पर्यवेक्षिक अध्ययन विधि – सन् 1971 में डेजी मारविल जॉन ने इस पद्धति का सुझाव प्रस्तुत किया था। पर्यवेक्षित अध्ययन अपने नाम के अनुरूप अध्ययन की एक ऐसी विधि है जिसमें छात्र अपने निर्धारित कार्य के दौरान अपने सामाजिक अध्ययन – शिक्षक के उचित निर्देशन प्राप्ति के साथ अपनी समस्याओं का निराकरण भी प्राप्त करते हैं। इसमें छात्र सामाजिक अध्ययन-शिक्षक के निर्देशन में किसी समस्या या प्रकरण पर योजनानुरूप कार्य करते हैं।
पर्यवेक्षिक अध्ययन विधि
कुछ विद्वानों का मत है कि पर्यवेक्षित अध्ययन में बालक के प्रत्येक कार्य का अवलोकन अनिवार्य है। परन्तु व्यावहारिक दृष्टि से यह सम्भव नहीं है क्योंकि अध्यापक का कार्य एक मार्गदर्शक तथा मित्र के रूप में है न कि अपनी विचारधारा के अनुरूप कार्य कराने वाले स्वामी की तरह है। वास्तविकता में पर्यवेक्षित अध्ययन शिक्षक द्वारा छात्रों के समूह का निरीक्षण है जो किसी योजना के अनुरूप होता है।

इस विधि को विद्वान परम्परागत शिक्षण प्रविधियों के दोषों के निवारण स्वरूप विकसित विधि मानते हैं। वस्तुतः इस प्रविधि में शिक्षक बालकों के कार्यों का व्यक्तिगत पर्यवेक्षण करता है।
पर्यवेक्षित अध्ययन एक प्रक्रिया है, जिसमें शिक्षक के बिना छात्र द्वारा किये जाने वाले स्वतन्त्र अध्ययन के अपेक्षित अभ्यास में बाधा उत्पन्न होने पर शिक्षक प्रश्नों के उत्तर देने और सुझाव प्रस्तुत करने के लिए उपलब्ध रहता है।
शिक्षा शब्दकोश के अनुसार
निरीक्षित अध्ययन अध्यापक के मार्गदर्शन में छात्र के कार्य करने तथा छात्रों द्वारा किए गये अध्ययन कार्य को परिवीक्षित करने का अध्यापक को समान रूप से अवसर प्रदान करता है।
क्लार्क तथा स्टार के अनुसार
पर्यवेक्षिक अध्ययन विधि के गुण
- इस विधि का सर्वोत्तम गुण यह है कि इसमें वैयक्तिक भिन्नता के अनुकूल शिक्षा प्रदान की जाती है।
- सामान्य कक्षा-शिक्षण में अध्यापक के कठोर व्यवहार के विपरीत इस विधि में गुरु-शिष्य के उत्तम सम्बन्ध एक सहायक तथा परामर्शदाता के रूप में विकसित होते हैं।
- इससे कक्षा के पिछड़े बालकों की शिक्षा उपयुक्त ढंग से दी जाती है।
- इस विधि द्वारा छात्रों में सामाजिक विज्ञान की विषयवस्तु से सम्बन्धित कौशलों का विकास आसानी से किया जाता है।
- इसमें छात्रों के अध्ययन विधि का स्वतन्त्र विकास होता है जिससे अध्ययन के प्रति रुचि जागृत होती है और वे स्वाध्ययन हेतु प्रेरित होते हैं।

पर्यवेक्षिक अध्ययन विधि के दोष
- समयावधि में सम्पूर्ण पाठ्यक्रम पूरा नहीं किया जा सकता।
- यह अधिक खर्चीली है तथा समय भी अधिक लगता है।
- सामान्य शिक्षकों द्वारा यह विधि सरलतापूर्वक नहीं अपनायी जा सकती है।
- शिक्षकों के अधिक हस्तक्षेप के कारण तीव्र बुद्धि बालकों को हानि रहने की सम्भावना रहती है।
- शिक्षक एवं शिक्षार्थी दोनों के लिए कष्टप्रद है।
- इस विधि से छात्रों में आत्मनिर्भरता तथा आत्मविश्वास की भावना कम जागृत होती है।
पर्यवेक्षिक अध्ययन विधि की सावधानियाँ
- शिक्षक का अन्तर्दृष्टि तथा साधन सम्पन्न होना आवश्यक है।
- शिक्षक को वैज्ञानिक दृष्टिकोण युक्त योजना का निर्माण करना चाहिए।
- इस अध्ययन प्रविधि में विद्यार्थियों में मैत्रीभाव से कार्य करने की आदत डालने का प्रयास करना चाहिए।
- पिछड़े बालकों को बहिर्मुखी बनाने का प्रयास शिक्षक को करना चाहिए।
