पाठ्यक्रम के उद्देश्य- पाठ्यक्रम देशकाल एवं परिस्थितियों के अनुरूप बदलता रहता है। किसी भी पाठ्यक्रम का निर्माण तत्कालीन शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु किया जाता है।

पाठ्यक्रम के उद्देश्य

सामान्य तौर पर पाठ्यक्रम के उद्देश्य निम्न है-

  1. छात्रों का सर्वांगीण विकास करना– पाठ्यक्रम का प्रथम व सर्वप्रमुख उद्देश्य बालक के व्यक्तित्व के समस्त पहलुओं यथा शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, नैतिक, व्यावसायिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक विकास करना है।
  2. सभ्यता व संस्कृति का हस्तांतरण तथा विकास करना– पाठ्यक्रम मनुष्य की सभ्यता व अनमोल संस्कृति को सुरक्षित रखकर उसे आगामी पीढ़ी को हस्तांतरित करता है। इस प्रकार मानव सभ्यता व संस्कृति की रक्षा तथा उसके हस्तांतरण का विकास करना भी पाठ्यक्रम का उद्देश्य है।
  3. बालक का नैतिक व चारित्रिक विकास करना– पाठ्यक्रम के माध्यम से बालक में सहानुभूति, सहयोग, सहनशीलता, सद्भावना, अनुशासन, मित्रता, निष्कपटता व इमानदारी जैसे उच्च नैतिक गुणों का विकास किया जाता है। जिससे बालक एक श्रेष्ठ नागरिक बन सके। इस प्रकार पाठ्यक्रम का एक प्रमुख उद्देश्य बालक का नैतिक व चारित्रिक विकास करना भी है।
  4. बालक की मानसिक शक्तियों का विकास करना– पाठ्यक्रम का एक उद्देश्य बालक की विभिन्न प्रकार की मानसिक शक्तियों तथा चिंतन मनन तारीख को विवेक निर्णय स्मरण आदि का समुचित विकास करना भी होता है। इसी प्रकार बालक के व्यक्तित्व का पूर्ण विकास होता है।
  5. बालक की रचनात्मक व सृजनात्मक शक्तियों का विकास करना– पाठ्यक्रम के अंतर्गत आने वाले विषयों एवं खेलकूद व अन्य पाठ्येत्तर क्रियाकलापों को आयोजित करने का उद्देश्य बालक में निहित सृजन व निर्माण की शक्तियों को जगाना होता है। आप पाठ्यक्रम के उद्देश्य Hindibag पर पढ़ रहे हैं।
  1. बालक में गतिशील लचीले मस्तिष्क का निर्माण करना– कहा गया है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है। इसे स्वस्थ मस्तिष्क का निर्माण भी शिक्षा द्वारा ही किया जा सकता है। वस्तुतः पाठ्यक्रम विभिन्न विज्ञानों, सामाजिक विषयों व अन्य क्रियाओं के द्वारा मस्तिष्क की गतिशीलता व लचीलापन की वृद्धि करने में सहायक होता है।
  2. खोज की प्रवृत्ति को बढ़ावा देना– पाठ्यक्रम बालकों को विभिन्न प्रकार का गहन ज्ञान प्रदान करके उनमें उत्सुकता व जिज्ञासा की प्रवृत्ति बढ़ाता है, जिससे बालक अधिकारिक ज्ञान प्राप्ति का प्रयास करें। इस प्रकार बालक में खोजी व अनुसंधान के प्रवृत्ति को बढ़ाना भी पाठ्यक्रम के मुख्य उद्देश्य में आता है।
  3. बालक को भावी जीवन के लिए तैयार करना– शिक्षा संपूर्ण जीवन की तैयारी है तथा पाठ्यक्रम वालों को उनके भावी जीवन के लिए तैयार करता है। पाठ्यक्रम विषयवार क्रियाओं के मध्य सामान्य व सामंजस्य स्थापित करके बालकों को शारीरिक, मानसिक व सर्वांगीण विकास करने का प्रयत्न करता है, ताकि बालक का संतुलित विकास हो सके और वह अपने भावी जीवन में सफल मनुष्य बन कर उभर सके।
  4. शैक्षिक प्रक्रिया का स्वरूप निर्धारित करना– पाठ्यक्रम का दायित्व बालक के प्रति होने के साथ-साथ संपूर्ण शिक्षा प्रक्रिया की ओर भी है। पाठ्यक्रम शिक्षण क्रियाओं व शिक्षक के मध्य की अंतः क्रिया को स्पष्ट करता है। साथी शिक्षक व शिक्षार्थी के मध्य किस प्रकार के अंतः क्रिया हो, इसका स्वरूप भी निर्धारित करता है।
  5. बालकों की क्षमता, योग्यता एवं रुचि का विकास करना – पाठ्यक्रम का एक विशेष उद्देश्य बालकों को सुसुप्त क्षमताओं एवं योग्यताओं का विकास करना होता है। साथ ही वह बालकों की विभिन्न प्रकार की सूचियों को भी प्रोत्साहित करता है।
  6. बालकों में लोकतांत्रिक भावना का विकास करना– पाठ्यक्रम का एक अन्य प्रमुख उद्देश्य छात्रों को सामाजिकता एवं सुनागरिकता का प्रशिक्षण देकर उनमें लोकतांत्रिक भावना का विकास करना है, ताकि बालक स्वतंत्रता, समानता, भ्रातत्व अथवा उदारता के मूल्यों को आत्मसात करके अपने समाज व देश का विकास कर सके।

इस प्रकार पाठ्यक्रम के उद्देश्य के कारण पाठ्यक्रम का शैक्षिक प्रक्रिया में एक विशेष स्थान है। इन्हीं कारणों से पाठ्यक्रम की आवश्यकता होती हैं तथा यह ही वे महत्वपूर्ण कार्य हैं जिन्हें पाठ्यक्रम संपन्न करता है।

पाठ्यक्रम अर्थ परिभाषा आवश्यकता महत्वपाठ्यक्रम का आधारपाठ्यक्रम का क्षेत्र
पाठ्यक्रम के लाभपाठ्य सहगामी क्रियाएंशैक्षिक उद्देश्य स्रोत आवश्यकता
पाठ्यक्रम के उद्देश्यमूल्यांकन की विशेषताएंअच्छे शिक्षण की विशेषताएं
प्रभावशाली शिक्षणगृहकार्य की विशेषताएंसूचना एवं संप्रेषण तकनीकी के लाभ
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