पर्यावरण अवनयन – पर्यावरण तंत्र की संरचना जैविक अजैविक संघटकों द्वारा होती है। यदि इस तंत्र के इसी संघटक में कोई परिवर्तन होता है तो अन्तः निर्मित स्वतः नियामक क्रियाविधि द्वारा उसकी क्षतिपूर्ति हो जाती है और पर्यावरण तंत्र में सन्तुलन बना रहता है। पर्यावरण अवनवन का अर्थ है “पर्यावरण के भौतिक संघटकों में जैविक प्रक्रमों विशेषकर मानव की क्रियाओं द्वारा एवं प्रकृति की क्रियाओं द्वारा इस सीमा तक ह्रास एवं अवक्रमण हो जाना चाहिए कि उसे पर्यावरण की स्वतः नियामक क्रियाविधि द्वारा भी सही नहीं किया जा सकता है।”
पर्यावरण अवनयन
पर्यावरण अवनयन तथा उससे जनित विश्वव्यापी पर्यावरण संकट का सर्वप्रमुख कारण मनुष्य तथा प्राकृतिक पर्यावरण के बीच तेजी से बिगड़ता सम्बंध है। वास्तव में प्राकृतिक संसाधन के तेजी से विदोहन प्रौद्योगिकी प्रगति एवं औद्योगिक एवं नगरीय विस्तार के कारण प्राकृतिक पर्यावरण पर प्रतिकूल अत्य प्रभाव पड़े हैं।
प्राकृतिक एवं मानवीय कारणों से जब पर्यावरण की गुणवत्ता में ह्रास होने लगता है तो उसे हम पर्यावरण अवनयन कहने लगते हैं।

पर्यावरण अवनयन के प्रकार
पर्यावरण मुख्यतः दो प्रकार का होता है पहला चरम घटनाओं व प्रकोप तथा दूसरा पर्यावरण प्रदूषण। चरम घटनाएं एवं प्रकोप दो प्रकार के होते हैं- प्राकृतिक प्रकोप तथा मानव जन्य प्रकोप।
- प्राकृतिक प्रकोप – प्राकृतिक प्रकोप के अंतर्गत भूकंप, ज्वालामुखी, भूस्खलन, बाढ़, सूखा, चक्रवात, उल्कापात आदि सम्मिलित किए जाते हैं।
- मानव निर्मित प्रकोप – मानव निर्मित प्रकोप के अंतर्गत वन विनाश, वायुमंडल से विषाक्त तत्वों का विमोचन, आणविक संयंत्रों से प्राणघातक गैसों का रिसाव, आणविक विस्फोट एवं अति सह जनसंख्या वृद्धि को सम्मिलित किया जाता है।
पर्यावरण अवनयन के कारण
पर्यावरण अवनयन के निम्नलिखित कारक हैं जो अग्रलिखित है-
- धार्मिक एवं दार्शनिक कारक
- वनों का कटाव
- जनसंख्या वृद्धि
- कृषि विकास
- औद्योगीकरण
- नगरीयकरण
- अत्याधुनिक या प्रौद्योगिकी उन्नति
- असीमित खनन
- आर्थिक विकास में असमानता
- अशिक्षा व पर्यावरण अबोध या अज्ञानता
1. धार्मिक एवं दार्शनिक कारक
धार्मिक विचारधारा के अन्तर्गत यह माना जाता है कि मानव प्रकृति तथा अन्य सभी जीवों से श्रेष्ठ है तथा प्रकृति ने प्रत्येक वस्तु के उपयोग के लिए बनाया है। इसका प्रभाव यह हुआ कि मानव ने प्राकृतिक संसाधन का अत्यधिक विदोहन किया जिससे पर्यावरण अवनयन हुआ। आर्थिक निश्चयवादी दृष्टिकोण भी इस विचारधारा पर आधारित है कि मनुष्य का प्रकृति पर पूर्ण नियंत्रण होता है तथा आर्थिक एवं औद्योगिक विस्तार के लिए प्राकृतिक संसाधन का भरपूर उपयोग किया जाता है। इस विचारधारा के कारण विकसित (पश्चिमी देशों) उपनिवेशों में अत्यधिक होने से अनेक पर्यावरणीय समस्यायें उत्पन्न हुई।

