हैं कि यदि इन क्रियाओं के द्वारा समुचित रूप से छात्रों का पथ प्रदर्शन किया जाए तो इसके परिणाम लाभप्रद होंगे। पहले इन्हें शिक्षक में पाठ्येत्तर क्रियाओं के नाम से जाना जाता था किंतु धीरे-धीरे इनके महत्व को भी देखते हुए इन्हें पाठ्यचर्या का अभिन्न अंग समझा जाने लगा। इन क्रियाओं द्वारा विद्यार्थी का सर्वांगीण विकास होता है। पाठ्य सहगामी क्रियाओं की अवधारणा को दो भागों में बांटा जा सकता है-

  1. प्राचीन अवधारणा
  2. आधुनिक अवधारणा

1. प्राचीन अवधारणा

पाठ्य सहगामी क्रियाओं को भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता है। जैसे पाठ्येत्तर प्रवृतियां, कक्षेत्तर प्रवृतियां तथा पाठ्य सहगामी क्रियाएं। कुछ समय पूर्व शिक्षा से तात्पर्य केवल पढ़ना, लिखना था। उस समय की शिक्षा अत्यंत संकुचित एवं व्यवहारिक थी। संगीत, नाटक, भ्रमण, स्काउटिंग, वाद विवाद, खेलकूद जैसी क्रियाओं को अशैक्षिक क्रियाएं माना जाता था।

2. आधुनिक अवधारणा

शिक्षा दर्शन की विचारधाराओं में परिवर्तन के साथ ही अतिरिक्त पाठ्यक्रम क्रियाओं के संबंध एवं दृष्टिकोण में परिवर्तन हुआ और वर्तमान में इन्हें अतिरिक्त क्रियाएं न मानकर सहगामी क्रियाएं माना जाने लगा। धीरे-धीरे यह सहगामी क्रियाएं शिक्षा का आवश्यक अंग बन गई। इन क्रियाओं को पाठ्य सहगामी क्रियाएं या पाठ्येत्तर क्रियाएं कहा जाने लगा।

पाठ्य सहगामी क्रियाएं

पाठ्य सहगामी क्रियाओं का महत्व

विद्यालय में पाठ्य सहगामी क्रियाओं को बिना अध्ययन में सरसता उत्पन्न नहीं होती है। इन क्रियाओं से विद्यालयी जीवन में नवीनता उत्पन्न होती है। विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक है कि पाठ्य सहगामी क्रियाओं पर पर्याप्त बल दिया जाए। माध्यमिक शिक्षा आयोग एवं राष्ट्रीय शिक्षा आयोग ने पाठ्य एवं पाठ्येत्तर प्रवृत्तियों को पाठ्यक्रम का अभिन्न अंग माना है। पाठ्य सहगामी क्रियाओं का विद्यार्थियों के लिए बहुत महत्व है, इसे निम्न प्रकार से समझा जा सकता है-

  1. नैतिक प्रशिक्षण – पाठ्य सहगामी क्रियाओं द्वारा नैतिक प्रशिक्षण के लिए वास्तविकता प्रदान की जाती है जिसमें भाग लेकर बालक उन गुणों को सीखता है जो चरित्र निर्माण के लिए आवश्यक है।
  2. सामाजिक प्रशिक्षण – सामाजिक जीवन का विकास करना शिक्षा का मुख्य लक्ष्य है। पाठ्य सहगामी क्रियाएं इस उद्देश्य की प्राप्ति में बहुत सहयोग प्रदान करती हैं। समाज सेवा शिविर, स्काउटिंग, स्कूल, श्रमदान तथा रेडक्रॉस आदि के द्वारा बालकों में सामाजिकता का विकास किया जा सकता है।
  3. नागरिक प्रशिक्षण– पाठ्य सहगामी क्रियाओं की सहायता से किशोरों में अनेक ऐसे गुणों का विकास किया जा सकता है, जो एक श्रेष्ठ नागरिक के लिए आवश्यक है। विद्यार्थियों को अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों का ज्ञान कराने हेतु यह क्रियाएं एक सशक्त साधन है। इनके द्वारा विद्यार्थियों में उत्तरदायित्व की भावना का विकास किया जा सकता है।
  4. किशोरावस्था की आवश्यकताओं की पूर्ति– किशोरावस्था तनाव व तूफान की अवस्था है। विद्यार्थी की मानसिक दशा अत्यंत भावुक हो उठती है उसे अनेक प्रकार के मानसिक विकार घेर लेते हैं। इन क्रियाओं के द्वारा बालक की संपूर्ण शक्ति को रचनात्मक कार्यों में लगाकर शोधित किया जा सकता है।
  5. अवकाश के समय का सदुपयोग– पाठ्य सहगामी क्रियाओं के माध्यम से बालक अपनी रुचि अनुसार कार्यों को कर सकता है। वह अतिरिक्त समय में वाद विवाद, खेलकूद आदि करके समय का सदुपयोग सीखता है।
  6. विद्यार्थियों की रुचि का विकास– रुचि सीखने की प्रक्रिया का आधार है। विभिन्न प्रकार की पाठ्य सहगामी क्रियाएं विद्यार्थियों में कुछ विशेष रूचि यों को उत्पन्न करने में बहुत सहायक है। यह विभिन्न रुचियां व कुशलताएं विद्यार्थी के जीवन को सफल बनाती हैं।
  7. शारीरिक विकास– पाठ्य सहगामी क्रियाएं विद्यार्थियों के शारीरिक विकास में सहायक है, खेलकूद, तैराकी, एनसीसी, ड्रिल तथा परेड आदि स्वस्थ शारीरिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है।
  8. नेतृत्व की भावना का विकास– पाठ्य सहगामी क्रियाओं के द्वारा विद्यार्थियों में धैर्य आत्मविश्वास साहस कार्य के प्रति उत्साह विश्वास तथा तत्परता की भावना का विकास होता है।
  9. मनोरंजन प्रदान करना– कक्षा के वातावरण को रुचिकर बनाने में पाठ्य सहगामी क्रियाएं सहायक है। विद्यार्थियों में श्रम के प्रति नया दृष्टिकोण उत्पन्न होता है। वे प्रसन्नता पूर्वक स्वयं करके सीखता है।

अतः विद्यालय में पाठ्य सहगामी क्रियाओं का बहुत महत्व है, इनके द्वारा व्यक्तित्व का संतुलित व सर्वांगीण विकास होता है। यह क्रियाएं पाठ्यक्रम की पूरक तथा आवश्यक अंग है।

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