पाठ्यक्रम संगठन के उपागम – पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धान्तों के उपरान्त यह जानना आवश्यक है कि उसका संगठन कैसे किया जाए? पाठ्यक्रम संगठन के लिए बालकों के व्यक्तित्व के विभिन्न आयामों के अतिरिक्त उनकी व्यक्तिगत भिन्नताओं के साथ ही पाठ्य सामग्री के विभिन्न स्वरूपों (पक्षों-ज्ञान, किया एवं भाव) आदि दृष्टिकोणों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है। जिससे पाठ्य सामग्री को बालक सुगमता से ग्रहण कर अपने व्यक्तित्व का विकास कर सके।
पाठ्यक्रम संगठन के उपागम
पाठ्यक्रम संगठन के उपागम का आधार कार्य अथवा उद्देश्य ही यह है कि यह अधिगम (सीखना) को सरल, सहज, सुगम एवं स्वाभाविक व समरस बना सके। इन तथ्यों एवं संदर्भों के संज्ञान में पाठ्यक्रम संगठन के विभिन्न उपागम अथवा विधियों पर यहां संक्षेप में प्रकाश डाला जा रहा है-
- सहसंबंध उपागम
- एकीकरण उपागम
- केन्द्रीभूत उपागम
- कालक्रमित उपागम
- सम्मिश्रण उपागम
- चकाकार उपागम
- इकाई उपागम

सहसंबंध उपागम
किसी विषय की स्वयं की पाठ्य सामग्री के विभिन्न बिन्दुओं (पाठों) में पारस्परिक सम्बन्ध एवं उस विषय विशेष का अन्य विषयों से सम्बन्ध का प्रयास सहसम्बन्ध उपागम के अन्तर्गत आता है। प्रथम प्रकार का संबंध लम्बवत् सह-संबंध (विषय-विशेष के पाठों के मध्य) तथा द्वितीय प्रकार का संबंध (विषय-विशेष का दूसरे थियों से साथ) अनुप्रस्थ या क्षैतिज सहसंबंध कहलाता है। इस उपागम की संकल्पना के आयोजक हरबर्ट महोदय है।
पाठ्यक्रम के विषयों को इस प्रकार संगठित करना चाहिए जिससे एक विषय के शिक्षण में दूसरे विषय का ज्ञान सहायक हो सके।
हरबर्ट महोदय के अनुसार
पाठ्यक्रम संगठन के समय उपरोक्त सहसम्बन्धों को ध्यान में रखते हुए पाठ्यक्रम को व्यवस्थित करना चाहिए। इससे लम्बवत् सहसंबंध के अन्तर्गत सामाजिक अध्ययन विषय की विभिन्न इकाइयों में पारस्परिक सम्बन्ध का तात्पर्य यह है कि एक इकाई का दूसरी से ऐसा संबंध होना चाहिए जिससे यह प्रतीत हो कि दूसरी इकाई प्रथम इकाई से उद्गमित (उभर) हो रही है। इसी प्रकार आगे की इकाइयां भी उसके पूर्व की इकाइयों से उद्गमित होती दिखनी चाहिए।
इससे एक इकाई का ज्ञान दूसरी इकाइयों के लिए पुनर्बलन का कार्य करता है। इसी प्रकार अनुप्रस्थ सहसंबंध के अन्तर्गत सामाजिक अध्ययन का संबंध अन्य विषयों से स्थापित करने से है। इससे एक विषय का ज्ञान दूसरे विषय का पुनर्बलन करना है और इस प्रकार से संगठित विषय-सामग्री छात्रों को सुगमता, सहजता, सरलता व समरसता के साथ होती है। आप पाठ्यक्रम संगठन के उपागम Hindibag पर पढ़ रहे हैं।