2. वनों का कटाव
वनों के विनाश से तात्पर्य वन की अन्धाधुंध कटाई से है वन विनाश मानद क्रियाकलापों की अदूरदर्शिता का परिणाम है। वनों द्वारा CO2 का अवशोषण होता है तथा इनसे असंख्य प्राणियों को भोजन ईंधन आदि प्राप्त होता है। स्थानीय प्रादेशिक एवं विश्व स्तरों पर वन विनाश के निम्न कारण हैं –
- वनभूमि का कृषि में परिवर्तन
- झूमिंग कृषि
- वनों में चारागाह का रूपांतरण
- बहुउद्देशीय परियोजना
- दावानल, बडवा नल इत्यादि।
3. जनसंख्या वृद्धि
वास्तव में पर्यावरण अवनयन का मूल कारण जनसंख्या वृद्धि है क्योंकि कृषि में विस्तार नगरीकरण, औद्योगीकरण आदि बढ़ती जनसंख्या आदि का प्रतिफल है। औद्योगीकरण के पश्चात जनसंख्या में तीव्र वृद्धि हुयी। फलतः सन् 1900 में विश्व जनसंख्या 17.7 मिलियन हो गयी। सन् 1951 में 253 तथा वर्तमान में 600 मिलियन हो गयी। इस बढ़ती हुयी जनसंख्या के लिए भूमि का अत्यधिक प्रयोग हो रहा है।

4. कृषि विकास
अधिक कृषि उत्पादन करने के लिए कृषि क्षेत्रों का अत्यंत विस्तार किया जा रहा है। इसके लिए वनों को साफ किया जा रहा है। उष्ण एवं उपोष्ण प्रदेशों में वनों को साफ करके खेती की जा रही है। अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए गहरी कृषि की जा रही है। सिंचाई की उत्तम व्यवस्था के लिए नलकूपों से अत्यधिक मात्रा में भूमिगत जल का निष्कासन किया जा रहा है जिससे भूमिगत जल के तल की समस्या पैदा हो रही है। अधिक कृषि उत्पादन के लिए मिट्टी में रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशी दवाओं का प्रयोग हो रहा है जिससे मिट्टी व कृषि उत्पादों में प्रदूषण बढ़ता जा रहा है।
5. औद्योगीकरण
पर्यावरण अवनयन का एक मुख्य कारण है किसी भी देश में बढ़ते औद्योगीकरण के साथ कारखानों में कच्चे माल की आवश्यकता होती है। जिसकी प्राप्ति के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अधिक विदोहन किया जाता है। औद्योगीकरण के अपशिष्ट पदार्थों से जल, वायु, एवं मिट्टी में प्रदूषण हो रहा है।
औद्योगीकरण के कारण द्रुतगामी यातायात साधनों के विकास में से CO2, हाइड्रोकार्बन, सल्फर एवं सीसा के कण इत्यादि पर्यावरण अवनयन कर रहे हैं। कारखानों में से CO2 के मिश्रित होने से तापमान में वृद्धि हो रही है। आणविक खपतों से जहरीली गैसों के रिसाव से अनेक लोगों की मृत्यु हो रही है। उक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि औद्योगिक विकास पर्यावरण अवनयन का प्रधान कारण है।

