पर्यावरण भूगोल के 3 उद्देश्य विकास संबंध

पर्यावरण भूगोल की मुख्य अध्ययन वस्तु मानव-पर्यावरण संबंधों का अध्ययन है तथा इस विषय अध्ययन का प्रमुख उपागम पारिस्थितिकी उपागम है। पर्यावरण भूगोल को निम्नलिखित रुप से परिभाषित किया जा सकता है-

पर्यावरण भूगोल सामान्य रूप से जीवित जीव तथा प्राकृतिक पर्यावरण के मध्य मुख्य रूप से प्रौद्योगिक स्तर पर विकसित आर्थिक,मानव एवं उसके प्राकृतिक पर्यावरण अंतर संबंधों के स्थानिक गुणों का अध्ययन है।

सविन्द्र सिंह के अनुसार
पर्यावरण भूगोल
पर्यावरण भूगोल

पर्यावरण भूगोल का विकास

बीसवीं शताब्दी में वातावरण भूगोल की शुरुआत हुई। इसके विक्रय रूप ईसा पूर्व के ग्रंथों में भी मिलते हैं। इन विचारों पर आधारित प्राचीन लेखों एवं जंतुओं में वातावरणीय अध्ययन के संदर्भ में जो कुछ प्राप्त होता है उसे हम ग्रहण करते हैं। वातावरण के अध्ययन में यह सुविधा आवश्यक है कि इस प्रकार के अध्ययन के ऐतिहासिक विकास को मानव भूगोल के एतिहासिक विकास से जोड़ा जाता है। वातावरणीय भूगोल मानव भूगोल की एक शाखा है। वातावरण भूगोल के अध्ययन की सुविधा के लिए निम्न शिक्षकों के अंतर्गत विवेचना की जा सकती है-

  1. आधुनिक या वर्तमान काल।
  2. आरंभिक युग।
  3. जर्मनी मेरीटर काल और उसके बाद का समय।
  4. बीसवीं शताब्दी के वातावरण संबंधी विचार।

स्थल, जल तथा वायु के सम्मिलित से निर्मित पृथ्वी के चारों ओर व्याप्त मोटी परत, जो सभी प्रकार के जीवो वनस्पति तथा मानव सहित जंतुओं का पोषण करती है। इनको ही जीवमंडल कहते हैं। पर्यावरण भूगोल के विषय क्षेत्र के अंतर्गत पर्यावरण विज्ञान अथवा पर्यावरण अध्ययन के तीन प्रमुख पहलुओं को सम्मिलित किया जाता है।

  1. पर्यावरण की मूलभूत संकल्पना, प्रमुख पहलू तथा पर्यावरण एवं मानव व उनके समाज के मध्य संबंध।
  2. पारिस्थितिकी तंत्र, पर्यावरण अवनयन तथा प्रदूषण।
  3. पर्यावरण प्रबंधन।
पर्यावरण भूगोल के उद्देश्य
पर्यावरण भूगोल

1. पर्यावरण की मूलभूत संकल्पना

इसके अंतर्गत पर्यावरण के निम्न पदों को सम्मिलित किया जाता है- पर्यावरण भूगोल की परिभाषा, उसका विषय क्षेत्र तथा उसकी मूलभूत संकल्पनाए, पर्यावरण की परिभाषा, उनका संगठन तथा उसके प्रकार, पर्यावरण तथा भूगोल के मध्य संबंध, मनुष्य तथा प्रकृति,पर्यावरण तथा समाज पारिस्थितिकी तथा मूलभूत संकल्पना तथा सिद्धांत, पारिस्थितिकी तंत्र तथा भूगोल, मानव पर्यावरण संबंध, पर्यावरण के मौलिक सिद्धांतों के बीच अंतर संबंध।

2. पारिस्थितिकी तंत्र पर्यावरण अवनयन तथा प्रदूषण

इसके अंतर्गत निम्न पदों का अध्ययन किया जाता है- परिस्थिति तंत्र के संगठन तथा उसकी संरचना, परिस्थिति तंत्र में उर्जा प्रवाह, जैव भू रासायनिक चक्र तथा परिस्थितिकी तंत्र में तत्वों तथा पदार्थों का संचरण एवं चक्र पर्यावरण अवनयन तथा पर्यावरण, संकट की प्रकृति तथा परिणाम, प्रदूषण निवारण उपाय तथा प्रदूषण नियंत्रण कार्यक्रम आदि।