एकीकरण उपागम
सामाजिक अध्ययन के पाठ्यक्रम संगठन में इस उपागम का सर्वाधिक प्रभाव है। सामाजिक अध्ययन विभिन्न पाठ्य-विषयों (इतिहास, भूगोल, नागरिकशास्त्र, अर्थशास्त्र) का एकीकृत स्वरूप ही है। यह धारणा वास्तव में मनोविज्ञान के गेस्टाल्टवाद (पूर्णांकार) के आधार पर विकसित हुई है, जहाँ पाठ्यक्रम की विभिन्न इकाइयाँ एकीकृत होकर समग्रता का रूप धारण करती हैं। जो कुछ भी विभाजन दृष्ट है, वह तो मात्र बालक की क्षमतानुसार सुविधा के लिए है। अतः पाठ्यक्रम संगठन के समय एकीकृत उपागम के दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर सामाजिक अध्ययन के पाठ्यक्रय में एकीकृत पूर्णता के स्वरूप का निर्धारण आवश्यक रूप से करना चाहिए। ऐसा पाठ्यक्रय समग्रता के दृष्टिकोण को दर्शाता है।
केन्द्रीभूत उपागम
इस उपागम में शिक्षा के प्रत्येक स्तर – पर पाठ्य सामग्री का आधार एक ही होता है। शिक्षा के प्रारम्भिक स्तर पर उस पाठ्य सामग्री को सामान्य, सरल व बिन्दुवत् तथा संक्षिप्त रूप में बालकों के समक्ष प्रस्तुत करके पाठ्य सामग्री के संदर्भों से अवगत कराया जाता है। उसके बाद के स्तरों में वर्षवार ढंग से अर्थात् अगली कक्षाओं में उनकी पाठ्य सामग्री में क्रमशः बढ़ोत्तरी होती जाती है अर्थात् अगली कक्षाओं में पिछली कक्षाओं के संक्षिप्त बिन्दुओं को वृहद् स्वरूप में प्रस्तुत कर बालक के ज्ञान क्षेत्र में वृद्धि की जाती रहेगी।
यहाँ पिछली (प्रारम्भिक) कक्षा के संदर्भों को नये आयामों के साथ विस्तृत स्वरूप में अगली कक्षा में पढ़ाया जाएगा। यहाँ ‘सरल से जटिल’ एवं ‘पूर्ण से अंश’ की ओर के सूत्र का अनुपालन होता है। उदाहरणार्थ- प्रत्येक कक्षा में इतिहास के सभी प्रकरणों को पढ़ाया जाए। अगली कक्षा में प्रत्येक प्रकरण को पिछली कक्षा की तुलना में अधिक आयाम के साथ प्रस्तुत किया जाय। आप पाठ्यक्रम संगठन के उपागम Hindibag पर पढ़ रहे हैं।

कालक्रमित उपागम
इस उपागम के अनुसार पाठ्यक्रम को विभिन्न युगों/कालों/खण्डों या स्तरों में विभाजित कर उन्हें क्रमानुसार ढंग से संगठित कर लेना चाहिए। इसके पश्चात् छात्रों की आयु/स्तर के आधार पर पाठ्य सामग्री को विभिन्न कक्षाओं में वितरित कर देना चाहिए। उदाहरणार्थ- इतिहास विषय की संबंधित सामग्री को विभिन्न कालखण्डों में क्रमानुसार संगठित कर प्रत्येक युग को एक कक्षा में पढ़ाया जाए। इससे किसी भी संस्था, घटना, आन्दोलन, परम्परा आदि के विकसित स्वरूप को छात्र जान सकेंगे।
सम्मिश्रण उपागम
समान प्रकृति की पाठ्य-वस्तु को धारण करने वाले विषयों को सम्मिश्रण कर नए ढंग से संगठित कर कम समय में अधिक ज्ञान व क्रियाएँ प्रदान करने वाले उपागम को सम्मिश्रण उपागम कहते हैं। यह उपागम सामाजिक अध्ययन विषय के लिए विशेष उपयोगी है जहाँ इतिहास, भूगोल, नागरिकशास्त्र व अर्थशास्त्र की विषय-सामग्री को समिश्रित कर उसको एकीकृत एवं नियोजित कर संगठित किया जाता है। आप पाठ्यक्रम संगठन के उपागम Hindibag पर पढ़ रहे हैं।

चकाकार उपागम
इस उपागम के प्रतिपादक हूनर है। सामाजिक अध्ययन के पाठ्यक्रम का निर्धारण जब विषय के प्रकरणों को इस प्रकार संगठित कर किया जाता है कि कक्षा स्तर के अनुरूप निम्न से उच्च कक्षाओं की पाठ्य सामग्री में बालक की मानसिक स्थितियों के साथ जटिलता का क्रमानुगत प्रस्तुतीकरण बने, तब उसे हम चकाकार उपागम कहते हैं। शिक्षा शब्दकोश ने इस उपागम को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया है –
“चक्राकार विधि पाठ्यक्रम संगठन एवं विष पद स्थापना की एक योजना है, द्वारा छात्र कठिनाई के उच्च स्तर पर हर समय दो या तीन वन्न सेगीत पर प्रण एक विषय के अध्ययन की पुनरावृत्ति करता है।
इकाई उपागम
यह उपागम भी पूर्णांकारवाद के सिद्धान्त पर आधारित है। इस उपागम में पाठ्य सामग्री को छोटी-छोटी इकाइयों में बाँटकर क्रमागत ढंग से इस प्रकार प्रस्तुत की जाती है कि इकाइयों के माध्यम से समग्रता के दृष्टिकोण तक छात्र सम्पूर्ण पाठ्य सामग्री से परिचित हो सके। शिक्षा शब्दकोश के अनुसार “इकाई केन्द्रीय समस्या या उद्देश्य के चारों ओर शिक्षक के नेतृत्व में छात्रों के एक समूह द्वारा सहयोग करके विकसित विभिन्न क्रियाओं, अनुभवों और अधिगम के प्रकारों का एक संगठन है, जिसमें पाठ योजना के नियोजन, क्रियान्वयन और परिणामों का मूल्यांकन सम्मिलित है।”