6. नगरीयकरण
औद्योगीकरण के साथ साथ नगरीयकरण में भी वृद्धि हो रही है। विश्व में सन 1950 में नगरीयकरण की मात्रा 29% थी। लेकिन 2000 तक यह 51% हो जाने की आशा है। नगरीयकरण में विस्तार के कारण सडकों, भवनों सुचालित वाहनों, कारखानों की संख्या एवं हानिकारक गैसों आदि में भारी वृद्धि हो रही है जिससे अनेक पर्यावरणीय समस्यायें उत्पन्न हो रही हैं। नगरीकरण के कारण मलिन बस्तियों के प्रादुर्भाव होने से अनेक बीमारियाँ फैलती हैं नगरों में वाहनों की संख्या अधिक होने से नगरों का पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। नगरों में बढ़ी आबादी के कारण पेयजल के अत्यधिक विदोहन में कभी-कभी सतह के नीचे कोटरों का निर्माण हो जाता है। जिससे कभी-कभी भूमि धँस जाती है।
7. अत्याधुनिक या प्रौद्योगिकी तकनीक
मानव अत्याधुनिक तकनीक द्वारा जलवायु में परिवर्तन कर रहा है। रसायन उर्वरकों का कीटनाशी रोगनाशी दवाओं आदि का प्रयोग अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी तकनीक की देन है जिससे उत्पादन बढ़ा है। लेकिन मृदा प्रदूषण, अन्न, जल व वायु प्रदूषण बढ़ा है। अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी द्वारा ही बड़े-बड़े बाँधों का निर्माण सम्भव हुआ जिससे वन विनाश जीवों का पलायन जलजमाव, बाढ़ व भूकम्प इत्यादि घटनायें हो रही हैं।

8. असीमित खनन
भूगर्भ में अनेक खनिजों का असीमित खनन किया जा रहा है इस खनन कार्य से भूपटल एक ओर ऊँचा हो रहा है तो दूसरी ओर नीचा हो रहा है। जिससे अनेक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव बढ़ रहे हैं। इससे असीमित खनन से पर्यावरण प्रदूषण हो रहा है।
9. आर्थिक विकास में असमानता
विश्व में राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर आर्थिक विकास में असमानता पायी जाती है। जो लोग आर्थिक विकास से वंचित है वे पर्यावरण अवनयन की चिन्ता नहीं करेंगे। आर्थिक असमानता की खाई कम करने के लिए विकासशील देश विकसित देश से कर्ज लेते हैं और विकसित इस कर्ज की अदायगी के लिए संसाधनों का विदेहन करते हैं। जिससे पर्यावरण अवनयन बढ़ता जा रहा है।
10. अशिक्षा व पर्यावरण अबोध या अज्ञानता
यह भी पर्यावरण संकट उत्पन्न करने मे सहायक है। पर्यावरण बोध का प्रतिफल है कि भारत में लोग पीपल, तुलसी इत्यादि वृक्षों के प्रति संवेदनशील है। अगर लोगों को पर्यावरण बोध हो जाए तो वनो का विकास भी रुक जाए, विकसित देशों में पर्यावरण बोध के कारण ही कोयले का अंधाधुंध विदोहन न करके उसके संरक्षण पर जोर दिया जा रहा है।

पर्यावरण अवनयन रोकने के उपाय
पर्यावरण अवनयन की ओर ध्यानआकृष्ट करने में ‘Limite of the Growth’ तथा ‘Earth’ जैसी पुस्तकों का योगदान है। पर्यावरण अवनयन के प्रति विश्वव्यापी जागरूकता के कारण गल्को ने 1968 में मानव व पर्यावरण की समस्याओं पर पेरिस में एक सम्मेलन आयोजित किया। 1972 में स्टाकहोम (स्वीडन की राजधानी) में हुयी। भारत में भी (N.E.C.E.P.) नामक समिति का किया गया। पर्यावरण अवनयन को निम्न उपायों द्वारा कम किया जा सकता है।
- तीव्र जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करना।
- प्रदूषण रहित प्रौद्योगिकी का विकास करना।
- प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण विदोहन करना।
- वन विनाश को रोकना।
- अनियोजित नगरीयकरण को नियंत्रित करना
- रासायनिक उर्वरकों कीटनाशक दवाओं व हानिकारक रसायनों का न्यूनतम प्रयोग करना।
- ओजोन परत को क्षयकारी क्लोरोफ्लोरो कार्बन तथा हैलेन एवं मेथाइल ब्रोमाइड आदि के उत्पादन व उपभोग पर नियंत्रण करना।