3. पर्यावरण प्रबंधन

पर्यावरण प्रबंधन संकल्पना,पर्यावरण प्रबंधन के पहलू तथा उपागम पर्यावरण प्रबंधन के परिस्थितिकी आधार-संसाधन प्रबंधन, संसाधन प्रबंधन के उपाय तथा संसाधनों का सर्वेक्षण आदि।

पर्यावरण भूगोल के उद्देश्य

पर्यावरण भूगोल के उद्देश्य

स्थल,जल,वायु के सम्मिलित से निर्मित पृथ्वी के चारों ओर व्याप्त मोटी परत जो सभी प्रकार से जीवो (वनस्पति तथा मानव सहित जंतु का) पोषण करती है जीवमंडल कहते हैं। इस जीवनदायी जीव मंडल में बिना किसी रक्षक साधन के सभी प्रकार के जीव रूप से संभव होते हैं। यह जीव मंडल की वृहदस्तरीय भूपारिस्थितिक तंत्र है जो कि पर्यावरण गोकुल के अंतर्गत अध्ययन के मूलभूत क्षेत्रीय इकाई है इस तरह पर्यावरण भूगोल के प्रमुख उद्देश्य है।

  1. प्राकृतिक पर्यावरण के संगठन को का अलग-अलग एवं सम्मिलित रूप से एक साथ अध्ययन।
  2. इन संगठनों में पर्यावरण तथा जैविक प्रक्रम ओं के माध्यम से विभिन्न स्तरीय सहलगताऔ का अध्ययन।
  3. मानव पर्यावरण के मध्य संबंधों एवं अंतर संबंधों का संबंध।

पर्यावरण भूगोल के आधारभूत संकल्पना

पर्यावरण भूगोल मूल रूप से जीवित ग्रह के रूप में पृथ्वी के संपूर्ण पर्यावरण (भौतिक तथा जैविक) का अध्ययन एवं पर्यावरण भूगोल के अध्ययन की वायुमंडलीय, स्थलमंडल, जलमंडल संगठनों से युक्त पृथ्वी की जीवन-पोषित है। पर्यावरण भूगोल के निम्नलिखित प्रमुख संकल्पना है-

  1. पर्यावरण एक व्यापक शब्दावली है जिसका सामान्य अर्थ होता है आस-पास परंतु भौगोलिक दृष्टि से पर्यावरण के तहत जीवन-पोसी परत अर्थात जीव मंडल के अजैविक या भौतिक (स्थल, जल तथा वायु) एवं जैविक (पादप एवं जंतु के साथ-साथ मानव तथा उसके विभिन्न कार्य, संगठन एवं संस्थाएं) संगठनों को सम्मिलित किया जाता है।
  2. गतिक उद्वभवशील पृथ्वी तंत्र सामान्य रूप से एवं जीवमण्डल मुख्य रूप से प्रत्यक्ष पृक्रमो (भौतिक एवं जीवीय) द्वारा संचालित एवं नियंत्रण होता है। भौतिक या भूमि की प्रकृति चक्र समूह द्वारा कार्य करते हैं।
  3. विभिन्न में भौतिक, रासायनिक तथा जीवीय पृक्रम भूतल के पदार्थों (जैविक एवं अजैविक) के सर्जन एवं अनुरक्षण एवं विकास में सतत कार्य है भूतल के पदार्थों के सेवन में संगठन क्रम को भूमि की चक्र कहते हैं जिसके अंतर्गत कई उपचक्र होते हैं- जलीय चक्र, शैल चक्र।
पर्यावरण
  1. भूतल पर जीवन पोषण के लिए जीवीय समुदाय में वायु जल तथा मृदा के रसायनिक तत्व या पोषक तत्वों के चक्रण दो सादा से प्रभावित तथा परिवर्तित किया जाता है तथा अब भी परिवर्तित कर रहे हैं, परंतु भूतल पर मानव  के आगमन तथा उनके प्रौद्योगिक कौशल में क्रमशं वृद्धि ने जैव भू रासायनिक चक्र में व्यापक स्तर पर व्यवधान तथा विक्षोभ पैदा किया है।
  2. भौतिक/पर्यावरण तथा जीवीए परम एकरूपतावाद के नियम के अनुसार कार्य करते हैं। जेम्स हट्न1785 में एकरूपता बाद के नियम का प्रतिपादन किया इसके नियम से दो प्रमुख सूत्र हैं-
    1. वर्तमान भूत की कुंजी है।
    2. ना तो आधी का कोई आसार है और ना ही अंत का कोई आसार था। एकरूपता बाद का नियम यह है कि वह सभी भौतिक नियम जो कार्यरत हैं समस्त भूगर्भिक समय के दौरान कार्य करते हैं यद्यपि उनकी तीव्रता आवश्यक रूप से सदा समान नहीं रहती है।
  3. भौतिक एवं जैवीय प्रक्रम इस तरह कार्य करते हैं कि किसी निश्चित क्षेत्र में निश्चित काल अवधी में यदि कोई परिवर्तन होता है तो प्राकृतिक दशा में उस परिवर्तन की प्रेरणात्मक पुनः निवेष्टिता द्वारा समुचित क्षतिपूर्ति हो जाती है।
  4. पर्यावरण के जैविक एवं अजैविक संगठनों में पारस्परिक संबंध होते हैं।

