गणित के क्षेत्र में अनेक विद्वान हुए हैं जिनमें से पाइथागोरस भी उच्च कोटि के गणितज्ञ रहे हैं। इनका जन्म ग्रीस के निकट एलियन सागर के मध्य, समोस नामक द्वीप में ईसा से लगभग 580 वर्ष पूर्व हुआ था। उनके पिताजी का देहांत बचपन में ही हो गया था। उनके निर्देश पर पाइथागोरस ने मिस्र देश में जीवन का प्रारंभ कॉल व्यतीत किया। वहां पर 22 वर्षों तक रहकर उन्होंने विभिन्न विज्ञान विशेष रूप से गणित का गहन अध्ययन किया। गुरु की आज्ञा से यह 12 वर्षों तक देश विदेश की यात्रा करते रहे।

जिसमें उन्होंने भारत, इराक और ईरान की यात्राएं भी की थी। उस समय तक इनकी उम्र 50 की हो चुकी थी। वहीं पर उन्होंने लगभग 60 वर्ष की आयु में थियोना नाम की युवती से विवाह किया। जिसने अपने पति पाइथागोरस के जीवन चरित्र पर एक पुस्तक भी लिखी है जो आज उपलब्ध नहीं है।
पाइथागोरस और उनके योगदान
वर्तमान में पढ़ाई जाने वाली गणित एवं ज्यामिति ग्रीक गणितज्ञ यूक्लिड के एलिमेंट्स पर आधारित है। उसी ग्रंथ का 47 वां प्रमेय पाइथागोरस प्रमेय के नाम से जाना जाता है। प्राचीन भारत में यज्ञ के लिए जो वेदी बनाई जाती थी उसका आकार ज्यामितीय होता था।
इसके अतिरिक्त पाइथागोरस ने संख्या शास्त्र पर भी कार्य किया था उसने समस्त संख्याओं को सम और विषम भागों में बांटा था उसी समय से विषम संख्याओं को शुभ तथा सम संख्याओं को अशुभ मानने की प्रथा का जन्म हुआ है। पाइथागोरस स्कूल में गणित के अनेक शब्दों को जन्म दिया है, जिनमें से कुछ निम्न है:-
- मैथमेटिक्स (Mathematics)
- पैराबोला (Parabola)
- इलिप्स (Ellipse)
- हाइपरबोला (Hyperbola)
मिस्र वासियों को केवल 3 ठोस ज्ञात थे।
- घन
- समचतुष्फलक
- स्मष्टफलक
पाइथागोरस ने दो संतोषी समद्वादश फलक और विशितिफलक की खोज की। पाइथागोरस और उनके स्कूल ने गणित के क्षेत्र में जो योगदान दिया है। उसका ग्रीक गणित में सर्वोच्च स्थान है।

पाइथागोरस प्रमेय क्या है?