पाठ्यपुस्तक विधि – यह विधि हमारे देश में शिक्षा के लिए प्राचीन काल से चली आ रही है। इस विधि में अध्यापक छात्रों को प्रार्थी क्रम से संबंधित पाठ्य वस्तु को पढ़ाता है तथा उसके आधार पर गृह कार्य करने को देता है। जिसको छात्र पाठ्यपुस्तक के आधार पर तैयार करते हैं। इस विधि का प्रयोग जूनियर और माध्यमिक स्तर के छात्रों के लिए अधिक लाभकारी पाया जाता है। कुछ विद्वानों का मत है कि पाठ्य पुस्तक को विज्ञान शिक्षण विधि के स्थान पर शिक्षण की सहायक सामग्री के रूप में प्रयोग करना चाहिए।
पाठ्यपुस्तक विधि के गुण
इस विधि के प्रमुख गुण निम्न हैं-
- यदि पाठ्यपुस्तकों को सीखे गए ज्ञान की पूर्ति के लिए उपयोग में लाया जाए तो उनका महत्व अधिक बढ़ जाता है।
- पुस्तकों से जो गृह कार्य दिया जाए यदि इसे समस्या हल करने के रूप में दिया जाए तो वह अधिक महत्वपूर्ण समझा जाता है।
- यदि पाठ्यपुस्तक अच्छी प्रकार से लिखी गई हो और उसमें स्थान स्थान पर उदाहरणों की सहायता से समझाया गया हो तो विद्यार्थी उससे ज्ञान प्राप्त करने में रुचि लेते हैं।
- विद्यार्थियों को पाठ्य पुस्तक से गृह कार्य दिया जा सकता है जिससे वह घर में कार्यरत रह सकें।




पाठ्यपुस्तक विधि के दोष
इस विधि के प्रमुख दोष निम्न है
- अधिकतर विद्यार्थियों में पाठ्य पुस्तकों को रखकर याद कर लेने की प्रवृत्ति हो जाती है जिससे उनकी तर्क शक्ति का विकास नहीं हो पाता।
- यदि पाठ्यपुस्तक विधि का प्रयोग किया जाए तो अध्यापक को चाहिए कि विद्यार्थियों के पाठ याद करने के पश्चात उनमें वाद विवाद करवाएं।
- यदि पाठ्यपुस्तक उचित प्रकार से नहीं लिखी गई हो तब उससे विद्यार्थियों में पाठ्य पुस्तकों के प्रति अरुचि उत्पन्न हो जाती है। जिससे वे विषय का ज्ञान भी सही रूप से प्राप्त नहीं कर पाते हैं।
- कभी-कभी ऐसा भी होता है कि विद्यार्थी समझते हैं कि पाठ्यवस्तु को पाठ्य पुस्तक से पढ़ना है, इसीलिए वे परीक्षा के कुछ दिन पूर्व उसे पढ़कर परीक्षा में उत्तीर्ण होने का प्रयत्न करते हैं। वे दिन प्रतिदिन का अपने कार्य लगन से नहीं करते बल्कि परीक्षा पर कुछ दिन पूर्व से अध्ययन आरंभ करते हैं इस प्रवृत्ति से शिक्षा का उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है।