भूगोल और पर्यावरण में संबंध

  1. भूगोल समस्त तत्वों तथा पदार्थों के स्थानिक गुणों का निश्चित समय के संदर्भ में अध्ययन करता है जबकि अन्य विज्ञान एकांकी तत्वों का ही अध्ययन करते हैं।
  2. भूगोल तत्वों तथा पदार्थों के स्थानिक संगठन का अध्ययन करता है जबकि अन्य विज्ञानों का इस तरह के अध्ययन से कोई वास्ता नहीं है ।
  3. समाकलानात्मक विज्ञान होने के नाते भूगोल पृथ्वी के सभी तत्वों तथा संगटको एक साथ संश्लिष्ट करता है तथा उसका समग्र रूप से अध्ययन करता है।
  4. भूगोल सामाजिक तथा प्राकृतिक विज्ञानों के मध्य पुल का कार्य करता है अर्थात इनको एक दूसरे से जोड़ता है। भूगोल ही एक ऐसा विषय है जो पर्यावरण का समग्र रूप से अध्ययन करता है।
विश्व इतिहास
पर्यावरण भूगोल
  1. भूगोल जीवमंडल का समग्र रूप से अध्ययन करता है अर्थात यह जीव मंडल के सभी संगठनों की विशेषताओं तथा उनके आपसी अंतर संबंधों का अध्ययन करता है।
  2. भौतिक तंत्र के विश्व विज्ञान के क्षेत्र में भूगोल अन्य विज्ञानों के आगे क्योंकि भूगोलविदो की संरचना,भू-प्राकृतिक प्रक्रमो, जलवायु,वनस्पति आदि का एक साथ ज्ञान होता है जबकि अन्य विज्ञानों इन पक्षो में से किसी एक पक्ष का ही अध्ययन करते हैं।
  3. भूगोलविद भौतिक पर्यावरण तथा मनुष्य के बीच जटिल संबंधों के वितरण के स्थान क्षेत्र अवस्थिति के निवारण, संबंधों के मापन,वितरण की विभिन्न नेताओं के कारकों का पता करने तथा कारकों के निवारण उपायों के सुझाव देने में सहायक हैं।
  4. भूगोलविद जीवन परत की गुणवत्ता के आधार पर पर्यावरण प्रदेशों की पहचान एवं निवारण कर सकते हैं। उनके स्थान विशेष में अवशिष्ट थी का निवारण कर सकते हैं तथा उन्हें मानचित्र पर प्रदर्शित कर सकते हैं।

इस प्रकार स्पष्ट है कि भूगोल वास्तव में पर्यावरण का अध्ययन है।

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पारिस्थितिक तंत्रमृदा तंत्र विशेषताएं महत्व संघटकहरित गृह प्रभाव
ओजोन क्षरणपर्यावरण परिवर्तन के कारणमृदा अपरदन
पर्यावरण अवनयनभारत में वनोन्मूलनमरुस्थलीकरण
जल प्रदूषणवायु प्रदूषणमृदा प्रदूषण
बाघ परियोजनाजैव विविधता ह्रास के कारणभारत में जनसंख्या वृद्धि के कारण
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