पठन अर्थ – लिखित भाषा को बाँचने की क्रिया को पढ़ना अथवा पठन कहा जाता है; जैसे-पम्फलेट पढ़ना, समाचार पत्र पढ़ना और पुस्तकें पढ़ना। परन्तु भाषा शिक्षण के सन्दर्भ में पढ़ने का अर्थ होता है।
पठन अर्थ
किसी के द्वारा लिखित भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त भाव एवं विचारों को पढ़कर समझना। अर्थ बोध एवं भाव की प्रतीति पढ़ने के आवश्यक तत्त्व होते हैं। इस प्रकार जब हम किसी के द्वारा लिखे किसी लेख, कहानी, निबन्ध, नाटक अथवा पद्य को पढ़कर उसका अर्थ एवं भाव ग्रहण करते हैं तो हमारी इस क्रिया को पढ़ना अथवा पठन कहते हैं, यह बात दूसरी है कि हम उसका अर्थ एवं भाव किस सीमा तक समझते और ग्रहण करते हैं।

पठन दो प्रकार से किया जाता है- मौखिक रूप से और मौन रूप से। मौखिक और मौन रूप से पठन करने के भी अनेक रूप है। इन सब पर हमने अलग से सविस्तार चर्चा पठन शिक्षण में की है। इस अध्याय में हम सभी प्रकार के पठनों के आवश्यक तत्त्वों एवं उनके विकास के उपायों का उल्लेख भर कर रहे हैं।
पठन का आधार
लिखित भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त भाव एवं विचारों को मौखिक अथवा मौन रूप से पढ़कर समझने के लिए जिन तत्त्वों की आवश्यकता होती है उन्हें ही पठन के तत्त्व एवं आधार कहते हैं। पठन के ये आधार निम्नलिखित हैं-
- पठनकर्ता की दृश्येन्द्रिय (आँख) एवं उच्चारण अंग (कण्ठ, मुख विवर और नासिका)।
- पठनकर्ता का लिपि ज्ञान एवं स्पष्ट अक्षरोच्चारण।
- पठनकर्ता का अपना आवश्यक शब्द भण्डार, शुद्ध शब्दोच्चारण का अभ्यास एवं वाक्य रचना तथा विराम चिह्नों का ज्ञान।
- पठनकर्ता की तत्परता, पठन में उसकी रुचि एवं अवधान।
- पठनकर्ता का धैर्य के साथ पूर्ण मनोयोग से उचित स्वर एवं उचित गति के साथ सस्वर पठन एवं उचित गति के साथ मौन पठन का अभ्यास।
- पठनकर्ता में पठन के साथ अर्थ एवं भाव समझने की क्षमता।
- पठनकर्त्ता में विराम चिह्नों के अनुसार अर्थ एवं भावबोध करने की क्षमता।

पठन कौशल विकास
किसी भी कौशल का विकास करने के लिए सबसे अधिक आवश्यकता अभ्यास की होती है। हम बच्चों को पठन के जितने अधिक अवसर प्रदान करेंगे वे पठन कौशल में उतने ही अधिक निपुण होंगे। परन्तु यह कार्य एक-दो दिन, माह अथवा वर्षों में पूरा नहीं किया जा सकता। इसके लिए शिक्षा के प्रत्येक स्तर पर सतत् प्रयास करना आवश्यक होता है।
पठन कौशल विकास का अर्थ है बच्चों में पठन कौशल के आवश्यक तत्त्वों का विकास करना। जहाँ तक पठन कौशल के विकास का प्रश्न है, यह कार्य विद्यालयों में ही शुरू किया जाता है। प्रारम्भ में बच्चों को अक्षरों का उच्चारण और लेखन एक साथ सिखाया जाता है, उसके बाद उन्हें दो-दो, तीन-तीन अक्षरों से बने शब्दों का उच्चारण करने और उन्हें लिखने का अभ्यास कराया जाता है और उसके बाद पढ़ने अथवा पठन कौशल का विकास किया जाता है। इस प्रकार पठन कौशल के विकास के लिए भिन्न-भिन्न स्तरों पर भिन्न-भिन्न कार्य करने होते हैं।
