पर्यावरण संबंधी कानून पर्यावरण प्रबन्धन का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष है। कानून के माध्यम से पर्यावरण की रक्षा करना अथवा पर्यावरण को हानि पहुँचाने पर सजा का प्रावधान करना। पर्यावरण संबंधी कानून की आवश्यकता इसलिए अधिक होती है कि जब व्यावसायिकता के आधार पर संसाधनों का शोषण होता है, अथवा अधिकतम लाभ प्राप्ति हेतु उद्योगों की स्थापना होती है।

पर्यावरण को बचाने या उसके प्रदूषित न होने हेतु साधारण से साधारण उपाय भी नहीं किये जाते हैं। यहीं नहीं वनों की निर्ममता से कटाई एवं वन्य जीवों का शिकार विस्तृत पैमाने पर हो रहा है। इन सबके कारण पर्यावरण संकट अधिकतम होता जा रहा है। इन्हीं तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए विश्व के सभी देशों ने इस प्रकार के नियमों, कानूनों को बनाया है, कुछ अन्तराष्ट्रीय कानून भी बने हैं। यहाँ महत्त्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों एवं भारत में पर्यावरण कानूनों के स्वरूप का अति संक्षिप्त विवेचन प्रस्तुत है।
पर्यावरण संबंधी कानून
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण से सम्बन्धित अनेकों सामूहिक एवं क्षेत्रीय कानून बनाये गये और अनुबन्ध किये गये। 1963 में आणविक हथियारों के परीक्षण पर रोक हेतु संधि की गई। इसी प्रकार 1968 में ‘Non-Proliferation of Nuclear Weapons’ का अनुबन्ध किया गया। इनका उद्देश्य आणविक परीक्षणों आदि से पर्यावरण को होने वाली हानि विशेषकर रेडियोधर्मिता से बचाव करना रहा है। इसी प्रकार 1967 में बाह्य आकाश संधि तथा 1971 में सागरीय तल में आणविक हथियारों के रखने पर प्रतिबन्ध की संधि की गई।
दो अन्य महत्त्वपूर्ण अनुबन्ध सागरीय जल में तेल प्रदूषण को रोकने के सम्बन्ध में 1969 में किये गये थे, ये थे- “Intervention Convention” और “Liability Convention”। इनका उद्देश्य तेल द्वारा सामुद्रिक प्रदूषण से रक्षा तथा हानि होने पर मुआवजा देना था। 17 दिसम्बर, 1970 को संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने सागर तल का वह भाग जो क्षेत्रीय सागर की सीमा से परे है पर प्रदूषण के प्रस्ताव को सर्व सम्मति से पारित किया। 1982 में सागरीय पर्यावरण की सुरक्षा हेतु ‘United Nations Convention on the Law of Sea’ पारित किया गया। इसके अतिरिक्त अनेक अन्तर्राष्ट्रीय दस्तावेज वायु, जल प्रदूषण को रोकने के सम्बन्ध में पारित किये गये।

वर्ष 1972 पर्यावरण संरक्षण एवं सुरक्षा हेतु सदैव याद किया जायेगा जबकि संयुक्त राष्ट्र संघ तत्वावधान में स्वीडन की राजधानी स्टोकहोम में 5 से 16 जून तक “मानव पर्यावरण पर अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन किया गया। इसमें “मानव पर्यावरण पर एक घोषणा-पत्र” पारित किया गया। जिसे विश्व के सभी देशों ने स्वीकार किया। इसी के अन्तर्गत पर्यावरण की रक्षा हेतु एक ‘कार्य योजना का भी निर्माण किया गया। आप पर्यावरण संबंधी कानून Hindibag पर पढ़ रहे हैं।
इसके पश्चात् ही अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर “UNEP”, “Earthwatch”, “Global Environment Monitoring System” आदि कार्यक्रम चलाये गये और 5 जून को ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ के रूप में मनाये जाने का निश्चय किया गया। पर्यावरण के सम्बन्ध में अनेक क्षेत्रीय अनुबन्ध भी हुए हैं। तात्पर्य यह है कि आज विश्व के सभी राष्ट्र पर्यावरण के संकट से बचने हेतु सहयोग को तत्पर हैं तथा इस दिशा में पर्याप्त प्रयत्न किये जा रहे हैं।

भारत में पर्यावरण की रक्षा हेतु अनेक कानून बनाये गये हैं। स्वतन्त्रता से पूर्व सामान्य कानूनों के अन्तर्गत ही जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, शोर प्रदूषण, वन संरक्षण आदि के नियम थे। ये अधिक प्रभावशाली नहीं थे और उस समय प्रदूषण की समस्या व्यापक भी नहीं थी। स्वतन्त्रता के पश्चात् योजनाओं के अन्तर्गत जो औद्योगिक विकास, परिवहन विकास, शहरीकरण आदि से पर्यावरण सम्बन्धी अनेक समस्याओं का जन्म हुआ, फलस्वरूप संविधान की धारा 47, 48-A और 51-A में अनेक पर्यावरण रक्षा के प्रावधान जोड़े गये।
अनेक एक्ट इससे सम्बन्धित बनाये गये। इसके अतिरिक्त भी अनेक प्रावधानों द्वारा पर्यावरण की रक्षा की जाती है। अनेक उदाहरणों में उच्च न्यायालयों ने पर्यावरण विरोधी गतिविधियों पर रोक लगाई है। केन्द्र में एक स्वतन्त्र मन्त्रालय पर्यावरण के संरक्षण हेतु है। इसी प्रकार राज्यों में भी पर्यावरण मन्त्रालय कार्य कर रहे हैं तथा वे क्षेत्रीय परिस्थितियों के अनुरूप नियम बनाते हैं तथा पर्यावरण की रक्षा का प्रयत्न करते हैं। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि पर्यावरण सुरक्षा एवं संरक्षण कानूनी प्रावधानों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। यद्यपि यह कार्य कानून की अपेक्षा जनसहयोग एवं जन-जागृति से अधिक प्रभावशाली रूप में किया जा सकता है।
